Thursday, February 19, 2015

उनकी भी तो सुनो

खबर बडी अच्छी है। हौसला और विश्वास जगाने वाली शुरुआत। इसी का तो इंतजार था। दिल्ली के कई ठेलेवालों, ऑटोवालों और अन्य छोटे-मोटे कारोबारियों ने पुलिस वालों को हफ्ता देने से मना कर दिया है। कल तक जो खाकी वर्दी से घबराते थे, आज छाती तानकर सवाल-जवाब करने लगे हैं। बहुत सह ली खाकी की गुंडागर्दी। अब नहीं सहेंगे। डटकर मुकाबला करेंगे। आदतन रिश्वतखोर पुलिस वाले स्तब्ध हैं। उन्हें यह सच्चाई डराने लगी है कि अब उन्हें अपनी तनख्वाह से ही गुजारा करना होगा। हराम की कमायी से मौज मनाने के दिन गये। कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसी भी नौबत आयेगी। वर्षों से चली आ रही परंपरा पर एकाएक ब्रेक लग जाएगी। कैसे वर्षों से चली आ रही परिपाटी के टूटने के बने पुख्ता आसार? दबे-कुचले दिल्ली वालो में कहां से आयी इतनी ताकत? भाजपा वीर नरेंद्र मोदी ने भी हुंकार भरी थी कि न खुद खाऊंगा और ना ही किसी को खाने दूंगा। फिर भी बादल नहीं छंटे। बदलाव भी नहीं दिखा। भ्रष्टों पर कोई फर्क नहीं पडा। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के फौरन बाद कहा कि 'कोई आपसे रिश्वत मांगे तो मना मत करना। सेटिंग कर लेना। जेब में हाथ डालना। अपने मोबाइल फोन में रिकॉर्ड कर लेना। मुझे लाकर देना। हम उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करेंगे।' यकीनन रिश्वतखोरों को कानूनी फंदे में फंसाने के उनके उम्दा सुझाव ने लोगों की हिम्मत बढा दी। रिश्वतखोरों के भी हौसले पस्त हो गये। दरअसल, हुंकार तो मोदी ने भी भरी थी, लेकिन उसमें वजन नज़र नहीं आया। सुनने वालों को यह महज रस्म अदायगी लगी। वैसे भी जुमलेबाजी में उनका कोई सानी नहीं। इसलिए न लेने वालों पर कोई असर पडा और न ही देने वालों पर। अरविंद के बुलंद इशारे ने लेने वालों की नींव हिला दी। देने वालों को गहरी नींद से जगा दिया। वैसे भी दोनों नेताओं में बहुत फर्क है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में धनवानों की छवि दिखायी देती है तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सामान्य जनता के जीवंत प्रतिरूप लगते हैं। अरविंद की बोलचाल की भाषा और पहनावा लोगों को अपने निकट लाता है। ऑटोवाले, पानठेले वाले, खोमचे वाले, सब्जी वाले और तमाम मेहनतकश उनके करीबी लगते हैं। प्रधानमंत्री के हाव-भाव और कीमती पोशाकें उन्हें अंबानी, अदानी और जिन्दल जैसे पूंजीपतियों के साथ खडा कर देती हैं।
यह भी तय है कि चंद ठेलेवालों और ऑटो वालों के रिश्वत देने से मना करने भर से तो दिल्ली नहीं बदलनी वाली। राजधानी में हजारों उद्योगपति, व्यापारी, तरह-तरह के बडे कारोबारी और तथाकथित ऊंचे लोग बसते हैं। यह लोग भ्रष्टाचारियों और रिश्वतखोरों के खिलाफ खडे होने में कतराते हैं। इनमें से अधिकांश की तरक्की की इमारतें इन्हीं की बदौलत ही खडी होती हैं। यह वो तबका है जिसे भ्रष्टाचार में कोई बुराई नजर नहीं आती। अपने फायदे के लिए बिकने और खरीदने में इन्हें कभी कोई परहेज नहीं रहता। यह लोग धीरुभाई अंबानी जैसों को अपना आदर्श मानते हैं जिसने भ्रष्ट शासकों और नौकरशाहों को थैलियां थमाकर अपना विशालतम आर्थिक साम्राज्य खडा करने में सफलता पायी थी। उसी विरासत को उनके बेटे भी आगे बढा रहे हैं। नरेंद्र मोदी के खासमखास अंबानी परिवार ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल को हराने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। उनका चैनल दिन-रात आम आदमी पार्टी के पिटने की भविष्यवाणी करता रहा। भारतीय जनता पार्टी के लिए तिजोरियों के मुंह खोल दिए गए। अंबानी हों या अदानी, हर किसी को सत्ताधीशों को साधने की हर कला आती है। नौकरशाह तो खुद-ब-खुद इनके इशारों पर नाचने लगते हैं। आम जनता के काम हों या न हों, लेकिन थैलीशाहों के काम कभी भी नहीं रूकते। उनके काले-पीले धंधों पर कोई उंगली नहीं उठती। हर डंडा गरीबों पर ही चलता है। खाकी उनके दिलों में खौफ पैदा करती है। उनकी झुग्गी-झोपडियों को नेस्तनाबूत करने की धमकियां देकर रिश्वत वसूली जाती है। उनके लिए न स्कूल हैं और न ही अस्पताल। पानी, बिजली उनके हिस्से में नहीं आती। उनकी पूरी जिन्दगी ही है खस्ताहाल। कितनी सरकारें आयीं और चली गयीं, लेकिन दबे-कुचले लोग वहीं के वहीं रहे। अरबों-खरबों के सरकारी ठेकों में मुंहमांगी रिश्वतें दी जाती हैं और आधे-अधूरे विकास कार्यों को कागजों में पूरा हुआ दिखा दिया जाता है। इस देश को कमीशनखोरी के दीमक ने खोखला कर दिया है। इसे खुद बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने भी कबूला है। जब वे मंच पर खडे होकर, डंके की चोट पर कहते हैं कि हां मैं सरकारी ठेकेदारों से रिश्वत खाता रहा हूं। तो ऐसे में ज्यादा माथा खपाना बेमानी है। मांझी ने तो खुद के रिश्वतबाज होने की सचाई भी नहीं छुपायी। भले ही यह अनायास हो गया। भावावेश में सच बोल गये। सीधे और निष्छल इंसान अक्सर सच को दबा नहीं पाते। बस उन्हें मौके का इंतजार रहता है। यह तो जीती-जागती हकीकत हैं कि भ्रष्टाचार, बेइमानी और रिश्वतखोरी के दम पर जहां राजनीति की अधिकांश दुकानें चलती हैं वहीं सत्ताधीश भी अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए वो सब करते हैं जिसके खिलाफ चुनावी मंचों पर शेर की तरह दहाडते हैं। आम लोग इस सच को पूरी तरह से जान गये हैं। इसलिए वे अपना वोट जाया नहीं करते। आम आदमी पार्टी की जीत के बहुत बडे मायने हैं। दिल्ली के वोटरों ने हारे हुए दलों और नेताओं को यह तो समझा ही दिया है कि अब तुम्हें बदलना ही होगा। उनकी अनदेखी कतई नहीं चलेगी। जिनके वोट लेकर सत्ता का सुख भोगा जाता है।

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