Thursday, August 13, 2015

हिन्दुस्तान की पीडा

देश की आजादी की वर्षगांठ पर वो उमंग और खुशी नदारद है, जिसकी तरंगों से देश का जन-जन उमंगों के झूले में झूलता नजर आना चाहिए था। नयी सरकार भी देशवासियों को प्रफुल्लित नहीं कर पायी। अजीब-सी खामोशी है जो चीखने को बेताब है। पिछले कई वर्षों से देश को लहुलूहान करती चली आ रही नक्सली समस्या का भी अभी तक कोई हल नहीं तलाशा जा सका। हिंदुस्तान की धरती पर पलते किस्म-किस्म के गद्दार भी अमन-शांति और तरक्की की राह में जबरदस्त अवरोध बने हुए हैं। कुछ भारतीय पत्रकारों के विदेशी ताकतों के हाथों खेलने और आइएस में शामिल होने की राह पर बढने की खबरों ने स्तब्ध कर दिया है। उस पर पडौसी देश पाकिस्तान अपनी दरिंदगी और नीचता से कभी भी बाज नहीं आने की कसम खाये है। तभी तो पंजाब के गुरदासपुर में एक पुलिस थाने पर जहरीले पाकिस्तान के सिखाये-पढाये आतंकवादी हमला करने की जुर्रत कर दिखाते हैं। इस हमले की खबरें अभी ठंडी भी नहीं पडतीं कि जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर पाकिस्तानी आतंकी बीएसएफ के दो जवानों को मार गिराते हैं। यह आतंकी वारदातें यही बताती हैं कि कुत्ते की पूंछ के सीधे होने के भ्रम में रहना कितना घातक हो सकता है। मात पर मात खाता पाकिस्तान अपनी अंदरूनी बरबादी से इतना बौखलाया हुआ है कि उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा है। बस...भारत में आंतक के नये-नये मोर्चे खोलता चला जा रहा है। आश्चर्य, हम बेबस हैं! हां, यह अच्छी बात है कि एक आतंकी को हमने जीवित पकडने में सफलता पाकर पाकिस्तान को मुंहतोड जवाब देने का अवसर जरूर पा लिया। इस पाकिस्तानी को पकडने और दबोचने में अगर स्थानीय लोग हिम्मत और सतर्कता नहीं दिखाते तो यह मौका भी धरा रह जाता। मुंबई हमलों के गुनहगार अजमल कसाब के बाद पाकिस्तान में पले-बढे और प्रशिक्षित हुए इस दूसरे आतंकी के जिन्दा पकडे जाने से पूरी दुनिया भी जान गयी है कि भारतवर्ष यूं ही शोर नहीं मचाता कि पाकिस्तान ही आतंक और आतंकियों का असली पोषक और जन्मदाता है। इस अपाहिज देश के शातिर हुक्मरानों ने पडौसी देश का जीना हराम कर रखा है। यह खुद के देश को गर्त में डुबोते हुए हिन्दुस्तान में बम-बारूद बिछवाकर निर्दोष इंसानों की जानें लेते चले आ रहे हैं।
 पकड में आया आतंकी नावेद पाकिस्तान की साजिशों का वो निर्मम चेहरा है जिसका एक ही मकसद है भारत पर बार-बार हमले और आतंक का कहर बरपाते चले जाना। भारतीय सीमा तथा भारत के कई शहरों में भी पाकिस्तान की पाठशाला के कई नावेदों के फैले होने की प्रबल संभावना है। पकडा गया आतंकी गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर है। वह कभी अपना नाम कासिम खान, कभी उस्मान तो कभी नावेद बताकर चकमा देने की कोशिश करता रहा। उसकी उम्र बीस के आसपास है, लेकिन जिहादी जुनून, धार्मिक कट्टरता और दु:साहस ने उसे हद से ज्यादा अंधभक्त और कू्रर बना दिया।
मैं यहां हिन्दुओं को मारने आया हूं, मुझे ऐसा करने में मज़ा आता है।'  कुटिल मुस्कान के साथ कहे गये उसके यह शब्द उसके पूरी तरह से पत्थर दिल होने के गवाह हैं। उसके दिल और दिमाग में यह बिठा दिया गया है कि हिन्दुओं का कत्लेआम करने के बाद उसे हर हालत में जन्नत नसीब होगी।  देश के उम्रदराज विख्यात लेखक पत्रकार श्री रमेश नैयर कई बार पाकिस्तान की यात्रा कर चुके हैं। उन्होंने अपने यात्रा संस्करण में लिखा है कि, '१९९५ में पाकिस्तान यात्रा में मैंने पाया कि वहां के बच्चों को शुरुआत से ही भारत के प्रति नफरत का पाठ पढाया जाता है। स्कूलों में जो इतिहास पढाया जाता है, उसकी शुरुआत २० जून सन ७१२ इस्वी में मुहम्मद बिन कासिम द्वारा सिंध के राजा दाहिर सेन की पराजय व हत्या से होती है। बच्चों को बार-बार याद दिलाया जाता है कि 'उन्होंने आठ सदियों तक हिन्दुस्तान पर हुकूमत की थी और फिर से करेंगे। पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान ने भारत को परेशान करने के लिए क्या कुछ नहीं किया। हालांकि युद्ध के मैदान में मुंह की खाने के बाद उसे यह पता चल ही गया है कि भारत को पराजित करने की उसकी औकात नहीं है। फिर भी वह सपने देखने से बाज नहीं आता। आज हिन्दुस्तान इतना मजबूत हो चुका है कि सौ पाकिस्तान भी इसका बाल भी बांका नहीं कर सकते। यहां के बच्चों को दुष्ट पाकिस्तान की तरह अनैतिकता  और हिंसा का पाठ नहीं पढाया जाता। न ही भारत वर्ष से पाकिस्तान में चोरी छिपे आत्मघाती दस्तों को भेजकर पीठ में छूरा घोपने की नीच हरकतें की जाती हैं। भारत तो पाकिस्तान के साथ एक सच्चे साथी की तरह रहना चाहता है, लेकिन पाकिस्तान अभी भी उन सपनों में खोया है जो कभी पूरे नहीं होने वाले। दुनिया के किसी भी देश में भारत से टकराने का दम नहीं, लेकिन घर में छिपे गद्दारों का क्या किया जाए? आजादी के ६९वें वर्ष में भी हिंदुस्तान को यही चिंता खाए जा रही है। जम्मू और कश्मीर में उर्दू और अंग्रेजी में कुछ अखबार छपते हैं जो हिंसा को भडकाने के हिमायती हैं। देशहित की खबरों को प्राथमिकता देने के बजाय इन अखबारों में भारत की संप्रभुता और अखंडता को खतरा पहुंचाने वाली खबरें और लेख धडाधड छापे जाते हैं फिर भी इन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। इस देश की हवा में सांस लेने वाले कई बुद्धिजीवियों की संदिग्ध हरकतें भी qचता में डाल देती हैं। बेहद गुस्सा भी आता है। आतंकवादी याकूब को जब फांसी की सजा सुनायी गयी तो तथाकथित बुद्धिजीवियों ने जिस तरह से हो-हल्ला मचाया, वह सच्चे देशप्रेमियों को कतई रास नहीं आया। देश की लोकसभा और राज्यसभा में होने वाली तमाशेबाजी ने भी शासकों तथा राजनेताओं के कद को घटाया है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस यह कहकर नहीं बच सकती कि उसने भी वही किया जो कभी भाजपा ने किया था। इसमें आखिर देश हित कहां है? स्वतंत्रता दिवस पर समस्त देशवासियों का हार्दिक अभिनंदन ...असीम शुभकामनाएं।

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