Thursday, September 10, 2015

आज के रोल मॉडल

चारों तरफ शोर मचा है। देश के मीडिया को यह हो क्या गया है? कहीं यह पगला तो नहीं गया! एक ही खबर को पंद्रह-पंद्रह दिन तक घसीटने के बावजूद यह थकता ही नहीं। आरूषि हत्याकांड की तरह शीना बोरा हत्याकांड की खबरें देखते और पढते-पढते लोगों का दिमाग भन्ना गया, होसले पस्त हो गये पर इसे कोई फर्क नहीं पडा! खबर को तानने की भी कोई हद होती है। शीना की हत्यारी मां इंद्राणी के अतीत के विभिन्न रंगों को दिखाते-दिखाते दूसरी सभी खबरों पर बडे शर्मनाक अंदाज से अंधेरे की चादर ओडा दी गयी। ऐसा लगा कि देश में कहीं बाढ और सूखा नहीं है। किसानों ने भी आत्महत्याएं करने से तौबा कर ली है। पीएम नरेंद्र मोदी का अच्छे दिन लाने का वायदा पूरा हो गया है। बेरोजगारी का नामो-निशान नहीं रहा। बलात्कार और हत्याओं का दौर थम गया है। चारों तरफ खुशहाली ही खुशहाली है। सभी अपराधी सुधर गये हैं। इस इंद्राणी ने खुशहाल, शांत और शालीन वातावरण में ज़हर भर दिया है। देशवासियों को उसकी संपूर्ण जीवनगाथा से इसलिए अवगत कराया जा रहा है, ताकि वे जागृत और सतर्क हो जाएं। उन्हें पता चल जाए कि हिंदुस्तान का मीडिया कितना सतर्क है। हाथ में आयी खबर को जब तक नोंच न डाले तब तक चैन नहीं लेता। भले ही दर्शकों और पाठकों का दिमाग सुन्न हो जाए और कान पक जाएं।
आरुषि मर्डर कांड की तरह शीना मर्डर केस में भी मीडिया ने जिस तरह से जज की भूमिका निभाने में कोई कसर नहीं छोडी उससे सजग जन तमाम मीडिया का जी भरकर मज़ाक उडाने लगे हैं। मुंबई के पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया ने भी पत्रकारों की जल्दबाजी को लेकर अपने तरीके से चिंता व्यक्त कर डाली। उनका गुस्सा औद दर्द इन शब्दों में फूटा: मेरी टीम दिन-रात उन तीन आरोपियों से गहन पूछताछ में लगी है। शिफ्ट में पुलिस ऑफिसर्स की ड्यूटी लगाई गयी है। मेरे कई अफसर ड्राइवर की गिरफ्तारी वाले दिन से अपने घर नहीं गये हैं। आरोपियों के साथ थाने में रह रहे हैं। दूसरी तरफ मीडिया वाले स्टुडियों में बैठकर कुछ भी बोलते रहते हैं। जो काम पुलिस और अदालत का है उसे इन लोगो ने अपने हाथ में ले लिया है। आज हमारे लिए यह मीडिया सबसे बडा चैलेंज बन गया है। न्यूज चैनल खुद आरोपी को इंट्रोग्रेट कर रहे हैं। पुलिस स्टेशन को यह ऐसे घेर लेते हैं कि हमें सबूत जुटाने और पूछताछ करने में बेहद परेशानी होती है। फौरन खबरें दिखाने के चक्कर में पत्रकार अपनी सीमाएं लांघकर पुलिस के लिए संकट खडा कर रहे हैं।
यकीनन, विज्ञापनों की तरह खबरें दिखाने वाले अधिकांश न्यूज चैनल अब हर सजग नागरिक को खलने लगे हैं। अर्धनग्न होकर कंडोम का विज्ञापन करने वाली एक फिल्म अभिनेत्री के सेक्सी बोल और अदाओं ने तो एक नेताजी को इतना उग्र बना दिया कि उन्होंने फौरन यह बयान उगल डाला कि विदेश से आयी अभिनेत्री का कंडोम का विज्ञापन दर्शकों को रेप के लिए उकसाता है। इस अश्लील विज्ञापन के कारण ही देश में बलात्कारों की संख्या में इजाफा हुआ है। कई लोग शिकायत करते हैं कि न्यूज चैनल वाले वह सब नहीं दिखाते जो हम देखना चाहते हैं। कितनी भी शिकायतें होती रहें, लेकिन न्यूज चैनल वाले वही दिखाएंगे जो उनको भाता है। ज्यादा विरोध करने पर उनके पास भी अपना अचूक तर्क है कि मीडिया को जब अभिव्यक्ति की आजादी है तो आप कौन होते हैं उसे सीख और उपदेश देने वाले। न्यूज चैनल भी हमारे और अखबार भी हमारे। आप को जबरन तो देखने और पढने को विवश नहीं किया जाता। मत देखो, मत खरीदो। खुद भी मजे से रहो और हमें भी शान से अपनी मनमानी करने दो।
अकेले मीडिया को ही दोष देना ज्यादती होगी। खाकी भी कम मनमानी नहीं करती। कई बार तो मीडिया और पुलिस वाले एकजुट होकर आम लोगों पर ऐसे जबरदस्त कहर ढाते हैं कि इज्जतदार इंसान का जीना मुहाल हो जाता है। औरंगाबाद के एक कॉलेज की छात्रा श्रुति एक लफंगे की लफंगई को सहते-सहते तंग आ गयी। वह उसे एकतरफा प्यार करता था। जब-तब एसएमएस भेजकर उसे परेशान करता और उसका पीछा कर छींटाकशी करता। युवक की अश्लील छेडछाड से तंग आकर आखिरकार वह पुलिस स्टेशन पहुंच गयी। वहां उसका सामना ऐसे पुलिस अधिकारी से हुआ जो उसके परिवार से परिचित था। उसने श्रुति की तकलीफ से रूबरू होने के बजाय उसी पर ताना कसना शुरू कर दिया कि तुम कौन-सी दूध की धुली हो। उससे छेडछाड करने वाले युवक को गिरफ्तार करने की बजाय श्रुति को संदिग्ध चरित्रधारी घोषित कर दिया। उसके मां-बाप का जिक्र कर ऐसे-ऐसे अपशब्द कहे कि श्रुति फूट-फूट कर रोने लगी। पुलिसिया इशारे पर मीडिया ने भी अपना खूब रंग दिखाया। उसने भी बदमाश युवक को पाक-साफ और कॉलेज छात्रा श्रुति को चालू करार देकर खाकी और पत्रकारों की दोस्ती पर ठप्पा लगा दिया। उस बेचारी का तो जीना ही हराम हो गया। चारों तरफ हुई बदनामी की वजह से आहत श्रुति ने आत्महत्या कर ली। क्या इसे आप आत्महत्या कहेंगे? हम तो इसे हत्या मानते हैं। जिसे खाकी और मीडिया ने मिलकर अंजाम दिया है। श्रुति की हत्या पर न तो न्यूज चैनल वाले दहाडे और ना ही अखबारो को सुर्खियां देने की सूझी। मीडिया और खाकी की दोस्ती की वजह से कैसा-कैसा गडबड झाला हो रहा है इसकी खबर हम सभी को ही है फिर अजीब-सी चुप्पी है। कल ही एक दैनिक अखबार में चौंकाने वाले सच को पढा। आप भी पढें और चिंतन-मनन करें:
"शिक्षिका (१० वर्ष की लडकी से) तुम्हारा रोल मॉडल कौन है?
लडकी : मैम, इंद्राणी मुखर्जी।
शिक्षिका : (चौंकते हुए)! क्यों?
लडकी : देखिए मैडम, अब्दुल कलाम का निधन हो गया, कोई बहस नहीं, सानिया विंबलडन में जीती, १० मिनट का कवरेज। आईएएस में ४-५ टापर्स महिलाएं थीं, क्या कोई जानता भी है? भारतीय महिला हाकी टीम को ३६ वर्षों बाद ओओलिंपिक  में एंट्री मिली, क्या आपने सुना है? क्या आपने कहीं इंदिरा नूई, चंदा कोचर का कोई इंटरव्यू देखा है? लेकिन इंद्राणी मुखर्जी को इंच दर इंच कवरेज दी गई। उन्होंने कितना संघर्ष किया, वह कितनी महत्वाकांक्षी थी। कितनी सुंदर दिखती है। उसके कितने पति हैं। उन्होंने कौन-कौन सी कम्पनियां बनार्इं। जिस तरह से मैं उन्हें टीवी पर देखती हूं उससे मुझे प्रेरणा मिलती है मैडम। मैं इंद्राणी मुखर्जी की तरह 'फुल कवर स्टोरी' बनना चाहती हूं।"

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