यह देश की आम औरत की कहानी है। एकदम सच्ची। बेरहम हालातों ने उसे ऐसी जगह लाकर खडा कर दिया है जहां उस पर उंगलियां ही उंगलियां उठ रही हैं। उसका नाता है उत्तर प्रदेश के एक गांव से। इस गांव की भी वैसी ही हालत है जैसी कि देश के अधिकांश ग्रामों की। महात्मा गांधी कहते थे कि असली भारत गांव में बसता है। सच कहते थे वे। गरीबी, बदहाली और बेरोजगारी आज भी लगभग हर गांव की पहचान है। इस कहानी की नायिका वह आम औरत है जो अपने दो बच्चों के साथ गांव में रहती है। रोजी-रोटी की तलाश में पति को देश की राजधानी दिल्ली जाना पडा। गांव रोजगार देने में सक्षम नहीं था। कोई भी मां खुद तो भूखी सो सकती है, लेकिन अपने बच्चों को रोटी के लिए तरसता नहीं देख सकती। उस औरत को जब कोई काम-धंधा समझ में नहीं आया तो उसने कच्ची शराब बनानी शुरू कर दी। बापू के गांव में पीने के लिए पानी भले ही न मिले, लेकिन शराब जरूर मिल जाती है। हर गली-कूचे में भरे पडे हैं पीने-पिलाने वाले। इसलिए उस औरत को भी यही धंधा फायदेमंद लगा। अच्छा-बुरा क्या है... इसमें उसने जरा भी अपना दिमाग नहीं खपाया।
वह धडल्ले से कच्ची शराब बनाकर बेचने लगी। बच्चों को पढाने और उनका पेट भरने लायक कमायी होने लगी। उसके यहां पियक्कडों का तांता लगने लगा। उसकी बनायी कच्ची शराब आसपास के गांव के पियक्कडों को भी ललचाने लगी। नशीली शराब बनाने में उसने महारत हासिल कर ली। शराब जब भट्टी पर च‹ढी रहती तो उसे पहले वह चखती और उसके बाद ग्राहकों के हवाले करती। चखते-चखते उसे मज़ा आने लगा। कडवाहट उसे भाने लगी। धीरे-धीरे उसे पीने की ऐसी लत लगी कि वह चौबीस घंटे नशे में धुत रहने लगी। राजधानी से लौटे पति ने पत्नी को बहुतेरा समझाया। दोनों में लडाई-झगडा होने लगा। पति का कहना था कि मां की देखा-देखी बच्चे भी शराबी बन जाएंगे। उनके भविष्य की ऐसी-तैसी हो जाएगी। कभी अपने बच्चों के लिए मर-मिटने वाली मां ने अपने पति की एक भी नहीं सुनी। सुनती तब जब होश में रहती। यहां तो दारू ने मां की ममता ही लूट ली थी। ऐसे में पति को अपनी भूल का एहसास हुआ। अगर उसने पत्नी को तब टोका और रोका होता जब उसने अवैध शराब के धंधे में कदम रखा था तो ऐसे शर्मनाक दिन न देखने पडते। दोषी तो वह भी कम नहीं। धन की चमक ने उसे भी अंधा बना दिया था। जब आंख खुली तब तक बहुत देरी हो चुकी थी।
हताश और निराश पति ने पंचायत का दरवाजा खटखटाया। ज्ञानवान पंचों ने महिला को समझाया और चेताया गया कि अगर घर-परिवार से प्यार है तो शराब छोड दो। शराब ज़हर है। सत्यानाशी है। इसने कभी भी किसी का भला नहीं किया। महिला ने पंचायत भवन में जुटी भीड की तरफ नजर दौडायी। आधे से ज्यादा उसके ग्राहक थे। कभी दिन में तो कभी रात में उसके यहां आ धमकते थे। कितनी पी जाते थे उन्हें भी पता नहीं होता था। उस महिला ने भरी पंचायत में ऐलानिया स्वर में अपना फैसला सुनाया कि वह अपना घर, पति और बच्चे तो छोड सकती है, लेकिन शराब नहीं। यही शराब ही उसकी जिन्दगी है। इसके बिना वह एक पल भी जिन्दा नहीं रह सकती। पंचायत दंग रह गयी। एक अनपढ औरत से उन्हें ऐसे करारे जवाब की उम्मीद नहीं थी।
एक दूसरी तस्वीर भी है। गुजरात में कहने को तो शराब बंदी है, लेकिन असली सच पीने वाले ही जानते हैं। हर शहर, गांव और कस्बे में असली और नकली शराब आसानी से उपलब्ध हो जाती है। आर्थिक नगरी सूरत में तो बाकायदा कई गलियां हैं जहां के घर मयखाने में तब्दील हो चुके हैं। यहां का विशालतम कपडा बाजार और डायमंड मार्केट देश ही नहीं दुनिया के लिए भी आकर्षिण केंद्र है। प्रतिदिन लाखों व्यापारियों का इस शहर में आना-जाना लगा रहता है। स्थानीय लोगों का हूजूम भी यह दर्शाता है कि इस शहर में दम है। दमदार शहर में पीने वाले न हों...ऐसा कैसे हो सकता है! शराब से सजी-धजी गलियां सभी पीने वालों के स्वागत के लिए सदैव तत्पर रहती हैं। किसी के लिए कोई बंदिश नहीं है। किसी भी ब्रांड की शराब, रम और बीयर चुटकी बजाते ही हाजिर हो जाती है। नमकीन से लेकर मांस-मटन और अंडों का भी इंतजाम हो जाता है। हर घर के सामने पीने वालों की भीड लगी रहती है। कुछ घरों के अंदर भी मेहमाननवाजी की जाती है। पुरुषों... बच्चों के साथ-साथ महिलाएं भी बडी तन्मयता के साथ साकी की भूमिका निभाती हैं। पियक्कडों को घरों में बैठकर पीने-पिलाने में जहां सुरक्षित होने का एहसास होता है, वहीं नयन सुख भी मिलता है। जिन-जिन घरों में महिलाएं शराब पिलाती हैं वहां पीने वालों की भीड यकीनन ज्यादा रहती है। पियक्कड जब नशे में चूर हो जाते हैं तो उन्हें संभालने का काम भी महिलाएं करती हैं। अधिकांश पुरुषों का बिना शराब पिये काम नहीं चलता। दूसरों को पिलाते-पिलाते वे भी हर दर्जे के नशेडी हो गये हैं। कुछ महिलाएं और युवतियां भी नशे में टुन्न रहती हैं। बच्चों को भी गिरते-पडते देखा जाता है। पुलिस आती है और अपनी मुट्ठी गर्म कर चली जाती है। नेताओं को भी उनका हिस्सा पहुंच जाता है। मय के नशे में सराबोर रहकर सतत आबाद रहने वाले मेले की खबर शासकों को न हो क्या यह संभव है? ऐसे में सोचिए और तय कीजिए कि इस कहानी का असली नायक कौन... और खलनायक कौन है?
वह धडल्ले से कच्ची शराब बनाकर बेचने लगी। बच्चों को पढाने और उनका पेट भरने लायक कमायी होने लगी। उसके यहां पियक्कडों का तांता लगने लगा। उसकी बनायी कच्ची शराब आसपास के गांव के पियक्कडों को भी ललचाने लगी। नशीली शराब बनाने में उसने महारत हासिल कर ली। शराब जब भट्टी पर च‹ढी रहती तो उसे पहले वह चखती और उसके बाद ग्राहकों के हवाले करती। चखते-चखते उसे मज़ा आने लगा। कडवाहट उसे भाने लगी। धीरे-धीरे उसे पीने की ऐसी लत लगी कि वह चौबीस घंटे नशे में धुत रहने लगी। राजधानी से लौटे पति ने पत्नी को बहुतेरा समझाया। दोनों में लडाई-झगडा होने लगा। पति का कहना था कि मां की देखा-देखी बच्चे भी शराबी बन जाएंगे। उनके भविष्य की ऐसी-तैसी हो जाएगी। कभी अपने बच्चों के लिए मर-मिटने वाली मां ने अपने पति की एक भी नहीं सुनी। सुनती तब जब होश में रहती। यहां तो दारू ने मां की ममता ही लूट ली थी। ऐसे में पति को अपनी भूल का एहसास हुआ। अगर उसने पत्नी को तब टोका और रोका होता जब उसने अवैध शराब के धंधे में कदम रखा था तो ऐसे शर्मनाक दिन न देखने पडते। दोषी तो वह भी कम नहीं। धन की चमक ने उसे भी अंधा बना दिया था। जब आंख खुली तब तक बहुत देरी हो चुकी थी।
हताश और निराश पति ने पंचायत का दरवाजा खटखटाया। ज्ञानवान पंचों ने महिला को समझाया और चेताया गया कि अगर घर-परिवार से प्यार है तो शराब छोड दो। शराब ज़हर है। सत्यानाशी है। इसने कभी भी किसी का भला नहीं किया। महिला ने पंचायत भवन में जुटी भीड की तरफ नजर दौडायी। आधे से ज्यादा उसके ग्राहक थे। कभी दिन में तो कभी रात में उसके यहां आ धमकते थे। कितनी पी जाते थे उन्हें भी पता नहीं होता था। उस महिला ने भरी पंचायत में ऐलानिया स्वर में अपना फैसला सुनाया कि वह अपना घर, पति और बच्चे तो छोड सकती है, लेकिन शराब नहीं। यही शराब ही उसकी जिन्दगी है। इसके बिना वह एक पल भी जिन्दा नहीं रह सकती। पंचायत दंग रह गयी। एक अनपढ औरत से उन्हें ऐसे करारे जवाब की उम्मीद नहीं थी।
एक दूसरी तस्वीर भी है। गुजरात में कहने को तो शराब बंदी है, लेकिन असली सच पीने वाले ही जानते हैं। हर शहर, गांव और कस्बे में असली और नकली शराब आसानी से उपलब्ध हो जाती है। आर्थिक नगरी सूरत में तो बाकायदा कई गलियां हैं जहां के घर मयखाने में तब्दील हो चुके हैं। यहां का विशालतम कपडा बाजार और डायमंड मार्केट देश ही नहीं दुनिया के लिए भी आकर्षिण केंद्र है। प्रतिदिन लाखों व्यापारियों का इस शहर में आना-जाना लगा रहता है। स्थानीय लोगों का हूजूम भी यह दर्शाता है कि इस शहर में दम है। दमदार शहर में पीने वाले न हों...ऐसा कैसे हो सकता है! शराब से सजी-धजी गलियां सभी पीने वालों के स्वागत के लिए सदैव तत्पर रहती हैं। किसी के लिए कोई बंदिश नहीं है। किसी भी ब्रांड की शराब, रम और बीयर चुटकी बजाते ही हाजिर हो जाती है। नमकीन से लेकर मांस-मटन और अंडों का भी इंतजाम हो जाता है। हर घर के सामने पीने वालों की भीड लगी रहती है। कुछ घरों के अंदर भी मेहमाननवाजी की जाती है। पुरुषों... बच्चों के साथ-साथ महिलाएं भी बडी तन्मयता के साथ साकी की भूमिका निभाती हैं। पियक्कडों को घरों में बैठकर पीने-पिलाने में जहां सुरक्षित होने का एहसास होता है, वहीं नयन सुख भी मिलता है। जिन-जिन घरों में महिलाएं शराब पिलाती हैं वहां पीने वालों की भीड यकीनन ज्यादा रहती है। पियक्कड जब नशे में चूर हो जाते हैं तो उन्हें संभालने का काम भी महिलाएं करती हैं। अधिकांश पुरुषों का बिना शराब पिये काम नहीं चलता। दूसरों को पिलाते-पिलाते वे भी हर दर्जे के नशेडी हो गये हैं। कुछ महिलाएं और युवतियां भी नशे में टुन्न रहती हैं। बच्चों को भी गिरते-पडते देखा जाता है। पुलिस आती है और अपनी मुट्ठी गर्म कर चली जाती है। नेताओं को भी उनका हिस्सा पहुंच जाता है। मय के नशे में सराबोर रहकर सतत आबाद रहने वाले मेले की खबर शासकों को न हो क्या यह संभव है? ऐसे में सोचिए और तय कीजिए कि इस कहानी का असली नायक कौन... और खलनायक कौन है?
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