Thursday, April 21, 2016

आंखों का मरा पानी

जब इंसान नहीं संभला तो कुदरत भी अपना रंग दिखाने लगी। २०१६ के मार्च-अप्रैल महीने के आते-आते पानी तो जैसे गायब हो गया और सूरज आग के गोले में तब्दील हो गया। देशभर के मैदानी इलाके तवे की तरह तपने लगे और सूर्य देवता के उग्र तेवरों ने चेतावनी दे डाली की बहुत कर चुके अपनी मनमानी, अब भुगतने के लिए तैयार हो जाओ। क्या कभी सुना था कि इतनी गर्मी पडेगी कि फर्श चूल्हा बन जायेगा? तेलंगाना में स्थित करीमनगर में एक महिला ने अपने मकान के बरामदे के सुलगते फर्श पर आमलेट बनाया और मजे से खाया और खिलाया। बिना किसी चूल्हे के आमलेट बनाने का यह नजारा अद्भुत था। अकल्पनीय। देश के विभिन्न न्यूज चैनलों पर यह महिला सूरज की आग से जलते फर्श पर जब आमलेट बनाते दिखी तो देखने वाले दंग के दंग रह गये।
महाराष्ट्र के लातूर जिले ने कभी प्रलयकारी भूकंप की मार झेली थी। घर-परिवार तबाह हो गये थे। लातूर को फिर से बनने और संभलने में कई वर्ष लग गये थे। आज उसी लातूर को भयंकर सूखे के चलते पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसना पड रहा है। यह परेशानी उस भूकंप से कम पीडादायी नहीं है। पानी की जानलेवा-किल्लत के कारण उन्हें तकलीफ-दर-तकलीफ का सामना करना पड रहा है। "जल है तो कल है"  और 'पानी बिन सब सून' जैसी जागृत करने वाली कहावतें सटीक और सजीव हो रही हैं कि पानी की बर्बादी से बाज आओ। जल को संग्रहित करना सीखो। यदि ऐसे ही पानी की बर्बादी होती रही तो करीब दो दशक बाद आज की तुलना में पानी आधा रह जाएगा। पीने के पानी के अभाव में होने वाली बीमारियों को रोक पाना मुश्किल हो जायेगा। जल के बिना जीना कैसा होता है इसकी पूरी खबर महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाडा को तो हो ही गयी है, जहां तीन वर्ष से सूखे के चलते लोगों को पानी के लिए तरसना पड रहा है। वैसे भी लातूर में सूखे की मार बनी रहती है और जल संकट पीछा नहीं छोडता। लेकिन इस बार बहुत अति हो गयी। किसानों की फसलें बर्बाद हो चुकी हैं। कुएं और तालाबों में पानी का नामो-निशान नहीं रहा। हजारों पशुओं ने प्यास के मारे तडप-तडप कर प्राण त्याग दिए। न जाने कितने लोग अपना घर-बार छोडकर शहर की तरफ चल दिए। तय है कि यहां के लोगों की दिनचर्या अस्तव्यस्त हो गयी है। लातूर की आबादी है लगभग पांच लाख। इतनी आबादी को रोजाना दो करोड लीटर पानी की जरूरत होती है। हकीकत यह है कि महीने में मात्र एक बार ही पानी मिल पाता है। इस भयावह किल्लत की एक वजह यह भी है... उस बांध का सूख जाना जिससे शहरवासियों को प्रतिदिन काफी पानी मिलता था। हिन्दुस्तान के इतिहास में संभवत: पहली बार पानी के संकट से निपटने के लिए वॉटर ट्रेनें प्यासों की प्यास बुझाने के लिए भेजी जा रही हैं।
हमेशा जल संकट से जूझने वाले राजस्थान में भी अप्रेल महीने से पानी के लिए संघर्ष की नौबत आ गयी। करीब पंद्रह हजार गांव पानी के कमी का शिकार हो गये और लाखों लोगों को पीने के पानी के लिए तरसते देखा गया। सरकार ने लोगों को पानी मुहैया कराने के लिए जो योजनाएं बनायीं, वे नाकाफी सिद्ध हुर्इं। यह भी सच है कि महाराष्ट्र के लातूर की तरह राजस्थान में भी पानी की समस्या कोई नयी बात नहीं हैं। सरकारें आती-जाती रहीं, इस विकट समस्या का हल नहीं हो पाया। व्यवस्था गैरजिम्मेदार बनी रही। सत्ताधीशों की इरादों और नीयत में खोट नहीं होती पानी की समस्या का हल तलाशना मुश्किल नहीं था। जिन बांधो को पांच वर्ष में बन जाना था उन्हें पंद्रह-बीस वर्ष में भी नहीं बनाया जा सका। लागत बढती चली गयी। काम रूक गया। देश में ऐसे कितने बांध हैं जो अधबने हैं। उद्घाटन होने के बावजूद काम शुरू ही नहीं हो पाया। हां कागजी बांधों, की बदौलत सरकारी ठेकेदारों, सत्ता के दलालों और नेताओं ने मनमानी चांदी काट ली।
प्रकृति की हकीकत और रहस्य भी बडे निराले हैं। जहां लगभग पूरे देश में पानी के लिए हाहाकार मचा है वहीं सूखे प्रदेश के रेगिस्तानी जिलों में शामिल जैसलमेर में दो स्थानों पर जमीन से अपने आप पानी निकलने से लोग हतप्रभ रह गये। एक जगह पर पिछले तीन वर्ष से लगातार पानी के निकलने से इसे दैवीय कृपा माना जा रहा है। अपने देश की अधिकांश आबादी प्राकृतिक आपदाओं को ऊपर वाले का प्रकोप और मर्जी मानती है। अक्सर धर्म, विज्ञान पर भारी पड जाता है। भूजल वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से यहां जो वर्षा हुई है, उसका पानी जमीन में जिप्सम की परत होने के कारण नीचे नहीं जा पाया और अब इस तरह से जमीन से अपने आप बाहर निकल रहा है, लेकिन गांव वाले इसे ऊपर वाले का चमत्कार मान नमस्कार कर रहे हैं। वहां पर मंदिर बनाने की तैयारी के साथ चंदा जुटाने का अभियान शुरू हो चुका है।
जनता पानी और सूखे की मार से आहत होती रहे नेताओं को कोई खास फर्क नहीं पडता। यह तो वोटों की चिन्ता है जो उनके होश ठिकाने लगा देती है और उन्हें अपने वातानुकूलित कमरों से बाहर निकलने को विवश कर देती है। बेचारे जैसे-तैसे भरी गर्मी में लोगों का हाल-चाल जानने के लिए पहुंच जाते हैं। वहां भी उनका मन परिंदे की तरह भटकता रहता है। महाराष्ट्र की ग्राम विकास एवं जल संचय मंत्री पंकजा मुंडे पानी की भयंकर समस्या से जूझ रहे सूखाग्रस्त लातूर के दौरे पर ऐसे पहुंचीं जैसे भ्रमण का मज़ा लूटने आयी हों। वे सूखे से लडते गांववासियों के आंसू पोछने की बजाय सेल्फी लेती रहीं। पंकजा ने अपनी कुछ तस्वीरें ट्विटर अकाउंट पर शेयर कर खुद की पीठ थपथपायी। सेल्फी लेने के बाद वे जिस तरह से अफसरों और पुलिसवालों से मुस्कराते हुए मिलीं उससे वे भी जान गए कि मंत्री महोदया को सूखा पीडितों से कोई सहानुभूति नहीं है। यह तो रस्म अदायगी है जो उन्हें यहां खींच लायी है। पंकजा महाराष्ट्र के जाने-माने नेता स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे की पुत्री हैं। गोपीनाथ भाजपा के धनवान और बलवान नेता थे। फिर भी जनसेवा की भावना के भी धनी थे। उन्हें नरेंद्र मोदी की सरकार में मंत्री बनाया गया था। दिल्ली में हुई कार दुर्घटना में उनका देहावसान हो गया था। पंकजा को राजनीति तो विरासत में मिली है, लेकिन उन गुणों का नितांत अभाव है जो उनके पिताश्री की पहचान थे। पंकजा जब गर्मी से पसीना-पसीना हो गयीं तो उन्हें अपने मेकअप की चिन्ता सताने लगी। किस्मत की धनी पंकजा -पहली बार मंत्री बनी हैं। उनकी मंशा तो मुख्यमंत्री बनने की थी। भ्रष्टाचार के विभिन्न आरोपों के चलते मीडिया की सुर्खियां पाने वाली पंकजा को विदेश यात्राएं करने का खासा शौक है। पहले भी जब महाराष्ट्र में सूखा पडा था तब वह विदेश यात्रा का आनंद ले रही थीं। उनके पति चारुदत्त पालवे मराठवाडा में स्थित एक शराब फैक्टरी के मालिक हैं। जहां मराठवाडा पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस रहा है वहीं मंत्री महोदय के पतिदेव के शराब कारखाने को भरपूर पानी मुहैया कराया जा रहा है। पंकजा यथार्थ की जनसेवा में यकीन नहीं रखतीं। वे उन नेताओं में शामिल हैं जो कागजों पर तालाब, हैंडपंप, बोरवेल, कुएं और बांध बनाने की परिपाटी को जिन्दा रखने के हिमायती हैं। ऐसे नेताओं को होश में लाने और उन्हें उनके कर्तव्य के प्रति सचेत कराने के उद्देश्य से ही युवा कवि आनंद सिंगीतवार ने यह पंक्तियां लिखी हैं :
बस्तियों में ला पानी,
प्यासों को पिला पानी।
कागजों से उतार कर,
नदियों में बहा पानी।
गांव, शहर, झोपडी, महल,
हरेक को दिला पानी।
दौलत के वास्ते दोस्त,
रिश्तों पे ना फिरा पानी।
वो मर गया जिसकी,
आंखों का मरा पानी।

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