Thursday, March 19, 2015

काली विरासत

राजनीति में अपराधियों की घुसपैठ और अपराध की राजनीति का जब इतिहास लिखा जायेगा तो बिहार और उत्तरप्रदेश का नाम शीर्ष पर होगा। इन प्रदेशों की बरबादी की सबसे बडी वजह रही हत्यारों, दबंगों, बाहुबलियों और काले कारोबारियों का राजनीति में आना और मजबूत पकड बनाते चले जाना। इसकी असली शुरुआत हुई अस्सी के दशक में। प्रदेश और देश की राजनीति में अपराधियों का वर्चस्व बढता चला गया। राजनेताओं की चाकरी करने वाले कई अपराधी राजनीति के अंदरूनी गंदे सच के जानकार हो गए। उन्हें यकीन होने लगा था कि राजनीति में पदार्पण कर वे अपने काले कारनामों को आसानी से छुपा सकते हैं। उसी दौर में कई अपराधी राजनीति में सक्रिय हुए। उन्ही में से एक था धर्मपाल यादव जिसके दुष्कर्मों का सफरनामा किसी सनसनीखेज अपराधकथा को मात देता है। १९५० में उत्तरप्रदेश की औद्योगिक नगरी नोएडा के सरफाबाद में जन्मे धर्मपाल यादव के पिता कट्टर आर्य समाजी थे। पूरी तरह से संस्कारवान। खून-पसीना बहाकर दो वक्त की सच्ची-रोटी कमाने में यकीन रखने वाले। वे अपने बेटे को पढा-लिखा कर अच्छा इंसान बनाना चाहते थे। लेकिन बेटे को पढाई-लिखाई में कोई रूचि नहीं थी। उसकी तो बस अथाह धन कमाने की तमन्ना थी। उसने दूध का कारोबार शुरू कर दिया। इस सफेद धंधे में उसे ज्यादा कमायी नजर नहीं आयी। वह तो रातों-रात लखपति बनना चाहता था। उसने देखा कि दूध की तुलना में शराब के धंधे में इफरात धन बरसता है। आदमी देखते ही देखते लाखों-करोडो में खेलने लगता है। धर्मपाल को अपनी मंशा को पूरा करने के लिए ज्यादा हाथ-पांव नहीं मारने पडे। कुदरत का यह कमाल का नियम है। चाह को राह मिलते देर नहीं लगती। नीयत और इरादे भले ही कैसे हों। उसने एक कुख्यात शराब माफिया से संपर्क साधा। माफिया को भी दबंग और मजबूत कद-काठी के साथी की तलाश थी। दोनों को एक-दूसरे को जानने-समझने में ज्यादा देरी नहीं लगी। दूध के कारोबार से कतराने वाले धर्मपाल ने खुद को शराब के काले धंधे में पूरी तरह से झोंक दिया। धंधा कई गुना बढ गया। दारू माफिया को प्रफुल्लित होना ही था। उसने उसे अपना बराबर का पार्टनर बना लिया। फिर तो दोनों ने मिलकर वो कहर ढाया कि लोग देखते ही रह गये। लाखों की कच्ची शराब बनाने और इधर-उधर से लाने के विषैले कारोबार को नयी शक्ल दे दी गयी। अवैध शराब का नशा बढाने के लिए तरह-तरह के घातक रसायन डाल कर आकर्षक लेबल और पेकिंग के साथ बाजार में भेज दिया जाता। उत्तरप्रदेश के साथ-साथ आसपास के राज्यों में इतनी अधिक कच्ची शराब पहुंचायी जाती कि सरकारी ठेके की शराब दूकानें सूनी हो जातीं। काले धंधे ने उन्हें लाल कर दिया। जब काम करने वाले लोग कम पडने लगे तो धर्मपाल ने बेरोजगार युवकों पर मायावी जाल फेंका। मोटी कमायी के लालच में क्षेत्र के कई युवक उनके साथ जुडते चले गए। दोनों पार्टनरों के यहां धन-दौलत के अंबार लगते चले गए। दूसरी तरफ कच्ची शराब पीने वाले मौत के कगार तक पहुंचने रहे। अखबारों में कच्ची शराब पीकर मरने वालों की खबरें छपतीं पर धर्मपाल एंड कंपनी के धंधे पर कोई आंच न आती। ऊपर से नीचे तक सबका हफ्ता बंधा हुआ था। कानून के रखवालों ने अंधे और बहरे होने का नाटक कर विषैली शराब की खपत बढवाने और माफियाओं को बचाव का कवच पहनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।
उसी दौरान जिस कच्ची शराब ने हरियाणा के १२८ लोगों की जान ले ली वह भी धर्मपाल एंड कंपनी की ही थी। कुछ ही वर्ष में धर्मपाल करोडों नहीं, अरबों में खेलने लगा। उसकी दबंगई, मस्ती और पहुंच बढती चली गयी। जो भी उसके रास्ते में आता उसका काम तमाम होने में देरी नहीं लगती। धर्मपाल अपराध जगत का शहंशाह बन गया। अपहरण, डकैती और हत्याएं कर उसने ऐसी दहशत फैलायी कि बडे से बडे खूंखार अपराधी उसके चरण चूमने लगे। कई राजनेता और खाकी वर्दीधारी उसकी महफिलों में शामिल होने लगे। खुद को और अधिक मजबूत बनाने के लिए उसने राजनीति का भी दामन थाम लिया। मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं को महंगे तोहफे देकर उनका दिल जीतने की कला काम कर गयी। राजनीति में भी उसका सितारा खूब चमका। १९८९ में पहली बार जनता दल के टिकट पर विधायक बना धर्मपाल राजनीति की ऊंचाइयों को छूने के बाद भी अपने अपराधकर्मों से भी बाज नहीं आया। १९९० में मुलायम सिंह यादव ने उसे अपनी सरकार में पंचायती राज्यमंत्री बनाया। उसके गुनाहों की फेहरिस्त लंबी होती चली गयी। पार्टियां बदलने में भी उसने कीर्तिमान बनाया। बसपा की टिकट पर चुनाव जीतकर वह संसद में भी पहुंचा। अपने गुर्गों और किराये के गुंडो की बदौलत बार-बार विधायक बनने वाले धर्मपाल के गुनाहों को लगभग सभी राजनीतिक दलों ने नजरअंदाज किया। दल भी जीतने वालों पर दांव लगाते हैं। उन्हें उनके दुष्कर्मों से कोई लेना-देना नहीं होता। १९९२ में धर्मपाल ने अपने साथियों के साथ मिलकर विधायक महेंद्र सिंह भाटी की निर्मम हत्या कर दी। हत्या के २३ साल बाद देहरादून की विशेष सीबीआई अदालत ने धर्मपाल को आजन्म कैद की सजा सुनायी है। इसी से ही उसकी पहुंच और रसूख का पता चल जाता है। धर्मपाल का बेटा विकास यादव भी जेल में सड रहा है। उसने नितीश कटारा हत्याकांड को अंजाम देकर यह साबित कर दिया कि अपराधियों के रंगबिरंगे बगीचों में अपराध की फसल कैसे लहलहाती है। धर्मपाल की इस बिगडैल औलाद को अपने बाप की काली कमायी पर बहुत गुमान था। उसने अपनी बहन के प्रेमी को महज इसलिए मौत की सौगात दे दी क्योंकि उसे भ्रम था कि प्रतिष्ठा और धन के मामले में कटारा परिवार उसके परिवार से कमतर है। काली दौलत का यही गुरुर बाप-बेटे को ले डूबा। यह कहावत गलत तो नहीं है कि जैसा बोयेंगे वैसा ही काटेंगे। यदि धर्मपाल पर कानून बहुत पहले अपना शिकंजा कस देता तो न तो एक हत्यारा राजनीति को दागदार करता और न उसका बेटा बेखौफ होकर अपराध-दर-अपराध करते हुए खूनी खेल पाता।

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