Thursday, August 20, 2015

रोशनी के लुटेरे

हम सबका देश भारत वाकई महान भी है... अद्भुत और निराला भी। तभी तो इक्कसवीं सदी में भी यहां पंद्रहवीं और सोलहवीं सदी पूरे दमखम के साथ जिंदा है। बिहार के कैमूर जिले में रहने वाले कोरबा जनजाति के लोग इस आधुनिक दौर में भी तांत्रिकों और ओझाओं को अपना भगवान मानते हैं। कोरबा आदिवासी देश और दुनिया की चमक-धमक से कोसों दूर हैं। हिंदुस्तान के यह आदिवासी आज भी उस आदिम युग में रह रहे हैं जहां आजादी का उजाला अभी तक नहीं पहुंच पाया है। अधिकांश आदिवासियों ने रेलगाडी में चढना तो दूर, उसे देखा तक नहीं है। इनकी तमन्ना है कि वे अपने जीते जी एक बार तो रेलगाडी देख लें और अपने बच्चों को भी उसके दीदार करवा दें।
उन्हें चूहा, चिडिया, खरगोश, सांप आदि खाकर खुद को जिंदा रखना पडता है। वो दिन तो उनके लिए उत्सव हो जाता है जब पीने को महुआ की दारू और खाने को चावल नसीब हो जाते हैं। असुविधा, अशिक्षा, गरीबी और असुरक्षा इनके जीवन भर के साथी हैं। घोर अभावों और विपदाओं को अपने गले से लगाकर संघर्षरत रहने वाले यह भारतवासी जब किसी गंभीर बीमारी का शिकार होते हैं तो उन्हें मजबूरन तांत्रिक और ओझाओं की शरण लेनी पडती है। यही उनका अस्पताल और डॉक्टर हैं। इन डॉक्टरों के पास कोई विश्वसनीय दवाइयां तो होती नहीं इसलिए ये तंत्र-मंत्र और किस्म-किस्म के पूजापाठ का चक्र चलाते हैं। मरीज के मन में यह बात बिठा दी जाती है कि बुरी आत्माओं की नाराज़गी और रोष के चलते उसे बीमारी ने जकड लिया है। यही वजह है कि आदिवासियों को जब भी टीबी, चेचक, डायरिया, पीलिया, दस्त जैसी बीमारियां और तकलीफें दबोचती हैं तो इन्हें भूत, डायन या चुडैल का जादूटोना होने का डर दिखाकर अपने-अपने तरीके से इलाज किया जाता है। जिसकी मौत हो जाती है उसके लिए कहा जाता है कि भूत के बहुत गुस्से में होने तथा उचित समय पर झडवाने के लिए नहीं लाये जाने के कारण बीमार चल बसा।
भारत दुनिया का पहला देश है जहां लाख कोशिशों के बाद भी अंधविश्वास की जडें पूरी तरह से कट नहीं पायी हैं। अंधभक्ति और अंधविश्वास के कारण कुछ लोग इंसान से हैवान बनने में जरा भी देरी नहीं लगाते। झारखंड की राजधानी रांची के निकट अंजाम दी गयी यह शैतानी वारदात अच्छे-भले आदमी का दिल दहला सकती है। जो बेरहम और मतलबपरस्त हैं उनके लिए यह जालिमाना हरकत महज एक खबर है जिसे पढकर फौरन भुला दिया जाना बेहतर है। झारखंड के इस गांव में बीते कुछ महीनों में एक-एक कर चार बच्चों की किसी बीमारी की वजह से मौत हो गयी। गांव के कुछ लोगों ने गहन-चिंतन मनन किया कि आखिर बच्चे अचानक क्यों चल बसे? अंतत: उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि यह मौतें उन पांच महिलाओं की देन हैं, जो कि वस्तुत: डायन हैं। अपने जादू-टोने से अच्छे खासे इंसान को ऊपर पहुंचा सकती हैं। यह रहस्योद्घाटन होते ही गांव वालों के गुस्से को आसमान पर पहुंचने में देरी नहीं लगी। कुछ लोगों ने अपने-अपने घरों में रखे घातक हथियार उठाये और पहुंच गए उन तथाकथित डायनोें के घर। पांचों को बडी दरिंदगी के साथ घर से निकाला गया। फिर उन्हें निर्वस्त्र कर, बुरी तरह से पीटा और घसीटा गया। इतने में भी उनकी हैवानियत की आग ठंडी नहीं हुई। वह औरतें, जिसमें एक मां-बेटी भी शामिल थी, रोती और गिडगिडाती रहीं, लेकिन किसी का भी दिल नहीं पसीजा। इस कू्रर तमाशे की भीड में गांव की महिलाएं भी शामिल थीं। उनके चेहरे पर गम नहीं, खुशी की रौनक थी। गजब का तसल्ली भाव भी था। आखिरकार भरी भीड के समक्ष पांचों औरतों को पत्थरों और भालों से लहुलूहान कर  मौत के घाट उतार दिया गया।
यदि आप यह सोचते हैं कि अंधभक्ति, अंधविश्वास और ढोंगियों के जाल का फैलाव सिर्फ गांवों तक ही सीमित है और अनपढ ही इसकी लपेट में आते हैं तो आप फौरन अपनी सोच बदल लें। आज के युग के कपटी भगवाधारी नगरों और महानगरों में लूट और अंधविश्वास की फसलें बोने में पूरी तरह से कामयाब हैं। एक आसाराम के तंत्र-मंत्र और छलकपट के मायाजाल के पर्दाफाश होने की सुर्खियों की आग ठंडी भी नहीं पडती कि कोई नया आसाराम श्रद्धा और आस्था के बाजार में परचम लहराता नजर आता है। कोई रूपसी राधे मां बन जहां-तहां हलचल मचा देती है। असंत होने के बावजूद संतों का भेष धारण कर आडंबर करने वाले तथाकथित साधु-संतों को मान-सम्मान देने वाले न तो उनका काला अतीत जानना चाहते हैं और न ही पर्दे के पीछे का घिनौना वर्तमान। लोगों की इसी कमजोरी का फायदा उठाने के लिए ही आसाराम और राधे मां जैसे चेहरे धर्म और आस्था के बाजार में बेखौफ उतर जाते हैं, जहां धन भी बरसता है और भरपूर मान-सम्मान भी। वैसे भी इस देश में भगवाधारियों के प्रवचन सुनने को लोग बेताब रहते हैं। उन पर अपना सर्वस्व अर्पण करने में भी देरी नहीं लगाते। उनकी आस्था की तंद्रा कभी भी नहीं टूटती। आसाराम की जेलयात्रा के बाद भी उसके अंधभक्तों की भक्ति में कोई कमी नहीं आयी। वे मानने को तैयार ही नहीं कि आसाराम एक ऐसा अपराधी है जिसने अपने आश्रमों को अय्याशी का ऐसा अड्डा बना दिया था जहां महिलाओं की अस्मत लूटी जाती थी। राधे मां के इर्द-गिर्द भी जिस तरह से रसूखदारों और धनवानों की भीड कवच बनी खडी नजर आती है उससे यह भी प्रतीत होता है कि इन आत्मघोषित भगवानों की बदौलत और भी कई लोगों के स्वार्थ सधते होंगे, इसलिए सच से वाकिफ होने के बावजूद भी यह परमभक्त टस से मस नहीं होते। अदालतों और पुलिस थानों में भी अपने आराध्य के झूम-झूम कर जयकारे लगाते हैं। आजकल टेलीविजन के विभिन्न चैनलों पर भी तंत्र-मंत्र का कारोबार बुलंदियों पर है। कुछ गुजरे जमाने के फिल्मी सितारे भी बडे-बडे दावों के साथ खुशहाली लाने वाले चमत्कारी यंत्रों की विज्ञापनबाजी कर मोटी कमाई कर रहे हैं। इनके झांसे में आने वाले अनाडियोेंं के दिन तो बदलने से रहे, लेकिन छल, कपट और फरेब का कारोबार तो अबाध गति से बढता ही चला जा रहा है!

No comments:

Post a Comment