Thursday, August 27, 2015

खरे सोने की पहचान

इस सृष्टि में जितने भी संत, महात्मा, ज्ञानी-ध्यानी, चिंतक और सजग लेखक हुए हैं सभी की यही सोच और लक्ष्य रहा है कि इस दुनिया में कहीं भी अंधेरा न हो। लोग ईमानदार और चरित्रवान हों। हर किसी में राष्ट्रप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हो। हर देशवासी का संघर्ष रंग लाए और असीम सफलताएं कदम चूमें। सभी के चेहरे खुशी से दमकते रहें। सर्वत्र भाईचारा और ईमानदारी बनी रहे। कहीं कोई विकृति न हो।
इस सृष्टि का निर्माण कब हुआ इसका सही और सटीक जवाब किसी के पास नहीं है, लेकिन हमें विरासत में जो ग्रंथ मिले हैं वे वाकई अनमोल हैं। इन ग्रंथों में बडी सरल भाषा में जीवन जीने की कला से अवगत कराया गया है। दरअसल, यह ग्रंथ हमारे सच्चे मार्गदर्शक हैं। हमें अपनी जीवन यात्रा कैसे पूरी करनी है, हमें कौन सी राह पर चलना है, क्या अच्छा है, क्या बुरा, किस तरह से सफलता मिलेगी और कैसे हमारा संपूर्ण विकास होगा, इन सब सवालों का जवाब हमारे वेदों और शास्त्रों में समाहित है। यह भी सच है कि आम आदमी के पास इतना समय नहीं होता कि वह महान संतों द्वारा रचित समग्र साहित्य का पन्ना-पन्ना प‹ढ सके। उसके लिए तो साधु-संत ही वेद, पुराण और मार्गदर्शक होते हैं। भारत वर्ष में अनेक ऐसे संत हुए हैं जिन्होंने जन जागरण और जन कल्याण के दायित्व को बखूबी निभाया है। उनका चरित्र ही लोगों का मार्गदर्शन करता रहा है। जीवन पर्यंत उन पर कभी कोई दाग नहीं लगा। इसी देश में रामपाल, निर्मलबाबा, नित्यानंद, चंद्रास्वामी जैसे तथाकथित संतों और प्रवचनकारों का भी डंका बजता रहा है। जब इनकी असली सूरत सामने आयी तो लोग सच्चे संतों को भी शंका की निगाह से देखने लगे। ऐसा लगता है कि आस्था और धर्म को बाजार बनाने वाले मुखौटेधारियों के पर्दाफाश होने का दौर शुरू हो चुका है। आसाराम से शुरू हुआ यह सिलसिला उस राधे मां तक आ पहुंचा है जो शराब भी पीती हैं और मुर्गा, मटन भी चबाती हैं। किसी धूर्त मिठाईवाले की मार्केqटग की बदौलत पूरे देश में छाने वाली राधे मां अश्लील नृत्य कर लोगों को रिझातीं और अपना भक्त बनातीं है। अपनी खूबसूरत काया का जादू चलाने वाली इस पाखण्डी नारी पर हत्या और दहेज उत्पीडन के भी संगीन आरोप हैं। अमीर भक्तों के साथ लिपटा-लिपटी करने की शौकीन यह तथाकथित देवी छल, कपट की जीवन्त तस्वीर है। लगता है यह महिला आसाराम से प्रेरणा लेकर धर्म के बाजार में कूदी है। भक्तों से बटोरी गयी दस हजार करो‹ड से भी ज्यादा की रकम को बाजार में चलाकर मुनाफा कमाने वाले आसाराम की तरह और भी कुछ तथाकथित ईश्वर और भगवान हैं, जिन्होंने अरबों-खरबों की माया जुटा ली है।
अपने देश में कई विवादास्पद संतों और प्रवचनकारों की तरह कुछ चर्चित संन्यासिनें भी फाइव स्टार सुविधाओं में जीने की आदी हैं। तरह-तरह के विवादों से भी उनका चोली दामन का साथ यही बताता है कि संदिग्ध पुरुष संतों की तरह उनका भी जन कल्याण के प्रति उतना समर्पण नहीं है, जितने की अपेक्षा कर भक्त भीड की शक्ल में उनके समक्ष मस्तक झुकाते हैं। खुद को ईश्वर का दूत मानने और प्रचारित करने वाले कुछ भगवाधारी जिस तरह से गरीबों को नजरअंदाज कर 'ऊंचे लोगों' पर आशीर्वाद बरसाते हैं उससे उनकी भेदभाव की नीति और असली मंशा उजागर हो जाती है। तथाकथित ईश्वरों का यह तमाशा देखकर जो पी‹डा होती है उसी को कवि दिनेश कुशवाह ने इन पंक्तियों में बयां किया है :
"ईश्वर की सबसे ब‹डी खामी यह है कि
वह समर्थ लोगों का कुछ नहीं बिगाड पाता...
उसके आस-पास नेताओं की तरह
धूर्त, छली और पाखण्डी लोगों की भी‹ड जमा है।"
ऐसे संत, महात्मा, प्रवचनकार, देवी, देवता और गुरुजी जो अपने प्रतिष्ठित, ताकतवर और धनवान भक्तों के आलीशान भवनों में ठहरने की दरियादिली दिखाते हैं और गरीब भक्तों के घरों की तरफ झांकते तक नहीं, वे यकीनन अपना मान-सम्मान घटाते हैं और धर्म-कर्म की गरिमा को भी धूमिल करते हैं। ऐसे भगवान बडी आसानी से पहचान में आ जाते हैं। मायावी रहन-सहन और लिफाफे लपकने की ललक ही उनकी असलियत बता देती है। धूर्त किस्म के प्रवचनकारों के दरबार में नतमस्तक होने वाले लोग भी कम दोषी नहीं हैं। यह बहुत अच्छी बात है कि देश में तेजी से बदलाव आ रहा है। जिस तेजी से कुछ भगवाधारियों के मुखौटे उतरे हैं उससे अधिकांश भारतवासियों को समझ में आने लगा है कि इन तथाकथित साधु-संतों से भय और qचता के निवारण और ज्ञान पाने की उम्मीद रखना व्यर्थ है। यह तो मुसीबतों और तकलीफों को बढाने के साथ-साथ अंधविश्वास और असमानता के पोषक हैं। यह मान लेना भी गलत होगा कि इस देश मेें सच्चे साधु-संतों और साध्वियों का घोर अकाल प‹ड गया है। पारखी आंखें खरे सोने की तुरंत पहचान कर लेती हैं। युवाओं के प्रेरणास्त्रोत, हिन्दुस्तान के पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम विद्वता, विनम्रता सदाचार और सादगी की ऐसी प्रतिमूर्ति थे, जिसकी दूसरी कोई और मिसाल नहीं दी जा सकती। डॉ. कलाम भगवाधारी तो नहीं थे, लेकिन सच्चे साधु और संत जरूर थे। कहीं कोई खोट नहीं, दिखावा नहीं। लोभ, लालच से कोसों दूर। सहज और सरल। कर्म को ही अपना धर्म मानने वाले डॉ. कलाम जब शिलांग में व्याख्यान दे रहे थे, तब अचानक उनकी तबीयत बिगड गयी। चिकित्सकों की लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। ताउम्र अविवाहित रहकर देश की सेवा करने वाले यह महापुरुष भगवत् गीता और कुरान पर एक समान पक‹ड रखते थे। गरीबी में पले-ब‹ढे अब्दुल कलाम का सफरनामा अचंभित करने के साथ-साथ यह संदेश भी देता है कि अथक परिश्रम करने वालों को सफलता जरूर मिलती है। उनका मानना था कि महज सपने देखने से कुछ नहीं होता। उन्हें साकार करने के लिए अपनी जान लगा देने वाले ही शिखर तक पहुंचते हैं। वे युवाओं को कहा करते थे कि बडे सपने देखो और पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दो। उस सपने का कोई मोल नहीं है जो नींद में देखा जाता है। असली सपना तो वह है जो आपकी नींद उडा दे। आप सोना भी चाहें तो सो न पाएं। विज्ञान और टेक्नालॉजी के इस युगपुरुष ने युवाओं के मार्गदर्शन के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर जिस तरह से एक अच्छे शिक्षक की भूमिका निभायी, उसे यह देश कभी भी नहीं भूल सकता। आज जब देश के अधिकांश राजनेता अपने इर्द-गिर्द सुरक्षा रक्षकों की बारात लेकर निकलते हैं और इसे प्रतिष्ठा सूचक मानते हैं वहीं डॉ. कलाम को अपनी सुरक्षा के लिए जवानों की तैनाती असहज बनाती थी। घण्टों खडे रहकर अपनी ड्यूटी निभाने वाले जवानों का हालचाल जानना भी वे नहीं भूलते थे। इस बहुआयामी हस्ती से किसी ने पूछा था कि कृपया आप बताएं कि आप किस बात के लिए याद किए जाना पसंद करेंगे? राष्ट्रपति, वैज्ञानिक, लेखक, मिसाइल मैन, इंडिया २०२०, टार्गेट थ्री बिलियन...। उन्होंने बडी सहजता से कहा था कि मैं टीचर के रूप में याद किया जाना चाहूंगा। कोई और होता तो उसका यही जवाब होता- सिर्फ और सिर्फ, राष्ट्रपति। इससे बडा पद कोई और तो नहीं होता। फिर छोटे को क्यों चुनना। इसी सादगी के कारण ही असंख्य भारतवासी इस टीचर को अपना भगवान मानते हैं। रामेश्वर मंदिर की ओर जाने वाली बसें अब पहले पेई कारम्बू में रुकती हैं, जहां पर डॉक्टर कलाम की कब्र है। मंदिर जाने वाले हजारों लोग प्रतिदिन पहले कब्र पर शीश नवाते हैं, अपने श्रद्धा सुमन च‹ढाते हैं फिर रामेश्वर की तरफ प्रस्थान करते हैं। देश के करोडों लोगों के आदर्श डॉक्टर कलाम के प्रति लोगों का यह आदर किसी दबाव या प्रचार का प्रतिफल नहीं है। यह तो उनके देशप्रेम और जनसेवा का प्रतिफल है जिसके कारण वे जन-जन के पूज्यनीय हैं।

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