Thursday, June 19, 2014

धर्म के चोले में लिपटा आतंक

...मुंबई में कुख्यात डॉन अरुण गवली ने अपने उस दुश्मन को टपकवा दिया जिसने उसके खिलाफ कोर्ट में गवाही दी थी।
...राष्ट्रद्रोही दाऊद इब्राहिम ने छोटा राजन पर भरे बाजार गोलियां चलवायीं। राजन ने दाऊद के खात्मे की कसम खायी हुई है। दाऊद अपने ऐसे किसी भी दुश्मन को जमीन पर जिन्दा नहीं देखना चाहता।
...चम्बल के डाकूओं ने उन पांच ग्रामीणों को फांसी पर लटकाया जिनका खाकी वर्दी वालों से मिलना-जुलना लगा रहता था।
...भिलाई के नामी दारू किंग ने श्रमिक नेता की सुपारी देकर हत्या करवायी। वह श्रमिकों को शराब से दूर रहने के लिए प्रेरित करता रहता था।
...मुखबिरी की शंका के चलते नक्सलियों ने शिक्षक की गर्दन उ‹डायी।
...अरबो-खरबों का कोयला पचा जाने वाले भ्रष्ट नेता को बेनकाब करने वाले पत्रकार की निर्मम हत्या।
...बलात्कारी मंत्री के खिलाफ गवाही देने वाले राम, श्याम और बलराम पर जानलेवा हमला।

हम और आप ऐसी तमाम खबरों को पढने और सुनने के अभ्यस्त हो चुके हैं। अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाना ही उन लोगों का पेशा है, जिनका काम ही अपराध करना है। सफेद लिबास पहनकर काले धंधे करने वालों का एक ही उसूल होता किसी भी तरह से अपने दुश्मन का खात्मा करना। इसके लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। हत्यारों, बलात्कारियों, देश की संपदा के लुटेरों और किस्म-किस्म के अनाचारियों द्वारा अपने खिलाफ खडे होने वालों की हत्याएं करना आम बात है, लेकिन जिनकी दाल-रोटी ही धर्म के सहारे चलती हो और जो दिन-रात चरित्र, शालीनता, दया, मानवता के गीत गाते हों अगर वही अराजक तत्वों की श्रेणी में शामिल हो जाएं... तो? प्रवचनकार आसाराम को बेनकाब करने वाले आयुर्वेद चिकित्सक अमृत प्रजापति की बीते सप्ताह मौत हो गयी। यह मौत उन गोलियों की देन है जो धर्मगुरू आसाराम के किसी अंध-भक्त ने प्रजापति पर चलायी थीं। प्रजापति ने नाबालिग लडकी पर बलात्कार के मामले में आरोपी आसाराम के खिलाफ गवाही दी थी। प्रजापति ने ही आसाराम और उनके दुराचारी बेटे नारायण सार्इं के तमाम दुष्कर्मों का निर्भीकता के साथ काला चिट्ठा खोला था। प्रजापति ने ही चीख-चीख कर पूरी दुनिया को बताया था कि आसाराम और नारायण सार्इं जो दिखते हैं वो हैं ही नहीं। उनकी नस-नस में तो छल, कपट, वासना और भोगविलास की वो गंदगी भरी पडी है जिससे दूर रहने की वे दुनिया को सीख देते फिरते हैं। ये वो धूर्त हैं जो अपनी शिष्याओं का चीर-हरण करते हैं। यह वो अस्मत के लूटेरे हैं जो अनुष्ठान के नाम पर अपने अनुयायियों की बहू-बेटियों की इज्जत लूटते हैं। यह वो शिकारी हैं जो हमेशा इस ताक में रहते हैं कि किसी मासूम बच्ची के सपनों को कैसे रौंदा जाए। इनके लिए किसी रिश्ते की कोई अहमियत नहीं है। १९९२ में प्रजापति ने अहमदाबाद आश्रम में आसाराम को जब एक महिला अनुयायी के साथ दुष्कर्म करते देखा तो उसके पैरों तले की जमीन ही खिसक गयी थी। कभी वह भी आसाराम का अंध भक्त था। खुली आंखों से देखे शर्मनाक सच ने उसे आसाराम और उनके बेटे के कुकर्मों का पर्दाफाश करने के लिए विवश कर दिया।
आसाराम का जैसा मायाजाल था, उसने जिस तरह से अपने भक्तों की आंखों पर पट्टी बांध दी थी और जिस तरह से वह छल, कपट कर रहा था इसका शायद ही पर्दाफाश हो पाता। कुदरत का यह नियम है, जब पाप का घडा भर जाता है तो खुद पापी ऐसी हरकतें करने लगता है, जिनके कारण वह नंगा हो जाता है। किसी को उसका चीर-हरण नहीं करना पडता। आसाराम और नारायण सार्इं 'देव पुरुष' होते तो दुष्कर्मों के गर्त में समाते ही नहीं। वे हद दर्जे के भोगी थे। दुनिया से अपना सच छिपा रहे थे। उन्होंने यह भ्रम पाल लिया था कि उनका नकली संतत्व असली से ज्यादा खरा है। पर खोटा सिक्का कब तक चल पाता है? एक-न-एक दिन उसे गटर के हवाले होना ही होता है। अब जब खोटे सिक्के गटर में समा चुके हैं तो बाजार (लोगों) को उनका हश्र तय करना है। पर कुछ लोग हैं कि सच को स्वीकार करने को तैयार ही नहीं। उन्हें आज भी अपने 'आदर्श' के कुकर्मी, नशेबाज और बलात्कारी होने पर शंका है। यह सोचकर हैरत होती है कि आसाराम के 'भक्तों' ने यह कैसे मान लिया कि वो नाबालिग लडकी और तमाम पीड़िताएँ झूठी हैं जिन्होंने बाप-बेटे पर संगीन आरोप लगाए हैं। मर्यादाओं में बंधे संत कभी ऐसा कोई काम नहीं करते जो उन्हें अपराधियों के साथ खडा कर दे। प्रजापति का काम तमाम करवाने से पहले भी आसाराम और उनके पुत्र के खिलाफ गवाही देने वालों पर हमले हो चुके हैं।
सबसे पहले २८ फरवरी को सूरत की पीड़िता के पति पर हमला किया गया। एक मार्च को अहमदाबाद केस की मुख्य गवाह महिला के पति के सिर पर धारदार हथियार से हमला कर उन लोगों को सचेत किया गया जो इन दोनों के पापों की गवाही देने की कसम खा चुके थे। १६ मार्च को सूरत के प्रमुख गवाह पर तेजाब डालकर ऐसी गुंडागर्दी दिखायी गयी कि सजग देशवासी सोचने को विवश हो गये कि जिसे वे पूजते थे वह तो दरिंदगी और हैवानियत का पुतला है। १७ मार्च को अपने पीए को लखनऊ में कार से कुचलवाने की नापाक हरकत को अंजाम दिलाने वाले आसाराम यह कहकर हमलों से कन्नी काट सकते हैं कि यह सब तो मेरे चेलों का किया-कराया है। मैंने तो उनसे ऐसा करने को कभी नहीं कहा। भावावेश में उन्होंने इतनी बडी हिम्मत दिखा दी। वाकई उनके कुछ अनुयायी बहुत बडे जिगर वाले हैं। किसी छोटे-मोटे चेले-चपाटे में अमृत प्रजापति पर गोलियां चलाने का दम होने का सवाल ही नहीं उठता था। यह तो किसी बडे हाथ की कलाकारी है। पता नहीं अभी और कितने गवाह इन हत्यारो-कलाकारों की गोलियों और तेजाब के शिकार होने बाकी हैं। लेकिन यह तय है कि आसाराम और उनके पाखंडी कुपुत्र नारायण सार्इं के दुष्कर्मों की गवाही देने वालों का सिलसिला थमने वाला नहीं है। क्योंकि अब तो धर्म के चोले में लिपटे जुल्म, बर्बरता और आतंक की इन्तेहा हो चुकी है।

No comments:

Post a Comment