Thursday, December 25, 2014

दिलों में बसता है हिन्दुस्तान

सन्नाटा जब चीखता है तो बहरों के कान भी कांपने लगते हैं। आज देश में कुछ ऐसे ही हालात हैं। लोग देख भी रहे हैं और चिंतन-मनन भी कर रहे हैं। चुप्पी भी ऐसी है कि कभी भी तीखे शोर में तब्दील हो जाए। धर्मान्तरण और घर वापसी को लेकर जो बवाल मचा है वह कहीं तूफान में न बदल जाए इसका भी भय सताने लगा है। सवाल यह भी उठने लगे हैं कि असल में देश में किसकी सत्ता है? भाजपा के नरेंद्र मोदी की या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उन तमाम हिन्दू संगठनों की जो धर्मान्तरण को लेकर एकाएक ऐसे सक्रिय हो गये हैं जैसे उन्हें इन्हीं दिनों का ही बेसब्री से इंतजार था। ऐसे में याद आते हैं वो दिन जब नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव के दौरान देश के सर्वांगीण विकास के आश्वासन देते नहीं थकते थे। मतदाताओं को लुभाने के लिए उन्होंने क्या-क्या नहीं किया। भ्रष्टाचार को जड से खात्मा करने का उनका गगन भेदी नारा था और विदेशों में जमा काला धन १०० दिनों में वापस लाने का उनका अभूतपूर्व वायदा था। रिश्वतखोरी, महंगाई, बेरोजगारी, हिंसा और नारियों पर होने वाले अत्याचारों की पूरी तरह से खात्मे की तो जैसे उन्होंने कसम खायी थी। ऐसे में देशवासियों ने नरेंद्र मोदी पर भरोसा करने में कहीं कोई कमी और कंजूसी नहीं की। उन्हें देश की सत्ता सौंप दी। उन्हें लगा कि कोई फरिश्ता ज़मीन पर उतरा है जो उन्हें उनके तमाम कष्टों से मुक्ति दिला देगा। वैसे इस धरती पर पहले भी कई फरिश्ते आते रहे हैं और तथाकथित जादू की खोखली छडी घुमाते रहे हैं। लेकिन मोदी के अनूठे अंदाज ने लोगों को फिर से एक बार यकीन करने को मजबूर कर दिया। लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद धीरे-धीरे मौनी-मुद्रा अपनानी शुरू कर दी। लोगों को लगा यह तो कुर्सी का तकाजा है। शालीनता का जामा ओढना ही पडता है। चुप्पी साधनी ही पडती है। पर सब्र की भी हद होती है। तभी तो कई संशय और सवाल उठने लगे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि खेल और खिलाडियों को नरेंद्र मोदी की अंदर ही अंदर रजामंदी हासिल है। जहां समस्याओं का अंबार लगा हो। लोगों का जीना मुहाल हो। आतंकी फिर सिर उठा रहे हों... वहां गडे मुर्दे उखाडने की कोशिशों पर कोई अंकुश नहीं लगाया जा रहा! देश में जिस तरह का धार्मिक और राजनीतिक बवाल मचा है उससे यह चिंता भी होने लगी है कि कहीं नरेंद्र मोदी का पूरा का पूरा कार्यकाल हंगामों में ही तो नहीं बीत जाने वाला। देशवासी फिर एक नये धोखे के शिकार होकर हाथ मलते तो नहीं रह जाएेंगे?
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक हिन्दू सम्मेलन में ऐलानिया स्वर में कहा कि जवानों की जवानी जाने से पहले हिन्दू राष्ट्र बना दिया जाएगा। हम एक मजबूत हिन्दू समाज बनाने की कोशिश कर रहे हैं। जो भटक गए हैं, उन्हें फिर से अपने घर वापस लाना है। उन बेचारों का कोई दोष नहीं था। उनका तो जबरन या लालच देकर धर्म परिवर्तन कराया गया था। उत्तरप्रदेश में आगरा का धर्मान्तरण का मुद्दा अभी शांत भी नहीं हुआ था कि टुडला के नगला क्षेत्र में २० हिन्दू महिलाओं के धर्मान्तरण का हल्ला मच गया। इन महिलाओं को एक लाख रुपये का लालच देकर ईसाई बनाया गया। वैसे आगरा में जिन मुसलमानों को हिन्दू बनाया गया उन्होंने भी स्वीकारा कि उन्हें आधारकार्ड, राशनकार्ड दिलाने का झांसा देकर धर्म परिवर्तन करवाया गया। आदिवासी इलाकों में ईसाई मिशनिरियो के द्वारा धर्मांतरण का खेल वर्षों से चल रहा है। दरअसल, देश के आजाद होने के बाद से ही ईसाई मिशनरियां हिन्दुओं के धर्मान्तरण के लिए लगातार सक्रिय होती गयीं। आदिवासियों को विभिन्न प्रलोभन देकर ईसाई बनाने का ऐसा कुचक्र चलाया गया कि सरकारें भी मूकदर्शक बनकर रह गयीं। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, झारखंड और ओडिसा में आज भी विभिन्न ईसाई मिशनरियां हिन्दूओं के धर्म परिवर्तन में लगी हैं। कांग्रेस के शासन काल में तो उन पर अंकुश लगाने की सोची ही नहीं गयी। वैसे भी देश पर सबसे ज्यादा समय तक शासन कांग्रेस ने किया है। उसके कार्यकाल में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी तो पनपे, लेकिन आम जनता का कोई भला नहीं हो पाया। आदिवासियों की तो पूरी तरह से अनदेखी ही गयी। जहां पेट भरने के लिए अन्न का दाना नसीब न होता हो वहां धर्म के क्या मायने रह जाते हैं? ऐसे हालात में ईसाई मिशनरियों को भी ज्यादा कसरत नहीं करनी पडी।
कांग्रेस तो आदिवासियों और तमाम गरीबों के साथ छल करती रही और हिन्दू... ईसाई और मुसलमान बनने को मजबूर होते रहे, लेकिन मोदी सरकार क्या कर रही है? उनकी पार्टी से जुडे संगठन बिना कोई आगा-पीछे सोचे फौरन धर्मान्तरण और घर वापसी के काम में लग गये हैं। होना तो यह चाहिए था कि सबसे पहले गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा के अंधेरे को दूर करने में अपनी पूरी ताकत लगा दी जाती। इतिहास गवाह है कि निर्धनों, शोषितों और अशिक्षितों का धर्म परिवर्तन करवाना बहुत आसान होता है। इसलिए सबसे पहले तो असली समस्याओं की तह तक जाकर उनका निवारण होना जरूरी है। वैसे भी हमारे संविधान ने हर भारतीय नागरिक को अपनी पसंद के धर्म में रहने और अपनाने की आजादी दी है। जिस धर्म में भेदभाव के हालात और तरह-तरह की बंदिशें न हों और सर्वत्र खुशहाली का आलम हो तो उसे भला कौन छोडना चाहेगा? अपना घर हर किसी को अच्छा लगता है, बशर्ते उस घर में घर-सा सुकून और सुविधाएं भी तो होनी चाहिए। बिना छत और टूटी-फूटी दिवारों वाले घर किसी को भी नहीं सुहाते। वैसे भी यह दौर जबरन धर्मान्तरण करवाने, देश में संस्कृत की पढाई को अनिवार्य करवाने और गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ बनाने का नहीं है। देश जाग चुका है और देशवासी भी। उनकी भावना और सोच को 'चांद शेरी' की यह पंक्तियां खूब दर्शाती हैं :
"मैं गीता, बाइबल, कुरआन रखता हूं।
सभी धर्मों का मैं सम्मान रखता हूं।।
ये मेरे पुरखों की जागीर है लोगों।
मैं अपने दिल में हिंदुस्तान रखता हूं।।"

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