Thursday, November 5, 2015

तब जनता मोदी को भी माफ नहीं करेगी

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को भाजपा के एक अदने से नेता ने धमकी दी कि अगर उन्होंने सार्वजनिक तौर पर गोमांस का सेवन किया तो उनका सिर कलम कर देंगे। मुख्यमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश काटजू के अंदाज में जवाब दिया कि मैंने अभी तो गोमांस नहीं खाया, लेकिन अब जरूर खाऊंगा। आप सवाल करने वाले कौन होते हैं। खाने का तौर-तरीका निजी पसंद का विषय है और उसे लोगों पर छोड देना चाहिए। मुख्यमंत्री को चुनौती देने वाला भाजपा का छुटभइया नेता शायद यह भूल गया था कि मुख्यमंत्री कोई छोटी-मोटी हस्ती नहीं होते। पूरे प्रदेश की कमान उन्हीं के हाथ में होती है। बयानवीर के तीर छूटते ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया। अब तो ऐसे बयानों का आना और हलचल मचाना आम हो गया है। असहनशीलता, भय और धमकाने का माहौल बनाने वालों के खिलाफ आवाज उठाने वालों को भी नानी याद दिलाने की कोई कसर नहीं छोडी जा रही। फिल्म अभिनेता शाहरुख खान पहले भी विषैली साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ अपना विरोध दर्शाते रहे हैं। उन जैसों ने ही कभी यह शिगूफा भी छोडा था कि यदि नरेंद्र मोदी पीएम बनते हैं तो वे देश छोड देंगे। साहित्यकारों, वैज्ञानिकों और कलाकारों के द्वारा पुरस्कार लौटाये जाने से चिंतित अभिनेता के यह कहते ही कि देश में असहिष्णुता का फैलाव हो रहा है... तो कुछ परमज्ञानी संपादक, पत्रकार, राजनेता आगबबूला हो उठे। उन्होंने धमकी भरे अंदाज में ज्ञान की नदियां बहा दीं कि शाहरुख की इतनी औकात ही नहीं कि वे इतने गंभीर विषय पर अपनी जुबान खोलने की जुर्रत करें। उन्हें चुपचाप फिल्मों में अभिनय कर नोट कमाने की तरफ ध्यान देना चाहिए। यह अक्ल का अंधा फिल्मी हीरो रहता तो भारत में है, लेकिन इसका मन दुश्मन देश पाकिस्तान में मंडराता रहता है। यह तो सरासर राष्ट्रद्रोह है। किसी भी देशद्रोही को इस देश में रहने का हक नहीं है।
अपने आपको अनुभवी संपादक, पत्रकार और अपार विद्वान घोषित करने वालों के द्वारा अपना पक्ष रखने वालों का एक पक्षीय विरोध समझ से परे है। यह कितनी अजीब बात है कि अपने देश में १८ वर्ष के युवा को वोट देने का अधिकार तो है, लेकिन पचास वर्षीय अभिनेता को अपनी बात रखने की आजादी पर अडंगा लगाने की कोशिशें की जाती हैं। ऐसा भी प्रतीत होता है कि कुछ चेहरे अपना नाम चमकाने के लिए नामी-गिरामी हस्तियों की आलोचनाओं के झंडे गाडने पर तुल जाते हैं। इधर यह सुर्खियां पाते हैं उधर पाकिस्तान में बैठे हाफिज सईद जैसे भारत के शत्रु 'शाहरुखों' और 'सलमानों' के प्रति हमदर्दी जताते हुए पाक में आकर बसने का निमंत्रण देकर अपनी खोखली दरियादिली दिखाते हैं। हद तो तब हो जाती है जब पाकिस्तान का पूर्व राष्ट्रपति यह बकने में देरी नहीं लगाता कि मोदी मुसलमानों के दुश्मन हैं। तब किसी 'शाहरुख' और 'सलमान' की जुबान नहीं खुलती। कोई भी यह कहने की हिम्मत नहीं दिखाता कि हम अपने देश में खुश हैं। शान से जी रहे हैं। तुम्हारे दो कौडी के देश में शरण लेने की हम सोच भी नहीं सकते। और हां, कोई हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री की आलोचना करे और उन्हें मुसलमानों का दुश्मन बताए यह भी हमें बर्दाश्त नहीं...।
दरअसल, यह विरोध उस असहनशीलता और संकुचित सोच की उपज है जिसके संकट से आज हिन्दुस्तान बुरी तरह से जूझ रहा है। अतीत के जख्मों को कुरेदने और गडे मुर्दे उखाडने की भी जबरदस्त प्रतिस्पर्धा चल रही है। कांग्रेस और दूसरी पार्टियां जब-तब २००२ के गुजरात दंगों का डंका पीटने लगती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बार-बार याद दिलाया जाता है कि उनके गुजरात के मुख्यमंत्रित्वकाल में कैसी-कैसी हिंसा और दंगे पर दंगे हुए थे। उन्होंने अगर राजधर्म निभाया होता तो गुजरात में खून की नदियां नहीं बहतीं। दंगई सिर ही नहीं उठा पाते। भारतीय जनता पार्टी भी मौका पाते ही १९८४ के सिख विरोधी दंगों की बंदूक तानकर कांग्रेस को वहां ले जाकर खडा कर देती है जहां उसे जवाब देते नहीं बनता। एक दूसरे के अतीत का पर्दाफाश करने और पुराने घावों को कुरेदने में कोई कम नहीं है।
बिहार के इंजीनियर मुख्यमंत्री, जो अंधविश्वासों से दूर रहने के नारे लगाते रहे हैं उन्हें एक तांत्रिक की शरण में जाना प‹डा। जब 'मिलन' का वीडियो न्यूज चैनलों की गर्मागर्म खबर बना तो उनके पैरों तले की जमीन खिसक गयी। उस क्लिपिंग में औघड बाबा को नीतीश से गले मिलते और चूमते हुए दिखाया जाता है। भाजपा इसे चुनावी मुद्दा बनाते हुए नीतीश कुमार को ढोंगी और अंधविश्वासी साबित करने पर तुल जाती है। फिर चंद दिनों बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक पुराना वीडियो न्यूज चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज बन जाता है। इसमें प्रवचनकार आसाराम बापू के साथ मंच पर खडे होकर 'दीक्षा' लेते नजर आते हैं। एक ज्योतिष से अपना भविष्य जानने को आतुर नरेंद्र मोदी की एक और तस्वीर भी खूब सुर्खियां पाती है। बौखलाये नीतीश कुमार के हाथ जैसे एक अचूक हथियार लग जाता है। वे चुनावी मंचों पर वार पर वार करते हुए यह संदेश देने की कोशिश करते हैं कि कांच के घरों में रहने वालों को दूसरे के घरों पर पत्थर उछालने से पहले अपने गिरेहबान में भी झांक लेना चाहिए। राजनीति के हमाम में तो सभी नंगे हैं। कोई कम तो कोई ज्यादा।
याद करें उस दौर को जब देश में कांग्रेस एंड कंपनी की सरकार थी। तब भाजपा ने जो किया वही आज कांग्रेस और अन्य विरोधी पार्टियां कर रही हैं। तब भाजपा संसद नहीं चलने देती थी। आज कांग्रेस अपनी जिद पर अडी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कटघरे में खडा करने का कोई मौका नहीं छोडा जा रहा। इस कसरतबाजी से देशवासी स्तब्ध हैं। आखिर यह हो क्या रहा है? मोदी को इस देश की जनता ने ही प्रधानमंत्री बनाया है। फिर ऐसा माहौल क्यों बनाया जा रहा है कि जैसे... "वे जबरन सत्ता पर काबिज हो गये हैं। वे तो पीएम बनने के काबिल ही नहीं हैं। उनके आने के बाद हिन्दू और मुसलमानों के बीच तलवारें तनने का खतरा मंडराने लगा है। भाजपा और मोदी वोटरों को बरगलाने में कामयाब हो गये और लोकसभा में बहुमत पा गए। यह देश के अमन-चैन, सुरक्षा और अखंडता के लिए अच्छा नहीं हुआ।" मीडिया और बुद्धिजीवियों के एक वर्ग ने खुलकर मोदी की आलोचना का ठेका ले लिया है। पुरस्कार लौटाने की हो‹ड मची है। देश को बदनाम करने की कोई कसर नहीं छोडी जा रही है। वे ढोल बजा-बजा कर यह कहना चाहते हैं कि "मोदी ने सत्ता हथियाने के लिए जो बडे-बडे वादे किये थे उन्हें पूरा कर पाने का उनमें दम नहीं है। विषैले बोल बोलने वालों की जुबान पर ताले लगाने की पहल करने से प्रधानमंत्री घबरा और कतरा रहे हैं। उनकी रहस्यमय चुप्पी देश को तबाह करके रख देगी। देश से भाईचारे का नामोनिशान मिट जाएगा।" यकीन जानिए...जो लोग जबरन ऐसा माहौल बना रहे हैं उनमें से कइयों का निजी स्वार्थ है। उन्हें भाजपा का सत्ता पाना चुभ रहा है। ऐसे मतलबपरस्तों को देश कभी माफ नहीं करेगा। मोदी देश के सम्मानित प्रधानमंत्री हैं, इससे बडा सच और कोई नहीं हो सकता। इस देश की विविधता प्रेमी जागरूक जनता ऐसा कतई नहीं होने देगी जैसी डरावनी शंकाओं के बीज बोए जा रहे हैं। जिस दिन देशवासियों को पुख्ता यकीन हो जाएगा कि देश की एकता को खत्म करने वाली ताकतों के सिर पर मोदी का हाथ है तो वह उन्हें भी कतई नहीं बख्शेगी।

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