Thursday, November 26, 2015

काला इतिहास के वारिस

नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह के मंच पर लालूप्रसाद यादव का अरविंद केजरीवाल को गले लगाना अच्छी-खासी खबर बन गया। अखबारीलालों और न्यूज चैनल वालों को बैठे-बिठाये मिर्च- मसाला मिल गया। लालू और अरविंद के मधुर मिलन की तस्वीरों में स्पष्ट दिखा कि दोनों नरेंद्र मोदी और भाजपा की करारी हार का जश्न मना रहे हैं। दोनों के प्रफुल्लित चेहरों से कहीं भी यह नहीं लगा कि यह एकतरफा जकडा-जकडी और पकडा-पकडी का मामला है। यह तो पूरी तरह से आपसी रजामंदी का तमाशा था। अरविंद के जुदा हुए साथियों और राजनीतिक विरोधियों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया कि बस यही दिन देखना बाकी था। भ्रष्टाचार के खात्मे की कसमें खाने वाले भ्रष्टाचारी के गले मिल रहे हैं। हाथ उठाकर अभिवादन कर रहे हैं। केजरीवाल ने अपना असली रंग दिखा दिया है। क्या यह वही केजरीवाल हैं जो कभी लालू को चारा-चोर और महाभ्रष्टाचारी कहते नहीं थकते थे? क्या बिहार का चुनाव जीतने के बाद लालू के सभी पाप धुल गये हैं जो अरqवद को उनके साथ मंच साझा करने और गले मिलने में कोई संकोच नहीं हुआ! सच तो यह है कि इस महामिलन ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का मस्तक झुकाया है और भ्रष्टाचारियों के हौसले को और बुलंदी प्रदान की है। अरविंद को अगर सही मायने में लुटेरों और बेईमानों से घृणा होती तो वे लालू के निकट खडे होने की भी नहीं सोचते। कौन नहीं जानता कि करोडों रुपये के चारा घोटाले के अपराधी लालू को कोर्ट के द्वारा सजा सुनायी जा चुकी है। जेलयात्रा के बाद वे जमानत पर हैं। ऐसे जगजाहिर सत्ता के ठग के साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री का खडा होना सिर्फ और सिर्फ इस कहावत को चरितार्थ करता है- हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और। लालू जैसे नौटंकीबाज नेता तो ऐसे मौकों की तलाश में रहते हैं। उनकी राजनीति की दुकान ऐसे दिखावटी लटकों-झटकों से ही आबाद होती है। इनका कोई ईमान धर्म ही नहीं। किसी भी तरह से सत्ता हथियाना ही इनका एकमात्र लक्ष्य है।
याद कीजिए उस दौर को जब अरविंद ने राजनीति के क्षेत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ ढोल बजाने का तीव्र अभियान चलाया था। वे एक-एक कर तमाम भ्रष्टाचारियों का चीरहरण करने में लगे थे। तब लालूप्रसाद यादव को उन्होंने देश का सबसे घटिया बेईमान नेता घोषित करते हुए कहा था कि जानवरों का चारा चबाने वाले को तो चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए। इस भ्रष्टाचारी का ताउम्र जेल में स‹डकर मर जाना ही अच्छा है। देश की राजनीति में इस महाभ्रष्ट के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। तब लालू भी तिलमिला गये थे। उन्होंने अरविंद को दो टक्के का बरसाती नेता करार देते हुए कहा था कि इस नौसिखिए को राजनीति तो आती नहीं। सिर्फ बकवासबाजी करने में लगा रहता है। जो शख्स सरकारी नौकरी ढंग से नहीं कर पाया, वह सरकार क्या खाक चलायेगा! इस बरसाती मेंढक की देश की राजनीति में कभी भी दाल नहीं गलने वाली। इसकी भ्रष्टाचार विरोधी नौटंकी का जनता पर कहीं कोई असर नहीं पडने वाला। यह तो अरविंद केजरीवाल की खुशकिस्मती थी कि दिल्ली के मतदाताओं ने उन पर अभूतपूर्व विश्वास जताते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होने का मौका दे दिया और कांग्रेस की मिट्टी पलीत हो गयी तथा भाजपा को भी मुंह की खानी पडी। इसे अब केजरीवाल की मासूमियत कहें या चालबाजी कि वे अपनी सफाई में यह कहते नजर आये कि लालू ने ही उन्हें जबरन गले लगाया। वे तो इसके लिए कतई तैयार ही नहीं थे। अन्ना हजारे को भी अरविंद पर बहुत गुस्सा आया। उन्होंने दुखी मन से कहा कि अच्छा हुआ वे अरविंद के साथ नहीं हैं। उनके इरादे अच्छे नजर नहीं आते। देश की राजनीति में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए वे भी वही हथकंडे अपना रहे हैं जो बद और बदनाम नेताओं की फितरत और पहचान रहे हैं।
सजायाफ्ता लालू को बिहार में भले ही मतदाताओं ने गदगद कर दिया, लेकिन राजनीति के चिंतकों और जानकारों को बिहार का भविष्य खतरे में दिखायी दे रहा है। लालू और राबडी के १५ साल के शासन काल में कितनी अराजकता फैली और बिहार पिछडता चला गया इसका इतिहास गवाह है। बिहार में महागठबंधन की सरकार के बनते ही फिर से आशंकाओं के काले बादल छाने लगे हैं। परिवारवादी लालू को लगता है कि उनके बेटे-बेटी और पत्नी ही सत्ता सुख भोगने के एकमात्र अधिकारी हैं। मतदाताओं ने उनकी पार्टी आरजेडी को जीत का सेहरा इसलिए ही पहनाया है कि वे अपनी मनमानी कर सकें। तभी तो उन्होंने पहली बार विधायक बने अपने दोनों पुत्रों को मंत्रिमंडल में ऐसे शामिल करवाया जैसे बिहार उनकी जागीर हो। लालू के जो वर्षों-वर्षों के साथी हैं, कंधे से कंधा मिलाकर साथ चलते रहे, खून पसीना बहाया उनको भाई-भतीजावादी लालू ने अपने नये-नवेले बेटों से भी कमतर आंकने में जरा भी देरी नहीं लगायी। लालू के लिए यही सामाजिक न्याय है। लालू अपने मकसद में पूरी तरह से कामयाब हो गये हैं। उनके नौवीं फेल विद्वान सुपूत तेजप्रताप ने स्वास्थ्य मंत्री तो छोटे बेटे तेजस्वी ने बिहार के उपमुख्यमंत्री की गद्दी पर कब्जा कर लिया है। लालू के चिरागों की अनुभवहीन जोडी कैसे-कैसे गुल खिलायेगी यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा, लेकिन यह जान और समझ लीजिए कि पूरा का पूरा बिहार और सरकार एक ऐसे शातिर नेता की गिरफ्त में चले गये हैं जिसका अपना काला इतिहास है और उसे चुनाव लडने और वोट देने का अधिकार ही नहीं है...।

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