जिन्दगी बडी छोटी है। कुछ लोग लगातार बडी-बडी भूलें कर रहे हैं। आवेश में आगा-पीछा भूल गये हैं। एक अजीब-सा सन्नाटा छाया है। भय की लकीरें नज़र आने लगी हैं। यह कट्टरता और फिसलन कहां ले जाने को आतुर है? भारतीय जनता पार्टी के कुछ सांसद किसकी शह पर चुभने वाले बोल उगलने से बाज नहीं आ रहे? एक को चुप कराया जाता है तो दूसरा जहर उगलने के लिए छाती तानकर खडा हो जाता है। कौन देगा जवाब? साधु-संत तो मर्यादा का पाठ पढाने के लिए जाने जाते हैं। उन संतो से तो अपेक्षाएं और बढ जाती हैं जिन्हें जनता बडे यकीन के साथ चुनाव जितवा कर सांसद बनाती है। ऐसे में इन पर ऐसे जनहितकारी कार्य करने की जिम्मेदारी बढ जाती है जिन्हें दूसरे सांसद नहीं कर पाते।
नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में अपनी सरकार बनाने के लिए सभी तरह के हथकंडे अपनाने की राह पर है। इसके लिए उसने अपनी पूरी फौज लगा दी है। किसी भी हालत में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को मात देने का जिद्दी इरादा है। इसी उद्देश्य के मद्देनजर केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति बीते हफ्ते एक सभा में पहुंचीं। अच्छी-खासी भीड देखकर उनके जोश ने होश खो दिए। उन्होंने मतदाताओं पर सवाल दागा कि वे दिल्ली विधानसभा में रामजादों को चुनेंगे अथवा हरामजादों को? साध्वी की नजर में रामजादे कौन हैं और हरामजादे कौन... बताने की जरूरत नहीं है। एक साध्वी के मुख से ऐसे गालीनुमा शब्द सुनकर तालियां भी बजीं। हां कुछ लोग सन्न भी रह गये। मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए नेता कई हथकंडे अपनाते हैं। भाषा के निम्न स्तर पर उतर आते हैं। पर एक भगवाधारी साध्वी का इतना गिर जाना हर समझदार को हैरान-परेशान कर गया। आखिरकार वही हुआ। उनके भडकाऊ और जलाऊ बोलवचनों ने हंगामा बरपा कर दिया। यह सवाल भी गूंजा कि क्या राजनीति के चोले ने साध्वी को निष्कृष्ट शब्दावली का सहारा लेने को मजबूर कर दिया? इसका जवाब भी सामने आ गया। साध्वी उमा भारती की तरह ही साध्वी निरंजन ज्योति भी कथावाचक रही हैं। हालांकि उमा भारती के तरह उन्होंने संपूर्ण देश में ख्याति नहीं पायी। फिर भी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में उनके प्रवचनों को सुनने के लिए भीड तो जुटती ही रही है। साध्वी निरंजन ज्योति का आक्रामक भाषा से भी बडा पुराना नाता है। उनके प्रवचनों में 'हरामजादे' से भी अधिक चुभने वाले अपशब्द तालियों पर तालियां पाते रहे हैं। राजनीतिक दलों को भीड जुटाने वाले चेहरों की हमेशा तलाश रहती है। उन्हें उनके इसी गुण के चलते विधानसभा और लोकसभा की टिकट थमा दी जाती है। भारतीय जनता पार्टी इसमें सबसे आगे है। साध्वी ने तो दिल्ली के वोटरों को लुभाने के लिए अपना राग छेडा था। उन्हें सपने में भी सडक से संसद तक हंगामा मचने की उम्मीद नहीं थी। दरअसल साध्वी भूल गयीं कि वे अब केंद्रीयमंत्री हैं, कथावाचक नहीं। मंत्री को एक-एक शब्द सोच-समझकर बोलना होता है। कथाओं और प्रवचनों में जो खप जाता है वह राजनीति में नहीं खपता।
महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को राष्ट्रभक्त कहकर शोर-शराबे और हंगामे को न्योता देने वाले भाजपायी सांसद साक्षी महाराज भी भगवाधारी हैं। संतई के पेशे से राजनीति में आने के बाद उनके विवादास्पद बयान अक्सर सुर्खियां पाते रहते हैं। गोडसे को देशभक्त बताकर साक्षी महाराज ने विरोधी दलों का निशाना बनने के साथ ही देश की सजग जनता को भी निराशा के हवाले कर दिया। यह निराशा तब गहन चिंता में बदल गयी जब इस खबर ने मीडिया में सुर्खियां पायीं कि देश के सबसे पुराने हिंदु संगठनों में से एक हिंदु सभा ने राजस्थान के किशनगढ से नाथूराम गोडसे की प्रतिमा तैयार करवा कर दिल्ली में वहीं स्थापित करने की तैयारी कर ली है जहां बापू की हत्या की योजना के दौरान वह समय-समय पर ठहरा करता था। संगठन देश के कम से कम पांच शहरों में गोडसे की प्रतिमाएं लगाने का अभिलाषी है। यदि सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी तो खुद के लॉन में प्रतिमा स्थापित करने का उसका इरादा है। प्रतिमा को स्थापित करने के लिए राजधानी दिल्ली में सार्वजनिक स्थल की तलाश के साथ-साथ सही समय का इन्तजार किया जा रहा है। यह तथ्य भी गौरतलब है कि गोडसे हिंदु महासभा का सदस्य था। १९४८ में बापू की हत्या से एक दिन पहले उसने दिल्ली के कार्यालय का दौरा किया था। जिस कमरे में वह ठहरा था उसे काफी सहेजकर रखा गया है। संगठन के अध्यक्ष यह भी कहते हैं कि जब हमारे यहां सभी महापुरुषों की प्रतिमाएं हैं तो गोडसे की क्यों नहीं? इसका जवाब तो देश का बच्चा-बच्चा दे सकता है। नाथूराम गोडसे तो मानवता का हत्यारा था। उसने अहिंसा के पुजारी की हत्या कर जो पाप किया वह अक्षम्य है। देश और दुनिया को सदाचार का पाठ पढाने वाले बापू के हत्यारे की कुछ लोग भले ही कितनी तारीफ कर लें, प्रतिमाएं लगा लें लेकिन बापू तो बापू हैं जो तमाम भारतीयों के दिलों में बसते हैं और बसते रहेंगे। एक सवाल यह भी लगातार परेशान किए है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही क्यों खलबली मचाने वाले लगातार सुर्खियों में हैं। इन पर कोई अंकुश क्यों नहीं है? दूसरों से खुद को अलग बताने वाली भाजपा के शासन में क्या ऐसे ही गर्मागर्म वातावरण बना रहने वाला है?
नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में अपनी सरकार बनाने के लिए सभी तरह के हथकंडे अपनाने की राह पर है। इसके लिए उसने अपनी पूरी फौज लगा दी है। किसी भी हालत में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को मात देने का जिद्दी इरादा है। इसी उद्देश्य के मद्देनजर केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति बीते हफ्ते एक सभा में पहुंचीं। अच्छी-खासी भीड देखकर उनके जोश ने होश खो दिए। उन्होंने मतदाताओं पर सवाल दागा कि वे दिल्ली विधानसभा में रामजादों को चुनेंगे अथवा हरामजादों को? साध्वी की नजर में रामजादे कौन हैं और हरामजादे कौन... बताने की जरूरत नहीं है। एक साध्वी के मुख से ऐसे गालीनुमा शब्द सुनकर तालियां भी बजीं। हां कुछ लोग सन्न भी रह गये। मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए नेता कई हथकंडे अपनाते हैं। भाषा के निम्न स्तर पर उतर आते हैं। पर एक भगवाधारी साध्वी का इतना गिर जाना हर समझदार को हैरान-परेशान कर गया। आखिरकार वही हुआ। उनके भडकाऊ और जलाऊ बोलवचनों ने हंगामा बरपा कर दिया। यह सवाल भी गूंजा कि क्या राजनीति के चोले ने साध्वी को निष्कृष्ट शब्दावली का सहारा लेने को मजबूर कर दिया? इसका जवाब भी सामने आ गया। साध्वी उमा भारती की तरह ही साध्वी निरंजन ज्योति भी कथावाचक रही हैं। हालांकि उमा भारती के तरह उन्होंने संपूर्ण देश में ख्याति नहीं पायी। फिर भी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में उनके प्रवचनों को सुनने के लिए भीड तो जुटती ही रही है। साध्वी निरंजन ज्योति का आक्रामक भाषा से भी बडा पुराना नाता है। उनके प्रवचनों में 'हरामजादे' से भी अधिक चुभने वाले अपशब्द तालियों पर तालियां पाते रहे हैं। राजनीतिक दलों को भीड जुटाने वाले चेहरों की हमेशा तलाश रहती है। उन्हें उनके इसी गुण के चलते विधानसभा और लोकसभा की टिकट थमा दी जाती है। भारतीय जनता पार्टी इसमें सबसे आगे है। साध्वी ने तो दिल्ली के वोटरों को लुभाने के लिए अपना राग छेडा था। उन्हें सपने में भी सडक से संसद तक हंगामा मचने की उम्मीद नहीं थी। दरअसल साध्वी भूल गयीं कि वे अब केंद्रीयमंत्री हैं, कथावाचक नहीं। मंत्री को एक-एक शब्द सोच-समझकर बोलना होता है। कथाओं और प्रवचनों में जो खप जाता है वह राजनीति में नहीं खपता।
महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को राष्ट्रभक्त कहकर शोर-शराबे और हंगामे को न्योता देने वाले भाजपायी सांसद साक्षी महाराज भी भगवाधारी हैं। संतई के पेशे से राजनीति में आने के बाद उनके विवादास्पद बयान अक्सर सुर्खियां पाते रहते हैं। गोडसे को देशभक्त बताकर साक्षी महाराज ने विरोधी दलों का निशाना बनने के साथ ही देश की सजग जनता को भी निराशा के हवाले कर दिया। यह निराशा तब गहन चिंता में बदल गयी जब इस खबर ने मीडिया में सुर्खियां पायीं कि देश के सबसे पुराने हिंदु संगठनों में से एक हिंदु सभा ने राजस्थान के किशनगढ से नाथूराम गोडसे की प्रतिमा तैयार करवा कर दिल्ली में वहीं स्थापित करने की तैयारी कर ली है जहां बापू की हत्या की योजना के दौरान वह समय-समय पर ठहरा करता था। संगठन देश के कम से कम पांच शहरों में गोडसे की प्रतिमाएं लगाने का अभिलाषी है। यदि सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी तो खुद के लॉन में प्रतिमा स्थापित करने का उसका इरादा है। प्रतिमा को स्थापित करने के लिए राजधानी दिल्ली में सार्वजनिक स्थल की तलाश के साथ-साथ सही समय का इन्तजार किया जा रहा है। यह तथ्य भी गौरतलब है कि गोडसे हिंदु महासभा का सदस्य था। १९४८ में बापू की हत्या से एक दिन पहले उसने दिल्ली के कार्यालय का दौरा किया था। जिस कमरे में वह ठहरा था उसे काफी सहेजकर रखा गया है। संगठन के अध्यक्ष यह भी कहते हैं कि जब हमारे यहां सभी महापुरुषों की प्रतिमाएं हैं तो गोडसे की क्यों नहीं? इसका जवाब तो देश का बच्चा-बच्चा दे सकता है। नाथूराम गोडसे तो मानवता का हत्यारा था। उसने अहिंसा के पुजारी की हत्या कर जो पाप किया वह अक्षम्य है। देश और दुनिया को सदाचार का पाठ पढाने वाले बापू के हत्यारे की कुछ लोग भले ही कितनी तारीफ कर लें, प्रतिमाएं लगा लें लेकिन बापू तो बापू हैं जो तमाम भारतीयों के दिलों में बसते हैं और बसते रहेंगे। एक सवाल यह भी लगातार परेशान किए है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही क्यों खलबली मचाने वाले लगातार सुर्खियों में हैं। इन पर कोई अंकुश क्यों नहीं है? दूसरों से खुद को अलग बताने वाली भाजपा के शासन में क्या ऐसे ही गर्मागर्म वातावरण बना रहने वाला है?
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