Thursday, October 13, 2016

धूर्त और मौकापरस्त नेता

"मेरे पांव के छालों जरा
लहू उगलो... सिरफिरे
मुझसे सफर के निशान मांगेंगे!!"
जिसने भी यह पंक्तियां लिखी हैं उसके दर्द को समझा जा सकता है। वैसे इन शब्दों में देश के हर सैनिक की पीडा छिपी है। वाकई बडा शर्मनाक दौर है यह। सैनिकों की शहादत पर राजनीति करने वाले नेताओं को तो डूब मरना चाहिए। पर यह मोटी चमडी वाले इतने संवेदनहीन हो गए हैं कि इन्हें शहीदों का अपमान और उन्हें कठघरे में खडा करने में भी लज्जा नहीं आती। इन्हें हमेशा अपने चुनावी फायदे की चिन्ता रहती है। यकीनन यह निर्लज्जता की पराकाष्ठा है। राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री बनते-बनते चूक गए। शायद इसी पीडा ने उन्हें बेहद मुंहफट बना दिया है। कुछ लोग इसे आक्रमकता कहते हैं, जो हर नेता में होनी चाहिए, लेकिन सवाल यह है कि ऐसी आक्रमकता किस काम की जो आपको शर्मिन्दा होने को विवश कर दे। कहते हैं कि नेताओं की चमडी बहुत मोटी होती है। उन पर लोग स्याही फेंके, जूते-चप्पलें चलाएं, गंदी-गंदी गालियों से नवाजें, लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं पडता। राजनीति में प्रवेश करने से पहले उन्हें यही घुट्टी पिलायी जाती है कि विरोधी दल के नेताओं की ऐसी-तैसी करने में कोई कमी नहीं करना। सत्ता पानी है तो आकाश पर भी थूकते रहना। भले ही थूक वापस खुद पर ही आकर क्यों न गिरे।
पाक अधिकृत कश्मीर में २९ सितंबर २०१६ को आतंकी शिविरों में सेना के सर्जिकल स्ट्राइक पर राहुल गांधी ने जब यह कहा कि जवानों ने अपना खून दिया और आप (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) शहीदों के खून की दलाली कर रहे हैं... तो देश के अधिकांश सजग देशवासी हतप्रभ रह गये। उन्होंने खुदा का शुक्र माना कि अच्छा हुआ कि यह गांधी-नेहरू परिवार का चिराग देश का प्रधानमंत्री नहीं बना। इनका तो अपनी जुबान पर भी नियंत्रण नहीं। वैसे सर्जिकल स्ट्राइक के और भी कई नेताओं ने सबूत मांग कर अपनी खिल्ली उडवायी और सजग देशवासियों का गुस्सा झेला। कभी शिवसेना में उछलकूद मचाने वाले कांग्रेस के नेता संजय निरुपम ने भी सर्जिकल स्ट्राइक को नितांत फर्जी बता कर अपनी राजनीति की दुकानदारी चमकाने की भरपूर कोशिश की। लेकिन सोशल मीडिया पर उन्हे इतना लताडा गया की नानी याद आ गयी और मुंह छिपाने की नौबत आ गयी। गैंगस्टर रवि पुजारी ने भी उन्हें सोच समझ कर बोलने और माफी न मांगने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दे डाली। संजय तो नेता हैं इसलिए अंदर से भयभीत होने के बावजूद उन्होंने अपनी मोटी चमडी की चमक कम नहीं होने दी। लेकिन उनकी धर्म पत्नी इतनी घबरायीं कि उन्होंने प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखा कि वह भारत में खुद को बेहद असुरक्षित महसूस कर रही हैं। उन्हें और उनके परिवार को न केवल सोशल मीडिया पर गालियां दी जा रही हैं बल्कि फोन करके उनके खिलाफ अश्लील टिप्पणी भी की जा रही हैं। हमारा परिवार बहुत खौफ में जी रहा है। हमें सुरक्षा प्रदान की जाए। परेशानी यह है कि सत्ता के भूखे इस देश के अधिकांश नेताओं को बयान के गोले दागने की बहुत जल्दी रहती है। मीडिया में छाने के लिए कौन पहले विष उगलता है इसकी भी प्रतिस्पर्धा चलती रहती है। राहुल गांधी से पहले आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने सरकार से सर्जिकल स्ट्राइक का प्रूफ मांगकर अपनी जमकर किरकिरी करवायी। राहुल गांधी और अरविंद जैसे तमाम नेताओं के सैनिकों की शहादत पर सवाल खडे किये जाने से आम लोगो को बहुत चोट पहुंची। सबकी समझ में यह सच आ गया कि सत्ता के भूखे नेताओं का कोई ईमान-धर्म नहीं है। सजग लेखकों और कवियों ने भी ऐसे नेताओं पर शब्दवार कर अपनी भडास निकाली। कवि पंकज अंगार की कविता की यह पंक्तियां तो सोशल मीडिया में छा गयीं :
 फिर सेना के स्वाभिमान पर
जयचंदों ने वार किया।
राजनीति ने फिर बलिदानी
पौरुष को धिक्कार दिया।
कायरता की भाषा बोली
वोट के ठेकेदारों ने
कुर्बानी को खेल बताया
कुछ ओछे किरदारों ने।
जिस तरह से भारत के बहादुर सैनिकों ने पाकिस्तान के घर में घुसकर सात आतंकी कैम्पों को ध्वस्त कर ३० से ३५ आतंकियों को ढेर करने के साथ-साथ सात सैनिकों को मार गिराया उससे तो हर देशवासी को सैनिकों की जय-जयकार करनी चाहिए थी। लेकिन घटिया मनोवृति के कुछ नेता यहां भी राजनीति करने से बाज नहीं आए! एक-दूसरे के कपडे उतारने पर तुल गये। सेना की सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो जगजाहिर नहीं करने को लेकर सरकार पर उंगलियां उठाने वालों ने पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल शंकर राय चौधरी के बयान को ही नजरअंदाज कर यह दर्शा दिया कि उन्हें किसी भी हालत में नरेंद्र मोदी का विरोध करते रहना है। श्री चौधरी के कथनानुसार यह वीडियो पाकिस्तान की सेना और उनकी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए अनमोल खजाना है। विरोधी दलों के नेता चाहे कितना भी शोर मचाएं, लेकिन हिन्दुस्तान की सरकार को इसे सार्वजनिक नहीं करना चाहिए। दुनिया की कोई भी फौज ऐसी भूल नहीं करती। जो लोग सर्जिकल स्ट्राइक पर शंका कर रहे हैं उनके दिमाग का दिवाला निकल चुका है। वे परले दर्जे के धूर्त भी हैं और मौकापरस्त भी।

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