Thursday, March 26, 2015

यह कोई कहानी नहीं

उस भगवंत मान को भूलाना आसान नहीं जो लोगों को गुदगुदाया और हंसाया करता था। छोटे पर्दे पर उसका गजब का जलवा था। पंजाब के इस कॉमेडियन ने रोतों को हंसाया और कम समय में खूब नाम कमाया। फिर पता नहीं उसके मन में क्या आया कि उसने राजनीति की राह पकड ली। यहां भी सफलता उसकी राह ताक रही थी। आम आदमी पार्टी की टिकट पर संगरूर लोकसभा का चुनाव लडा और जीत गए। ऐसे लोगों को किस्मत का धनी कहा जाता है। मुकद्दर का सिकंदर माना जाता है। इनके इर्द-गिर्द जाने-अनजाने लोगों की भीड जुटने लगती है। जहां जाते हैं, वहीं स्वागत के गलीचे बिछ जाते हैं। वाहवाही होने लगती है। अब जब यह खबर शोर मचाये है कि सांसद भगवंत मान की पत्नी उनसे किनारा करने जा रही हैं तो अचंभा तो होना ही है। उनकी पत्नी दोनों बच्चों के साथ कैलिफोर्निया में रहती हैं। पत्नी की शिकायत है कि पति के पास परिवार के लिए वक्त ही नहीं है। कॉमेडियन से राजनेता बने मान के पास कभी भरपूर समय रहता था। जब चाहते अपने बीवी बच्चों के बीच पहुंच जाते। हंसते-खेलते खुशियां मनाते। राजनीति में व्यस्त हो जाने के कारण उनके पास अपनी पत्नी और बच्चों के लिए समय नहीं रहा। पत्नी को यह बात नहीं जची। पति को पहले घर-परिवार देखना चाहिए। पर मान हैं कि दूसरे क्रियाकलापों में उलझे रहते हैं? इसलिए समझदार पत्नी ने अपने पति की जिन्दगी से हमेशा-हमेशा के लिए चले जाने का पक्का फैसला कर लिया हैं। कोर्ट में तलाक की अर्जी लग चुकी है। भगवंत कहते हैं कि जब पत्नी ही साथ छोडना चाहती है तो मैं क्या कर सकता हूं। मैं अपने उन लाखों चाहने वालों की अनदेखी तो नहीं कर सकता जिन्होंने पूरे भरोसे के साथ मुझे वोट देकर लोकसभा चुनाव में जितवाया है। तलाकनामा दायर करते समय गमगीन सांसद के चेहरे पर ऐसी उदासी छायी थी जैसे फूट-फूट कर रो देना चाहते हों? सफलता दर-सफलता की ऐसी कीमत चुकानी पडेगी, कभी सपने में भी नहीं सोचा था। उन्होंने पत्नी के लिए क्या कुछ नहीं किया! कैलिफोर्निया में आलीशान घर खरीद कर दिया और दुनिया भर की तमाम सुविधाएं उपलब्ध करवायीं। पत्नी के चेहरे की रौनक बता रही थी कि उसकी मनचाही इच्छा पूरी होने जा रही है। अब उसे सभी झंझटों से मुक्ति मिल जाएगी। किसी की कोई रोक-टोक नहीं होगी। मेरे लिए भी यह चौंकाने और हिलाने वाला सच है। मुझे किसी विद्वान के इस कथन की याद हो आयी कि पारिवारिक मोर्चे पर हारे हुए व्यक्ति की सफलता भी उसे दंश देती है। यह तो आनेवाला वक्त ही बतायेगा की इन दिनों में कौन जीता, कौन हारा। लेकिन मैं आपको राजधानी की सडकों पर ई-रिक्शा चलाती सैयदा नसरीन और मध्यप्रदेश की सविता से जरूर मिलवाना चाहता हूं। मूलरूप से हैदराबाद की रहने वाली नसरीन और उसके पति को रोजी-रोटी के लिए दिल्ली आना पडा। पति कपडों का निर्यात करने वाले एक कंपनी में काम करते थे। नसरीना भी सिलाई का काम करती थीं। दोनों की मेहनत से चार बच्चों की परवरिश बडे आराम से चल रही थी। अचानक पति की नौकरी चली गयी। नसरीन ने जो रकम बचाकर रखी थी उसी से पति को ई-रिक्शा खरीद कर दे दिया। पति दिल्ली की सडकों पर ई-रिक्शा दौडाने लगा। ठीक-ठाक कमायी भी होने लगी। लेकिन इसी दौरान वह शराबियों की संगत में पड गया। उसने शराब पीने की ऐसी लग पाली कि चौबीस घण्टे नशे में धुत रहने लगा। ऐसे में रिक्शा खाक चलाता। नशाखोर पति के निकम्मेपन ने नसरीन की रातों की नींद उडा दी। बच्चों के भूखे रहने और उनकी पढाई-लिखायी छूटने के भय से उसकी आखों से आंसू बहने लगते। उसने अपनी पूरी पूंजी तो ई-रिक्शा खरीदने में लगा दी थी। अब सिलाई मशीन चलाकर इतनी कमायी कर पाना मुश्किल था जिससे घर की सभी जरूरतें पूरी हो पातीं। पति को शराब से दूर करने की भी सभी कोशिशें धरी की धरी रह गयीं। आखिरकार वह खुद ई-रिक्शा लेकर दिल्ली की सडकों पर उतर गयी। इसके लिए उसने कोई ट्रेनिंग भी नहीं ली। बच्चों को स्कूल पहुंचाने के लिए कभी-कभार जब वह पति के साथ जाती थी तो उसकी सतर्क निगाहें रिक्शा चलाते पति पर जमी रहती थीं। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी उसे यह काम करना पडेगा। उसने तो अपने अच्छे-खासे पति के नशेडी और निकम्मा बन जाने की भी कल्पना नहीं की थी।
३१ वर्षीय नसरीन जब पहली बार अपने ई-रिक्शा पर सवारियों को बिठाकर दिल्ली की भीड-भीड वाली सडकों पर उतरी तो वह थोडी चिंतित जरूर थी, लेकिन भयभीत नहीं। पहले ही दिन उसने पांच सौ रुपये कमाए। घर में आराम फरमाता पति स्तब्ध रह गया। नसरीन कहती हैं कि उसे पता था कि उसने जिस काम को करने का निर्णय लिया है उसमें पुरुषों का वर्चस्व है। लोगों की छींटाकशी और अनहोनी की qचता थी। उसने खुद को समझाया। अपने बच्चों के भविष्य को अंधकार के गर्त में समाता देखने से तो कहीं बेहतर है खतरे मोल लेना और खुद को ऐसे युद्ध में झोंक देना जिसमें कुछ भी हो सकता है। फिर परिवार से बढकर तो कुछ भी नहीं होता। इंसान इसी के लिए तो जीता मरता है। नसरीन को तब बडी तकलीफ होती जब पुरुष ई-रिक्शा चालक उस पर तानाकशी करते और तरह-तरह से परेशान करते। नसरीन ने उन्हें नजरअंदाज कर अपने काम में व्यस्त रहना सीख लिया। नसरीन ने दसवीं तक की पढाई की है। लेकिन वह अपने बच्चों को ऊंची तालीम दिलाकर आत्मनिर्भर बनाना चाहती है।
मध्यप्रदेश में स्थित हरायपुरा निवासी सिद्धराम वर्मा और उनकी पत्नी सविता की बेमेल जोडी पहली नजर में जरूर चौंकाती है। वर्मा विकलांग हैं। बचपन से ही दोनों हाथ और बायां पैर अविकसित है। सिद्धराम वर्मा की जब शादी के लायक उम्र हुई तो मां-बाप को चिंता सताने लगी। जो आदमी खुद चलने फिरने में लगभग असमर्थ हो वह दूसरे का सहारा कैसे बन सकता है? नि:शक्तता के चलते वर्मा ने भी विवाह करने का विचार छोड दिया था। ऐसे में अचानक उनके जीवन में सविता का पदार्पण हुआ। सविता के मन में बचपन से ही विकलांगों के प्रति अटूट सेवाभाव था। सविता अपने पति के लिए ऐसी प्रेरणा और साथी बनीं कि सब कुछ बदल गया। पत्नी के सहयोग से सिद्धराम ने दाहिने पैर से लिखना सीखा और एलएलबी प्रथम श्रेणी में पास कर ली। शिक्षक की नौकरी करने वाले अपंग सिद्धराम पत्नी की प्रेरणा से समाजसेवा के क्षेत्र में भी ऐसे सक्रिय हुए कि उन्होंने जनसेवा के क्षेत्र में इतिहास रच डाला। दूर-दूर तक उनके चर्चे होने लगे। पिछले पंद्रह वर्षों से वे असहायों और निशक्तो की सेवा में तल्लीन हैं। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने ३ दिसंबर १९९८ में उन्हें उत्कृष्ट कार्यों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। ५ सितंबर २००७ को फिर राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजे गये सिद्धराम अपनी पत्नी की तारीफ करते नहीं थकते। उसी ने मुझे फर्श से अर्श पर पहुंचाया है। वही मेरे हर सुख-दुख की सच्ची साथी है।

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