Thursday, December 3, 2015

नारी और वर्दी का अपमान

सत्ताधीशों को वही अधिकारी अच्छे लगते हैं जो उनकी जी-हजूरी करते हैं। अधिकांश राजनेता और मंत्री उन ईमानदार सरकारी अफसरों को डांटने-फटकारने और स्थानांतरण की धौंस दिखाने से बाज नहीं आते जो उनकी तथा उनके प्यादों की अनसुनी कर अपने कर्तव्य को प्राथमिकता देते हैं। उत्तर प्रदेश की आईएएस अधिकारी दुर्गा नागपाल के साहस की गाथा को भला कौन भूल सकता है। इस कर्तव्यपरायण अधिकारी ने सत्ताधीशों के करीबी अवैध कारोबारियों पर कानून का डंडा चलाया तो बलवान मंत्री बौखला उठे थे - 'एक अदनी सी महिला अफसर की इतनी हिम्मत कि वह उनके चहेतों को कानून का पाठ पढाने की जुर्रत करने पर उतर आए! होंगी कर्तव्यपरायण और ईमानदार, पर हमें इससे क्या लेना-देना। जब प्रदेश में हमारी पार्टी की सरकार है तो हमारी और हमारे लोगों की सुनी जानी चाहिए। उन्हें किसी भी तरह के काले कारनामों को अंजाम देने की खुली छूट मिलनी ही चाहिए। जब हमारा वरदहस्त प्राप्त है तो किसी बडे से बडे सरकारी अधिकारी की क्या मजाल कि वह हमारे अपनों पर कानून का डंडा चलाने की हिम्मत दिखाए।'
अपने आपको शहंशाह समझने वाले अधिकांश अकडबाज और स्वार्थी मंत्रियों के 'अपनो' में शामिल होते हैं, भूमाफिया, खनिज माफिया, सरकारी ठेकेदार, सफेदपोश अपराधी, बिल्डर, स्मगलर और तरह-तरह के फंदेबाज। इन पर जब कोई कर्मठ अफसर उंगली भी उठाता है तो 'आका' किसी भी हद तक चले जाते हैं। दुर्गा नागपाल ने उन रेत माफियाओं का जीना हराम कर दिया था, जिनके रिश्ते सत्ताधीशों से थे। यह दुर्गा ही थीं जिन्होंने एक धार्मिक स्थल की अवैध दीवार को धराशायी करने का साहस दिखाया था। होना तो यह चाहिए था कि उनकी पीठ थपथपायी जाती, लेकिन यहां तो धर्म-विशेष के मतदाताओं के खफा हो जाने से वोटों की फसल के तबाह हो जाने का खतरा था। मंत्री, सांसद और विधायक बडी से बडी तबाही देख सकते हैं, लेकिन अपने वोट बैंक को लुटता या टूटता नहीं देख सकते। जो भी उनकी इस 'पूंजी' पर सेंध लगाने की हिमाकत करता है उसके पैरों तले की जमीन खिसका दी जाती है। दुर्गा से खफा मंत्री को भी तभी चैन आया जब उन्होंने उसे कर्तव्यपरायणता के पुरस्कार में निलंबन का आदेश थमाया। सत्ता और नौकरशाही के टकराव के अनेकों किस्से हैं। अक्सर यही देखने में आता है कि बडे से बडे अफसर पर मंत्री और नेता ही भारी पडते हैं। खुद्दार और ईमानदार अफसर के हौसले पस्त करने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाये जाते हैं। हर सरकार यही चाहती है कि नौकरशाह उनके इशारों पर नाचें। जो अधिकारी अपने फर्ज को ही सर्वोपरि मानते हैं उन्हें कई अवरोधों से रूबरू होना पडता है। नौकरशाही को कठपुतली की तरह नचाने के मामले में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी तो बदनाम थी हीं, लेकिन अब भाजपा के कुछ मंत्री भी अधिकारियों को दबाने और नीचा दिखाने के कीर्तिमान बनाने में तल्लीन हैं। जो अधिकारी जी हजूरी के दस्तूर को नहीं निभाते उन पर फौरन निलंबन और तबादले की गाज गिरा दी जाती है। बीते हफ्ते हरियाना के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज की आईपीएस अफसर संगीता वालिया से जबर्दस्त तकरार हो गयी। यहां भी मंत्री का अहंकार महिला अफसर पर भारी पडा। मंत्री ने जिला शिकायत एवं लोक मामलों की समिति की बैठक बुलायी थी। उसी बैठक में मंत्री ने एक एनजीओ की शिकायत का हवाला देते हुए एसपी संगीता कालिया पर शराब बिकवाने का संगीन आरोप जड दिया। महिला अफसर के लिए यह आरोप किसी तमाचे से कम नहीं था। मंत्री एनजीओ के कर्ताधर्ताओं को सत्यवादी हरिश्चंद्र की औलाद और संगीता को भ्रष्ट और बिकाऊ अधिकारी करार देते हुए धमकाने और चमकाने की उसी मुद्रा में आ गये जिसके लिए अहंकारी सत्ताधीश जाने जाते हैं। संगीता को शराब तस्करों का हिमायती होने के आरोप ने इस कदर झिंझोंडा कि वह बगावत की मुद्रा में आ गयीं। उन्हें लगा कि यह तो सरासर वर्दी का ही अपमान है इसलिए वे मंत्री के सवालों के जवाब देने पर अड गयीं। यही बात मंत्री को खल गयी। उनका तो हमेशा ऐसे अफसरों से वास्ता पडता रहा है जो उनकी डांट-फटकार चुपचाप सुन कर सिर झुका लेते हैं। दरअसल, ऐसे लोगों की अपनी कमियां और कमजोरियां होती हैं जो उन्हें दंडवत होने को विवश कर देती हैं। स्वाभिमानी संगीता ने मंत्री की दबंगई का डट कर सामना किया। स्वच्छ छवि के लिए जानी जाने वाली इस खाकी वर्दीधारी नारी ने भारतीय पुलिस सेवा में शामिल होने के लिए अच्छी तनख्वाह वाली पांच नौकरियों को लात मारने में आगा-पीछा नहीं सोचा था। पुलिस की वर्दी धारण करते समय उन्होंने अपनी ड्यूटी निडरता और निष्पक्षता के साथ निभाने की जो कसम खायी थी उसे वे अभी तक भूली नहीं थीं।  उन्होंने अत्यंत ही संयत भाव से एक-एक कर मंत्री के आरोपों के जवाब दिये, लेकिन मंत्री ऐसे उखडे कि उन्होंने उन्हें 'गेट आउट' यानी वहां से चले जाने का फरमान सुनाकर अपना बौनापन दर्शा दिया। संगीता ने मंत्री से जब यह कहा कि सर, हम अपना कर्तव्य निभाने में कहीं कोई कमी नहीं करते। हमने इस साल २५०० पर्चे अवैध शराब के काटे हैं। हम तो अवैध शराब विक्रेताओं को अपनी पूरी ताकत लगाकर दबोचते हैं, लेकिन वे बडी आसानी से कोर्ट से जमानत पाकर फिर अवैध शराब के धंधे में लग जाते हैं। सर, शराब तो सरकार बिकवाती है, सरकार ही लाइसेंस देती है!' कटु सच किसे अच्छा लगता है जो मंत्री जी को भा जाता और वे उसके कहे पर चिन्तन-मंथन करते। उन्हें तो मंत्री पद की धौंस दिखानी थी। इस काम में वे कतई पीछे नहीं रहे। उन्होंने इस सच को भी नजरअंदाज कर दिया कि वे जिसे फटकार रहे हैं वह अफसर होने के साथ-साथ एक महिला भी हैं। कोई अनपढ गंवार इंसान किसी महिला की इस तरह तौहीन करे तो एकबारगी उसे नज़रअंदाज किया जा सकता है, लेकिन हरियाना के स्वास्थ्य मंत्री तो पढे-लिखे होने के साथ-साथ उस पार्टी से जुडे हैं जो खुद को दूसरी पार्टियों से अलग और खास होने के ढोल पीटते नहीं थकती। सत्ता के नशे में चूर मंत्री महोदय कम अज़ कम अपनी नहीं तो पार्टी की इज्जत का ख्याल रखते हुए संयम बरतते और महिला अधिकारी की भी सुन लेते तो जगहंसाई से भी बच जाते और पार्टी की इज्जत को भी करारा धक्का नहीं लगता।

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