शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, लाला लाजपतराय, महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री का देश हिन्दुस्तान सर्वांगीण 'सफाई' का अभिलाषी है। पंजा, कमल, हाथी, सायकल, घडी आदि-आदि सबको देख लिया। परख लिया। सब में भ्रष्टाचार के पोषक भरे पडे हैं। कहीं कम, नहीं ज्यादा। खोटे सिक्कों ने असली सिक्कों का जामा ओढकर भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, रिश्वतखोरी, अंधेरगर्दी और लूटपाट का जी भरकर तांडव मचाया। जनता बेबस तमाशा देखती रही। सफेदपोशों ने अपनी-अपनी तिजोरियां भरीं और किनारे हो गए। देश लुटा-पिटा खुद के जर्जर हालात पर रोता रहा। शातिर राजनेताओं ने आम आदमी के वोटों की बदौलत सत्ता का भरपूर सुख भोगा, अपनी आने वाली दस-बीस पीढियो के भविष्य को सुरक्षित किया और उस भारत माता को भूल गये जिसकी वे कस्में खाते थे। आम आदमी की तो कोई चिंता-फिक्र ही नहीं की गयी। उसके हिस्से में तो सिर्फ और सिर्फ बदहाली, गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी ही आयी। भरोसे और इंतजार की भी कोई सीमा होती है। इस हकीकत को देश के झांसेबाज सत्ताधीशों की शातिर जमात नहीं समझ पायी। जब दिल्ली में 'झाडू' लहरायी तो उनके होश उड गये। फिर भी नाटक जारी हैं। जो सभी को दिख रहा है उसी को कई चालाकों के द्वारा नकारा जा रहा है। अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, कुमार विश्वास और उनके समर्पित योद्धाओं ने वो करिश्मा कर दिखाया है जिसकी नकाबपोश नेताओं को तो कतई उम्मीद नहीं थी। सोच और हालात ही कुछ ऐसे बना दिये गये हैं कि अधिकांश लोगों ने यह मान लिया है कि इस देश की तस्वीर नहीं बदली जा सकती। हालात जस के तस रहने वाले हैं। अब क्रांतिकारियों ने इस देश की धरती पर जन्म लेना बंद कर दिया है। इसलिए जो चल रहा है, उसे चलने दो। इसी में भलाई है। लेकिन दिल्ली के चुनाव परिणामों ने उन सबकी जमीनें हिला दी हैं जो आम आदमी पार्टी के उदय के पक्षधर नहीं थे। उन्हें तो यह क्रांतिकारी दल पानी का बुलबुला लग रहा है। उन्हीं की निगाह में यह तो एक कन्फ्यूस पार्टी है, जिसका कोई भविष्य नहीं है। राजनीति के महाबलियों ने केजरीवाल की तुलना 'नक्सलवादी' से कर अपने इरादे स्पष्ट कर दिये हैं। इन्हें अब यह याद दिलाना भी जरूरी है कि बम और बारुद बिछाकर निर्दोषों की जान लेने वाले 'वो' नक्सली अंधे और लालची सत्ताखोरों की देन हैं। उन्हें तो देश के लोकतंत्र पर ही भरोसा नहीं है। ऐसे में उनका तो किसी भी हालत में समर्थन नहीं किया जा सकता। यह नक्सली(?) भी देश के शोषकों और लुटेरों के सताये हुए हैं। यह नये तथाकथित नक्सली भ्रष्टाचारियों और अनाचारियों को सबक सिखाने और उन्हें सत्ता से बाहर करने के लिए ही राजनीति के मैदान में उतरे हैं। इन्हें देश के लोकतंत्र के प्रति पूरी आस्था है। दिल्ली के वो लाखों मतदाता भी इन्हें अपना मसीहा मानते हैं जिन्होंने अपने कीमती वोट देकर विधायक बनाया है। देश का काया-कल्प करने को आतुर ऐसे 'नक्सलियो' की देश को आज बहुत जरूरत है। कोई माने ना माने, यही आज के असली नायक हैं। एक थके हारे नेता ने बयान दागा है कि अरविंद केजरीवाल ने अन्ना हजारे के कंधे पर रखकर बंदूक चलायी है। ऐसे अक्ल के अंधो को यह कहने में पता नहीं शर्म क्यों आ रही है कि केजरीवाल ने अपने दम पर ही वो झाडू चलायी है जिसने भ्रष्टाचारियों के चेहरों का रंग उडा दिया है। झाडू के खौफ से घबराये नेताओं को यह गम भी जिन्दगी भर सताता रहेगा कि एक आम आदमी देखते ही देखते राष्ट्रीय परिदृष्य पर छा गया और वे खिसियानी बिल्ली की तरह खम्भा नोचते रह गये। दरअसल, देशवासियों को वर्षों से ऐसे ही किसी साफ-सुथरे चेहरे की तलाश थी जो सत्ता के मद में चूर नेताओं के होश ठिकाने लगाये। शीला दीक्षित से उकतायी जनता को केजरीवाल का जिद्दी जूनून और सरल स्वभाव इस कदर भाया कि उसने मौका पाते ही घमंडी मुख्यमंत्री को उसकी औकात दिखा दी। झाडू और केजरीवाल तो एक प्रतीक हैं। आज देश को एक नहीं अनेक केजरीवालों की सख्त जरूरत है। जिस दिन इनके हाथों की झाडू जहां-तहां फैले भ्रष्टाचार के सफाये में लग जाएगी उसी दिन से खुद-ब-खुद भ्रष्टाचारी मिट्टी में दफन होते नजर आएंगे। गुस्से में उबलती आम जनता को ऐसे केजरीवालों का बेसब्री से इंतजार है जो भ्रष्ट तंत्र का सफाया कर सकें। दिल्ली के चुनावों में आम आदमी की पार्टी ने सिद्ध कर दिया है कि काले धन की बरसात किये बिना भी चुनाव जीता जा सकता है। इस देश की जनता भ्रष्टाचार-मुक्त शासन चाहती है। अरविंद केजरीवाल पर लोगों ने विश्वास किया। स्वच्छ शासन देने का आश्वासन तो कांग्रेस और भाजपा ने भी दिया, लेकिन मतदाताओं ने उनकी सुनने की बजाय 'आप' पार्टी पर भरोसा करने में ही अपनी भलाई समझी।
यही अरविंद केजरीवाल की असली अग्नि परीक्षा है। उन्हें कुछ अलग करके दिखाना ही होगा। उन्हें भ्रष्ट नौकर शाही में आमूलचूल परिवर्तन लाकर लोगों को राहत दिलानी होगी। यदि वे भ्रष्टाचार पर लगाम कसने में कामयाब होंगे तो उनके चाहने वालों की कतार और लम्बी होनी तय है। दिल्ली से शुरू हुए उनके कारवां को देश के कोने-कोने में पहुंचने और अपना परचम लहराने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। पूरा देश उन्हें हाथों-हाथ लेने को आतुर है। क्योंकि ऐसी कोई भी जगह नहीं बची जहां रिश्वतखोरों और बेइमानों का वर्चस्व न हो। देशवासी किसी भी हालत में इनसे मुक्ति चाहते हैं और उन्हे यकीन है कि 'झाडू' ही उनके दिमाग ठिकाने लगा सकती है।
वर्षों से लटकते चले आ रहे लोकपाल बिल के पास होने के पीछे भी अरविंद केजरीवाल, योगेन्द्र यादव, कुमार विश्वास और मनीष सिसोदिया का अभूतपूर्व योगदान है। भले ही आज उनकी मेहनत पर पानी फेरने की साजिशें की जा रही हैं। यदि यह लोग न होते तो अन्ना का आंदोलन केन्द्र सरकार की तंद्रा को भंग नहीं कर पाता। दरअसल झाडू की धमाकेदार जीत ने कांग्रेस को लोकपाल बिल पास करवाने के लिए विवश कर दिया। यदि 'आप' नहीं जीतती तो लोकपाल भी अटका रहता।
यही अरविंद केजरीवाल की असली अग्नि परीक्षा है। उन्हें कुछ अलग करके दिखाना ही होगा। उन्हें भ्रष्ट नौकर शाही में आमूलचूल परिवर्तन लाकर लोगों को राहत दिलानी होगी। यदि वे भ्रष्टाचार पर लगाम कसने में कामयाब होंगे तो उनके चाहने वालों की कतार और लम्बी होनी तय है। दिल्ली से शुरू हुए उनके कारवां को देश के कोने-कोने में पहुंचने और अपना परचम लहराने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। पूरा देश उन्हें हाथों-हाथ लेने को आतुर है। क्योंकि ऐसी कोई भी जगह नहीं बची जहां रिश्वतखोरों और बेइमानों का वर्चस्व न हो। देशवासी किसी भी हालत में इनसे मुक्ति चाहते हैं और उन्हे यकीन है कि 'झाडू' ही उनके दिमाग ठिकाने लगा सकती है।
वर्षों से लटकते चले आ रहे लोकपाल बिल के पास होने के पीछे भी अरविंद केजरीवाल, योगेन्द्र यादव, कुमार विश्वास और मनीष सिसोदिया का अभूतपूर्व योगदान है। भले ही आज उनकी मेहनत पर पानी फेरने की साजिशें की जा रही हैं। यदि यह लोग न होते तो अन्ना का आंदोलन केन्द्र सरकार की तंद्रा को भंग नहीं कर पाता। दरअसल झाडू की धमाकेदार जीत ने कांग्रेस को लोकपाल बिल पास करवाने के लिए विवश कर दिया। यदि 'आप' नहीं जीतती तो लोकपाल भी अटका रहता।
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