Thursday, May 28, 2015

बेचैनी और बौखलाहट

नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल। इनकी बेतहाशा प्रचार की लालसा और कुछ कर गुजरने के जुनून को देखते हुए यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं कि यह दोनों धुरंधर आसानी से राजनीतिक हाशिए में जाने वाले नहीं हैं। एक को हम वर्षों से राजनीति में देखते चले आ रहे हैं, दूसरा नया है, लेकिन उसका हौसला भी अटूट है। यह नरेंद्र और अरविंद का दौर है। दोनों का दावा है कि उनके राज में भ्रष्टाचार का खात्मा हो गया है। भ्रष्टाचारियों को सांप सूंघ गया है। उनकी घिग्गी बंध चुकी है। एक दिल्ली की तरक्की के ढोल पीट रहा है, दूसरा पूरे देश में बुरे दिनों की विदायी के दावे कर रहा है। दोनों अखबारों और न्यूज चैनलो में छाये हैं। दोनों ने सत्ता पर काबिज होने के लिए वादों की झडी लगाने में एक दूसरे को मात देने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।
नरेंद्र मोदी आज भारत वर्ष के प्रधानमंत्री हैं तो अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री। मोदी की सत्ता का पहला साल पूरा होने पर देशभर में जश्न मनाया गया। सरकार की उपलब्धियां गिनायी गयीं। विरोधियों ने मजाक उडाया तो प्रशंसकों ने तारीफों के पुल बांधे। मोदी की सरकार को सूट-बूट वाली लुटेरी सरकार कहने वाले मानते हैं कि इस सरकार ने मीडिया को साधने और खोखला प्रचार पाने के अलावा और कुछ नहीं किया। नरेंद्र मोदी को तो अखबारों और न्यूज चैनल वालो को पटाने में महारत हासिल है। इस कला में यदि कांग्रेसी पारंगत होते तो उन्हें यह दिन नहीं देखने पडते। भाजपा में ऐसे कलाकारों की भरमार है जो तिल को ताड बनाना जानते हैं। नरेंद्र मोदी उनके गुरु हैं। कांग्रेस ने जो योजनाएं बनायी थीं उन्हीं को नयी पैकिंग के साथ पेश कर दिया गया है। स्वच्छता अभियान, जनधन योजना, बीमा, पेंशन योजना, आदर्श ग्राम, सडकों और रेल की नई योजनाओं में कोई दम नहीं है। देश की सबसे बडी समस्या बेरोजगारी है। मोदी सरकार के पास इस समस्या का कोई हल नहीं है। इस सरकार के राज में अल्पसंख्यक भी खुश नहीं हैं। नरेंद्र मोदी भारत वर्ष को चीन के समकक्ष खडा करना चाहते हैं। वे बार-बार 'मेक इन इंडिया' की बात करते हैं, लेकिन इसे साकार करने की दिशा में कोई प्रभावी कदम उठाते नहीं दिखते। बातें करने से क्या होता है?
दरअसल, विरोधियों को मोदी पर भरोसा नहीं। लेकिन देश की आधी आबादी तो यह मानती है कि अच्छे दिनों के आने का अहसास तो होने लगा है। महंगाई काबू में है। भ्रष्टाचार पर भी कुछ-कुछ अंकुश लगा ही है। भ्रष्टाचारियों का सतर्क हो जाना कहीं न कहीं यह दर्शाता है कि उन्हे सरकार का डर है। डॉ. मनमोहन सिंह के राज में भ्रष्टाचारी बेखौफ थे। मंत्री और अफसरों तक को भ्रष्टाचार करने की खुली छूट मिली हुई थी। तब भ्रष्टाचार की खबरें ही छायी रहती थीं। लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार के किसी भी मंत्री पर भ्रष्टाचार के किसी भी आरोप का न लगना उम्मीद और यकीन का सकारात्मक भाव तो जगाता ही है। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, अटल पेंशन योजना और स्वच्छता अभियान आदि में विरोधियों को भले ही कोई दम नजर नहीं आता हो, लेकिन करोडो देशवासी यह मानते हैं कि कम से कम मोदी ने अच्छी शुरुआत तो की। मोदी के विदेशों के दौरों को लेकर विपक्षी हल्ला मचाये हैं। वे यह भूल जाते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के विदेश के दौरों का एक बडा मकसद यह भी है कि भारत में निवेश के लिए भारी मात्रा में विदेशी धन आए। इसमें सफलता भी मिलती दिखायी दे रही है। सकारात्मक माहौल बनने लगा है। मोदी की मंशा अपने ही देश में अधिकतम कारखाने लगाकर वो सभी सामान बनाने की है जिनका हम आजादी के बाद से निर्यात करते चले आ रहे हैं। वर्षों से दूसरे देशों के मोहताज रहे देश के स्वावलंबी बनाने से निश्चय ही देश का मान बढेगा! अच्छे काम की प्रशंसा में कंजूशी जचती नहीं।
दिल्ली के शासक के रूप में अरविंद केजरीवाल भी कहीं कमतर नजर नहीं आते। उनकी राह में कंटक बिछाने की साजिशें उनके हौसले को पस्त नहीं कर पायीं। दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच की लडाई के चलते केंद्र सरकार पर जो उंगलियां उठ रही हैं, वह नरेंद्र मोदी की छवि को धूमिल करती हैं। उस भाजपा को भी कठघरे में खडा करती हैं, जिसकी दिल्ली में दाल नहीं गल पायी। केजरीवाल की ऐसी छवि बनाने की कोशिश की जा रही है कि यह शख्स सरकार चलाने के बजाय केंद्र से टकराने को लालायित है। इसे सिर्फ धरना-प्रदर्शन करना ही आता है। सरकार चलाना इसके बस की बात नहीं। लेकिन विरोधियों ने इस तथ्य को क्यों भूला दिया है कि दिल्ली का भरोसा जीतने के मामले में आम आदमी पार्टी शीर्ष पर रही है। ७० में से ६७ विधानसभा की सीटें जीतना मज़ाक नहीं। केजरीवाल का मजाक उडाने वाले दिल्ली के मतदाताओं को हलके में लेकर खुद का ही नुकसान कर रहे हैं। प्रबुद्धजनों को यही लगता है कि केंद्र सरकार उपराज्यपाल को सामने खडा कर दिल्ली पर अपना शासन चलाना चाहती है। भाजपा के बडे नेता भी केजरीवाल को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोडते। उनका बस चले तो वे उन्हें फौरन दिल्ली की सत्ता से बाहर कर दें। कल तो जो न्यूज चैनल वाले आम आदमी पार्टी के साथ खडे थे, केजरीवाल और उनके साथियों की वाह-वाही करते नहीं थकते थे, आज अपना पाला बदल चुके हैं। यह तो अरविंद का दम है कि वे किस्म-किस्म के विरोधों और विरोधियों का सामना करते हुए मैदान में डटे हुए हैं। कोई और होता तो पता नहीं उसका क्या हश्र हो चुका होता। अरविंद केजरीवाल दिल्ली वालों के नायक हैं। उन्हें अभूतपूर्व बहुमत से चुना गया है। इसलिए उन्हें खुलकर काम करने का पूरा अवसर दिया जाना चाहिए। किसी भी चुनी हुई सरकार को अफसरों की नियुक्ति स्थानांतरण और बर्खास्तगी का अधिकार है। केजरीवाल के साथ नाइंसाफी क्यों? यह सवाल उस जनता का है जिसने आम आदमी पार्टी को ऐतिहासिक जीत और कांग्रेस तथा भाजपा को शर्मनाक पराजय का मुंह दिखाया है। केजरीवाल सरकार कानून व्यवस्था, नारी सुरक्षा, पानी, बिजली, स्कूल, कॉलेज और स्वास्थ्य सेवाओं में काम करती दिखायी दे रही है। दिल्ली वाले जब सरकार से खुश हैं तो उसके खिलाफ माहौल बनाने को आतुर भाजपा वाले इतने बेचैन क्यों हैं? आखिर यही भाजपा ही तो थी जिसने २०१३ के दिल्ली विधानसभा चुनाव तथा २०१४ के लोकसभा चुनाव में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वायदा किया था। आज उसने चुप्पी क्यों साध ली है? सिर्फ और सिर्फ अरविंद केजरीवाल की सरकार को बदनाम करने में लगी है।

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