भारतवर्ष के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का काफिला देश की राजधानी दिल्ली के विजय चौक से साउथ ब्लाक की तरफ बढ रहा था, तभी एक महिला उसी रास्ते पर आकर शोर मचाने लगी। वह बेहद गुस्से में थी। उसका कोई जरूरी काम अटका था। कोई उसकी सुन नहीं रहा था। वह प्रधानमंत्री तक अपनी समस्या की जानकारी पहुंचाकर तुरंत समाधान चाहती थी। बीच सडक में रास्ता रोक कर खडी महिला को पुलिस वालों ने समझाया कि अपने किसी व्यक्तिगत संकट से मुक्ति पाने का यह कोई उचित तरीका नहीं है। वह बेसब्र महिला कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी। उसकी बस यही जिद थी कि उसे तो प्रधानमंत्री तक अपनी आवाज पहुंचानी है। उसके चिल्लाने का अंदाज तेज और तीखा होता चला जा रहा था। शब्दों में शालीनता का नितांत अभाव था। आखिरकार पुलिस ने उसे वहां से जबरन हटाने की कोशिश की तो उसने अपना रहा-सहा संयम भी खोते हुए सडक किनारे रखा भारी-भरकम गमला उठाया और काफिले के रास्ते पर पटक दिया। गमला तो चकनाचूर हो गया पर उसका गुस्सा यथावत बना रहा। गमले की मिट्टी सडक पर फैल गयी। ऊट-पटांग बकती महिला को आखिरकार पुलिस ने अपने कब्जे में लेकर थाने पहुंचा दिया।
होशियारपुर में एक बारह वर्षीय बच्चे ने खून से अपने हाथ रंग लिये। वह अपने ही मोहल्ले के दस वर्षीय साथी के साथ खेल रहा था। रात के लगभग आठ बजे का समय था। खेलते-खेलते उसने उससे पचास रुपये की मांग कर डाली। छोटे बच्चे के पास इतने रुपये कहां थे जो वह उसे दे देता। उसने अपनी असमर्थता जतायी तो वह गुस्से से आग-बबूला हो उठा। वह शायद न सुनने का आदी नहीं था। उसने र्इंट उठायी और उसके सिर पर दे मारी। लहुलूहान बच्चे को अस्पताल पहुंचाया गया। डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। देखते ही देखते बारह साल के बच्चे के हाथों अपने दस वर्ष के दोस्त की निर्मम हत्या हो गयी।
देश के हाईटेक और अत्याधुनिक शहर बेंगलुरु में देश और विदेशों के हजारों युवक-युवतियां पढने और अपना भविष्य संवारने के लिए आते हैं। इस महानगर के लोग अमन और चैन के साथ जीने के लिए जाने जाते रहे हैं। यहां की आबो-हवा सर्वधर्म समभाव के संदेश देती है। इस महानगरी में दूसरे देशों के साथ-साथ अफ्रीकी देशों के भी हजारों छात्र-छात्राएं अध्यन्नरत हैं, लेकिन रविवार के दिन यहां ऐसी शर्मनाक घटना को सरेआम अंजाम दिया गया जिससे बेंगलुरु के प्रति सभी धारणाएं जैसे धराशायी हो गयीं। अफ्रीकी देश तंजानिया के दार-ए-सलाम के एक श्रमिक परिवार की बेटी चार साल पहले पढाई करने के लिए बेंगलुरु आई थी। अफ्रीकन होने के बावजूद उसके मन में भारत के प्रति अपार स्नेह और अपनत्व था। यहां की महान संस्कृति और सभ्यता की तारीफ करने का वह कोई मौका नहीं छोडती थी, लेकिन उसके साथ पेश आयी एक भयावह वारदात ने उसको अपनी सोच बदलने को मजबूर कर दिया है। रात के साढे सात बजे थे। वह अफ्रीकी छात्रा और उसके तीन दोस्त कार पर सवार होकर घर से बाहर निकले। अभी उन्होंने कुछ फासला तय किया ही था कि उन्हें सडक पर लोगों की भीड दिखायी दी। भीड एक अफ्रीकी छात्र की अंधाधुंध पिटायी कर उसे खत्म कर देने पर उतारू थी। उन्होंने वस्तुस्थिति जानने के लिए अपनी कार की रफ्तार धीमी की तो भीड में से कुछ लोगों की निगाह उनकी कार पर पडी। कार में अफ्रीकी युवकों और युवती को देखते ही वे उनकी ओर दौड पडे। लोगों से बचने के लिए उन्होंने फौरन वहां से कार भगायी, लेकिन भीड के आगे उनकी कुछ भी नहीं चल पायी। युवती और उसके तीनों दोस्त कार से बाहर निकले। दो तो पलक छपकते ही वहां से भाग खडे हुए। युवती और उसके दोस्त की लोगों ने निर्दयता के साथ पिटायी शुरू कर दी। कार भी धू-धू कर जलने लगी। युवती ने समीप खडे वर्दीधारी से बचाने की फरियाद की, लेकिन वह मोबाइल पर बात करते हुए ऐसे आगे बढ गया जैसे उसने कुछ देखा ही न हो। पुलिस वाले के इस रवैये से लोगों को और खुलकर नंगई और गुंडागर्दी करने का मौका मिल गया। उन्होंने युवती के साथ धक्का-मुक्की करते हुए उसके कपडे तार-तार कर डाले। वह बेचारी अपने तन को हाथों से ढकने की असफल कोशिश में पानी-पानी होती रही। तभी उन्हें समीप खडी सिटी बस नजर आयी। वे भाग कर उसमें चढ गये। कुछ लोग बस में भी जा घुसे और उन पर घूसे और मुक्के बरसाने लगे। बस में बैठी किसी भी सवारी ने उन्हें बचाने की कोशिश नहीं की। सभी तमाशबीन बने रहे। बस में सवार किसी महिला ने भी युवती के प्रति रहमदिली नहीं दिखायी। उन्होंने इस तरह से मौन साधे रखा जैसे वह युवती और उसका साथी इसी दरिंदगी के ही हकदार हों। इन बेकसूरों को भीड के द्वारा पीटे जाने की वजह भी बेहद स्तब्ध कर देने वाली है। युवती और उसके दोस्तों के वहां पहुंचने से कुछ देर पहले ही एक अफ्रीकी सुडानी युवक की कार ने एक भारतीय महिला को कुचल दिया था, जिससे उसकी मौत हो गयी थी। वह युवक नशे में था। भीड उसपर अपना गुस्सा उतार रही थी कि युवती और उसके दोस्त वहां पहुंच गए। अफ्रीकी होने के कारण भीड उन पर टूट पडी।
युवती तो उस रात को याद कर आज भी कांप उठती है। उसके भारत के प्रति असीम स्नेह, आकर्षण और विश्वास के तो जैसे परखच्चे ही उड गये हैं। उसके मन में पुलिस को लेकर भी कम मलाल नहीं है। दूसरे दिन जब वह रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए थाने पहुंची तो उसे आराम करने की सलाह दी गयी। आखिरकार उसने एक न्यूज चैनल के संवाददाता को आपबीती से अवगत कराया। फिर तो यह शर्मनाक मामला बहुत बडी खबर बनकर देश और दुनिया की नजरों में आ गया। अस्पताल में भी उनके इलाज में जो आनाकानी की गयी वो भी बेहद शर्मनाक है। इस शैतानी अमानवीयता ने मुझे नागालैंड की उस हिंसक बर्बरता की याद दिला दी जिसमें दीमापुर में गुस्साई आततायी भीड द्वारा एक मुस्लिम कैदी को जेल से निकाल कर दिनदहाडे मार डाला गया था। उसपर बलात्कार का आरोप होने के साथ उसके बांग्लादेशी होने की शंका थी। खून की प्यासी भीड ने उसे नग्न कर बेरहमी से पीटा था और उसके रक्तरंजित शरीर को मोटर सायकल से बांधकर मीलों घसीटते हुए तमाशा बनाया था। यह हद दर्जे की बर्बरता थी। यहां भी पुलिस वैसे ही मूकदर्शक बनी रही थी जैसे इस मामले में। बिना सोचे-समझे जब-तब उग्र हो जाने वाले भारतीय क्या यह नहीं जानते की ३ करोड भारतीय अन्य देशों में रहते हैं। लाखों युवक-युवतियां दुनिया के विभिन्न देशों में अध्यन्नरत हैं। जब हमारे देश के किसी भी शख्स के साथ विदेशों में दुर्व्यवहार की खबर आती है तो हमारा खून खौल उठता है। ठीक वैसे ही विदेशी नागरिकों का जब भारत में अपमान होता है तो यही हाल उनके देशों के नागरिकों का भी होता है। वे भी अपने देश के युवाओं के साथ अभद्र व्यवहार और मारपीट किये जाने पर आगबबूला हो उठते हैं। वैसे भी बेवजह भीड को आक्रामक होने का कोई अधिकार नहीं है। इससे आखिरकार तो देश के नाम पर ही बट्टा लगता है।
होशियारपुर में एक बारह वर्षीय बच्चे ने खून से अपने हाथ रंग लिये। वह अपने ही मोहल्ले के दस वर्षीय साथी के साथ खेल रहा था। रात के लगभग आठ बजे का समय था। खेलते-खेलते उसने उससे पचास रुपये की मांग कर डाली। छोटे बच्चे के पास इतने रुपये कहां थे जो वह उसे दे देता। उसने अपनी असमर्थता जतायी तो वह गुस्से से आग-बबूला हो उठा। वह शायद न सुनने का आदी नहीं था। उसने र्इंट उठायी और उसके सिर पर दे मारी। लहुलूहान बच्चे को अस्पताल पहुंचाया गया। डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। देखते ही देखते बारह साल के बच्चे के हाथों अपने दस वर्ष के दोस्त की निर्मम हत्या हो गयी।
देश के हाईटेक और अत्याधुनिक शहर बेंगलुरु में देश और विदेशों के हजारों युवक-युवतियां पढने और अपना भविष्य संवारने के लिए आते हैं। इस महानगर के लोग अमन और चैन के साथ जीने के लिए जाने जाते रहे हैं। यहां की आबो-हवा सर्वधर्म समभाव के संदेश देती है। इस महानगरी में दूसरे देशों के साथ-साथ अफ्रीकी देशों के भी हजारों छात्र-छात्राएं अध्यन्नरत हैं, लेकिन रविवार के दिन यहां ऐसी शर्मनाक घटना को सरेआम अंजाम दिया गया जिससे बेंगलुरु के प्रति सभी धारणाएं जैसे धराशायी हो गयीं। अफ्रीकी देश तंजानिया के दार-ए-सलाम के एक श्रमिक परिवार की बेटी चार साल पहले पढाई करने के लिए बेंगलुरु आई थी। अफ्रीकन होने के बावजूद उसके मन में भारत के प्रति अपार स्नेह और अपनत्व था। यहां की महान संस्कृति और सभ्यता की तारीफ करने का वह कोई मौका नहीं छोडती थी, लेकिन उसके साथ पेश आयी एक भयावह वारदात ने उसको अपनी सोच बदलने को मजबूर कर दिया है। रात के साढे सात बजे थे। वह अफ्रीकी छात्रा और उसके तीन दोस्त कार पर सवार होकर घर से बाहर निकले। अभी उन्होंने कुछ फासला तय किया ही था कि उन्हें सडक पर लोगों की भीड दिखायी दी। भीड एक अफ्रीकी छात्र की अंधाधुंध पिटायी कर उसे खत्म कर देने पर उतारू थी। उन्होंने वस्तुस्थिति जानने के लिए अपनी कार की रफ्तार धीमी की तो भीड में से कुछ लोगों की निगाह उनकी कार पर पडी। कार में अफ्रीकी युवकों और युवती को देखते ही वे उनकी ओर दौड पडे। लोगों से बचने के लिए उन्होंने फौरन वहां से कार भगायी, लेकिन भीड के आगे उनकी कुछ भी नहीं चल पायी। युवती और उसके तीनों दोस्त कार से बाहर निकले। दो तो पलक छपकते ही वहां से भाग खडे हुए। युवती और उसके दोस्त की लोगों ने निर्दयता के साथ पिटायी शुरू कर दी। कार भी धू-धू कर जलने लगी। युवती ने समीप खडे वर्दीधारी से बचाने की फरियाद की, लेकिन वह मोबाइल पर बात करते हुए ऐसे आगे बढ गया जैसे उसने कुछ देखा ही न हो। पुलिस वाले के इस रवैये से लोगों को और खुलकर नंगई और गुंडागर्दी करने का मौका मिल गया। उन्होंने युवती के साथ धक्का-मुक्की करते हुए उसके कपडे तार-तार कर डाले। वह बेचारी अपने तन को हाथों से ढकने की असफल कोशिश में पानी-पानी होती रही। तभी उन्हें समीप खडी सिटी बस नजर आयी। वे भाग कर उसमें चढ गये। कुछ लोग बस में भी जा घुसे और उन पर घूसे और मुक्के बरसाने लगे। बस में बैठी किसी भी सवारी ने उन्हें बचाने की कोशिश नहीं की। सभी तमाशबीन बने रहे। बस में सवार किसी महिला ने भी युवती के प्रति रहमदिली नहीं दिखायी। उन्होंने इस तरह से मौन साधे रखा जैसे वह युवती और उसका साथी इसी दरिंदगी के ही हकदार हों। इन बेकसूरों को भीड के द्वारा पीटे जाने की वजह भी बेहद स्तब्ध कर देने वाली है। युवती और उसके दोस्तों के वहां पहुंचने से कुछ देर पहले ही एक अफ्रीकी सुडानी युवक की कार ने एक भारतीय महिला को कुचल दिया था, जिससे उसकी मौत हो गयी थी। वह युवक नशे में था। भीड उसपर अपना गुस्सा उतार रही थी कि युवती और उसके दोस्त वहां पहुंच गए। अफ्रीकी होने के कारण भीड उन पर टूट पडी।
युवती तो उस रात को याद कर आज भी कांप उठती है। उसके भारत के प्रति असीम स्नेह, आकर्षण और विश्वास के तो जैसे परखच्चे ही उड गये हैं। उसके मन में पुलिस को लेकर भी कम मलाल नहीं है। दूसरे दिन जब वह रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए थाने पहुंची तो उसे आराम करने की सलाह दी गयी। आखिरकार उसने एक न्यूज चैनल के संवाददाता को आपबीती से अवगत कराया। फिर तो यह शर्मनाक मामला बहुत बडी खबर बनकर देश और दुनिया की नजरों में आ गया। अस्पताल में भी उनके इलाज में जो आनाकानी की गयी वो भी बेहद शर्मनाक है। इस शैतानी अमानवीयता ने मुझे नागालैंड की उस हिंसक बर्बरता की याद दिला दी जिसमें दीमापुर में गुस्साई आततायी भीड द्वारा एक मुस्लिम कैदी को जेल से निकाल कर दिनदहाडे मार डाला गया था। उसपर बलात्कार का आरोप होने के साथ उसके बांग्लादेशी होने की शंका थी। खून की प्यासी भीड ने उसे नग्न कर बेरहमी से पीटा था और उसके रक्तरंजित शरीर को मोटर सायकल से बांधकर मीलों घसीटते हुए तमाशा बनाया था। यह हद दर्जे की बर्बरता थी। यहां भी पुलिस वैसे ही मूकदर्शक बनी रही थी जैसे इस मामले में। बिना सोचे-समझे जब-तब उग्र हो जाने वाले भारतीय क्या यह नहीं जानते की ३ करोड भारतीय अन्य देशों में रहते हैं। लाखों युवक-युवतियां दुनिया के विभिन्न देशों में अध्यन्नरत हैं। जब हमारे देश के किसी भी शख्स के साथ विदेशों में दुर्व्यवहार की खबर आती है तो हमारा खून खौल उठता है। ठीक वैसे ही विदेशी नागरिकों का जब भारत में अपमान होता है तो यही हाल उनके देशों के नागरिकों का भी होता है। वे भी अपने देश के युवाओं के साथ अभद्र व्यवहार और मारपीट किये जाने पर आगबबूला हो उठते हैं। वैसे भी बेवजह भीड को आक्रामक होने का कोई अधिकार नहीं है। इससे आखिरकार तो देश के नाम पर ही बट्टा लगता है।
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