Thursday, December 12, 2013

सत्ता की नाइंसाफी

बेटा कफन में लिपटा है। दाह संस्कार के लिए पिता का बेसब्री से इंतजार है। लाख मिन्नतों के बाद भी जेल में कैद पिता को अपने बेटे के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति नहीं मिल पाती। कानून के रखवाले कहते हैं कि कानून सबके लिए बराबर है। मरना-जीना तो लगा ही रहता है। इसके लिए जेल के कायदे और कानून तो नहीं बदले जा सकते। ऐसी कई खबरें अक्सर पढने और सुनने में आती हैं। मृत पत्नी के अंतिम दर्शन के लिए पति फरियाद पर फरियाद करता रहा पर उसकी किसी ने नहीं सुनी। जेल में बंद बेटे को अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए चंद घंटे देने से भी जेल प्रशासन ने मना कर दिया। यही मेरे देश की असली तस्वीर है जिसमें आम आदमी के लिए रहम की कोई गुंजाईश नहीं है। फिर ऐसे में सवाल यह है कि कुछ लोगों के साथ इतनी रहमदिली क्यों? फिलहाल, हम बात कर रहे हैं उस संजय दत्त की जो फिल्म अभिनेता है। उसके पिता स्वर्गीय सुनील दत्त अभिनेता होने के साथ-साथ कांग्रेस सांसद थे। मां भी राज्यसभा की सम्मानित सांसद थीं। उसकी बहन प्रिया दत्त भी कांग्रेस की कमान थामे हुए है और सांसद भी है। इतने महान परिवार से ताल्लुक रखनेवाले अपराधी संजय दत्त पर महाराष्ट्र सरकार खासी मेहरबान है।
अच्छे इंसान के प्रति तो हर किसी को सद्भावना होती है। कानून की नजरों में संजय एक ऐसा अपराधी है जिसकी चारों तरफ थू...थू... होनी चाहिए। वह किसी तरह की इज्जत और सम्मान के भी काबिल नहीं है। १९९३ के मुंबई बम विस्फोटों के दौरान खून-खराबा करने के मकसद से लाये गये अवैध हथियारों के जखीरों में शामिल एक राइफल को रखने के मामले में शस्त्र कानून के तहत दोषी करार दिया गया संजय दत्त पूणे की यरवदा जेल में पांच वर्ष की सजा काट रहा है। उसने जो कृत्य किया है वह तो राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता है। उसके देशद्रोही आतंकी दाऊद इब्राहिम जैसों से करीबी रिश्तों का भी खुलासा हो चुका है। देश की आर्थिक नगरी मुंबई में सिलसिलेवार बम-बारूद बिछाकर सैकडों निर्दोषों की जान और हजारों को गंभीर रूप से घायल करने वाले राष्ट्रद्रोहियों से मित्रता रखने वाले संजय को कानून के शिकंजे से बचाने के लिए कई महारथियों ने अपने विवेक को सूली पर टांग दिया था। एक भूतपूर्व जज ने तो इस भयावह खलनायक को बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। फिर भी आखिरकार उसे जेल जाना ही पडा। यहां भी वह नाटकबाजी पर उतर आया। वीआईपी कैदी की नौटंकियों काम कर गयीं। जेल में अभी कुछ माह ही गुजरे थे कि बीते अक्टुबर माह में उसे १४ दिनों के पैरोल पर रिहा कर दिया गया। सजग लोग हैरान थे। उसने इस मनचाही छुट्टी का भरपूर मज़ा लिया। जैसे ही जेल वापस जाने के दिन आए उसने फौरन खुद को बीमार बताकर और १४ दिनों का पैरोल हासिल कर लिया। ऐसी छूट आम कैदियों को सपनों में भी नसीब नहीं हो पाती। उन्हें तो कायदे-कानून का हवाला देकर जेल की काल कोठरी में दुबकने-सुबकने को विवश कर दिया जाता है। जब बात रसूखदारों की आती है तो हर कानून-कायदा उन्हीं के चरणों का दास हो जाता है। २८ दिन की छुट्टियों का आनंद लेने के बाद संजय ३० अक्टुबर को जेल लौटा ही था कि फिर से उसने अपने सत्ता के रिश्तों को भुनाना शुरू कर दिया। आश्चर्य... इसमें भी वह सफल हो गया। पिछली बार उसने अपनी बीमारी का ढोल पीटा था। इस बार उसने अपनी पत्नी मान्यता की बीमारी का दर्दीला गीत सुनाकर एक महीने के पैरोल की सौगात हासिल कर ली। दो माह में दूसरी बार पैरोल पर अभिनेता के बाहर आने के जादू ने सजग देशवासियों को सोचने के लिए विवश कर दिया है कि इस देश का यह कैसा कानून है? संजय को अपनी पत्नी मान्यता दत्त की बीमारी के कारण एक महीने का पैरोल दिया गया है। जबकि उसे हाल ही में एक फिल्मी पार्टी में देखा गया। जहां वह ठुमकती और मस्ती करती नजर आ रही थी।
मुंबई बम कांड के और भी कई आरोपी हैं जिन्होंने संजय की तरह ही आतंकियों से रिश्ते निभाये और खून-खराबा करने में उनका पूरा साथ दिया। उनके घर-परिवार के लोग भी बीमार पडते रहते हैं। कई तो खुद भी गंभीर बीमारी से पीडि‍त हैं। पर उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। इसी बात को लेकर विरोध के स्वर भी गूंज रहे हैं। अपराधी अभिनेता को गलत तरीके से राहत और सुविधा दिये जाने के कारण प्रदेश के गृहमंत्री आर.आर. पाटील पर भी उंगलियां उठ रही हैं। कहा जा रहा है कि-जहां हजारों जरूरतमंदों के आवेदन तो अक्सर ठुकरा दिये जाते हैं वहीं मुंबई की कांग्रेस सांसद के भाई की पलक झपकते ही हर मांग पूरी कर दी जाती है! यह कहां का न्याय है? खतरनाक अपराधी की पैरवी करने वालों को क्या पता नहीं है कि इस देश की जेलों में हजारों ऐसे कैदी वर्षों से बंद हैं जो बेकसूर हैं। उन्हें साजिशों के तहत फंसाया गया है। न जाने कितने कैदी तो ऐसे भी हैं जो दमदार वकील और जमानत की रकम का इंतजाम न कर पाने के कारण जेलों में मरने और सडने को विवश हैं। उनकी चिं‍ता तो किसी को नहीं होती! कोई भूतपूर्व जज और गृहमंत्री उनके लिए तो नहीं पसीजता। यह तो सरासर नाइंसाफी है। ढोंग है। कानून के साथ बहुत बडा खिलवाड है। फिर भी हुक्मरान यह कहते नहीं थकते कि कानून की निगाह में सब एक जैसे हैं। क्या ऐसे मक्कारों के हाथों में देश और प्रदेशों की कमान रहनी चाहिए?

No comments:

Post a Comment