Thursday, September 12, 2013

मायावी संतों की ठगी के हैं बहुतेरे हिस्सेदार

यह अच्छा हुआ। जैसे-तैसे सच बाहर तो आया। आसाराम को भगवान मानने वालो का भ्रम तो टूटा। कई अंध भक्त अभी भी जागना नहीं चाहते। पता नहीं उनकी कौन-सी मजबूरियां हैं? यह शख्स हद दर्जे का सौदागर है। अपने भक्तों के साथ भी सौदेबाजी करना इसकी फितरत है। जिस किशोरी के साथ इसने दुराचार किया उसी के पिता ने इसका मुखौटा उतार डाला। वह अपना माथा पीटने को विवश है। उसे तो इस ढोंगी को बहुत पहले ही पहचान लेना चाहिए था। अंधश्रद्धा अंधेर का कारण बन गयी। बिटिया के भविष्य पर सवालिया निशान लग गये। पछतावे की आग में जलते पिता को बार-बार उस दोपहरी की याद हो आती है जब शातिर आसाराम ने अपने अनुयायियों की उपस्थिति में चुटकी बजाते हुए उससे कहा था कि बोल तुझे कितने रुपये चाहिए। अपने अराध्य के सवाल के पीछे छिपी महा दगाबाजी को वह समझ ही नहीं पाया था। उसे तो यही लगा था कि वे उसे उसकी गुरूभक्ति से प्रसन्न होकर पुरस्कृत करना चाहते हैं।
आसाराम ने तब यह कहा भी था कि यह मेरा सच्चा भक्त है। सच्चे भक्त के साथ ऐसा सलूक! समर्पित भक्त की बेटी पर भी रहम नहीं आया। कभी भी न मिटने वाले दंश और दाग दे डाले! कहावत है... 'डायन भी एक घर छोड देती है।' आसाराम से यह भी नहीं हो पाया! पीडि‍त किशोरी का भाई कहता है कि मैंने तो अपने पिता को कई बार मना किया था। अंधभक्त पिता माने ही नहीं। अपने अच्छे-खासे ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय को नजर अंदाज कर आसाराम की सेवा में लगे रहे। पैसा और समय बर्बाद करते रहे। आसाराम का असली चेहरा सामने आते ही भाई का दिल दहल उठा। गुस्से के मारे वह पागल हो उठा। यह अंतहीन गुस्सा ही है जिसकी वजह से आसाराम के कृत्य से आहत किशोरी ने राज्य महिला कल्याण निगम की अध्यक्ष लीलावती के समक्ष अपने इरादे स्पष्ट करने में कोई संकोच नहीं किया। जब उससे यह पूछा गया कि अगर कानूनी लडाई लडते-लडते तुम्हारे पिता ने अपने घुटने टेक लिए तो तुम क्या करोगी? तमतमाई किशोरी का जवाब था : 'तब मैं इस वहशी बाबा को खुद गोली से उडा दूंगी। इस बाबा ने न जाने कितनी बेटियों के जीवन को बर्बाद किया है। जब तक इसे अपने दुष्कर्मों की सजा नहीं मिलेगी, मैं चैन से नहीं बैठूंगी।' क्रोध और अपमान की आग में झुलसी किशोरी की अथाह पीडा को उसके इस कथन से भी समझा और जाना जा सकता है : 'वह रात मेरे जीवन की भयावह काली रात थी...। ताउम्र नहीं भूल पाऊंगी वह घिनौना खेल जो मुझ पर कहर बनकर टूटा। आसाराम ने हमारे तमाम सपने चूर कर दिए। ऐसे वासनाखोरों को सबक सिखाने के लिए मैंने आईएस बनने की ठान ली है। कभी मेरा इरादा सीए बनने का था।'
आसाराम को जेल भेजे जाने के बाद कई लडकियां और भी सामने आयीं, जिनपर उसने गलत नजर डाली थी और अश्लील व्यवहार किया था। यह सिलसिला और लंबा चलने वाला है। लोगों की आस्थाओं के साथ खिलवाड करने वाले इस शख्स ने इतिहास ही कुछ ऐसा रचा है। इस काले इतिहास के कई पन्ने खुलने के बाद भी उसके कई भक्त ऐसे हैं जिन्हें यकीन ही नहीं हो रहा है। उनके लिए आसाराम आज भी भगवान हैं। इस घोर विवादास्पद भगवान के आश्रमों में चलने वाले गोरखधंधों और वहां के शाही ठाठबाट के नजारें भी कम हैरान करने वाले नहीं हैं। स्वयंभू संत के चेलों का आक्रामक होना भी बेहद चौंकाता है। कई आश्रमों पर चेलों ने पहरेदारी करनी शुरू कर दी है। मीडिया को देखते ही वे दादागिरी दिखाये लगते हैं। सभी आश्रमों में मीडिया का प्रवेश निषेध कर दिया गया है। फिर भी मीडिया वाले पहुंच ही जाते हैं। जबलपुर के आश्रम के मुख्य द्वार पर चेलों ने ताले जड दिये और यह गुरुमंत्र बुदबुदाते नजर आये : 'बापू हमारे बाप हैं, उनके खिलाफ मीडिया जो कर रहा है उसके कारण मीडिया का आश्रम में प्रवेश सख्त निषेध कर दिया गया है।' जब कुछ पत्रकार वहां पहुंचे तो उन्हें धमकाया-चमकाया गया : 'तुम लोग बापू की ताकत से वाकिफ नहीं हो इसलिए इतना शोर-शराबा कर रहे हो। हमारे बापू भी पत्रकार और सम्पादक हैं। उनके सम्पादन में कई पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन होता है। पत्रिका 'ऋषिप्रसाद' का सर्कुलेशन लाखों में है। अकेले जबलपुर में ही इसके १६ हजार स्थायी ग्राहक हैं, जो तन, मन और धन से बापू के साथ हैं। ऐसे में आप लोग खुद अंदाजा लगा लिजिए कि इसी शहर में एक आवाज पर कितने लोग इकट्ठे हो सकते हैं और आप लोगों का दिमाग दुरुस्त कर सकते हैं।'
आसाराम के दम पर मालामाल हुए सेवक उसके लिए कुछ भी करने को तैयार दिखते हैं। शिवा नामक सेवक के पास २०० करोड की सम्पत्ति का होना इस रहस्य से पर्दा हटाने के लिए काफी है कि कुछ भक्त अपने 'देवता' के प्रति इतने समर्पित क्यों हैं। नागपुर, मुंबई, दिल्ली, छिं‍दवाडा, इंदौर, जबलपुर, जोधपुर आदि शहरों में आसाराम के आशीर्वाद से मालामाल हुए ऐसे सेवकों की सहज ही शिनाख्त की जा सकती है। जो आसाराम के मोटे-मोटे चंदों, फंदों, प्रवचनी कार्यक्रमों और आश्रमों की बदौलत फर्श से अर्श तक जा पहुंचे हैं। यह भी सच है कि इस किस्म के स्वार्थी भक्तों की बदौलत ही आसाराम भौतिक सुख-सुविधाओं का ऐसा विशाल साम्राज्य खडा करता चला गया, जिसकी सच्चाई बेहद विस्मित करने वाली है। बीते शनिवार को इंदौर के खंडवा रोड स्थित आसाराम के आश्रम का भव्यतम नजारा जगजाहिर हो गया। यह भी स्पष्ट हो गया कि जब भी उस पर कोई संकट आता तो वह इंदौर की दौड क्यों लगाता है। आसाराम जिस कुटिया में एकांतवास करता रहा उसकी भव्यता बडे-बडे रईसों के बंगलों को मात देती है। यह आलीशान कुटिया करीब पांच हजार वर्गफीट में बना ढाई मंजिला सर्व-सुविधायुक्त बंगला है, जहां आसाराम और उसके लाडले नारायण साई की रासरंग भरी लीलाएं चलती थीं। कुटिया में बना स्वीमिं‍ग पूल पिता-पुत्र के मौज मनाने के तौर-तरीकों का भी पर्दाफाश करता है। अब निर्णय लेने का सटीक वक्त आ गया है। देश में जहां-जहां आसारामों, सुधांशु महाराजों, नित्यानंदो और इच्छाधारियों जैसे मुखौटेधारियों ने आश्रमों, स्कूलों और कुटियाओं के नाम पर सरकारी जमीनें पायी हैं और अवैध कब्जे किये हैं उन पर फुटपाथ पर रहने वाले गरीबों को बसाया जाए। दिखावटी साधु-संतों को सरकारी खैरातें मिलनी बंद होनी चाहिए। यह कहां का इंसाफ है कि सफेदपोश ठगों को अरबों-खरबों की ऐसी जमीनें मुफ्त में दे दी जाएं जहां हजारों-लाखों बेघरों को बसाया जा सकता है और उन्हे खुले आसमान के आंधी-पानी और तमाम मुसीबतों से निजात दिलायी जा सकती है। यह तो सरासर अन्याय है। लोकतंत्र का अपमान है। धोखेबाजी है। अब इसे और बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। अगर मायावी संतों की जमीनें गरीबों और असहायों को नहीं दी जातीं तो रास्ते और भी हैं। सजग जरूरतमंदों के लिए इशारा ही काफी है। जब सीधी उंगली से घी न निकले तो उंगली टेडी करने में कोई हर्ज नहीं है...।

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