Thursday, December 4, 2014

अब आप ही सोचें और तय करें

खाने वाले भी हैं और खिलाने वाले भी। यह सिलसिला टूटे तो बात बने। वर्ना रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का खात्मा होने से रहा। कोई अन्ना आता है। भ्रष्टों के खिलाफ मजमा लगता है। कुछ दिन शोर मचता है। भ्रष्टाचारियों की थू-थू होती है। पर आखिर क्या होता है? हुआ क्या है?
देश में कहां नहीं है भ्रष्टाचार? कुछ भी तो नहीं बदला। वही रिश्वतखोरी की परंपरा। वही रस्म अदायगी। कहीं स्वार्थवश तो कहीं मजबूरी और दबाव के चलते। हो तो वही रहा है जो वर्षों से होता चला आ रहा है। कहीं कोई खौफ नहीं। मान-सम्मान के खोने की भी कतई चिन्ता नहीं। सौ में से एकाध का ही पर्दाफाश हो पाता है। बाकी यह सोचकर बेफिक्र रहते हैं कि वो जो रंगे हाथ धरा गया वह तो बदकिस्मत था, बेवकूफ था। हम जैसा चालाक और सूझबूझ वाला होता तो हर आफत से बचा रहता। इस देश में भ्रष्टाचार के कई किस्से हैं। भ्रष्टाचारी भी किस्म-किस्म के हैं। इस मामले में राजनेताओं और नौकरशाहों की जुगलबंदी भी खूब चलती है। इनके आपसी 'भाईचारे' ने देश का कबाडा करके रख दिया है। फिर भी देश की बिगडी तस्वीर को संवारने का वादा भी यही लोग करते हैं।
नोएडा विकास प्राधिकरण के मुख्य अभियंता यादव सिंह ने रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार की जो पताका फहरायी उससे यह तो साफ हो ही गया है कि कैसे और किस तरह से देश की जडों को बेखौफ होकर खोखला किया जा रहा है। छापेमारी के दौरान यादव सिंह के ठिकाने से एक डायरी बरामद हुई है जिसमें कई सत्ताधीशों, नेताओं, ठेकेदारों और सत्ता के दलालों के नाम दर्ज हैं। नोएडा प्राधिकरण में परियोजना विभाग में प्रमुख अभियंता के पद पर लंबे समय तक तैनात रहा यह महाभ्रष्टाचारी हर दल के नेताओं से दोस्ती गांठने का जादूगर रहा है। उसके यहां से एक ही झटके में १०० करोड के हीरे और करोडों की नगदी का मिलना यही तो बताता है कि भ्रष्टाचारियों ने देश को बेच खाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। जिसे मौका मिलता है वही लूटपाट करने वाला भेडिया बन जाता है। चंद वर्षों में हजारों करोड रुपये बटोर लिए जाते हैं न नेता पीछे हैं और न नौकरशाह। पहले इनकी काली कमायी का आंकडा सौ-पचास करोड तक सिमट जाता था... अब हजार करोड को पार कर चुका है। दूसरे को पछाडने की जैसे प्रतिस्पर्धा चल रही है।
यादव सिंह के अथाह भ्रष्टाचार की दास्तान तो यही कहती है कि भ्रष्ट नेता और अफसर एकजुट हो गये हैं। कहा तो यह भी जाता है राजनेताओं को भ्रष्टाचार का पाठ पढाने में नौकरशाहों की अहम भूमिका होती है। राजनेता तो आते-जाते रहते हैं, लेकिन नौकरशाह सतत बने रहते हैं। उनका सिंहासन आसानी से नहीं डोलता। सत्ता के बदलने के साथ ही इनकी निष्ठा भी बदल जाती है। अथाह भ्रष्टाचार की बदौलत सैकडों करोड की माया जुटाने वाला यादव सिंह हर पार्टी के शासन काल में खूब पनपा। बसपा, समाजवादी, कांग्रेस और भाजपा की उस पर किसी न किसी तरह से मेहरबानी बनी ही रही। दरअसल, इस देश में राजनीति, समाज सेवा और सरकारी सेवा को भ्रष्टाचार का अड्डा बनाकर रख दिया गया है। जिस देश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव लडने के लिए करोडों रुपये फूंक दिये जाते हों वहां भ्रष्टाचार के न होने की कल्पना करना ही बेमानी है। राजनीतिक पार्टियों भी धन की बदौलत ही चलती हैं। यह धन कहां से आता है इसकी जानकारी लेने और देने का दम किसी में भी नहीं है। इस देश में कम ही नेता हैं जिनका सच से करीबी नाता हो। राजनीतिक दलों की तमाम भव्य इमारतें झूठ और फरेब की नींव पर टिकी हुई हैं। कोई इस सच को माने या न माने पर यही पहला और अंतिम सच है।
इतिहास बताता है कि ईमानदारों की राजनीति में दाल ही नहीं गल पाती। उन्हें तरह-तरह की तकलीफो से गुजरना पडता है। ऐसे में बिरले ही अपने उसूलों पर टिके रह पाते हैं। देश के एक विख्यात पत्रकार हैं शेखर गुप्ता। वे लिखते हैं कि सन २००७ में लिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे से जब यह पूछा कि उन्होंने सुरेश प्रभु को वाजपेयी मंत्रिमंडल से क्यों हटवाया तो वे पहले तो जवाब देने से बचते रहे, फिर आखिरकार उन्होंने सच उगल दिया। उनका कहना था कि उनकी पार्टी को भी दूसरों की तरह धन की जरूरत होती है। प्रभु कहते थे कि वे बिजली विभाग में कुछ नहीं कमा सकते। बालासाहेब ने ही रहस्योद्घाटन किया कि उन्होंने प्रभु से पूछा था कि क्या उनका मंत्रालय नींबू की फांक है जिसे उनसे पहले का मंत्री पूरी तरह से निचोड गया। यह साक्षात्कार जब चल रहा था तब भाजपा के दिग्गज नेता प्रमोद महाजन का वहां आगमन हुआ तो बालासाहेब ने उनसे पूछा कि क्या प्रभु की बात सही है तो महाजन ने ठहाका लगाते हुए कहा कि अगर कोई केंद्रीय मंत्री दावा करता है कि पैसा कमाना नामुमकिन है तो या तो वह झूठा और चोर है या नाकाबिल है। गौरतलब है कि वही सुरेश प्रभु वर्तमान में नरेंद्र मोदी की सरकार में रेलमंत्री हैं। उन्होंने शिवसेना को छोडकर भाजपा का दामन थाम लिया है। रेलमंत्री की कुर्सी ऐसी है जिसे पाने के लिए होड मची रहती है। रेलवे में जो मलाई है वह और कहीं नहीं। पिछली सरकार के एक रेलमंत्री ने तो अपने भांजे को ही रेलवे की कमायी चाटने के लिए 'सौदेबाजी' और 'दलाली' के काम में लगा दिया था। बदकिस्मती से वह पकडा गया और भांडा फूट गया।

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