दिल्ली में हुए सामूहिक दुष्कर्म के चार अपराधियों को मौत की सजा सुना दी गयी। देश भी तो यही चाहता था। जैसी क्रुरता, वैसी सज़ा। लेकिन इसी देश में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें यह सज़ा रास नहीं आयी और ऐसी मिर्ची लगी कि तमतमाकर रह गये। वैसे यह अच्छा हुआ। काले कोटधारी का भी काला सच सामने तो आया। उस दोपहर ढाई बजे माननीय जज ने जैसे ही चारों दरिंदों को फांसी की सज़ा सुनाई तो पूरे कोर्टरूम में तालियां बज उठीं। जज का यह कहना था कि अपराधियों ने क्रुरता की सारी सीमाएं तोड दीं। यह ऐसा अपराध है, जिसने समाज को हिलाकर रख दिया। ऐसे में अदालत आंख मूंदे नहीं रह सकती। समाज में सख्ती का संदेश जाना जरूरी है। इस खुशी और तसल्ली के माहौल में एक व्यक्ति ऐसा भी था जो गुस्से के मारे फडफडा रहा था। यह शख्स था बलात्कारियों का वकील, जिसका नाम है एस.पी.सिंह। माननीय जज के द्वारा फैसला सुनाये जाने के बाद इस वकील ने गुस्से में जोर से मेज पर हाथ मारा। आंखें तरेरीं और जब जज बाहर जाने लगे तो यह महाशय चीखे -'यह सरासर अन्याय है। जज साहब आपने सत्यमेव जयते की जगह झूठमेव जयते का परचम लहराकर न्याय का गला घोटने का संगीन अपराध किया है।'
बलात्कारियों को सज़ा सुनाने वाले जज पर उंगलियां उठाने वाले बचाव पक्ष के इस वकील ने निर्भया के चरित्र पर भी अपने अंदाज से शर्मनाक तीर चलाये। उसने आपत्तिजनक बयान देकर देश और दुनिया को स्तब्ध कर डाला : ‘अगर मेरी बेटी इस तरह से किसी दोस्त के साथ फिल्म देखने जाती और रात में उसके साथ घूमती-फिरती तो मैं उसे अपने फार्म हाऊस में लाकर परिवार के सामने पेट्रोल छिडकर आग लगा देता।' दरअसल एस.पी.सिंह नामक यह वकील उन लोगों का मुखिया है जो औरत को गुलाम समझते हैं और हिकारतभरी सोच रखते हैं। दरअसल, यह लोग रहते तो इक्कासवीं सदी में हैं पर इनकी मंशा पूरी की पूरी तालीबानी है। इनकी निगाह में महिलाएं ही व्याभिचारी हैं और पुरुष देवता। यही लोग पुरुष को तो खुले सांड की तरह विचरण करने की छूट देने की पैरवी करते हैं, लेकिन औरतों को अपने-अपने घरों के पिंजरों में कैद देखना चाहते हैं। यह कतई नहीं चाहते कि नारी पढे-लिखे और पुरुष की बराबरी करने का साहस दिखाए। इन्हें नारी की स्वतंत्रता शूल की तरह चुभती है। इनकी यही मंशा रहती है कि बहू-बेटियां इनके इशारों पर नाचें। भूल से भी बाहर न ताकें। यह अपने परिवार का एकमात्र सुप्रीमों कहलाना पसंद करते हैं। कथावाचक भी अपने प्रवचनी और आश्रमी संसार का सुप्रीमो है। सुप्रीम को एक नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने में कोई लज्जा नहीं आयी। हर सुप्रीमो बेलगाम और लज्जाहीन हो जाता है। गलियों, सडकों-चौराहों और जलसों-जलूसों में छाती तानकर अहंकारी भाषा में भाषणबाजी करता है।
अपने घरवालों पर दुशासन करते-करते उद्दंड सुप्रीमो के हौसले बुलंद हो जाते हैं। इनकी गुंडागर्दी और दादागिरी इस कदर बढ जाती है कि आसपास के लोगों के साथ-साथ पूरे समाज में अपनी धाक जमाने में लग जाते हैं। जो इनकी नहीं सुनते, उन्होंने ठिकाने लगाने में भी यह देरी नहीं लगाते। यही लोग आनरकिलिंग को बढावा देते हैं। इस किस्म के समाज सुधारकों और तथाकथित चरित्रवानों ने यह धारणा बना रखी है कि रेप के लिए सिर्फ और सिर्फ लडकियां ही जिम्मेदार होती हैं। उनका पहनावा अच्छे-भले इंसानों की नीयत को डांवाडोल कर देता है। शरीफजादो को अर्धनग्न युवतियां खुद-ब-खुद आमंत्रण देती हैं। बाद में शोर मचाती हैं। रूढिवादी और विषैली सोचवाले ऐसे लोग चाहते हैं कि युवतियां बंद गले के कपडे पहनें। उनके जिस्म का कोई भी हिस्सा दिखना नहीं चाहिए। इनकी निगाह में लडकियों की लडकों से दोस्ती बलात्कार की जननी है। जिन महिलाओ को अपनी अस्मत को बचाये रखना हो उन्हें न तो मॉडर्न कपडे पहनने चाहिए और न गैर पुरुषों के निकट जाना चाहिए। दोस्ती-यारी से तो कोसों दूर रहना चाहिए। यह देश अभी उतना विशाल हृदयी नहीं हुआ है जितना कि समझने की भूल की जा रही है। लडकियों को अपनी पसंद के ही लडकों से भूलकर भी शादी नहीं करनी चाहिए। यानी लव मैरिज भी घोर अपराध है। मां-बाप जिससे बांधे उसी को स्वीकार कर लेना चाहिए। किसी भी युवक से बात करने से पहले अपने परिवार के बडे-बुजुर्गों की राय और अनुमति भी अवश्य लेनी चाहिए। हिंदु संस्कृति का संरक्षक होने का दावा करने वाले इन चेहरों का मानना है कि नारियों को सीता को अपना आदर्श मानते हुए सति-सावित्री की तरह जीवन जीना चाहिए। अपने पति-परमेश्वर की तमाम रावणी प्रवृतियों को भी हंसते-खेलते झेलने की आदत डाल लेनी चाहिए...। ऐसा होने पर ही उनकी बेटियां पथभ्रष्ट होने से बच पायेंगी। सच तो यह है कि अपनी संतानो को विचारहीनता और संकीर्णता के दमघोटू वातावरण में सांसें लेने को विवश करने वाले ऐसे लोगों के दम पर ही खाप पंचायतें बेलगाम हैं और खुद को कानून से ऊपर मानती हैं। मनमाने फैसले सुनाकर सच्चे प्रेमियों की जानें तक ले लेती और दंगे करवाती हैं। कहीं न कहीं शासन और प्रशासन भी इनकी अनदेखी कर देता है। मामला वोटों का है इसलिए हुक्मरान भी चुप्पी साधे हैं...।
बलात्कारियों को सज़ा सुनाने वाले जज पर उंगलियां उठाने वाले बचाव पक्ष के इस वकील ने निर्भया के चरित्र पर भी अपने अंदाज से शर्मनाक तीर चलाये। उसने आपत्तिजनक बयान देकर देश और दुनिया को स्तब्ध कर डाला : ‘अगर मेरी बेटी इस तरह से किसी दोस्त के साथ फिल्म देखने जाती और रात में उसके साथ घूमती-फिरती तो मैं उसे अपने फार्म हाऊस में लाकर परिवार के सामने पेट्रोल छिडकर आग लगा देता।' दरअसल एस.पी.सिंह नामक यह वकील उन लोगों का मुखिया है जो औरत को गुलाम समझते हैं और हिकारतभरी सोच रखते हैं। दरअसल, यह लोग रहते तो इक्कासवीं सदी में हैं पर इनकी मंशा पूरी की पूरी तालीबानी है। इनकी निगाह में महिलाएं ही व्याभिचारी हैं और पुरुष देवता। यही लोग पुरुष को तो खुले सांड की तरह विचरण करने की छूट देने की पैरवी करते हैं, लेकिन औरतों को अपने-अपने घरों के पिंजरों में कैद देखना चाहते हैं। यह कतई नहीं चाहते कि नारी पढे-लिखे और पुरुष की बराबरी करने का साहस दिखाए। इन्हें नारी की स्वतंत्रता शूल की तरह चुभती है। इनकी यही मंशा रहती है कि बहू-बेटियां इनके इशारों पर नाचें। भूल से भी बाहर न ताकें। यह अपने परिवार का एकमात्र सुप्रीमों कहलाना पसंद करते हैं। कथावाचक भी अपने प्रवचनी और आश्रमी संसार का सुप्रीमो है। सुप्रीम को एक नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने में कोई लज्जा नहीं आयी। हर सुप्रीमो बेलगाम और लज्जाहीन हो जाता है। गलियों, सडकों-चौराहों और जलसों-जलूसों में छाती तानकर अहंकारी भाषा में भाषणबाजी करता है।
अपने घरवालों पर दुशासन करते-करते उद्दंड सुप्रीमो के हौसले बुलंद हो जाते हैं। इनकी गुंडागर्दी और दादागिरी इस कदर बढ जाती है कि आसपास के लोगों के साथ-साथ पूरे समाज में अपनी धाक जमाने में लग जाते हैं। जो इनकी नहीं सुनते, उन्होंने ठिकाने लगाने में भी यह देरी नहीं लगाते। यही लोग आनरकिलिंग को बढावा देते हैं। इस किस्म के समाज सुधारकों और तथाकथित चरित्रवानों ने यह धारणा बना रखी है कि रेप के लिए सिर्फ और सिर्फ लडकियां ही जिम्मेदार होती हैं। उनका पहनावा अच्छे-भले इंसानों की नीयत को डांवाडोल कर देता है। शरीफजादो को अर्धनग्न युवतियां खुद-ब-खुद आमंत्रण देती हैं। बाद में शोर मचाती हैं। रूढिवादी और विषैली सोचवाले ऐसे लोग चाहते हैं कि युवतियां बंद गले के कपडे पहनें। उनके जिस्म का कोई भी हिस्सा दिखना नहीं चाहिए। इनकी निगाह में लडकियों की लडकों से दोस्ती बलात्कार की जननी है। जिन महिलाओ को अपनी अस्मत को बचाये रखना हो उन्हें न तो मॉडर्न कपडे पहनने चाहिए और न गैर पुरुषों के निकट जाना चाहिए। दोस्ती-यारी से तो कोसों दूर रहना चाहिए। यह देश अभी उतना विशाल हृदयी नहीं हुआ है जितना कि समझने की भूल की जा रही है। लडकियों को अपनी पसंद के ही लडकों से भूलकर भी शादी नहीं करनी चाहिए। यानी लव मैरिज भी घोर अपराध है। मां-बाप जिससे बांधे उसी को स्वीकार कर लेना चाहिए। किसी भी युवक से बात करने से पहले अपने परिवार के बडे-बुजुर्गों की राय और अनुमति भी अवश्य लेनी चाहिए। हिंदु संस्कृति का संरक्षक होने का दावा करने वाले इन चेहरों का मानना है कि नारियों को सीता को अपना आदर्श मानते हुए सति-सावित्री की तरह जीवन जीना चाहिए। अपने पति-परमेश्वर की तमाम रावणी प्रवृतियों को भी हंसते-खेलते झेलने की आदत डाल लेनी चाहिए...। ऐसा होने पर ही उनकी बेटियां पथभ्रष्ट होने से बच पायेंगी। सच तो यह है कि अपनी संतानो को विचारहीनता और संकीर्णता के दमघोटू वातावरण में सांसें लेने को विवश करने वाले ऐसे लोगों के दम पर ही खाप पंचायतें बेलगाम हैं और खुद को कानून से ऊपर मानती हैं। मनमाने फैसले सुनाकर सच्चे प्रेमियों की जानें तक ले लेती और दंगे करवाती हैं। कहीं न कहीं शासन और प्रशासन भी इनकी अनदेखी कर देता है। मामला वोटों का है इसलिए हुक्मरान भी चुप्पी साधे हैं...।
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