नेता डरे हुए हैं। चुनाव सिर पर हैं। बेचारों की नींद गायब है। प्रचार करना भी जरूरी है। घर से बाहर निकले बिना काम नहीं चलने वाला। जीत-हार की चिंता तो अपनी जगह है। जबसे मोदी की रैली में बम फटे हैं, तभी से उन्हें अपनी जान भी खतरे में नजर आने लगी है। आतंकियों के बमों की सलामी झेलने के बाद नरेंद्र मोदी की पार्टी भी दहशत की गिरफ्त में है। भाजपा की तरफ से मोदी को वैसी ही सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध करवाये जाने की मांग की गयी है जैसी कि देश के प्रधानमंत्री को मिलती है। मोदी छोटी-मोटी हस्ती नहीं हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री तो हैं ही, भाजपा के भावी पीएम भी हैं। केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने इस मांग पर पानी फेर दिया है। गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह ने तो अजब-गजब तर्क देकर लोगों को चौंका दिया है। उनका कहना है कि राजग सरकार की ढीली-सुरक्षा व्यवस्था के कारण ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को अपनी कुर्बानी देनी पडी थी। मंत्री हैं तो पढे-लिखे फिर भी पुराने जख्मों को कुरेदने से बाज नहीं आते। यह तो एक तरह से बदला लेने की सोच है। नरेंद्र मोदी की पटना में हुई हुंकार रैली में जिस तरह से आतंकियो ने बमों के धमाके किये और निर्दोषों को मौत के हवाले किया, उसे कोई छोटी-मोटी घटना तो नहीं कहा जा सकता। यह तो मोदी की किस्मत अच्छी थी, जो वे बच गये। असली निशाना वही तो थे। आतंकियों का देशभर में अशांति फैलाने का इरादा था। वैसे भी मोदी वर्षों से आतंकियों के निशाने पर हैं। जब इस सच का सबको पता है तो उनकी सुरक्षा व्यवस्था में किसी भी तरह की कमी और कोताही क्यों? देश पहले भी सुरक्षा के अभाव में दो पूर्व प्रधानमंत्रियों को खो चुका है। निर्दोष नागरिकों के मौत के मुंह में समाने और उनके हताहत होने का आंकडा भी हजारों में है। जो नेता मजाकबाजी में लगे हैं उन्हें होशो-हवास में आना चाहिए। यह मज़ाक का वक्त नहीं है। कांग्रेस के ही एक और नेता हैं राज बब्बर। यह महाशय कभी समाजवादी पार्टी में हुआ करते थे। खुद को मुलायम सिंह का हनुमान बताया करते थे। इन्हें समाजवाद पर बडे-बडे भाषण झाडते भी अक्सर देखा जाता था। तब ये कांग्रेस की नीतियों का मज़ाक उडाने वालों में अग्रणी थे। इन्हें कांग्रेस और कांग्रेसी भ्रष्टाचार की जीती-जागती मूरत नज़र आते थे। पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह के खासमखास (तब के) अमर सिंह की वजह से उन्हें समाजवादी पार्टी छोडनी पडी। राज बब्बर का कहना था कि अमर सिंह सत्ता का दलाल हैं। उन जैसा भ्रष्टाचारी देश में आज तक पैदा नहीं हुआ। मुलायम सिंह इस भ्रष्टाचारी के इशारों पर नाचते हैं। किसी दूसरे की सुनते ही नहीं। ऐसे में उनके पास समाजवादी पार्टी को त्यागने के अलावा और कोई चारा ही नहीं था। कभी कांग्रेस को पानी पी-पीकर कोसने वाले अभिनेता-नेता ने कांग्रेस का दामन थामने में जरा भी देरी नहीं लगायी। उन्होंने कांग्रेस के गढ में डेरा जमाकर बैठे भ्रष्टाचारी दिखायी ही नहीं दिये। तब से लेकर अब तक वही हाल है। उनकी इसी होशियारी के चलते ही कांग्रेस ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। उन्हें फौरन लोकसभा के चुनाव की टिकट भी दे दी गयी। चुनाव जीतने के बाद तो उन्होंने हवा में उडना शुरु कर दिया। कांग्रेस को ही देश की भाग्य निर्माता और एकमात्र ईमानदार पार्टी बताने के अभियान में जुट गये। जो काम कभी समाजवादी पार्टी के लिए करते थे, अब कांग्रेस के लिए करने लगे। इसी पलटबाजी की कला की बदौलत ही राज बब्बर राजनीति में खूंटे गाढने में सफल हुए हैं। जिन फिल्मवालों के पास यह हुनर नहीं था वे अपने-अपने काम धंधों में लग गये हैं। गोविंदा और धर्मेन्द्र इसकी जीवंत मिसाल हैं।
घाट-घाट का पानी पी चुके राज बब्बर कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी और पार्टी के भावी पीएम राहुल गांधी की गुडबुक में आने के लिए कोई भी मौका नहीं चूकना चाहते। देशवासियों को याद होंगे उनके यह बोल वचन कि मुंबई में बारह रुपये में भरपेट खाना मिल जाता है। जबकि इस मायानगरी में इतने रुपयों में तो हल्का-फुल्का नाश्ता भी नहीं मिलता। मोदी को प्रधानमंत्री के समकक्ष सुरक्षा मुहैया कराये जाने की मांग के जवाब में उनका यह कहना उनकी ओछी मानसिकता को दर्शाता है- चाहे कसाब हो या मोदी, सरकार तो सभी को सुरक्षा देती है। क्या यह एक कुंठाग्रस्त नेता की घटिया सोच नहीं है? दरअसल, बचकानी और घटिया बयानबाजी करने वाले ऐसे नेताओं ने ही देश का कबाडा करके रख दिया। इन्होंने यदि भारत माता की आत्मा को पहचाना होता, मुसलमानों को महज वोट बैंक नहीं समझा होता, युवकों को शिक्षा और रोजगार दिलाने में अपनी आधी भी ऊर्जा लगा दी होती, भ्रष्टाचार को पनपने ही न दिया होता, अपराधियों को शह नहीं दी होती और आदिवासियों को अनदेखी न की होती तो आज किसी भी राजनेता पर इस तरह से खतरे के बादल न मंडराते। यह मतलब परस्त राजनेता तो अपने ही देश को सुरक्षित और व्यवस्थित नहीं रख पाए। ऐसे में दुश्मनों की हिम्मत तो बढनी ही थी। पाकिस्तान इस देश के हुक्मरानों, राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं की रग-रग से वाकिफ हो गया है। उसने इनकी औकात जान और पहचान ली है। इसलिए वह बेखौफ होकर आतंकवादियों को हिंदुस्तान भेजता है और वे बडी आसानी से अपना काम कर जाते हैं। इस देश को चलाने वाले यदि होश में आ जाएं तो किसी बाहरी और अंदरूनी ताकत में दम नहीं कि वह बम-बारूद बिछाने की हिम्मत कर सके।
घाट-घाट का पानी पी चुके राज बब्बर कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी और पार्टी के भावी पीएम राहुल गांधी की गुडबुक में आने के लिए कोई भी मौका नहीं चूकना चाहते। देशवासियों को याद होंगे उनके यह बोल वचन कि मुंबई में बारह रुपये में भरपेट खाना मिल जाता है। जबकि इस मायानगरी में इतने रुपयों में तो हल्का-फुल्का नाश्ता भी नहीं मिलता। मोदी को प्रधानमंत्री के समकक्ष सुरक्षा मुहैया कराये जाने की मांग के जवाब में उनका यह कहना उनकी ओछी मानसिकता को दर्शाता है- चाहे कसाब हो या मोदी, सरकार तो सभी को सुरक्षा देती है। क्या यह एक कुंठाग्रस्त नेता की घटिया सोच नहीं है? दरअसल, बचकानी और घटिया बयानबाजी करने वाले ऐसे नेताओं ने ही देश का कबाडा करके रख दिया। इन्होंने यदि भारत माता की आत्मा को पहचाना होता, मुसलमानों को महज वोट बैंक नहीं समझा होता, युवकों को शिक्षा और रोजगार दिलाने में अपनी आधी भी ऊर्जा लगा दी होती, भ्रष्टाचार को पनपने ही न दिया होता, अपराधियों को शह नहीं दी होती और आदिवासियों को अनदेखी न की होती तो आज किसी भी राजनेता पर इस तरह से खतरे के बादल न मंडराते। यह मतलब परस्त राजनेता तो अपने ही देश को सुरक्षित और व्यवस्थित नहीं रख पाए। ऐसे में दुश्मनों की हिम्मत तो बढनी ही थी। पाकिस्तान इस देश के हुक्मरानों, राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं की रग-रग से वाकिफ हो गया है। उसने इनकी औकात जान और पहचान ली है। इसलिए वह बेखौफ होकर आतंकवादियों को हिंदुस्तान भेजता है और वे बडी आसानी से अपना काम कर जाते हैं। इस देश को चलाने वाले यदि होश में आ जाएं तो किसी बाहरी और अंदरूनी ताकत में दम नहीं कि वह बम-बारूद बिछाने की हिम्मत कर सके।
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