Thursday, April 28, 2016

जश्न की गोलियाँ

शाम अपने पूरे शबाब पर थी। दिल्ली के मंगोलपुरी इलाके में अपने घर की छत पर खडी अंजलि रास्ते से गुजर रही बारात को बडी तन्मयता से निहार रही थी। बैंड-बाजे की धुन पर लडके-लडकियों का थिरकना अंजलि को लुभा कर सपनों की दुनिया में ले जा रहा था। उसका नीचे उतरने को मन ही नहीं हो रहा था। मां आवाज़ें पर आवाज़ें लगा रही थी, "बेटी कब तक छत पर खडी रहोगी। बहुत देर हो चुकी, अब नीचे आ जाओ। खाना खाकर तुम्हें पढने के लिए भी बैठना है। इम्तहान सिर पर हैं।" इसी बीच बारात में मौजूद किसी बाराती ने हवा में फायरिेंग कर दी। उसकी पिस्टल से निकली जश्न की गोली अंजली के सिर में जा लगी। उसे फौरन अस्पताल पहुंचाया गया। चार दिन तक अस्पताल में तडपने के बाद आखिरकार उसने दम तोड दिया। अंजलि १२वीं कक्षा की छात्रा थी। पढाई में होशियार थी। वह टीचर बनना चाहती थी। छोटी सी चाय की दुकान लगाकर परिवार चलाने वाले पिता ने आर्थिक तंगी के बावजूद अपनी बेटी को आगे बढने के लिए सदैव प्रोत्साहित किया। उन्हें अपनी होनहार बेटी पर गुमान था। शादी ब्याह के मौकों पर कुछ बदहवास लोगों की पिस्तौलों और बंदूकों से चली गोलियां न जाने कितने निर्दोषों को मौत के घाट उतार कर उनके अपनों को अंतहीन मातम की अंधेरी सुरंग की ओर धकेल चुकी हैं। ऐसा लगता है कि लोग समय के हिसाब से खुद को बदलना नहीं चाहते। उनका अहंकार उन्हें नचाता रहता है। शादी-ब्याह और किसी भी विशेष पर्व पर बंदूकें लहराकर फायरिंग करने में उन्हें आत्मिक संतुष्टि मिलती है। गोलियां दाग कर अपना रूतबा दिखाने वालों पर कानून के खौफ और किसी की समझाइश का कोई असर नहीं पडता। इसलिए यह सिलसिला थमता नजर नहीं आता। हथियारों का यह घातक नशा कई जानें ले चुका है। कई शादियों में तो दूल्हा ही किसी पिस्टल की मदहोश गोली का शिकार हो जाता है और बारात को श्मशान घाट की तरफ मुडने को विवश हो जाना पडता है। देश का प्रदेश उत्तरप्रदेश ऐसी उत्सवी गोलाबारी में काफी आगे है। वहां कई शादियां फायरिंग के बिना अधूरी मानी जाती हैं। गांवों और शहरों में उमंग की गोलियां चलती रहती हैं और चलाने वाले की हैसियत और औकात का पता बताती रहती हैं। रंग में भंग पड जाता है, फिर भी दोषियों के चेहरे पर शिकन नहीं आती। यह सोचकर तसल्ली कर ली जाती है कि खुशी के मौकों पर छोटे-मोटे हादसे तो होते ही रहते हैं। उनकी चिन्ता में काहे को दुबले होना। यूपी के एक पत्रकार मित्र ने यह बताकर हमारी जानकारी में इजाफा किया कि पश्चिमी उत्तरप्रदेश में मेहमानों को भेजी जाने वाली निमंत्रण पत्रिका में बडे-बडे अक्षरों में यह भी लिखा होता है कि आप अस्त्र-शस्त्र के साथ सादर आमंत्रित हैं। मेहमान पिस्तोल और बंदूकों के साथ शादी-ब्याह की शोभा बढाते हैं और जब होश पर जोश भारी पड जाता है तो अनहोनी भी हो जाती है।
दूसरों के हंसते-खेलते जीवन को अंधकारमय बनाने और पीडा पहुंचाने में कुछ लोगो को वाकई बडा मज़ा आता है। उनकी फितरत ही ऐसी होती है कि वे इस ताक में रहते हैं किसी को कैसे बेचैन किया जाए। अपने देश में कुछ लोग हैं जो उत्सव और धर्म के नाम पर भी मनमानी और तमाशेबाजी करने से बाज नहीं आते। एक मित्र को विदेश में जाकर नौकरी करना महंगा पड गया। उनकी शहर में अच्छी-खासी जमीन थी। वे यह सोच कर विदेश चले गये कि जमीन कोई ऐसी चीज तो है नहीं कि जिसे कोई उठा कर ले जाए, लेकिन वर्षों बाद जब वे स्वदेश लौटे तो उनके पैरोंतले जमीन ही खिसक गयी। उनकी पांच हजार वर्गफुट की जगह पर भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका था। जिन लोगों ने यह करिश्मा किया था वे छुटभइये नेता और गुंडे किस्म के लोग थे। मित्र वर्षों से कानूनी लडाई लड रहे हैं। वकीलों को लाखों की फीस देकर टूट चुके हैं, लेकिन फिर भी उन्हें अपनी ही जमीन वापस मिलती नहीं दिखती। मंदिर यानी धर्म का मामला। जब धर्म की बात आती है तो अधिकांश लोग इतने धार्मिक हो जाते हैं कि सच का साथ देने में भी कतराते हैं। जुबान बंद रखने में ही भलाई नजर आती है। मित्र के साथ भी यही हो रहा है। आसपास के सभी लोग जानते हैं कि जमीन पर अवैध कब्जा कर मंदिर बनाया गया है। मित्र की भी हिम्मत नहीं होती कि वे वहां जुटने वाले धर्म-प्रेमियों को खदेडने की सोचें। वहां सुबह-शाम पूजा पाठ चलता रहता है।
नारंगी नगर नागपुर में सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण कर पूजा स्थल बनाने की खबरें आती रहती हैं। इन्हें महानगर पालिका के अधिकारी चाहकर भी धराशायी नहीं कर पाते। इन्हें खडा करने वाले भी कम चालाक नहीं। मूर्ति स्थापना या अन्य कार्यक्रम के आयोजन के अवसर पर छपवायी गयी निमंत्रण पत्रिका पर केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और दिग्गज हस्तियों के उपस्थित रहने की जानकारी देकर अपना दबदबा बनाते हैं। ऐसे में कोई भी सरकारी अमला अवैध धार्मिक स्थल को ढहाने की सोच भी नहीं पाता। आप किसी भी शहर और गांव में चले जाइए, आपको जगह-जगह ऐसे धार्मिक स्थल छाती तानकर खडे नजर आएंगे जिनकी वजह से लोगों को कई तरह की असुविधाओं से रूबरू होना पडता है। कई शहरों और गांवों के तालाबो को कचरे और मिट्टी से पाट कर मंदिर स्थापित कर दिये गये हैं। अवैध पूजा स्थल बनाने वाले यह भी नहीं देखते कि वे किस जगह पर अतिक्रमण कर रहे है। सडकों के बीचों-बीच और रेल की पटरियों के इर्द-गिर्द बने अर्चनालय बेहद चौंकाते हैं। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक स्थलों पर धार्मिक स्थलों के निर्माण पर गहरी नाराजगी जताते हुए कहा है कि यह भगवान का सम्मान नहीं बल्कि अपमान है। सडके लोगों के चलने के लिए होती हैं। जो लोग ईश्वर पर विश्वास नहीं करते वे ईश्वर को ऐसी-ऐसी जगह पर बिठा देते हैं जहां उन्हें नहीं होना चाहिए। नियम कानूनों की अनदेखी कर विभिन्न देवी-देवताओं के नाम पर स्थापित किए गए पूजा-अर्चना के स्थलों को हटाने में नेता तो नेता सरकारें भी हिचकिचाती हैं कि कहीं लोगों की भावनाएं आहत न हो जाएं। धर्म-प्रेमियों की भीड सडकों पर न उतर आए। इसी बहाने स्वार्थी नेताओं की राजनीति भी फलती-फूलती रहती है। और यह भी तो सच ही है कि सरकारें भी आखिरकार नेता ही तो बनाते हैं!

No comments:

Post a Comment