Thursday, January 21, 2016

अब चुप नहीं रहेंगी लडकियां

उसका नाम रजनी है। उम्र है १४ वर्ष। बीते हफ्ते की बात है। रजनी की भाभी अमृतसर में स्थित नानक देव अस्पताल में भर्ती थी। घर में नया मेहमान आया था। बहुत खुश थी रजनी। अचानक भाभी की तबीयत बिगड गयी। डॉक्टरों ने आक्सीजन की कमी बतायी। रजनी अस्पताल के निकट स्थित दवाई दुकान की तरफ जा रही थी तभी उसका एक अधेड की तरफ ध्यान गया जो उसे घूर-घूर कर देख रहा था। उसने उसे नजरअंदाज करने की कोशिश की, लेकिन फिर भी उसका घूरना और पीछा करना जारी रहा। वह उसके करीब आया और पूछने लगा कि वह कौन है और कहां से आयी है। उसने उसे सबकुछ बता दिया। उस उम्रदराज शख्स ने उसे बताया कि वह मनोरोग अस्पताल में काम करता है। उसकी बहुत ऊंची पहुंच है। कोई भी काम एक ही झटके में करवा सकता है। अगर उसे कोई दवा या सुविधा चाहिए तो बता देना। रजनी को भाभी के पास पहुंचने की जल्दी थी। उसने उसकी बात नहीं सुनी और बिना कोई जवाब दिये आगे बढ गयी। दूसरे दिन की रात भी वह बुजुर्ग उसके निकट आया और उसे ललचायी नजरों से देखते हुए पूछने लगा कि क्या तुमने कभी कोई अश्लील फिल्म देखी है? ...देखोगी तो बहुत मजा आयेगा। रजनी को अपने पिता की उम्र से बडे अधेड पुरुष का यह व्यवहार स्तब्ध कर गया। रजनी तो शर्म से पानी-पानी हो गयी, लेकिन वह तो जैसे अश्लीलता का समूचा पाठ पढाकर उसे अपना शिकार बनाने को आतुर था। वह हाथ आये मौके को किसी भी हालत में खोना नहीं चाहता था। रजनी के खामोश रहने पर वह उसके और करीब आया और कहने लगा कि मैं तुम्हें ऐसी कामुक फिल्म दिखाता हूं जिसकी तुमने कभी कल्पना ही नहीं की होगी। बहुत मज़ा आयेगा। अभी तक चुप्पी से बंधी रजनी को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वह मौन साधते हुए वहां से आगे बढ गयी तो वह भी पीछे-पीछे आने लगा। रजनी ने मुडकर उसे घूरा तो वह बडी बेशर्मी के साथ मुस्कराया और बोला कि तुम्हें बहुत जल्दी है इसलिए तुम मुझे अपना मोबाइल नंबर दे दो। मैं तुम्हारे मोबाइल फोन पर गर्मा-गर्म वीडियो भेज देता हूं। आराम से उसे देखना फिर मुझसे मिलना। अब तो जैसे गुस्से के मारे रजनी के तनबदन में आग लग गयी। वह खडे-खडे मुस्करा रहा था। रजनी ने अस्पताल में तैनात खाकी वर्दीधारी को अय्याश की हरकत से अवगत कराया। उसे फौरन दबोच लिया गया। पुलिस के हत्थे चढते ही उसने शराफत की चादर ओढते हुए कहा कि मैं तो इस बच्ची को जानता ही नहीं। बेवजह यह मुझपर इल्जाम लगा रही है। इसे मेरी उम्र का भी ख्याल नहीं। भला मैं इतनी घिनौनी हरकत कैसे कर सकता हूं! रजनी उसके रंग बदलने पर हैरान थी, लेकिन पुलिस को भी यकीन था कि वह झूठी नहीं हो सकती। पुलिस ने जब उस शातिर पर सख्ती दिखायी और जेल में ठूंसने का डर दिखाया तो वह हाथ-पांव जोडने लगा। उसने अपनी गलती स्वीकारते हुए कहा कि उससे लडकी को पहचानने में भूल हो गयी। (यानी वह उसे बाजारू समझ रहा था।) वह रोने का नाटक करने लगा। इसी दौरान रजनी ने पुलिस के सामने ही उसके गाल पर चार तमाचे जड दिये। वह गुस्से में तमतमा रही थी। उसका बस चलता तो उसकी गर्दन दबोच डालती। अधेड को और पिटने का भय था। वह रजनी के सामने हाथ जोडकर गिडगिडाने लगा - 'तुम तो मेरी पोती जैसी हो। मुझसे बहुत बडी भूल हो गयी है। माफ कर दो बेटी...।' रजनी को यह समझते देर नहीं लगी कि यह वासना का खिलाडी बहुत बडा ढोंगी है। ऐसे ही लोग रंग बदलने में गिरगिट को भी मात दे देते हैं। रजनी ने चीखते हुए कहा, "तुम जैसे भेडियों को अच्छी तरह से जानती हूं मैं... जो लडकियों की अस्मत से खिलवाड करने के लिए यहां-वहां कुत्तों की तरह घूमते रहते हैं। तुम्हें तो उम्रभर के लिए सलाखों के पीछे धकेल दिया जाना चाहिए।" अस्पताल में जुटी भीड ने रजनी की पीठ थपथपायी।
बहुत कम लडकियां ऐसी हिम्मत दिखा पाती हैं। रजनी की तरह ही लखनऊ शहर की ऊषा विश्वकर्मा के साहस को यह कलम सलाम करती है। ऊषा को अपने साथ पढने वाले लडके के बलात्कार के दंश का शिकार होने के बाद परिचितों, रिश्तेदारों और आसपास के लोगों की तानाकशी का शिकार होना पडा। पहले वह घबरायी और कुछ-कुछ टूटी जरूर, लेकिन बाद में उसने खुद को ऐसा खडा किया कि आज एक मिसाल बन हजारों लडकियों की प्रेरणा और ताकत बन गयी है। ऊषा ने बारहवीं करने के बाद स्लम के बच्चों को पढाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। उसी दौरान उसने जाना कि हमारे देश में बच्चियां कितनी असुरक्षित हैं। एक बच्ची पर उसके चाचा ने बलात्कार किया तो ऊषा ने पुरजोर आवाज उठायी। बलात्कारी का बाल भी बांका नहीं हुआ। उसके विरोध को दबाने के कई षडयंत्र रचे गये। काफी चिन्तन-मनन करने के पश्चात उसने पुरुषों के अत्याचार के खिलाफ डटकर मुकाबला करने के लिए युवतियों का एक संगठन बनाया जिसे नाम दिया गया- रेड ब्रिगेड। रेड ब्रिगेड उन बच्चियों और लडकियों के लिए लडती है जो घर तथा बाहर अनाचार और यौन शोषण का शिकार होती हैं। ऊषा ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक 'जेंडर सेंसटीविटी वर्कशाप' की तो इसमें शामिल ५५ लडकियों में से ५३ की यही पीडा थी कि उनके साथ उन्हीं के घर में चाचा, मामा, चचेरे, मौसेरे भाई और यहां तक सगे भाई और पिता ने बलात्कार कर रिश्तों को कलंकित किया था। यह सच यकीनन बेहद चौकाने वाला है कि बाहर की तुलना में घर तथा आसपास ज्यादा दुष्कर्मी रहते और बसते हैं। शोषण का शिकार होने वाली बच्चियों को तो घर परिवार की महिलाओं का भी पूरा साथ नहीं मिलता। रजनी का तमाचा और ऊषा विश्वकर्मा की खुली जंग यही कह रही है कि अब किसी बलात्कारी की खैर नहीं। अब चुप नहीं रहेंगी लडकियां। घर और बाहर के दुराचारियों को सबक सिखाने के लिए किसी भी हद तक जाने की ठान ली है उन्होंने।

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