Thursday, May 21, 2015

ज़ख्म...जो भर नहीं पाए

४२ वर्ष तक अटूट बेहोशी में रहने के बाद अंतत: अरुणा शानबाग ने इस दुनिया को त्याग दिया। वह कोई फिल्म अभिनेत्री या किसी बडे नेता, उद्योगपति की दुलारी नहीं थी। उसका जीवन तो बडा ही सीधा-सादा था। चमक-धमक से कोसों दूर। दीन-दुखियों और तकलीफों से जूझते लोगों की सेवा और चिंता करना उसकी आदत में शुमार था। अपनी इसी परोपकारी सोच के चलते उसने नर्स बनने का निर्णय लिया था। २३ साल की हंसती खेलती शानबाग मान और शान की जिन्दगी जीना चाहती थी। उसे छल-कपट और हेराफेरी करने वाले लोगों से नफरत थी। वह जिस अस्पताल में नर्स थी, उसी में चोर और धोखेबाज सोहन लाल वाल्मीकि, वार्ड ब्वॉय का काम करता था। यह उसकी नीचता की पराकाष्ठा थी कि कुत्तों के लिए आने वाला मांस वह खुद खा-पचा जाता था। अरुणा ने उसे कई बार समझाया। सचेत किया, लेकिन कुत्ते की पूंछ भी कभी सीधी हुई है...। वह चोरी करने से बाज नहीं आया। अरुणा ने भी उसे डांटना और टोकना नहीं छोडा। ऐसे में वह अरुणा से खार खाने लगा। बडी आयी ईमानदार कहीं की। इसे जब तक सबक नहीं सिखाया जायेगा, इसके होश ठिकाने नहीं आयेंगे। उसने अरुणा को ऐसी सजा देने की ठानी जिसकी मिसाल मिलनी मुश्किल हो। अरुणा की खूबसूरती भी उसके निशाने पर आ गयी। वह उसकी अस्मत को लूटने का मौका तलाशने लगा।
वो २७ नवंबर १९७३ का दिन था जब ड्यूटी खत्म कर अरुणा कपडे बदलने के लिए चेंजिंग रूम में पहुंची। बौखलाया सोहन लाल वहां पहले से ही ताक लगाये बैठा था। उसने भूखे खूंखार भेडिए की तरह अरुणा पर झपटा मारा। देखते ही देखते कुत्ते को बांधने वाली जंजीर से उसका गला घोंटा और फिर निर्मम बलात्कार कर डाला। जंजीर के कसाव से अरुणा के दिमाग तक खून पहुंचाने वाली नसें फट गयीं। आंखों की रोशनी जाती रही। शरीर को लकवा मार गया। अरुणा की साथी नर्स जब कमरे में पहुंची तो उसने देखा कि अरुणा शानबाग बुत बनी बैठी थी। गले में जंजीर लटक रही थी। चारों तरफ खून बिखरा हुआ था। नर्स के होश उड गये। वह फौरन मैट्रन को बुलाने के लिए दौडी। मैट्रन को देखते ही अरुणा बिलख-बिलख कर रोने लगी। उसने बोलने-बताने का बहुतेरा प्रयास किया, लेकिन नाकाम रही। उसके बाद वह जो बेहोश हुई कि कभी होश में नहीं आ पायी। पूरे ४२ वर्षों तक वह एक सुलगता हुआ सवाल बनी रही। अरुणा के हिंसक बलात्कारी को मात्र सात साल की सजा हुई। दरअसल उसे बलात्कार के घिनौने गुनाह को अंजाम देने की सजा ही नहीं हो पायी। चोरी और हत्या करने की कोशिश का मामला दर्ज केस को कमजोर कर दिया गया। सजा तो अरुणा ने पायी। खुद पर हुए हिंसक हमले और क्रुर बलात्कार की सजा। उसके जख्म आखिर तक नहीं भर पाये। पूरे ४२ साल तक वह मुर्दा बन पडी रही। अरुणा की सगाई हो चुकी थी। उसका होने वाला पति डाक्टर था। दोनों एक खुशहाल जिन्दगी जीना चाहते थे। उनके कई सपने थे, जिनकी एक दरिंदे ने बडी बेरहमी से हत्या कर दी। डाक्टर ने चार वर्ष तक अपनी होने वाली पत्नी के ठीक होने का बेसब्री से इंतजार किया। वह घंटो उसके बिस्तर के पास बैठकर बातें करता, पता नहीं क्या-क्या बुदबुदाता और फिर बच्चों की तरह रोने लगता। आखिरकार जब उसकी समझ में आ गया कि अरुणा कभी भी होश में नहीं आने वाली तो उसने किसी अन्य युवती से शादी कर यह देश ही छोड दिया। करीबी रिश्तेदारों ने भी उसे भुला दिया। इतने वर्षों तक किसी ने भी उसका हालचाल जानने की कोशिश नहीं की। अस्पताल ही उसका स्थायी ठिकाना बना रहा। उसके जिन्दा लाश बन जाने के बावजूद भी अस्पताल के डाक्टरों और नर्सों ने हिम्मत नहीं हारी। उन्हें पता था कि कोई चमत्कार ही अरुणा की बेहोशी को खत्म कर सकता है। ऐसा भी होता था कि जब भी वह किसी मर्द की आवाज सुनती तो उसका शरीर कांपने लगता। अजीब-सी चीखें उभरने लगतीं। नर्स जब उसे थपकी देती तब कहीं जाकर उसे चैन मिलता। इंसानियत के धर्म को निभाने में अस्पताल के डाक्टरों और नर्सों ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। इतने वर्षों तक तो घर-परिवार के लोग भी देखभाल नहीं कर पाते। उकता जाते हैं। उन्हें बीमार की मौत का इंतजार रहता है। अरुणा की सेवा और देखभाल करने में गैरों ने अपनों को मात दे दी। इस तथ्य को हमेशा-हमेशा के लिए पुख्ता कर दिया कि संवेदनहीनता के किसी भी दौर में मानवता कभी भी नहीं मर सकती। मानवता के पुजारी जिन्दा हैं, और रहेंगे।
इस देश की असली दुश्मन तो वो हवस के पुजारी हैं जो बार-बार दुष्कर्म करते नहीं थकते। अरुणा के बिस्तर पर कोमा में पडे रहने के दरम्यान सोहन लाल वाल्मीकि के कई-कई प्रतिरूप जन्मते रहे। निर्भया, दीपिका, दामिनी जैसी हजारों युवतियों की चलती बसों, चौराहों, स्कूलों, कालेजों, अस्पतालों और पुलिस थानों में इज्जत लुटती रही। खाकी मूकदर्शक बनी रही। कानून के हाथ बंधे रहे बलात्कारियों के हौसले बुलंद होते चले गये। कानून भले ही सख्त बना दिया गया हो, लेकिन फिर भी महिलाओं पर होने वाले अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहे। ऐसा क्यों है... इसका जवाब हर किसी के पास है...कि देर और अनदेखी ही अंधेर का कारण है। एक तो बलात्कारी को सजा नहीं होती, अगर कही होती भी है तो वर्षों लग जाते हैं।

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