एक सत्यकथा के नायक ने आत्महत्या कर ली। अमूमन ऐसा होता तो नहीं है! दुराचारी तो खुद को निर्दोष साबित करने के लिए जमीन-आसमान एक कर देते हैं। तरह-तरह की कहानियां गढते हैं। बिलकुल वैसे ही जैसे इस सदी के सबसे कुख्यात कथावाचक आसाराम ने बनायी और सुनायीं। उसके कुपुत्र नारायण ने भी बाप का अनुसरण करने में देरी नहीं लगायी। स्टिंग आप्रेशनों की झडी लगाकर राजनीति के धुरंधरों की जमीनें खिसकाने वाला तहलका का सम्पादक तरुण तेजपाल भी जब देहखोरी के चक्कर में पुलिसिया फंदे में फंसा तो उसने भी अपने तमाम उसूलों को सुली पर ऐसे टांगा जैसे उसका इनसे कभी कोई नाता ही नहीं था। ऐसी बेशर्मी और बेशर्मों के मायावी काल में जब यह सच सामने आया कि यौन उत्पीडन के संगीन आरोपों की तेजाबी तपन और जलन को बर्दाश्त न कर पाने के कारण एक शख्स ने मौत को गले लगा लिया, तो हैरानी के साथ-साथ पीडा भी हुई।
दिल्ली निवासी खुर्शीद अनवर का नाता उन लोगों से था जो बुद्धिजीवी कहलाते हैं। समाजसेवा में अभिरूची रखने वाले अनवर की बेबाक और चुभने वाली लेखनी से कई लोग चिंतित और परेशान रहते थे। भगवा और इस्लामिक कट्टरपंथ पर उनकी लेखनी एक साथ चलती रही। उनके करीबी दोस्तों का मानना है कि वे बेहद संवेदनशील इंसान थे। मानवाधिकारों की पुरजोर पैरवी करने वाले इस लडाकू इंसान को चरित्रवानों की श्रेणी में शामिल किया जाता था। उनके यार-दोस्त तो यह दावा करते नहीं थकते कि वे फिसलने वाले इंसान नहीं थे। कई छात्राओं का कहना है कि उनकी गरिमामय उपस्थिति तो सुरक्षा का अहसास दिलाती थी।
इस दोस्त, गुरु और सोशल एक्टिविस्ट पर एक युवती ने छेडछाड और दुष्कर्म का आरोप जडा तो सभी सन्न रह गये। युवती का कहना है कि वह १२ सितंबर की रात थी। खुर्शीद के घर पर डिनर पार्टी का आयोजन था। शराब के प्याले खनक रहे थे। उसने भी बहती गंगा में हाथ धोये। ज्यादा चढाने के कारण वह अपने होश खो बैठी। मजबूरन उसे वहीं सो जाना पडा। रात में जब उसे कुछ होश आया तो उसने अनवर को अपने ऊपर पाया। नशे के अतिरेक के कारण वह विरोध ही नहीं कर पायी। अगले दिन सुबह फिर से उसके साथ दुष्कर्म करने की भरपूर चेष्टा की गयी। युवती जो कि छात्रा है और मूलरूप से मणिपुर की रहने वाली है, ने जब यह बात अपने करीबियों को बतायी तो किसी को भी यकीन नहीं हुआ। उसने अपने साथ हुए खिलवाड की जानकारी जब अपने परिवार वालों को दी तो वे उसी पर बिफर उठे। उसे दुत्कारते हुए कहा गया कि वह अपना मुंह काला करने के बाद वापस घर ही क्यों आयी? वहीं मर जाती तो अच्छा था। घर में कैद कर उसकी बार-बार पिटायी की गयी। आगे की पढाई और नौकरी करने से मना कर दिया गया। मामला जब पुलिस तक जा पहुंचा तो एक चौंकाने वाली खबर यह भी सामने आयी कि घटनावाली रात खुर्शीद ने पीडिता के साथ गई एक अन्य युवती को भी अपना शिकार बनाने का षडयंत्र रचा था। उसे भी शराब पीने को मजबूर किया गया था, लेकिन उसने अपनी समझदारी बरकरार रखी। गिलास में भरी शराब वॉशबेसिन में फेंक दी।
इस खबर को लेकर देशभर के न्यूज चैनलवाले वैसा ही हो-हल्ला मचाने और सनसनी फैलाने में जुट गये जिसके लिए वे जाने जाते हैं। खबरों की तह तक जाने से कन्नी काटने वाले इलेक्ट्रानिक मीडिया को तो जैसे ऐसी टीआरपी बढाने वाली खबरों का बेसब्री से इंतजार रहता है। ऐसा कोई भी मामला उछला नहीं कि न्यूज चैनल वालों में गला काट प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाती है। हर किसी का यही दावा होता है कि इस खबर को हमने ही सबसे पहले दिखाने का साहस दिखाया है। हद तो यह भी है कि पांच-सात जाने-पहचाने पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं का पैनल बैठाकर ट्रायल शुरू कर दिया जाता है। यही जाने-पहचाने चेहरे हर चैनल पर अपने ज्ञान का बखान करते नज़र आते हैं। इनकी बेसब्री के प्याले छलकने लगते हैं और स्टुडियो में ही फैसला सुना दिया जाता है। आरोपी को दोषी ठहराने में एक पल भी देरी नहीं लगायी जाती। खुर्शीद अनवर के साथ भी यही हुआ। वे अपना पक्ष रखना चाहते थे, लेकिन स्टुडियो में बैठकर अपनी-अपनी अदालतें चलाने वालें 'जजों' ने उनकी सुनी ही नहीं। सोशल मीडिया में भी ऐसी-ऐसी कटु टिप्पणियों का जलजला-सा आया जिनसे अनवर को लगा कि वे अब किसी को अपना मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहे। इसी सोच और भावावेश में उन्होंने १८ नवंबर की सुबह अपने फ्लैट की चौथी मंजिल से छलांग लगा दी। खुर्शीद अब इस दुनिया में नहीं हैं। पूरा सच शायद ही सामने आ पाए। पर यह भी सच है कि निर्भया बलात्कार कांड के बाद महिलाओं में गजब की जागृति आयी है। कुछेक बार ऐसा भी होता है जब महिलाएं आत्मसमर्पण करने को विवश हो जाती हैं। ऐसी नारियों का आंकडा भी अच्छा-खासा है जो भौतिक सुख-सुविधाओं के लालच में वासना के दलदल में फंस जाती हैं और दोष दूसरों पर लगाती हैं। इस तथ्य को भी नहीं नकारा जा सकता कि अधिकांश महिलाएं तथाकथित अपनों की वहशियत का शिकार होती हैं। खुर्शीद अनवर की आत्महत्या ने जो सवाल खडे किये हैं उनके भी जवाब सामने आने ही चाहिएं।
दिल्ली निवासी खुर्शीद अनवर का नाता उन लोगों से था जो बुद्धिजीवी कहलाते हैं। समाजसेवा में अभिरूची रखने वाले अनवर की बेबाक और चुभने वाली लेखनी से कई लोग चिंतित और परेशान रहते थे। भगवा और इस्लामिक कट्टरपंथ पर उनकी लेखनी एक साथ चलती रही। उनके करीबी दोस्तों का मानना है कि वे बेहद संवेदनशील इंसान थे। मानवाधिकारों की पुरजोर पैरवी करने वाले इस लडाकू इंसान को चरित्रवानों की श्रेणी में शामिल किया जाता था। उनके यार-दोस्त तो यह दावा करते नहीं थकते कि वे फिसलने वाले इंसान नहीं थे। कई छात्राओं का कहना है कि उनकी गरिमामय उपस्थिति तो सुरक्षा का अहसास दिलाती थी।
इस दोस्त, गुरु और सोशल एक्टिविस्ट पर एक युवती ने छेडछाड और दुष्कर्म का आरोप जडा तो सभी सन्न रह गये। युवती का कहना है कि वह १२ सितंबर की रात थी। खुर्शीद के घर पर डिनर पार्टी का आयोजन था। शराब के प्याले खनक रहे थे। उसने भी बहती गंगा में हाथ धोये। ज्यादा चढाने के कारण वह अपने होश खो बैठी। मजबूरन उसे वहीं सो जाना पडा। रात में जब उसे कुछ होश आया तो उसने अनवर को अपने ऊपर पाया। नशे के अतिरेक के कारण वह विरोध ही नहीं कर पायी। अगले दिन सुबह फिर से उसके साथ दुष्कर्म करने की भरपूर चेष्टा की गयी। युवती जो कि छात्रा है और मूलरूप से मणिपुर की रहने वाली है, ने जब यह बात अपने करीबियों को बतायी तो किसी को भी यकीन नहीं हुआ। उसने अपने साथ हुए खिलवाड की जानकारी जब अपने परिवार वालों को दी तो वे उसी पर बिफर उठे। उसे दुत्कारते हुए कहा गया कि वह अपना मुंह काला करने के बाद वापस घर ही क्यों आयी? वहीं मर जाती तो अच्छा था। घर में कैद कर उसकी बार-बार पिटायी की गयी। आगे की पढाई और नौकरी करने से मना कर दिया गया। मामला जब पुलिस तक जा पहुंचा तो एक चौंकाने वाली खबर यह भी सामने आयी कि घटनावाली रात खुर्शीद ने पीडिता के साथ गई एक अन्य युवती को भी अपना शिकार बनाने का षडयंत्र रचा था। उसे भी शराब पीने को मजबूर किया गया था, लेकिन उसने अपनी समझदारी बरकरार रखी। गिलास में भरी शराब वॉशबेसिन में फेंक दी।
इस खबर को लेकर देशभर के न्यूज चैनलवाले वैसा ही हो-हल्ला मचाने और सनसनी फैलाने में जुट गये जिसके लिए वे जाने जाते हैं। खबरों की तह तक जाने से कन्नी काटने वाले इलेक्ट्रानिक मीडिया को तो जैसे ऐसी टीआरपी बढाने वाली खबरों का बेसब्री से इंतजार रहता है। ऐसा कोई भी मामला उछला नहीं कि न्यूज चैनल वालों में गला काट प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाती है। हर किसी का यही दावा होता है कि इस खबर को हमने ही सबसे पहले दिखाने का साहस दिखाया है। हद तो यह भी है कि पांच-सात जाने-पहचाने पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं का पैनल बैठाकर ट्रायल शुरू कर दिया जाता है। यही जाने-पहचाने चेहरे हर चैनल पर अपने ज्ञान का बखान करते नज़र आते हैं। इनकी बेसब्री के प्याले छलकने लगते हैं और स्टुडियो में ही फैसला सुना दिया जाता है। आरोपी को दोषी ठहराने में एक पल भी देरी नहीं लगायी जाती। खुर्शीद अनवर के साथ भी यही हुआ। वे अपना पक्ष रखना चाहते थे, लेकिन स्टुडियो में बैठकर अपनी-अपनी अदालतें चलाने वालें 'जजों' ने उनकी सुनी ही नहीं। सोशल मीडिया में भी ऐसी-ऐसी कटु टिप्पणियों का जलजला-सा आया जिनसे अनवर को लगा कि वे अब किसी को अपना मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहे। इसी सोच और भावावेश में उन्होंने १८ नवंबर की सुबह अपने फ्लैट की चौथी मंजिल से छलांग लगा दी। खुर्शीद अब इस दुनिया में नहीं हैं। पूरा सच शायद ही सामने आ पाए। पर यह भी सच है कि निर्भया बलात्कार कांड के बाद महिलाओं में गजब की जागृति आयी है। कुछेक बार ऐसा भी होता है जब महिलाएं आत्मसमर्पण करने को विवश हो जाती हैं। ऐसी नारियों का आंकडा भी अच्छा-खासा है जो भौतिक सुख-सुविधाओं के लालच में वासना के दलदल में फंस जाती हैं और दोष दूसरों पर लगाती हैं। इस तथ्य को भी नहीं नकारा जा सकता कि अधिकांश महिलाएं तथाकथित अपनों की वहशियत का शिकार होती हैं। खुर्शीद अनवर की आत्महत्या ने जो सवाल खडे किये हैं उनके भी जवाब सामने आने ही चाहिएं।
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