Thursday, January 7, 2016

और भी हैं 'उदारता' के अभिलाषी

सत्ताधीश भी कम चालाक नहीं होते। हमेशा मौके की ताक में रहते हैं। वर्षों से राह देख रहे अदनान सामी को भारतीय नागरिकता के उपहार से तब नवाजा गया जब चारों तरफ असहिष्णुता का शोर-शराबा उफान पर है। मोदी सरकार की साख को बट्टा लग रहा है। कुछ साहित्यकारों, कलाकारों और फिल्म अभिनेता शाहरुख खान तथा आमिर खान को देश में सहनशीलता के कमतर होते चले जाने की पीडा ने सताया तो उनका दर्द चीख की शक्ल में उभर कर आया तो हंगामा ही  बरपा हो गया। आमिर ने तो बंद कमरे में जाहिर की गयी अपनी पत्नी की चिन्ता और तकलीफ जगजाहिर कर दी। उन्होंने बताया कि मेरी पत्नी किरण की नींद गायब हो चुकी है। उन्हें बच्चों के भविष्य की चिन्ता सताने लगी है। यह देश अब रहने लायक नहीं लगता। यहां के लोग सच्चाई को बर्दाश्त करने से कतराने लगे हैं। कुछ साधु-साध्वियां और राजनेता खुलेआम भडकाऊ शब्दावली का इस्तेमाल करने लगे हैं। अमन और शांति का खात्मा होता चला जा रहा है। पाकिस्तानी गायक अदनान ने वक्त की नजाकत को समझा। उन्होंने देखा कि लोहा गर्म है। अपना काम निकालने का यही सही मौका है। उन्होंने फौरन विभिन्न न्यूज चैनलों पर अपनी पहुंच बनायी और मुफ्त में अपने गायन के कार्यक्रम प्रस्तुत कर अपनी मंशा को भी तेज हवा दे दी कि वे पक्के हिन्दुस्तानी बन 'जय हिन्द' बोलना चाहते हैं। न्यूज चैनल वालों ने शाहरुख और आमिर पर निशाना साधते हुए उनसे गर्मा-गर्म सवाल दागे तो उनका जवाब आया कि मुझे तो भारत में कहीं भी असहिष्णुता दिखायी नहीं देती। भारत में अगर सहनशीलता का अभाव होता तो वे कुछ राजनीतिक दलों के विरोध के बावजूद यहां की नागरिकता पाने के लिए इस कदर बेचैन नहीं रहते।
अदनान के पाकिस्तानी नागरिक होने के बावजूद भारत वर्ष में डटे रहने का विरोध शिवसेना के साथ-साथ भाजपा ने भी किया था। यह बात दीगर है तब भाजपा विपक्ष में थी। भाजपा के राज में अदनान को एक ही झटके में भारतीय नागरिकता दिये जाने से समझा जा सकता है कि सत्ता की कैसी-कैसी मजबूरियां होती हैं। जो काम कल तक विपक्ष में रहते गलत था आज सत्ता संभालते ही सही हो गया!
शिवसेना अभी भी सरकार के इस कदम का विरोध कर रही है। देश के अधिकांश लोगों ने अदनान को भारत की नागरिकता दिये जाने का स्वागत ही किया है। सच्चे कलाकार सबके अपने होते हैं। उन्हें सरहदों की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। कलाकारों को पंछी भी कहा जाता है। जहां जी चाहा वहीं डेरा जमा लिया। फिर भारत तो एक ऐसा देश है जो हमेशा से दुनिया भर के गायकों, साहित्यकारों, संगीतकारों और विभिन्न कलाओं के चितेरों को आकर्षित करता रहा है। भारतवासी भी प्रतिभावानों का स्वागत और मान-सम्मान करने में कोई कंजूसी नहीं करते। हर संगीतप्रेमी दिल को छू लेने वाले गायक अदनान पिछले बारह-तेरह वर्ष से भारत में रह रहे हैं। वे ऐसे अनूठे गायक हैं, जिन्हें एक बार सुनने के बाद बार-बार सुनने का मन होता है। पाकिस्तानी मूल के होने के कारण उन्हें भारतीय नागरिकता देने का विरोध होता चला आ रहा था। ऐसा इसलिए भी हो रहा था, क्योंकि आतंकियो को पनाह देने वाले पाकिस्तान में भारतीय कलाकारों की कोई पूछ नहीं होती! मौत के सौदागर पाकिस्तान के द्वारा भारत में आत्मघातियो को भेजने और बम-बारुद बिछाने की वजह से भी अदनान को देश की नागरिकता देने में आनाकानी की जा रही थी। वैसे पाकिस्तान की अभी भी 'कुत्ते की पूंछ' वाली स्थिति है। उसकी जमीन पर आज भी आत्मघाती तैयार करने के कारखाने चल रहे हैं। ऐसे में अदनान के प्रति एकाएक दिखायी गयी मोदी सरकार की उदारता हैरान तो करती ही है। ऐसे में हमें बांग्ला लेखिका तस्लीमा नसरीन की याद आ रही है जो पिछले कई वर्षों से भारत की नागरिकता के लिए हाथ-पैर मार रही हैं। तस्लीमा एक जानी-मानी सजग लेखिका हैं। नारियों पर होने वाले अत्याचारों, विभिन्न सामाजिक बुराइयों और कट्टरपंथियो पर बेखौफ होकर कलम चलाने वाली इस साहसी साहित्यकार को अपने देश से इसलिए खदेड दिया गया क्योंकि उसने झुकना और समझौते करना सीखा ही नहीं। अदनान की तरह सत्ता की चाकरी करना भी तस्लीमा के लिए संभव नहीं। मीडिया भी उनके पक्ष में खडा होने से घबराता है। नरेंद्र मोदी तो साहित्यकारों और कलाकारों के पारखी हैं। सच को सुनने और सहने का भी उनमें जबर्दस्त माद्दा है। ऐसे में खुलकर अपनी बात कहने और लिखने वाली साहसी लेखिका तस्लीमा और पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक तारिक फतह सहित अन्य लेखकों, गायकों, कलाकारों पर उदारता दिखाने में देरी नहीं करनी चाहिए। भारत दुनिया की एक बडी आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है। दुनिया भर की प्रतिभाओं का देश के प्रति आकर्षण बढता चला जा रहा है। महात्मा गांधी का मानना था कि भारत सभी धर्मों, सम्प्रदायों और समुदायों की साझा संस्कृति वाली राष्ट्रीयता है। यहां संकीर्णता के लिए कोई जगह नहीं है। गंगा-जमुनी तहजीब और साम्प्रदायिक सौहार्द भारतवर्ष की असली पहचान हैं। इस देश के चरित्र को पूरी तरह से जानने के लिए वाराणसी की उस नाजनीन अंसारी के सेवाभाव से अवगत होना जरूरी है जिन्हे २२ जनवरी को राष्ट्रपति के शुभहस्ते सम्मानित किया जाने वाला है। तरह-तरह की तकलीफों और दबावों के बावजूद आपसी एकता और सद्भाव की अलख जगाने वाली नाजनीन का एक बुनकर परिवार में जन्म हुआ। आर्थिक तंगी ने पढाई-लिखाई में अडंगे तो डाले, लेकिन नाजनीन ने हार नहीं मानी। स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल कर चुकी नाजनीन को फतवे और धमकियां भी झेलनी पडीं, लेकिन अमन-शांति का अभियान बदस्तूर जारी रहा। वर्ष २००६ में ब्लास्ट के दूसरे दिन ७० मुस्लिम महिलाओं को लेकर वे संकट मोचन मंदिर पहुंचीं और वहां बैठकर शांति और सद्भाव के लिए हनुमान चालीसा का पाठ किया। रामचरित मानस, हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा, शिव चालीसा का उर्दू में अनुवाद कर चुकी यह भारतीय नारी प्रत्येक रामनवमी व दीपावली पर मुस्लिम महिलाओं के साथ विशाल भारत संस्थान में श्रीराम आरती कर सर्वधर्म समभाव का सजीव उदाहरण पेश करती चली आ रही है। साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले ऐसे कई हिन्दु-मुसलमान हैं जिन्होंने कभी भी प्रचार की चाह न करते हुए खुद को देश के अमन-चैन के लिए समर्पित किया हुआ है।

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