Thursday, February 25, 2016

आपसी सदभाव के निर्मम हत्यारे

'पापा, हमारे इंस्टीट्यूट के चारों ओर फैक्ट्रियों में आग लगी हुई है। बाहर से अंधाधुंध गोलियां चलने की आवाजें सुनायी दे रही हैं। हमें डर लग रहा है। कहीं भीड के हाथों मारे न जाएं। हम यहां कतई सुरक्षित नहीं हैं। प्लीज, कुछ करो पापा।' यह पीडा, यह पुकार और यह फरियाद एक बेटी की है जिसे जाट आरक्षण आंदोलन की हिंसक उग्रता ने इतना खौफजदा कर दिया कि वह अपने इंस्टीट्यूट के कमरे में होने के बावजूद थर-थर कांप रही थी और अपने पिता को वहां से बाहर निकालकर ले जाने के लिए फोन पर फोन किये जा रही थी। आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन होना कोई नयी बात नहीं है, लेकिन ऐसा आंदोलन, ऐसी बर्बरता और ऐसे हिंसक नजारे पहले कभी नहीं देखे गये। आंदोलनकारियों ने शहरों, ग्रामों और यहां तक गली मोहल्लो को भी बंधक बना लिया। लोगों को दहशत में जीने को विवश कर दिया गया। रेलवे और बसों को बडी बेदर्दी के साथ निशाना बनाया गया। रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर आंदोलनकारियों ने बेखौफ होकर आगजनी कर यह दर्शा दिया कि उन्हें राष्ट्रीय सम्पत्ति से कोई मोह नहीं है। अपनी मांग मनवाने के लिए हरियाणा से दिल्ली में होने वाली पानी की सप्लाई रोक कर निर्दयी और स्वार्थी होने की भयावह तस्वीर भी पेश कर दी। यह भी नहीं सोचा कि जल ही जीवन है। इसकी कमी कई संकट पैदा कर सकती है। अभी तक जाटों को रक्षक प्रवृति का माना जाता था, लेकिन उनके द्वारा किये गये निर्मम तांडव ने जैसे पूरी तस्वीर ही बदल कर रख दी। आरक्षण आंदोलन में बेकाबू भीड ने जिस तरह से उत्पात मचाया, तोडफोड, फायरिंग करते हुए यातायात ठप्प करके रख दिया, उससे निश्चय ही जाटों की छवि बेहद धूमिल हुई है।
हरियाणा के कई शहरों में हुई तोडफोड, हिंसा, लूटमार और आगजनी की घटनाओं के बाद यह भी कहा और सुना गया कि आरक्षण आंदोलन जाट नेताओं के हाथ से निकल कर शरारती और असामाजिक तत्वों के हाथों की कठपुतली बन गया। यही वजह थी कि सरकार और प्रशासन की तमाम कोशिशों पर पानी फिर गया। पुलिस, अर्धसैनिक बल और सेना भी बेकाबू भीड के समक्ष घुटने टेकती नजर आयी। हरियाणा की राजनीति की नस-नस से वाकिफ होने का दावा करने वालों का यह निष्कर्ष भी सामने आया कि यदि प्रदेश की सत्ता की कमान किसी जाट नेता के हाथों में होती तो यह आंदोलन इतना हिंसक नहीं होने पाता। हरियाणा में अधिकांश जाट नहीं चाहते कि कोई गैर-जाट प्रदेश की सत्ता पर काबिज रहे। मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इकलौती पसंद हों, लेकिन उनके लिए जाट नेताओं की पसंद बन पाना आसान नहीं है। सत्तालोलुप जाट नेताओं को यह तकलीफ और चिंता दिन-रात सताती रहती है कि हरियाणा में एक गैर जाट को मुख्यमंत्री बनाकर उनके अरमानों पर पानी फेरा गया है। आरक्षण आंदोलन की आग में तेल छिडक कर तमाशा देखने की परिपाटी भी कुछ कांग्रेस नेताओं ने खूब निभायी। चुनावी जंग में हुई हार की पीडा से वे अभी तक मुक्त नहीं हो पाये हैं। इसलिए पर्दे के पीछे छिपकर असंतोष और असहमति के बम-बारुद को माचिस की काडी दिखाने के काम में लगे रहते हैं। सोचिए, सत्ता की भूख नेताओं को कितना नीचे गिरा देती है। देश और प्रदेश के जलने से उन्हें कोई फर्क नहीं पडता। लोगों को होने वाली तकलीफें उनके लिए कोई मायने नहीं रखतीं। निजी और सरकारी संपत्ति की बरबादी भी उनकी चिन्ता का सबब नहीं बनती। हरियाणा में आंदोलन की आड में हुए उपद्रव के कारण एक हजार रेलगाडियां प्रभावित हुर्इं। सात सौ से ज्यादा को रद्द करने को विवश होना पडा। लगभग ३४ हजार करोड रुपये जिद, ईर्ष्या, नफरत और बेलगाम गुस्से की अग्नि में स्वाहा हो गये। कल तक जो राजा थे, आज रंक हो गये। किसी का पेट्रोल पम्प, तो किसी की दुकानें, घर, मॉल, सिनेमाघर, कमायी और रोजगार के साधन आरक्षण की आग की भेंट चढा दिये गये। सैकडो लोगों की पीढ़ियों की कमायी और जमा-जमाया कारोबार उन्हीं की आंखों के सामने तबाह कर दिया गया। क्या उन्हें कभी सुकून की नींद आ पायेगी। जिन्हें कल तक वे अपना समझते थे, उनकी निर्दयता और दरिंदगी को वे कभी भूल पायेंगे? उन्होंने तो तिनका-तिनका कर घर और व्यवसाय खडे किये थे और अपने घर-परिवार और बच्चों के सुनहरे भविष्य के कितने-कितने सपने देखे थे...। उपद्रवी भीड ने पलभर में उन्हें ऐसे बरबाद कर डाला कि अब उन्हें संभलने में ही वर्षों लग जाएंगे। यानी उन्हें अपने जीवन की नये सिरे से शुरुआत करनी होगी। एक भयावह सच यह भी है कि व्यापार, घर, दुकानें और अन्य तबाह हुए सामान तो जैसे-तैसे फिर से बन जाएंगे, लेकिन उस आपसी भाईचारे का क्या होगा जिसका गला घोंटने में कोई आगा-पीछा नहीं सोचा गया। बेकाबू भीड के हाथों में डंडे, तलवारें और बंदूकें थीं। आंदोलित जाट जहां दुकानें और बाजार बंद करवा रहे थे वहीं गैर जाट उनका विरोध कर रहे थे। खाकी वर्दी भी उनके समक्ष लगभग बेबस थी। आम लोग तो वैसे भी भीड के गुस्से के आगे घुटने टेकने को मजबूर हो जाते हैं। जाटों ने इसका भरपूर फायदा उठाया। उग्र प्रदर्शनकारियों ने तो मंत्रियों और विधायकों को भी नहीं बख्शा। यह स्वर भी गूंज रहे थे कि ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा। विरोधियों को निपटाने के लिए आरक्षण आंदोलन को सुअवसर मानने वालों ने अपनी मनमानी करने में कोई कसर नहीं छोडी। प्रदेश के वित्तमंत्री कैप्टन अभिमन्यु के आवास पर जमकर तोडफोड की गयी। कई गाडियों को क्षतिग्रस्त करने के साथ-साथ उनकी कोठी को भी फूंकने की कोशिश की गयी। ऐसे सैकडों उदाहरण हैं। हमारे यहां के नेता भी वक्त की नजाकत को समझने की कोशिश नहीं करते। जाट आरक्षण की आग की लपटों के धधकने के दौरान ही सत्ता पक्ष के एक सांसद ने जाटों के मुकाबले पिछडों को सडक पर उतारने की फुलझडी छोडकर आग में घी डालने की पूरी कोशिश की। अमन-चैन कायम करने की कोशिश की बजाय जिम्मेदार चेहरे ही यदि ऊल-जलूल बयानबाजी करने लगें तो यकीनन वही होना तय हो, जो अभी देश में हो रहा है और होता आया है।

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