यह तो सीधी-सीधी चारसौबीसी दिखती है। घोर विश्वासघात भी। प्रधानमंत्री की कुर्सी को सुशोभित करे कोई और फैसले ले कोई ओर! प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार और पूर्व कोयला सचिव की अलग-अलग किताब में किये गये रहस्योद्घाटन लोकतंत्र को पंगु बनाने और उसके अधिकारों के लूट की शर्मनाक दास्तान हैं। विपक्षी तो पहले ही चिल्लाया करते थे कि डॉ. मनमोहन डमी प्रधानमंत्री हैं। देश की सत्ता तो सोनिया गांधी एंड कंपनी के हाथ में ही है। विपक्ष के इन आरोपों पर कुछ लोग यकीन करते थे। कुछ नहीं भी करते थे। अब सबको पता चल गया है कि डॉ. मनमोहन तो कठपुतली से भी बदतर थे। उनका दीन-हीन चेहरा सामने आने से सजग देशवासी स्तब्ध और आहट हैं। मनमोहन जहां प्रधानमंत्री पद की गरिमा को घटाने और गिराने के दोषी हैं वहीं परदे में सोनिया की मनमानी बेहद चौंकाने वाली है। क्या यह वही सोनिया हैं जिन्होंने अपनी 'त्यागमूर्ति' की चमकीली छवि बनायी थी। सत्ता का त्याग उनका मात्र राजनीतिक हथकंडा था? उनकी चाहत कुछ थी और दर्शाया कुछ और था? यह तो दूसरे के कंधे पर बंदूक चलाने वाली बात है। किताब ऐसे कई-कई सवाल खडे करती है। दस साल तक देश की जनता छल और फरेब का शिकार होती रही। उद्योगपतियों, मंत्रियों, सांसदों और सत्ता के दलालों के हाथों देश लुटता रहा। भ्रष्टाचार के रिकार्ड टूटते रहे। पच्चीस-पचास करोड के भ्रष्टाचार की कोई गिनती नहीं रही। इसका आंकडा हजारों और लाखों करोड को भी पार कर गया। सांसद और मंत्री दिखावटी प्रधानमंत्री को ब्लैकमेल करते रहे। अपने भाई-भतीजों, रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ मिलकर देश की मूल्यवान खनिज संपदा की लूटमारी चलती रही। खुद ईमानदार होने के बावजूद डॉ. मनमोहन मुंह पर ताला लगाये रहे। कभी कुछ नहीं बोला। उन्हें इतना कमजोर कर दिया गया कि वे अपनी पसंद के मंत्री बनाने में ही नाकामयाब रहे। मंत्रिमंडल में भ्रष्टाचारियों का वर्चस्व बढता गया। सभी महत्वपूर्ण फाइलें सीधे सोनिया गांधी के पास जाती रहीं। याद किजिए...सोनिया गांधी पर देशवासियों को कितना-कितना भरोसा था। गरीब उन्हें अपना मसीहा मानते थे। पर वे तो अमीरों और ताकतवरों की होकर रह गयीं! यकीनन उन्होंने इस भरोसे का बडी बेरहमी से कत्ल कर डाला। उनकी छत्रछाया में हुए भ्रष्टाचार ने देश को खोखला कर डाला। कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं बचा जहां रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का बोलबाला न रहा हो। महंगाई ने गरीबों की कमर तोड दी। दाल, चावल, गेहूं, पेट्रोल, डीजल में आग लगती रही। मूलभूत सुविधाएं ही नदारद हो गयीं। जिसे देखो वही डॉ. मनमोहन को कोसते नजर आया। सवाल पर सवाल दागे जाने लगे। विद्वान अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह पर इतनी उंगलियां उठीं कि जितनी पहले शायद ही किसी प्रधानमंत्री पर उठी हों। उन्हें अब तक का सबसे नकारा पीएम बताया और प्रचारित किया गया। वे तब भी गजब की चुप्पी साधे रहे। कभी भी अपना दर्द बयां नहीं किया। एक बार तो बता देते कि मेरे हाथ बंधे हैं। मैं मजबूर हूं। उनकी खामोशी के पीछे पता नहीं कितनी विवशताएं थीं? क्या इसे महज स्वामी भक्ति मान लिया जाए? क्या अपने मालिक के समक्ष इस तरह से भी नतमस्तक हुआ जाता है? ऐसे में याद आ रहे हैं वे जैल सिंह जिन्होंने कभी कहा था कि इंदिरा गांधी अगर आदेश दें तो वे झाडू भी लगाने से नहीं हिचकेंगे। यही जैल सिंह बाद में भारत वर्ष के राष्ट्रपति भी बना दिये गये। लगता है कि डॉ. मनमोहन के मन में भी सरदार जैल सिंह वाला विचार पलता रहा। उन्हें सोनिया मैडम ने देश का प्रधानमंत्री बनवाया और वे इसी अहसान की भरपायी करते रहे और देश के साथ छल-कपट और धोखा होता रहा।
यह तो देश की किस्मत अच्छी थी कि २जी स्पेक्ट्रम और कोयला घोटाले को अंजाम देकर देश को लाखों-लाखों करोड की चोट देने वाले बेनकाब हो गये और खेल घोटाले के नायकों का चेहरा भी सामने आ गया। कुछ जेल भी हो आये। यह खलनायक उन्हीं की सरकार के पुर्जे थे। कोई सांसद था। कोई मंत्री था। कांग्रेस के सांसद, उद्योगपति नवीन जिन्दल ने तो कोयले की कई खदाने हथियाकर बता दिया कि उनका राजनीति में आने का असली मकसद क्या है। नागपुर के लोकमत ग्रुप के सर्वेसर्वा विजय दर्डा जो कि कांग्रेस के राज्यसभा सांसद भी हैं उन्होंने भी कोयले से मुंह काला कर कम लूट नहीं मचायी। अपने हमप्याले जायसवाल को अपने रूतबे की बदौलत कोयले की खदाने ऐसे दिलवायीं और खुद भी पायीं जैसे देश उनके बाप-दादा की जागीर हो। दरअसल, यही लोग देश के वो लुटेरे हैं जिन्होंने सीधे-सादे पी.एम. को अपने आतंक की गिरफ्त में ले लिया था। इन जैसों की भ्रष्ट बिरादरी ने जमकर बहती गंगा में हाथ धोये। अपनी आने वाली कई पीढियों के लिए पूरा बंदोबस्त कर डाला। इन सफेदपोश डकैतों को न देश का ख्याल आया और न ही करोडों बदहाल गरीबों का। इनके कई रूप-प्रतिरूप हैं। संगी-साथी हैं। कभी यह नेता बन जाते हैं, तो कभी उद्योगपति। हर रूप में इन्होंने देश को लूटा है। इनका अगर इतिहास खंगाला जाए तो न जाने कितने-कितने भयावह सच सामने आ सकते हैं। सजग मीडिया के कारण कई चेहरों के नकाब उतर गये। अगर ऐसा नहीं होता तो और भी बुरा होता। यह देश पता नहीं कहां-कहां और कैसे-कैसे लुटता रहता और देशवासियों को भनक ही नहीं लग पाती।
यह तो देश की किस्मत अच्छी थी कि २जी स्पेक्ट्रम और कोयला घोटाले को अंजाम देकर देश को लाखों-लाखों करोड की चोट देने वाले बेनकाब हो गये और खेल घोटाले के नायकों का चेहरा भी सामने आ गया। कुछ जेल भी हो आये। यह खलनायक उन्हीं की सरकार के पुर्जे थे। कोई सांसद था। कोई मंत्री था। कांग्रेस के सांसद, उद्योगपति नवीन जिन्दल ने तो कोयले की कई खदाने हथियाकर बता दिया कि उनका राजनीति में आने का असली मकसद क्या है। नागपुर के लोकमत ग्रुप के सर्वेसर्वा विजय दर्डा जो कि कांग्रेस के राज्यसभा सांसद भी हैं उन्होंने भी कोयले से मुंह काला कर कम लूट नहीं मचायी। अपने हमप्याले जायसवाल को अपने रूतबे की बदौलत कोयले की खदाने ऐसे दिलवायीं और खुद भी पायीं जैसे देश उनके बाप-दादा की जागीर हो। दरअसल, यही लोग देश के वो लुटेरे हैं जिन्होंने सीधे-सादे पी.एम. को अपने आतंक की गिरफ्त में ले लिया था। इन जैसों की भ्रष्ट बिरादरी ने जमकर बहती गंगा में हाथ धोये। अपनी आने वाली कई पीढियों के लिए पूरा बंदोबस्त कर डाला। इन सफेदपोश डकैतों को न देश का ख्याल आया और न ही करोडों बदहाल गरीबों का। इनके कई रूप-प्रतिरूप हैं। संगी-साथी हैं। कभी यह नेता बन जाते हैं, तो कभी उद्योगपति। हर रूप में इन्होंने देश को लूटा है। इनका अगर इतिहास खंगाला जाए तो न जाने कितने-कितने भयावह सच सामने आ सकते हैं। सजग मीडिया के कारण कई चेहरों के नकाब उतर गये। अगर ऐसा नहीं होता तो और भी बुरा होता। यह देश पता नहीं कहां-कहां और कैसे-कैसे लुटता रहता और देशवासियों को भनक ही नहीं लग पाती।
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