Thursday, February 12, 2015

सत्ता और दौलत का नशा

नशों में नशा। सत्ता और धन का नशा। कभी उतरता ही नहीं। कुछ लोगों को एक नशा रास नहीं आता। कई-कई नशे पाल लेते हैं। खुमारी कभी टूटती नहीं। उसी में मस्त रहते हैं। असलियत उन्हें डराती है। इसलिए बेसुध रहना उन्हें बेहद भाता है। यह भी सच है कि हर दुष्कर्मी अपने करनी की सजा इसी दुनिया में ही पाता है। अरबों रुपये के सारधा चिटफंड घोटाले में ममता सरकार के कई मंत्री, सांसद लिप्त पाये गये। जिसको मौका मिला, उसी ने करोडों रुपये अंदर कर लिए। यह भी नहीं सोचा कि इस कंपनी में उस जनता के खून-पसीने की कमायी लगी है जिसने उन्हें बडे यकीन के साथ सत्ता सौंपी है। जनप्रतिनिधि घोटालेबाज चिटफंड कंपनी के कर्ताधर्ताओं का साथ देने की ऐवज में अपनी तिजोरियां भरते रहे। उन्होंने यह मान लिया कि लुटेरी कंपनी का भांडा कभी नहीं फूटेगा। अगर कहीं फूट भी गया तो वे कवच बन उसकी रक्षा करेंगे। प्रदेश में उन्हीं की सरकार है। मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी भी अपनी हैं। रिश्वत के रसगुल्लों से उन्हें भी परहेज नहीं है।
सारधा चिटफंड की नींव बदनीयती और बेईमानी की नींव पर रखी गयी थी। ऐसे में एक न एक दिन तो उसे तबाह होना ही था। आखिरकार वो वक्त आ ही गया। कंपनी के संचालकों को दबोच कर जेल में डाल दिया गया। ठग कंपनी से हिस्सा पाने वाले ममता सरकार के मंत्री और सांसद भी कानून के फंदे से नहीं बच पाये। एक-एक कर उन्हें जेल जाना पडा। उन्हीं में शामिल हैं पश्चिम बंगाल के परिवहन मंत्री मदन मित्रा। उन्हें १२ दिसंबर को गिरफ्तार किया गया था। रिश्वतखोर और भ्रष्टाचारी होने के साथ ब‹डे गुस्सैल भी हैं मदन मित्रा। हमेशा गुस्से से तमतमाये रहते हैं। जेल तो जेल होती है। हर अपराधी खुद को निर्दोष बताता है। वैसे भी कोई खुद को खुदा माने तो उसकी मर्जी। जेल में जब कोई नया तथाकथित बडा कैदी आता है तो उसके कारनामों का काला-चिट्ठा भी अन्य कैदियों तक पहुंच जाता है। यही वजह कि कई बार जेल में कैदियों के द्वारा बलात्कारियों की पिटायी की खबरें सुर्खियां पाती हैं।
अहंकारी मंत्री मदन मित्रा जब जेल में टहल रहे थे तब एक कैदी ने उन्हें चोर कहकर चिढाया तो वे आग-बबूला हो उठे। उनका खून खौल गया। एक अदना-सा कैदी उन्हें चोर की पदवी से नवाजे। वे पश्चिम बंगाल के जाने-माने नेता हैं। हजारों लोग उनके समक्ष नतमस्तक होते हैं। उनके कई चाहने वाले हैं। कुछ तो ऐसे भी हैं जो उनके इशारे पर कुछ भी कर सकते हैं। तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमों ममता दीदी के भी वे बेहद करीबी हैं। यहां बहती गंगा में कौन हाथ नहीं धोता? लगभग सभी तो रिश्वत खाते और भ्रष्टाचार करते हैं। उन्होंने बहती गंगा में हाथ धोये तो कौन सी अनहोनी कर डाली। यह तो किस्मत खराब थी इसलिए पकड में आ गये। अगर आज बाहर होते तो कालर तने रहते। किसी की क्या मजाल कि जो कोई उन्हें चोर कहने की जुर्रत कर पाता।
जेल की घुटन ने नेताजी को जकड लिया और वे बीमार पड गये। जेल के डाक्टरों की फौज उनके इलाज में लग गयी। अच्छे-खासे नेता को आखिर कौन-सा नया रोग लग गया? वे छटपटाने लगे। डाक्टरों ने जब गहन जांच-पडताल की तो एक नया चौंकाने वाला सच सामने आया। मंत्री जी की तबीयत तो अत्याधिक शराब पीने से बिगडी थी। मंत्री आम कैदी नहीं। इसलिए जेल का खाना नहीं खाते। उनके घर से प्रतिदिन लजीज पकवान और पीने का पानी आता था। इसी पानी में शराब मिली होती जिसे वे पीते और बेफिक्र हो जाते। हफ्तों तक ऐसे ही पीने का दौर चलता रहा। उन्होंने खुद स्वीकार किया कि वे अखंड पियक्कड हैं। बिना पीये उनके दिन नहीं कटते। रातें भी बेचैन कर देती हैं। ऐसे में शराब ही उन्हें राहत देती है। उन्होंने तिकडम लडायी। जेल अधिकारियों को पटाया और घर से पानी मिली शराब मंगवाने लगे। यही है हमारे देश के नेताओं और जेलों की हकीकत।
हमारा संविधान कहता है कि कानून से ऊपर कोई नहीं। लेकिन होता क्या है? दबंग और धनवान जेल अधिकारियों और डॉक्टरों को सम्मोहित कर जेल में ही मनचाही सुविधाए पाते हैं। उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार छुट्टी मनाने और बाहर घूमने-फिरने के मौके भी मिल जाते हैं। नीतीश कटारा हत्याकांड को अंजाम देने वाले हत्यारों को अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनायी है। बाहुबली नेता डीपी यादव के बेटे विकास यादव व उसकी बुआ के बेटे विशाल यादव ने २००२ में नीतीश कटारा का अपहरण कर उसकी निर्मम हत्या कर दी थीं। नीतीश विकास की बहन भारती यादव का दोस्त था। विकास और विशाल को अपनी बहन भारती का नीतीश से मिलना कतई पसंद नहीं था। इसकी सबसे बडी वजह थी, नीतीश का धनवान न होना तथा दूसरी जाति का होना। सत्ता और झूठी शान के नशे में चूर  हत्यारों को अपने रसूख और धनबल का गुमान था। उन्हें यह यकीन भी था कि कानून उनका कुछ भी नहीं बिगाड पायेगा। गवाहों को धमकाने और खरीदने की जबरदस्त कोशिशें की गयीं। सफल भी हुए। लेकिन आखिरकार कुबेरों की चालबाजी धरी की धरी रह गयी। कोई दांव भी काम न आया। यह सब हुआ एक नारी... एक मां की जिद्दी लडाई के चलते। अगर नीतीश की मां नीलम कटारा ने अपनी लडाई नहीं लडी होती तो धन बल की जीत पक्की थी। पिछले तेरह सालों से नीलम अदालतों के चक्कर पर चक्कर काट रही हैं। इकलौते बेटे की हत्या के मामले में हाईकोर्ट द्वारा बतौर मुआवजा ४० लाख रुपये देने के फैसले पर आहत मां के जख्म फिर ताजा हो गए। हत्यारों के लिए यह रकम कोई मायने नहीं रखती। लेकिन एक मां जो अपने बेटे की हत्या से अंदर तक लहुलूहान है वह खून से सना यह मुआवजा कैसे ले सकती है?

No comments:

Post a Comment