Thursday, April 10, 2014

नेताओं के इंतकामी तेवर

नजारे बडे चौंकाने और दहलाने वाले हैं। कांग्रेस अपनी जमीन तलाश रही है। उसे मजबूरन मुस्लिमों के धर्मगुरु जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी की शरण में जाना पडा। कांग्रेस ने जो समय चुना उस पर कई सवाल खडे किये जा रहे हैं। मौलाना बुखारी भी राह देख रहे थे। उन्होंने यह घोषणा करने में देरी नहीं लगायी कि देश के मुसलमान कांग्रेस के पक्ष में मतदान करें। वे यह भी फरमाना नहीं भूले कि अगर मुसलमान अपना वोट बसपा और समाजवादी पार्टी को देते हैं तो उनका यह वोट व्यर्थ जायेगा। आज कांग्रेस के लिए मतदान करने की अपील करने वाले मौलाना बुखारी कभी समाजवादी पार्टी पर मेहरबान थे। इस मेहरबानी के बदले उन्होंने बहुत कुछ पाया। अपने दामाद को उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बनवाने की खुशी के साथ अपनी तकदीर चमकायी। जब मुलायम ने उनके बढते लालच को आंका तो उन्होंने भाव देना बंद कर दिया। बुखारी ने भी खिलाफत का झंडा उठा लिया। अहमद बुखारी अपने पिता के पदचिन्हों पर चल रहे हैं। उनके पिता अब्दुल्ला बुखारी की भी कभी कांग्रेस से काफी नजदीकियां थीं। कांग्रेस को जब उनकी सौदेबाजी रास नहीं आयी तो उसने भी किनारा कर लिया। वे कांग्रेस को कोसने की मुद्रा में आ गये। कांग्रेस को नीचा दिखाने के लिए १९७७ के चुनाव में जनता पार्टी का भी पुरजोर समर्थन किया था। रामलीला मैदान में आयोजित एक जनसभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की उपस्थिति में वे यह कह गये कि अब देश की हुकुमत जामा मस्जिद से चलेगी। मोरारजी देसाई तुष्टिकरण की राजनीति करने वालो में शामिल नहीं थे। गुस्से में तमतमाये देसाई ने अब्दुल्ला को मंच से नीचे उतार दिया। इस अपमान को उन्होंने कैसे झेला इसे लेकर भी कई कहानियां हैं। जनता पार्टी और मोरारजी देसाई उन्हें हमेशा शूल की तरह चुभते रहे। अब्दुल्ला बुखारी का सारा जीवन ऐसे ही चक्करबाजी में बीता। कभी इसका तो कभी उसका समर्थन कर वे अपने स्वार्थ साधते रहे। अब उनके पुत्र भी वही सब कर रहे हैं। कल तक उन्हें मुलायम सिंह यादव से अच्छा और कोई नेता नजर नहीं आता था। वक्त...वक्त की बात है। धर्मगुरु भी राजनीति में पारंगत हो गये हैं। राजनेताओं की तरह हवा का रूख देखकर पाले बदलना सीख गये हैं। २००४ में अहमद बुखारी ने अटल बिहारी वाजपेयी के समर्थन में सामने आये थे। दरअसल, अहमद बुखारी को बदले हुए हालातों का अंदाज नहीं है शायद। तब की बात और थी जब चुनाव के पहले जामा मस्जिद के शाही इमाम के फतवे का असर पडता था। बार-बार विचार बदलने और फतवे जारी करने के कारण उनकी साख को बट्टा लग चुका है। रूआब और रूतबा भी नहीं रहा। उनके छोटे भाई ने ही कांग्रेस का विरोध कर उनकी अपील के परखच्चे उडा दिये हैं। यह एक तरह से कांग्रेस का अपमान है जिसने ऐसे धर्मगुरु के समक्ष घुटने टेके हैं जो हद दर्जे का मतलबपरस्त है। आज का मुस्लिम समाज भी इनके इतिहास से वाकिफ है।
तय है कि पढे-लिखे मुस्लिम मतदाता अब किसी के झांसे में नहीं आने वाले। उन्हें पता है कि जब दो स्वार्थी हाथ मिलाते हैं तो किसका भला होता है। कांग्रेस पता नहीं क्यों हवाओं के इशारे को समझना नहीं चाहती। दरअसल इस देश के राजनेता अगर सुधर जाते तो बहुत कुछ दुरुस्त हो जाता। इनके भाषणों में शब्दों के चयन का तरीका भी ब‹डा डरावना है। ७ अप्रैल से प्रारंभ हुई लोकसभा चुनावों की वोटिंग १२ मई तक चलने वाली है। बेलगाम नेताओं की जुबान जहर उगलने लगी है। ऐसा लगता है जैसे कुछ नेता इंतकाम लेने की मंशा पाले हुए हैं। चुनाव जीतने के लिए भडकाऊ भाषा का इस्तेमाल आम हो गया है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों के प्रभारी अमित शाह आग लगाने की मुद्रा में हैं। इस आग से क्या...क्या खाक हो सकता है इसकी उन्हें कतई चिन्ता नहीं। वे कहते हैं कि 'उत्तर प्रदेश में सम्मान का चुनाव लडा जा रहा है। ये चुनाव मुजफ्फरनगर में हुए दंगों में हुए हमारे अपमान का बदला लेने का मौका है। ये एक मौका है उन लोगों को सबक सिखाने का जिन्होंने हमारे साथ अन्याय किया है। जिन्होंने हमारे लोगों को मारा है।' अमित शाह ने जहर उगला, लेकिन भाजपा के किसी बडे नेता ने उनकी भतसरना नहीं की। कांग्रेस की भी ऐसी ही भूमिका रही। उन्हीं की पार्टी के सहारनपुर लोकसभा सीट के प्रत्याशी इमरान मसूद के तेजाबी बोल सामने आये थे : 'यदि नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश को गुजरात बनाने की कोशिश करेंगे तो मैं उनकी बोटी-बोटी कर दूंगा।'
कांग्रेस की नीयत अगर साफ होती तो वह इमरान की टिकट छीन लेती और फौरन पार्टी से बाहर कर देती। अमित शाह हों या इमरान मसूद दोनों ही विष के सागर हैं, लेकिन उनकी पार्टियां उन्हें इसलिए दुलारने को विवश हैं, क्योंकि उन्हें उनमें चुनाव जीतने और जीतवाने की क्षमता नजर आती है। इसी सोच ने ही तो इस देश का बेडा गर्क करने में कोई कसर नहीं छोडी है। नरेंद्र मोदी के खिलाफ की गयी आतंकी टिप्पणी के जवाब में भाजपा नेता राजस्थान की मुख्यमंत्री ने भी यह कह कर अपने इरादे स्पष्ट कर दिये कि चुनाव के बाद पता चलेगा कि टुकडे किसके होंगे। समाजवादी पार्टी के नेता और यूपी सरकार में मंत्री आजम खान भी बदले और इंतकाम की बोली बोलने में कोई कसर नहीं छोड रहे। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमों अरविंद केजरीवाल पर जिस तरह से घूसों और थप्पडो की बरसात हो रही है उससे तरह-तरह की शंकाएं होने लगी हैं। कहीं इन भडकाऊ भाषणबाजों और इंतकामियों का असर तो नहीं जो एक ईमानदार नेता बेवजह पिट रहा है और यह लोग तालियां पीट रहे हैं।

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