Thursday, July 4, 2013

गोपीनाथ का गडबडझाला

बेचारे गोपीनाथ। जुबान फिसल गयी। हंगामा हो गया। जो कुछ कहा उसमें लेश मात्र भी झूठ नहीं था। जब से देश आजाद हुआ है, लगभग तभी से धनबल और बाहुबल के आतंक की बदोलत ही तो चुनावी युद्ध लडे जा रहे हैं। जनता जनार्दन की आंखों में सभी तो धूल झोकते हैं। देश का चुनाव आयोग भी अंधा और बहरा नहीं है। नेताओं की सभी चालों से वाकिफ है। फिर भी कुछ भी नहीं करता। जब तक कोई उसे न झिं‍झोडे तब तक हिलता-डुलता ही नहीं। गोपीनाथ मुंडे भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता हैं। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। राजनीति के हर दावपेंच से वाकिफ हैं। अपनी मनवाने के लिए पार्टी तथा दिग्गजों पर भी वार करने से नहीं चूकते। पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी की नाक में अक्सर दम किये रहते हैं। दरअसल दोनों पहलवानों में नूरा कुश्ती चलती रहती है। लोग मजा लेते रहते हैं। इस बार कुछ अलग हटकर हुआ। उन्होंने उस सच को जगजाहिर कर दिया जिसपर दूसरे पर्दा डालते हैं। लुकाते-छिपाते हैं।
देश की जनता भी जानती है कि विधानसभा और लोकसभा चुनावो में बेतहाशा धन लुटाया जाता है। काले धन की जमकर बरसात होती है। लाखों वोटरों को भी चुनावी मौसम का बेसब्री से इंतजार रहता है। मुफ्त में दारू, कंबल, साडी, गाडी और कडकते नोटों के उपहारों से झोली भर जाती है। चुनाव आयोग भी जानता-समझता है कि उसने चुनावी खर्च की जो सीमा तय की है उसका पालन कर पाना लगभग असंभव है। गोपीनाथ ने जब यह कहा कि उन्होंने लोकसभा के पिछले चुनाव में आठ करोड उडाये तो जहां-तहां खलबली मच गयी। मुंडे के विरोधियों ने बंदूकें तान लीं। कई राजनेता उनके विरोध में ऐसे खडे हो गये जैसे वे दूध के धूले हों। उन्होंने कभी भी चुनावी जंग में तय सीमा से एक पैसा भी ज्यादा खर्च न किया हो। दरअसल मुंडे की खिलाफत करने वालों को मुंडे का सच कहना अखर गया। मुंडे की इस स्वीकारोक्ति के मायने यह भी हैं कि इस देश में चुनाव धनबल के दम पर ही लडे जाते हैं। चुनाव लड पाना हर किसी के बस की बात नहीं है। जिनकी तिजोरियां लबालब भरी होती हैं वही नेतागिरी करते हैं और चुनाव लडने की हिम्मत दिखाते हैं। अक्सर ईमानदारी और गरीबी का चोली-दामन का साथ होता है इसलिए पाक-साफ लोग इस देश में चुनाव लड ही नहीं पाते। यही वजह है कि संसद और विधानसभा भवनों में अपराधियों और माफियाओं का दबदबा बढता चला जा रहा है। सत्ता और राजनीति में नाम मात्र के ईमानदार चेहरे अपनी पुख्ता उपस्थिति दर्ज करवाने में सफल हो पाते हैं।
गौरतलब है कि चुनाव आयोग के द्वारा लोकसभा चुनाव में ४० लाख रुपये और विधानसभा चुनाव में १६ लाख रुपये खर्च करने की सीमा तय की गयी है। इस नियम का शायद ही कभी पालन होता हो। इतनी रकम में तो चुनाव प्रचार के लिए कार्यकर्ता, किस्म-किस्म के लठैत और बदमाश भी नहीं मिल पाते। इससे कहीं ज्यादा धन तो मीडिया को 'सैट' करने में ही खर्च हो जाता है। बहुतेरे वोटर भी नोट अंदर करने के बाद ही वोट देने के लिए घर से बाहर निकलते हैं। अंधाधुंध धन बरसाने की रस्म को हर चुनावी पहलवान को निभानी पडती हैं। जो नहीं निभाते वे जहां के तहां धराशाही हो जाते हैं। चुनावी लुटिया डूब जाने के बाद भी उन्हें अपनी जुबान बंद रखनी पडती है। यही परंपरा है। जिसे लगभग सभी निभाते हैं। मुंडे ने तो जोश में आकर सच उगल दिया। यही बडबोलापन उन्हें बहुत महंगा पडा। चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस भेजने में देरी नहीं लगायी। आयकर विभाग ने भी शिकंजा कस ही दिया। जो शख्स चुनावी खर्च की तय सीमा से २० गुना ज्यादा रकम उडा सकता है वह अपने बचाव के लिए महंगे से महंगे वकील भी खडे कर सकता है। अपने देश में ऐसे वकीलों की कतई कमी नहीं है जो वकालत के हर फन में माहिर हैं। सच को झूठ और झूठ को सच का ताना-बाना पहनाने की कला के अद्भुत ज्ञाता हैं। राम जेठमालानी, अरुण जेटली, कपिल सिब्बल, माजिद मेमन जैसे वकील नेतागिरी भी करते हैं और मोटी फीस लेकर अपनी-अपनी पार्टी और उसके नेताओं को बचाने का कारोबार भी करते हैं। इनकी सेवाएं ले पाना आम आदमी के बस की बात नहीं है। फिर अपने गोपीनाथ तो खासों के भी खास हैं। वे लोकसभा में भाजपा के उपनेता हैं। उनकी पुत्री के अनुसार वे असली मर्द हैं। उनके पक्ष में जो दलीलें दी जाएंगी उससे तो चुनाव आयोग भी चकरा जायेगा। वैसे भी भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर जैसों ने मुंडे के पक्ष में रक्षात्मक मुद्रा अपनाते हुए यह कहने में कहां देरी लगायी कि 'मुंडे जी ने तो चुनाव के बढते खर्च पर चिन्ता भर दर्शायी है। दरअसल उन्होंने तो चुनावों का तमाम खर्च सरकार द्वारा उठाये जाने का अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है। विरोधी हैं कि उनके पीछे पड गये हैं।' गोपीनाथ की तरह ही मध्यप्रदेश में भी एक मंत्री हैं, जिनका नाम है गौरीशंकर बिसेन। यह महाशय भी तीर छोडने में माहिर हैं। लगभग दो वर्ष पूर्व एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि यदि उन्हें प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिं‍ह चौहान दस करोड रुपये उपलब्ध करवा दें तो वे छिं‍दवाडा की लोकसभा सीट भाजपा के खाते में डलवा सकते हैं। सबको पता है कि छिं‍दवाडा में कमलनाथ की तूती बोलती है। सिर्फ एक बार उन्होंने भाजपा के बुजुर्ग नेता सुंदरलाल पटवा से मात खायी थी। छिं‍दवाडा की लोकसभा सीट को जीतने के लिए वे कितने-कितने करोड खर्च करते हैं उसका अंदाजा गौरीशंकर को अगर होता तो अपना मुंह नहीं खोलते। चुनाव जीतने के फन में कमलनाथ तो अच्छे-अच्छों के बाप हैं...।

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