Thursday, June 11, 2015

यह कैसा मकडजाल है!

यह तो साफ-साफ दिख रहा है कि यह आईना देखने का नहीं, आईने तोडने का दौर है। कहने को लोकतंत्र है, लेकिन जिनके हाथ में सत्ता है, उनकी ही मनमानी चल रही है। आदर्शो और सिद्धांतो के ढोल की पोल खुलती चली जा रही है। इस देश के अधिकांश अधिकारी अपने मन के राजा हैं। जनता की तकलीफों का हल करना तो दूर, उनकी सुनने में भी आनाकानी की जाती है। जब यही जनता सडकों पर उतरती है, तोडफोड करती है तो शासन और प्रशासन सक्रिय होने का नाटक करता है। आंध्रप्रदेश स्थित गुंटुर के अधिकांश लोग, खासकर महिलाए शराब की घोर विरोधी हैं। यहां के कई घर शराब की वजह से बरबाद हो चुके हैं। इसी गुंटुर में कुछ दिनों पूर्व ऐन महात्मा गांधी की प्रतिमा के समीप एक शराब खाने का शुभारम्भ हो गया। लोग हक्के-बक्के रह गये। उनके गांव में यह क्या हो गया? बापू की प्रतिमा के एकदम निकट मयखाना! यह तो उस महात्मा का घोर अपमान है जिसने जीवनपर्यंत शराब की खिलाफत की। शराब विरोधी जागरूक जनता सडकों पर उतर आयी। सरकार और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की गयी। खूब शोर मचा। जब प्रशासन ने देखा कि गुस्साये लोग आसानी से मानने वाले नहीं हैं तो उसने रातों-रात एक अजब-गजब रास्ता निकाला। मयखाने पर ताले लगवाने के बजाय महात्मा गांधी की प्रतिमा को ही वहां से हटा कर दूसरी जगह स्थापित कर दिया।
प्रशासन की इस शर्मनाक हरकत से लोग हैरान-परेशान हैं। नाराज लोगों का कहना है कि शराब बार के १०० मीटर के दायरे में एक मंदिर और मस्जिद भी है, तो क्या उन्हें भी वहां से हटाया जाएगा? तय है कि लोगों का विरोध थमने वाला नहीं है। इस देश में ऐसे मज़ाक होते ही रहते हैं। इस खेल में उद्योगपति, व्यापारी, राजनेता, अभिनेता, खिलाडी, अफसर, योगी-भोगी आदि सभी शामिल हैं। इन दिनों मैगी को लेकर खूब हंगामा मचा है। वर्षों से खायी, पकायी जाने वाली मैगी के एकाएक खतरनाक होने के खुलासे के भीतरी सच को भी समझना जरूरी है। एक विदेशी कंपनी अरबो-खरबों का विषैला धंधा करती है और प्रशासन सोया रहता है। वह कंपनी अखबारों और न्यूज चैनल वालों को अरबों रुपये के विज्ञापन देकर मैगी के फायदेमंद होने का ढिंढोरा पीटते हुए कहा से कहां पहुंच जाती है। मैगी के प्रचार में नामी-गिरामी, हीरो-हीरोइन को भी शामिल कर लिया जाता है। कोई भी यह पता लगाने की कोशिश नहीं करता कि आखिर मैगी की हकीकत क्या है। सब अपना-अपना हिस्सा लेकर अंधे और बहरे बने रहते हैं। कंपनी चाहे देशी हो या विदेशी वह तो अपने ब्रांड को प्रचारित करने के लिए सभी तरीके आजमाती हैं। दोषी तो वो लोग हैं जो लालच के वशीभूत होकर हकीकत को नजरअंदाज कर देते हैं। न्यूज चैनलों और अखबारों में शराब के विज्ञापन बडी चालाकी से दिखाये और छापे जाते हैं। सोडा की आड में खुल्लम-खुला शराब का ही प्रचार किया जाता है। दुनिया की नामी-गिरामी कंपनी नेस्ले का कारोबार दो सौ से ज्यादा देशों में चलता है। ऐसी कंपनियां धंधे के सभी गुर जानती हैं। उन्हें यह भी पता होता है कि किस-किस को कैसा-कैसा चारा डालकर अपने बस में करना है। सत्ता को साधने में तो इन्हें महारत हासिल होती है। राजनेता और नौकरशाह इनके लालच के जाल में बडी आसानी से फंस जाते हैं। मैगी बनाने वाली विदेशी कंपनी नेस्ले ने यूं ही भारत में अपना कारोबार नहीं जमाया। सभी के भरपूर साथ और सहयोग की बदौलत ही उसने जहरीली मैगी को घर-घर तक पहुंचाने में ऐतिहासिक सफलता पायी।
अपने यहां मिलावटखोरी की असंख्य खबरें सुर्खियां पाती हैं। लोगों की जान से खिलवाड करने वाले मिलावटखोर बडी आसानी से बच निकलते हैं। खाद्य और औषधि विभाग के अधिकारी अपने कर्तव्य को रिश्वतखोरी पर कुर्बान कर देते हैं। देश में कहने को तो पुलिस, आबकारी, अन्न औषधि विभाग से लेकर ढेरों जांच एजेंसियां हैं, लेकिन इनकी कार्यप्रणाली किसी अबूझ पहेली से कम नहीं। भारत दुनिया का ऐसा अजूबा देश है जहां अवैध शराब पीने वालों की मौतों का सिलसिला सतत चलता रहता है। हालात यह हैं कि अब तो मीडिया भी ऐसी मौतों को नजरअंदाज करने लगा है। कौन नहीं जानता कि त्यौहारों के निकट आते ही देशभर में मिलावटी मिठाइयों की बाढ आ जाती है। जितना दूध नहीं होता उससे हजार गुना दूध की मिठाइयां दुकानों के शोकेस में सज जाती हैं। कई मिलावटखोर पकडे जाते हैं, लेकिन दान-दक्षिणा देकर छूट जाते हैं।
दरअसल, देशवासी मिलावटखोरों के जिस मकडजाल में फंस चुके हैं उससे बच निकलना आसान नहीं है। न जाने कितने ऐसे उत्पाद हैं जिनकी बिक्री के लिए संबंधित विभाग से स्वीकृति ही नहीं ली जाती। अपने देश में सब चलता है कि नीति वर्षों से चलती चली आ रही है। दुनिया के अधिकांश देशों में किसी भी खाद्य पदार्थ के बाजार में आने से पहले उसकी कडी जांच होती है। वहां पर अपने फर्ज की अनदेखी करने वालों को कतई नहीं बख्शा जाता। देश में मैगी नुडल्स पर बैन लगने की खबरों के फौरन बाद यह खबर भी आयी कि रामदेव बाबा शीघ्र ही 'पतंजलि ब्रांड' की मैगी बाजार में उतारने जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि योगी रामदेव को मैगी के रूखसत होने की पहले से ही जानकारी मिल चुकी थी। कहने को तो वे योगी हैं, लेकिन उनका व्यापार के प्रति प्रगाढ लगाव सर्वविदित है। उनके कारखानों में बनने वाले कई सामानों पर उंगलियां उठती रही हैं। अभी तो रामदेव ने ही बच्चों को सेहतमंद मैगी उपलब्ध कराने का ऐलान किया है। वो दिन दूर नही जब अंबानी और अदानी भी मैगी, दूध पाउडर, चाकलेट और अन्य जंक फूड के साथ देश के तमाम बाजारों में खडे नजर आयेंगे। नयी सरकार है तो कुछ नया भी तो होना चाहिए। अपनों को धन कमाने का भरपूर सुअवसर अब नहीं तो कब मिलेगा! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूं ही तो नहीं 'मेक इन इंडिया' के नारे को उछाला है।

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