Thursday, January 14, 2016

धार्मिक उन्माद के हश्र से वाकिफ हैं देशवासी

यह कोई नयी बात नहीं है। जब भी चुनाव करीब होते हैं तो अयोध्या में राम मंदिर बनाने की खबरें आने लगती हैं। मस्जिद का मुद्दा भी गरमा जाता है। दोनों पक्ष आमने-सामने आ जाते हैं। उत्तरप्रदेश में २०१७ में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने ऐलान कर दिया है कि इस साल के अंत से पहले यूपी में स्थित अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो जायेगा। विश्व हिन्दु परिषद ने तो देश के हर गांव में भगवान राम का मंदिर बनाने के फैसले की घोषणा कर दी है। अयोध्या में राम मंदिर बनाने का डंका पीटने वाले जानते हैं कि यह मामला कितना गंभीर है। विवाद उच्चतम न्यायालय में है। यानी फैसला आना अभी बाकी है। फिर भी मंदिर बनाने का राग जोर-शोर से अलापा जाने लगा है। पहले यह खबर आयी कि राम मंदिर बनाने के लिए अयोध्या में शिलाएं पहुंचने लगी हैं। इस खबर के फौरन बाद मस्जिद बनाने के लिए धडाधड पत्थरों के आने की खबरें मीडिया में सुर्खियां पाने लगीं। ऐसी खबरें अमनपरस्त भारतीयों को चिन्ता में डाल देती हैं। उन्हें फिर से दंगों और लूटपाट की घटनाओं का दौर याद आने लगता है। बाबरी मस्जिद ध्वस्त किये जाने के बाद भाईचारे का जिस तरह से खात्मा हुआ था उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। पता नहीं इतिहास से सबक लेने की पहल क्यों नहीं की जाती? यह भी सच है कि कई नेताओं का धंधा राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के नाम पर ही फलता-फूलता रहा है। सुब्रमण्यम स्वामी का यह कथन कितना हैरत में डाल देने वाला है कि देश के उत्थान के लिए राम मंदिर का निर्माण होना जरूरी है। क्या वाकई? दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित सेमिनार में स्वामी के इस कथन के गूंजते ही भारी बवाल हो गया। छात्र संगठनों ने दिल्ली विश्वविद्यालय को ही भगवे रंग में रंगने का आरोप लगाते हुए आयोजन स्थल के बाहर जमकर विरोध प्रदर्शन किया। स्वामी को यह नजारा देखकर बहुत गुस्सा आया और उन्होंने विरोध करने वालों को असहिष्णु करार देकर नजरअंदाज करने का नाटक करते हुए ऊंची आवाज में कहा कि हम मंदिर बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मैं जो कहता हूं, वह होता है। अब कह रहा हूं कि मंदिर बनेगा, तो हर हाल में बनेगा। विरोध करने वाले छात्रों को दिल्ली विश्वविद्यालय में राम मंदिर पर सेमिनार आयोजित किये जाने पर घोर आपत्ति थी। उनका कहना था कि यह एक विवादित मुद्दा है। विश्वविद्यालय में इस तरह का आयोजन कतई नहीं होना चाहिए। 'मेरी मुर्गी की एक टांग' की नीति पर चलने वाले स्वामी बार-बार यही रट लगाये रहे कि उनका उद्देश्य लोगों को जगाना तथा यह समझाना है कि यह विवादित मुद्दा नहीं है। यह देश की जरूरत है। यदि सरकार इस पर विधेयक लाती है तो अच्छा है वरना इसके लिए उच्चतम न्यायालय के फैसले का इंतजार किया जायेगा। देश के विकास के लिए राम मंदिर के निर्माण को जरूरी बताने वाले स्वामी के कथन का क्या यह भावार्थ भी है कि अगर अयोध्या में मंदिर नहीं बना तो देश में महंगाई, भुखमरी, बेरोजगारी और बिग‹डी अर्थ व्यवस्था जस के तस बनी रहेगी? सबकुछ ऐसे ही चलता रहेगा। साक्षी महाराज भाजपा के सांसद हैं। उनका बयान भी कम हैरतअंगेज नहीं। वे फरमाते हैं कि राम मंदिर का निर्माण करने के बाद ही भारतीय जनता पार्टी २०१९ के लोकसभा चुनाव में उतरेगी। मंदिर अभी नहीं तो कब बनेगा? यानी नरेंद्र मोदी सिर्फ और सिर्फ मंदिर निर्माण के लिए ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए हैं! साक्षी महाराज ने तो अपने दिल की कह दी। फिर ऐसे में आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन औबेसी भी कहां पीछे रहने वाले थे। उन्होंने ललकारने के अंदाज में तान छेडने में जरा भी देरी नहीं लगायी कि अयोध्या में राम मंदिर नहीं बल्कि मस्जिद बनकर रहेगी। इस तनातनी और उलझाव का कोई पार नहीं दिखता।
विश्व हिन्दु परिषद, बजरंग दल और शिवसेना ने एकजुट होकर १९९२ में बाबरी मस्जिद को ढहाया था। शिवसेना सुप्रीमों बाल ठाकरे तो सीना तानकर कहा करते थे कि हां मेरे शिवसैनिकों ने ही बाबरी मस्जिद को ढहाया है। भाजपा के नेता इस मामले में कभी खुलकर सामने नहीं आये, लेकिन जब भी चुनाव निकट आते हैं तो भाजपा और उससे जुडे संगठनों के विभिन्न चेहरे राम मंदिर के मुद्दे को गर्म करने में अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं। ऐसे में देश के प्रधानमंत्री की चुप्पी भी बेहद चौंकाती है। अब तो यह सवाल भी उठने लगा है कि मोदी सरकार विकास की राह पर चलेगी या फिर कट्टर ताकतों के हाथों का खिलौना बन कर रह जाएगी? प्रधानमंत्री की चुप्पी से इस शंका को बल मिलने लगा है कि स्वामी और साक्षी महाराज जैसों को भाजपा आलाकमान की शह मिली हुई है। यह तय है कि यदि मंदिर के मुद्दे को इसी तरह से उछाला जाता रहा तो दोनों पक्षों के नेताओं के चेहरे तो चमकेंगे, लेकिन देश में भय और तनातनी बढेगी और कई खतरे सिर उठाते नजर आएंगे जो यकीनन देश के हित में तो नहीं होंगे। मंदिर और मस्जिद के नाम पर उन्माद भडकाने वाले नेताओं को अब कौन समझाये कि देश बदल रहा है। जनता दंगों और फसादों के हश्र से वाकिफ है। वह खून-खराबा नहीं अमन-चैन चाहती है। इसलिए जब तक अदालत का फैसला नहीं आता तब तक चुप्पी में ही भलाई है।

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