Thursday, September 11, 2014

लानत है इन पर

मुख्यमंत्री पता नहीं कौनसी दुनिया में रहते हैं? होश में रहने वाला कोई भी जिम्मेदार नेता ऐसी बातें तो नहीं करता जैसी कि वे करते हैं। अपनी ही मस्ती में अपना राग अलापने वाले बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की सोच पर गुस्सा भी आता है और दया भी। कैसे-कैसे नालायकों को सत्ता हासिल हो जाती है। जनता इन्हें बडी उम्मीदों के साथ वोट देती हैं, लेकिन यह उसके हित का तो कोई काम नहीं कर पाते। ऊल-जलूल बकते हुए लोगों का मनोरंजन करते रह जाते हैं। यकीनन जीतनराम मांझी का सूझबूझ से कोई वास्ता ही नहीं है। हर समस्या का हल अपनी जेब में लिए फिरते हैं। मुंह खोलने में किंचित भी देरी नहीं लगाते। जिस बिहार प्रदेश के मुखिया हैं वहां की तरक्की कर पाना उनके बस की बात नहीं दिखती। इसलिए दलितों और शोषितों को बरबादी के पाठ जरूर पढाने लगे हैं। वे नहीं चाहते कि उनके प्रदेश के लोग होशो-हवास में रहें। उनके नक्कारेपन पर कोई उंगली न उठाए इसलिए बदहाल जनता को दारू में डूबकर तबाह होने की सीख देकर अपने हैरतअंगेज चरित्र के पन्ने खोलते चले जा रहे हैं। उनकी निष्क्रियता की हकीकत उजागर हो गयी है। उनमें जनता के हित में कुछ कर दिखाने का न तो दम है और न ही कोई इच्छा। बस टाइमपास करने में लगे हैं। लालू प्रसाद यादव की राह पर चलकर लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। वे जानबूझकर इस सच्चाई को नजरअंदाज कर रहे हैं कि शराब ने कितने घर उजाडे हैं और कितनों को बेमौत मारा है। पर लगता है कि वे भी उसी सुरा के गुलाम हैं जिसकी हिमायत करते हुए उन्होंने कहा है कि काम के बाद पावभर शराब पीकर सो जाने में कोई बुराई नहीं है। अपने कथन को जायज ठहराने के लिए यह बताना भी नहीं भूले कि असली संकट तो तब खडा होता है जब हमारे दलित भाई दिन-दहाडे बोतल चढाकर सडकों पर इधर-उधर घूमते और गिरते-पडते दिखायी देते हैं।
जिन दलितों के घरों में हफ्तों चूल्हे नहीं जलते और उन्हें खाली पेट सोना पडता है उनकी चिंता-फिक्र करने और उन्हें मेहनत करने की सीख देने की बजाय शराबी बनने के लिए प्रोत्साहित करने वाले मुख्यमंत्री को पत्रकारों ने जब यह बताया कि प्रदेश में इस कदर भुखमरी है कि हजारों लोग अन्न से वंचित हैं। उन्हें हफ्तों खाना नसीब नहीं हो पाता। ऐसे में उन्हें चूहे खाने को विवश होना पड रहा है, तो उन्होंने छाती तानकर कहा कि चूहे खाने में क्या बुराई है? चूहा खाना सेहत के लिए अच्छा है। मैंने भी कई बार चूहे के मांस का आनंद लूटा है। मदिरा के साथ चूहे के मांस खाओ और सभी गम भूल जाओ। वाकई नाटकीयता और बचकानेपन की यह हद है। अपने ही लोगों का भद्दा मजाक!
क्या कभी आपने किसी मुख्यमंत्री को कालाबाजारी और अवैध कारोबार करने वालों की पीठ थपथपाते देखा है? मांझी कहते हैं परिवार के सदस्यों के उदर निर्वाह के लिए लूटपाट और काले धंधे करने में कोई हर्ज नहीं है। जब मेहनत से काम न बने तो लूटमारी पर उतरने में कोई बुराई नहीं है। पापी पेट के लिए कुछ भी कर गुजरना अपराध नहीं, सदाचार है। यकीनन मांझी को पुरस्कृत किया जाना चाहिए। अभी तक तो हम यही पढते आये हैं कि चोरी और हेराफेरी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। लूट, लूट होती है, भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार होता है और अनाचार और व्याभिचार की और कोई और परिभाषा नहीं हो सकती। काले कारोबार को छोटा व्यापारी अंजाम दे या बडा... है तो अपराध ही। लेकिन बिहार के इस मुख्यमंत्री की विषैली सोच के क्या कहने! इस महाअजूबे मुख्यमंत्री के संस्कारित बेटे को जब एक होटल के कमरे में रंगरेलियां मनाते हुए दबोचा गया तो इनका बयान आया कि इसमें गलत क्या है? जवानी में तो यह सब आम है। मेरे बेटे ने थोडी मौजमस्ती क्या कर ली तो मीडिया ने तूफान खडा कर दिया। मेरा बेटा भी देश का आम नागरिक है। इस देश के हर नौजवान को अपनी गर्लफ्रेंड के साथ मौजमस्ती की छूट है। यानी मुख्यमंत्री जी को अवैध रिश्तों पर भी कोई आपत्ति नहीं। है न गजब की बात। सोचिए यदि देश के हर प्रदेश का मुख्यमंत्री इन जैसी घटिया सोच वाला हो जाए तो क्या होगा? दरअसल देश के विशाल प्रदेश बिहार की यही बदनसीबी है कि उसे कोई ढंग का मुखिया ही नहीं मिलता। इसलिए यहां के लोगों को दूसरे प्रदेशों में जाकर रोजगार तलाशना पडता है और प्रताडना झेलनी पडती है। लानत है ऐसे सत्ताधीशों पर जिन्हें सत्ता तो चलानी नहीं आती, लेकिन उसे पाने के लिए पगलाये रहते हैं। जनता भी ऐसे बेवकूफों को पता नहीं क्यों अपना कीमती वोट देती है और सतत बेवकूफ बनती रहती है।

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