Thursday, April 7, 2016

सत्ता और शराब

बिहार में पूरी तरह से शराब बंदी करने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अभिनंदन। बहुत वर्षों बाद वो दिन आया जब किसी नेता ने जोखिमभरे वादे को निभाने का भरपूर साहस दिखाया। बिहार जैसे प्रदेश में शराब बंदी करना कोई बच्चों का खेल नहीं था। प्रदेश में शराब बंदी लागू होने से महिलाएं तो गदगद हो गयीं। ढोल-नगाडों के बीच जमकर जश्न मनाया गया। राजधानी पटना समेत पूरे प्रदेश में महिलाओं ने होली और दिवाली एक साथ मनायी। ऐसा भी पहली बार हुआ जब शराब के विरोध में जुलूस निकले और सभाएं की गयीं। सभी विधायकों और मंत्रियों ने मय से दूरी बनाये रखने की कसम खायी।
कौन नहीं जानता कि शराब की वजह से महिलाओं को ही सबसे ज्यादा कष्ट झेलना पडता है। लाख समझाने पर भी पियक्कड पति, भाई, पिता, बेटे शराब से तौबा करने का नाम नहीं लेते। अच्छे-खासे घर बरबाद हो जाते हैं, लेकिन शराबियों की नींद नहीं खुलती। औरतें तो बस खून के आंसू बहाती रह जाती हैं। बिहार की महिलाओं पर अपार उपकार किया है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने। शराब बंदी कर उन्होंने महिलाओं को वो खुशी और तसल्ली दे दी जिसकी उन्हें वर्षों से चाह थी। बिहार में शराबबंदी को लेकर उठाया गया यह कदम कितना सफल होता है यह तो आने वाला वक्त बतायेगा, लेकिन अभी से हताश और निराशा की बातें करना तर्कसंगत नहीं लगता। अभी तो पीठ थपथपाने का वक्त है।
१९७७ में बिहार में ऐसा ही प्रयोग तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने भी किया था, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल पायी थी। उनकी शराब बंदी के पीछे मंशा यही थी कि प्रदेश में होने वाले अपराधों में कमी आयेगी। लोगों के खून-पसीने की कमायी का सदुपयोग हो सकेगा, लेकिन सकारात्मक परिणाम नहीं मिल पाये। अवैध शराब तस्करों की चांदी हो गयी। मिलावटी और जहरीली शराब की वजह से पियक्कडों की जान पर बन आयी। प्रसिद्ध अभिनेता स्वर्गीय एनटी रामाराव ने आंध्रप्रदेश में शराब बंदी के पुख्ता वादे के साथ राजनीति में कदम रखा था। महिलाओं में खासे लोकप्रिय एनटी रामाराव गरीब प्रदेशवासियों को शराब के भयावह प्रकोप से बचाना चाहते थे। अभिनेता से नेता बने रामाराव के शराब बंदी आंदोलन में किसी को कोई खोट नज़र नहीं आया था। वैसे भी उनकी छवि परंपरागत जुमलेबाज नेताओं से जुदा थी। अंतत: उनका आंदोलन रंग लाया और वे आंध्रप्रदेश की सत्ता पाने में सफल हो गये। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होते ही उन्होंने अपना वादा निभाया, लेकिन जब उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने प्रदेश की सत्ता संभाली तो बंदी को एक ही झटके से हटा दिया। १९९६ में हरियाणा में मुख्यमंत्री बंसीलाल ने भी शराबबंदी के वादे को साकार कर लोकप्रियता पायी थी, लेकिन बाद में प्रदेश में अवैध शराब की अंधाधुंध तस्करी होने के कारण उनका प्रयोग टांय-टांय फिस्स हो गया।
१ अप्रैल २०१६ को जैसे ही बिहार में देसी शराब पर बंदिश लगाये जाने का ऐलान किया गया तो अवैध शराब माफिया कुछ ही घंटो के भीतर सक्रिय हो गये। कहीं भी सहज उपलब्ध होने वाली ताडी में अवैध देसी शराब मिलायी जाने लगी। इससे ताडी की बिक्री में अभूतपूर्व इजाफा हो गया। नियमित देसी पीने वाले ताडी पर टूट पडे। जब भी किसी प्रदेश या शहर में शराब पर पाबंदी लगायी जाती है तो अवैध शराब कारोबारियों के साथ-साथ तस्कर भी पियक्कडों को शराब उपलब्ध कराने में लग जाते हैं। यह माना कि पुराने अनुभव अच्छे नहीं रहे। जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शराब पर बंदिशें लगायी गयीं, वो पूरी तरह से सफल नहीं हो पाये। इस सच को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि नीतीश कुमार ने चूनाव पूर्व शराब बंदी की घोषणा की बदौलत ही सत्ता पायी। बिहार में महागठबंधन की बडी जीत का कारण महिलाओं द्वारा उनके पक्ष में किया गया अभूतपूर्व मतदान ही है। नीतीश कुमार ने पहले देसी शराब पर प्रतिबंध लगाया और जब उन्होंने देखा और समझा कि उनके इस कदम को सराहा जा रहा है तो उन्होंने ५ अप्रैल २०१६ को अंग्रेजी शराब के बेचने और पीने पर भी पाबंदी लगाकर अपने चुनावी वादे को पूरी तरह से पूरा कर दिखाया। ऐसा तो हो नहीं सकता कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराब बंदी के पुराने इतिहास से वाकिफ न हों। यकीनन उनका साहस अनुकरणनीय है। उन्होंने शराब बिक्री की बदौलत सरकारी खजाने में आने वाले लगभग पांच हजार करोड रुपयों की परवाह न करते हुए अपने वादे और सर्वजनहित को प्राथमिकता दी। अगर पूर्व में शराब के खिलाफ चलाये गये अभियान असफल रहे तो इसका यह मतलब तो नहीं कि अब भी शराब बंदी का वही हश्र होगा। ऐसा सोचना बेवकूफी भी है और नादानी भी। शासन और प्रशासन के यदि इरादे नेक हों तो शराब की तस्करी और अवैध शराब के धंधेबाजों को दबोचना कोई मुश्किल काम नहीं है।
यह भी बहुत अच्छी खबर है कि बिहार सरकार शराब की लत को छुडवाने के लिए व्यसन मुक्ति केंद्र की स्थापना करने जा रही है। यदि कोई अवैध शराब बेचता हुआ पकडा जाता है तो उसे कडा दण्ड और इसे पीकर यदि किसी की मौत हो जाती है तो ऐसी स्थिति में अवैध शराब निर्माता, विक्रेता, तस्कर को १० साल की सज़ा से लेकर उम्र कैद तक का प्रावधान रखा गया है। बिहार प्रशासन के पूरी तरह से जागरूक रहने पर निश्चय ही बिहार का चेहरा बदलेगा और अपराधों में काफी कमी आयेगी। देश के प्रदेश गुजरात की तरक्की और अपराधों की कमी में शराब बंदी ने उल्लेखनीय योगदान दिया है। देश को आज नीतीश कुमार जैसे शासकों की जरूरत है।
अपने देश के एक प्रदेश में ऐसे मुख्यमंत्री भी हैं जिन्हें लगता है कि शराब की नदिया बहा देने से उनका वोट बैंक और पुख्ता होगा और उनकी सत्ता पर कभी कोई आंच नहीं आयेगी।  वे बडे गर्व के साथ कहते हैं कि भले ही दूसरी जरूरी चीजों के दाम बढ गये हैं, लेकिन हमने शाम की दवा की कीमतें कम कर आम आदमी को बहुत बडी राहत पहुंचायी है...।

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