महान देश के महान नेता महान बोलवचनों से लोगों का ज्ञानवर्धन करते रहते हैं। हाल ही में एक सत्ताखोर ने फरमाया कि जब तक दुनिया है तब तक बलात्कार होते ही रहेंगे। उनकी मानें तो हिन्दुस्तान की धरती का बलात्कारों से कभी भी नाता नहीं टूटने वाला। बडा अटूट रिश्ता है। जहां देखो, वहां बलात्कार। न रिश्तों की परवाह और ना ही उम्र की कोई लाज शर्म!
हरियाणा के शहर रोहतक में बदमाशों की छेडछाड से तंग आकर दो लडकियों को आत्महत्या करने को मजबूर होना पडा। अपनी अस्मत को बचाने के लिए मौत को गले लगाने की यह घटना बताती है कि हमारे यहां की पुलिस कितनी निकम्मी है। उसने अपनी साख ही खो दी है। महिलाओं का तो उस पर से भरोसा ही उठ चुका है। अगर ऐसी बात नहीं होती तो गुंडो की सतायी युवतियां पुलिस थाने पहुंचतीं और अपनी फरियाद सुनातीं। लेकिन उन्हें खाकी वर्दी के नकारेपन का पता था। ऐसे में आत्महत्या ही उन्हें आखिरी रास्ता नजर आया।
देश की राजधानी दिल्ली में एक वासनाखोर शिक्षक की हैवानियत ने इंसानियत और भरोसे की चूलें हिला कर रख दीं। मां-बाप ने अपनी लाडली बिटिया को ज्ञान अर्जन के लिए इस शिक्षक के पास ट्यूशन के लिए भेजा था। लेकिन ट्यूटर ने सातवीं कक्षा में पढने वाली छात्रा को कोर्स की किताबों का पाठ पढाने और सिखाने की बजाय कुछ और ही हरकतें करनी शुरू कर दीं। वह उसे अपने कम्प्यूटर पर पार्न फिल्में दिखाते हुए सेक्स का पाठ पढाने लगा। मौका पाते ही उसने बलात्कार कर अपनी मंशा पूरी कर ली। फिर तो इसका सिलसिला-सा चल पडा। कुकर्मी ट्यूटर दो साल तक बालिका को धमका-चमका कर बलात्कार करता रहा। लडकी पढाई में पिछडती चली गयी। बीते सप्ताह लडकी की मां ने मोबाइल फोन में ट्यूटर द्वारा भेजे गए अश्लील मैसेज पढे तो उसके पैरों तले की जमीन ही खिसक गयी। ट्यूटर के विश्वासघात और गंदी हरकत पर उसे गुस्सा भी आया और रोना भी। उसने पति को पूरी कहानी बतायी। पिता गुस्से में आग बबूला हो उठे। उन्होंने लडकी को डांटा-फटकारा। शर्म के मारे लडकी का चेहरा उतर गया। वह इस कदर भयभीत हो गयी कि उसने घर में रखा डिटॉल पीकर खुदकुशी करने की कोशिश की। उसे अस्पताल पहुंचाया गया। डॉक्टरों ने किसी तरह से उसे बचा लिया।
पिछले वर्ष उत्तराखंड में आयी प्राकृतिक आपदा ने कितनी तबाही मचायी, कितनी जानें लीं और कितनों को अनाथ किया इसका पूरा लेखा-जोखा तो किसी के पास नहीं है। सरकारें तो कभी पूरा सच उजागर नहीं करतीं। इसी भीषण प्राकृतिक आपदा की शिकार हुई एक दस वर्षीय बच्ची अपने माता-पिता को खोने के बाद इधर-उधर भटक रही थी। उसे किसी ने सहारा नहीं दिया। बर्बादी और तबाही के बाद क्षेत्र में मचे हाहाकार के बीच सेना के एक फौजी ने उसे हेलीकॉप्टर में बैठाकर हरिद्वार पहुंचा दिया। जहां उसे एक महिला मिली। महिला उसे मेरठ ले गयी और जबरन कचरा बिनने के काम में झोंक दिया। बच्ची को यह काम रास नहीं आया तो वह फिर हरिद्वार जा पहुंची और भीख मांगने लगी। इसी दौरान एक उम्रदराज अय्याश ने उसे अपनी वासना का शिकार बना डाला। उसने यह भी नहीं सोचा कि यह अनाथ उसकी बिटिया जैसी है। वैसे गैरों को यह सीख देने से क्या फायदा...। अपने देश की धरती पर ऐसे नराधम भी हैं जो अपनी बेटियों की इज्जत को तार-तार करने से बाज नहीं आते। अपनी बहू-बेटियों से कुकर्म करने में उन्हें कोई शर्म नहीं आती। ऐसे दुश्चरित्र पिताओं की खबरें जब बाहर आती हैं तो न जाने कितने संवेदनशील भारतीयों कर कलेजा कांप जाता है। उनका बस चले तो वे ऐसे जानवरों को भरे चौराहे पर गोली से उडा दें। इस अनंत पीडा और तकलीफ का आखिर हल क्या है? ऐसी तमाम खबरें जब सूर्खियां पाती हैं तो दिमाग जैसे काम करना बंद कर देता है। ऐसे में यह लघुकथा दिमाग में कौंधने लगती है। इसकी लेखिका हैं... गायत्री शर्मा। उन्होंने इसे बंगलुरु में ६ साल की बच्ची के साथ स्कूल में हुए बलात्कार की घटना से दुखी, क्रोधित, शर्मसार और अपराधबोध से ग्रसित होने पर लिखा है :
"बच्ची से बलात्कार के एक केस में अदालत तारीख पर तारीख देती रही। हर तरफ शक, सवाल, संदेह, गुस्सा, हडबडी, हिकारत... इतने साफ और उलझे केस के फैसले में भी इतना समय? और अंतत: एक दिन भरी अदालत में सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश ने बेहद अजीब और खौफनाक हरकत करते हुए अपना फैसला सुनाया। पैन के तेजवार से अपनी दोनों आंखों को फोडते हुए जज साहब ने दर्द से भरी, लेकिन ऊंची आवाज में कहा...'मैं अदालत में दर्ज हुए इस केस और कहीं भी दर्ज ना हुए ऐसे तमाम केसों के सभी दोषियों को दृष्टिहीन होने और लिंग भंग की सजा सुनाता हूं।'
अदालत के अंतिम फैसले के बाद पता नहीं ऐसा क्या हुआ, कि वहां खडे लगभग सारे पुरुषों ने हडबडाते हुए एक हाथ अपनी आंखों पर और दूसरा बैल्ट के नीचले हिस्से पर रखा! ...और मासूम पीडिता ने अपने हडबडाए पिता को झिंझोड़कर पूछा... "क्या हुआ पापा???"
हरियाणा के शहर रोहतक में बदमाशों की छेडछाड से तंग आकर दो लडकियों को आत्महत्या करने को मजबूर होना पडा। अपनी अस्मत को बचाने के लिए मौत को गले लगाने की यह घटना बताती है कि हमारे यहां की पुलिस कितनी निकम्मी है। उसने अपनी साख ही खो दी है। महिलाओं का तो उस पर से भरोसा ही उठ चुका है। अगर ऐसी बात नहीं होती तो गुंडो की सतायी युवतियां पुलिस थाने पहुंचतीं और अपनी फरियाद सुनातीं। लेकिन उन्हें खाकी वर्दी के नकारेपन का पता था। ऐसे में आत्महत्या ही उन्हें आखिरी रास्ता नजर आया।
देश की राजधानी दिल्ली में एक वासनाखोर शिक्षक की हैवानियत ने इंसानियत और भरोसे की चूलें हिला कर रख दीं। मां-बाप ने अपनी लाडली बिटिया को ज्ञान अर्जन के लिए इस शिक्षक के पास ट्यूशन के लिए भेजा था। लेकिन ट्यूटर ने सातवीं कक्षा में पढने वाली छात्रा को कोर्स की किताबों का पाठ पढाने और सिखाने की बजाय कुछ और ही हरकतें करनी शुरू कर दीं। वह उसे अपने कम्प्यूटर पर पार्न फिल्में दिखाते हुए सेक्स का पाठ पढाने लगा। मौका पाते ही उसने बलात्कार कर अपनी मंशा पूरी कर ली। फिर तो इसका सिलसिला-सा चल पडा। कुकर्मी ट्यूटर दो साल तक बालिका को धमका-चमका कर बलात्कार करता रहा। लडकी पढाई में पिछडती चली गयी। बीते सप्ताह लडकी की मां ने मोबाइल फोन में ट्यूटर द्वारा भेजे गए अश्लील मैसेज पढे तो उसके पैरों तले की जमीन ही खिसक गयी। ट्यूटर के विश्वासघात और गंदी हरकत पर उसे गुस्सा भी आया और रोना भी। उसने पति को पूरी कहानी बतायी। पिता गुस्से में आग बबूला हो उठे। उन्होंने लडकी को डांटा-फटकारा। शर्म के मारे लडकी का चेहरा उतर गया। वह इस कदर भयभीत हो गयी कि उसने घर में रखा डिटॉल पीकर खुदकुशी करने की कोशिश की। उसे अस्पताल पहुंचाया गया। डॉक्टरों ने किसी तरह से उसे बचा लिया।
पिछले वर्ष उत्तराखंड में आयी प्राकृतिक आपदा ने कितनी तबाही मचायी, कितनी जानें लीं और कितनों को अनाथ किया इसका पूरा लेखा-जोखा तो किसी के पास नहीं है। सरकारें तो कभी पूरा सच उजागर नहीं करतीं। इसी भीषण प्राकृतिक आपदा की शिकार हुई एक दस वर्षीय बच्ची अपने माता-पिता को खोने के बाद इधर-उधर भटक रही थी। उसे किसी ने सहारा नहीं दिया। बर्बादी और तबाही के बाद क्षेत्र में मचे हाहाकार के बीच सेना के एक फौजी ने उसे हेलीकॉप्टर में बैठाकर हरिद्वार पहुंचा दिया। जहां उसे एक महिला मिली। महिला उसे मेरठ ले गयी और जबरन कचरा बिनने के काम में झोंक दिया। बच्ची को यह काम रास नहीं आया तो वह फिर हरिद्वार जा पहुंची और भीख मांगने लगी। इसी दौरान एक उम्रदराज अय्याश ने उसे अपनी वासना का शिकार बना डाला। उसने यह भी नहीं सोचा कि यह अनाथ उसकी बिटिया जैसी है। वैसे गैरों को यह सीख देने से क्या फायदा...। अपने देश की धरती पर ऐसे नराधम भी हैं जो अपनी बेटियों की इज्जत को तार-तार करने से बाज नहीं आते। अपनी बहू-बेटियों से कुकर्म करने में उन्हें कोई शर्म नहीं आती। ऐसे दुश्चरित्र पिताओं की खबरें जब बाहर आती हैं तो न जाने कितने संवेदनशील भारतीयों कर कलेजा कांप जाता है। उनका बस चले तो वे ऐसे जानवरों को भरे चौराहे पर गोली से उडा दें। इस अनंत पीडा और तकलीफ का आखिर हल क्या है? ऐसी तमाम खबरें जब सूर्खियां पाती हैं तो दिमाग जैसे काम करना बंद कर देता है। ऐसे में यह लघुकथा दिमाग में कौंधने लगती है। इसकी लेखिका हैं... गायत्री शर्मा। उन्होंने इसे बंगलुरु में ६ साल की बच्ची के साथ स्कूल में हुए बलात्कार की घटना से दुखी, क्रोधित, शर्मसार और अपराधबोध से ग्रसित होने पर लिखा है :
"बच्ची से बलात्कार के एक केस में अदालत तारीख पर तारीख देती रही। हर तरफ शक, सवाल, संदेह, गुस्सा, हडबडी, हिकारत... इतने साफ और उलझे केस के फैसले में भी इतना समय? और अंतत: एक दिन भरी अदालत में सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश ने बेहद अजीब और खौफनाक हरकत करते हुए अपना फैसला सुनाया। पैन के तेजवार से अपनी दोनों आंखों को फोडते हुए जज साहब ने दर्द से भरी, लेकिन ऊंची आवाज में कहा...'मैं अदालत में दर्ज हुए इस केस और कहीं भी दर्ज ना हुए ऐसे तमाम केसों के सभी दोषियों को दृष्टिहीन होने और लिंग भंग की सजा सुनाता हूं।'
अदालत के अंतिम फैसले के बाद पता नहीं ऐसा क्या हुआ, कि वहां खडे लगभग सारे पुरुषों ने हडबडाते हुए एक हाथ अपनी आंखों पर और दूसरा बैल्ट के नीचले हिस्से पर रखा! ...और मासूम पीडिता ने अपने हडबडाए पिता को झिंझोड़कर पूछा... "क्या हुआ पापा???"
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