Thursday, October 27, 2016

राष्ट्रभक्ति का प्रमाणपत्र

बात निकलती है तो दूर तक जाती ही है। फिर भी इस हकीकत को नजरअंदाज कर नामी लोग सनसनी फैलाते रहते हैं। वैसे भी इन दिनों देश में गजब की तमाशेबाजी चल रही है। इस खेल में नेता भी शामिल हैं और अभिनेता भी। फिल्म अभिनेता ओमपुरी एक जाने-माने फिल्मी कलाकार हैं। कोई जमीन से जुडा कलाकार ऐसा विवादास्पद बयान नहीं देता जो ओमपुरी ने देकर तमाम भारतीयों का सर शर्म से झुका दिया। उन्होंने बारामूला में शहीद हुए सैनिक नितिन यादव की शहादत का मजाक उडाते हुए कहा कि हमने किसी जवान पर कभी यह दबाव तो नहीं डाला कि वह सेना में जाए और बंदूक उठाए। सैनिकों की शहादत को कटघरे में करते-करते अभिनेता ने सवाल कर डाला कि 'क्या देश में १५-२० लोग ऐसे हैं जिन्हें बम बांधकर पाकिस्तान भेजा जा सके? किसी को जबरदस्ती तो फौज में नहीं भेजा जाता।' ओमपुरी ने खून खौलाने वाले बोल उगल कर पूरे देश में अपनी खूब थू...थू करवायी। न्यूज चैनलों पर भी उनकी खिल्ली उडायी गयी। उनकी अक्ल जब ठिकाने आयी तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उनकी हिम्मत को दाद देनी पडेगी। जब उन्हें लगा कि देशवासी उन्हें माफ करने को तैयार नहीं हैं तो वे एलओसी में शहीद हुए जवान नितिन यादव के घर इटावा जा पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने शहीद को न सिर्फ श्रद्धांजलि दी, बल्कि अपने शर्मनाक बयान पर शहीद के माता-पिता के चरणों में गिरकर माफी भी मांगी। इस दौरान फूट-फूट कर रोते हुए उन्होंने कहा कि उनके मुंह से सैनिकों के लिए गलत बात निकल गई थी। श्रद्धांजलि देने के बाद उन्होंने शहीद के घर में हवन करने की इच्छा जतायी। उनका मान रखते हुए घर में हवन की व्यवस्था की गयी जिसमें एक पंडित ने मंत्रोच्चारण किया और अभिनेता समेत पिता एवं अन्य लोगों ने हवनकुंड में आहुतियां डालीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए पाकिस्तान तथा सारी दुनिया को यह संदेश तो दे ही दिया है कि अब भारत सीमा पर आतंकवाद को किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद देशवासियों में भी अभूतपूर्व उत्साह और जागरूकता दिखायी दी। सर्जिकल स्ट्राइक पर अविश्वास करने वालों को लगभग अनदेखा कर दिया गया। यह भी लोगों की सचेतना का ही परिणाम है कि ऐसी फिल्मों पर निशाना साधा गया जिनमें पाकिस्तानी कलाकारों को काम दिया गया। कई लोगों का यही मत सामने आया कि दुश्मन देश पाकिस्तान के कलाकारों को हिन्दुस्तानी फिल्मों में काम करने की इजाजत देकर देश के लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड नहीं किया जाना चाहिए। कुछ लोगों को पाकिस्तानी कलाकारों का विरोध रास नहीं आया। उनका मत है कि कला और कलाकार पुल का काम करते हैं, एक दूसरे को करीब लाते हैं। कलाकारों की कोई सरहद नहीं होती। सीमा की लडाई में कलाकारों को घसीटना ठीक नहीं है। लोकतंत्र में मान और मर्यादा के साथ सभी को अपनी बात रखने का अधिकार है। यही तो हमारे लोकतंत्र की खासियत है। समर्थन और विरोध करने की खुली छूट है। लेकिन कुछ लोग लोकतंत्र को ठोकतंत्र और रोषतंत्र बनाने पर तुले हैं। भारतीय फिल्मों में पाकिस्तानी कलाकारों के अभिनय करने को लेकर जब विवाद ने बहुत ज्यादा जोर पकडा तो कुछ नेताओं की राष्ट्रभक्ति ने बहुत ज्यादा  जोर मारना शुरु कर दिया। जिन फिल्म निर्माताओं की फिल्मों में पाकिस्तान के कलाकारों ने अभिनय किया उन्हें अपने-अपने तरीके से धमकाया और चेताया गया। सबसे ज्यादा मुश्किल हुई करण जौहर की फिल्म 'ए दिल है मुश्किल' के साथ।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के सुप्रीमों राज ठाकरे घोषणा कर दी कि उनकी फिल्म को किसी भी हालत में प्रदर्शित नहीं होने दिया जायेगा। जो पाकिस्तान भारत का कट्टर शत्रु है उसके यहां के कलाकारों की फिल्में भारत में दिखायी जाएं, हमें कतई मंजूर नहीं। जो फिल्म निर्माता दुश्मन देश के फिल्मी कलाकारों को करोडों की फीस देकर अपनी फिल्मों में अभिनय कराते हैं वे भी बख्शने के लायक नहीं हैं। उनका यह कृत्य राष्ट्रद्रोह है। करण जोहर के तो पसीने ही छूट गये। राज ठाकरे को मनाने के लिए उन्होंने हर उस चौखट पर शीश नवाया जो उन्हें इस मुश्किल से निजात दिला सकती थी। आखिरकार मामला प्रदेश के मुख्यमंत्री के दरबार तक जा पहुंचा। मुख्यमंत्री भी जैसे मध्यस्थता करने को तैयार बैठे थे। जिस गंभीर मसले की आसानी से नहीं सुलझने की उम्मीद की जा रही थी वह घण्टे भर में ही सुलझ गया! दरअसल, यह समझौता नहीं डील थी, जिसने राजनेताओं और सत्ताधीशों के काम करने के तौर-तरीकों को उजागर कर दिया। मनसे प्रमुख ने तीन शर्तें पूरी करने पर ही पाकिस्तानी कलाकारों वाली सभी फिल्मों के प्रदर्शन में रोडा नहीं अटकाने की बात मानी। पहली शर्त थी : जिन निर्माताओं ने पाकिस्तानी कलाकारों को लेकर फिल्में बनायी हैं उन्हें आर्मी रिलीफ फंड में पांच करोड रुपये देने होंगे। दूसरी शर्त थी : पाक कलाकारों वाली फिल्म की शुरुआत में सेना और शहीद सैनिकों के प्रति सम्मान जताने वाला संदेश देना होगा। कोई भी फिल्म निर्माता आगे से पाक कलाकारों को फिल्मों में काम नहीं देगा। यकीनन तीनों शर्तें, शर्तें कम चेतावनी ज्यादा हैं। यह चेतावनी किसी को भी दहशत के हवाले करने में सक्षम है। इस समझौते की खबर के मीडिया में छाते ही मुख्यमंत्री पर भी सवाल दागे जाने लगे कि आखिर उन्होंने बिचौलिए की भूमिका क्यों निभायी? सेना फंड के लिए किसी से भी भीख मांगने नहीं जाती। सेना को जबरन वसूली का मोहरा बनाने वाले यह कैसे भूल गये कि आर्मी वेलफेयर फंड में डोनेशन के लिए किसी को विवश करना सैनिकों का अपमान है। सैनिक तो देश के सच्चे सपूत हैं। भारत मां के कलेजे के टुकडे हैं। भारतीय वीरों की कुर्बानी का लंबा स्वर्णिम इतिहास है। यह इतिहास अनमोल है। जो लोग सैनिकों के सम्मान की बोली लगाने से नहीं हिचकते उनके लिए यकीनन धन ही सबकुछ है। धन से गलत भी सही हो जाता है। इस सोच ने देश को बहुत नुकसान पहुंचाया है। जिन नेताओं के हाथों में इस विशाल देश की बागडोर है उन्होंने पता नहीं क्यों असली समस्याओं को नजरअंदाज करने की आदत बना ली है। देश अनेकानेक समस्याओं से जूझ रहा है। भुखमरी व कुपोषण के चलते बच्चों की मौतों के आंकडे बढते चले जा रहे हैं। आज भी १९.४ करोड लोग भुखमरी का शिकार हैं। आम आदमी की मूलभूत समस्याएं हैं रोटी, कपडा और मकान। पहले इनका हल होना जरूरी है, लेकिन राजनीति और राजनेता भटकाने के काम में लगे हैं। उत्तरप्रदेश में कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं और राम नाम की लूट मच चुकी है। अभिनेता ने तो अपनी गलती का प्रायश्चित कर लिया, लेकिन इन नेताओं की बिरादरी का क्या... जो जोडना छोड तोडने और बांटने में लगी रहती है। गजलकार अदम गोंडवी की यह पंक्तियां काबिलेगौर हैं :
"हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेडिये
अपनी कुरसी के लिए ज़ज्बात को मत छेडिये
हममें कोई हूण, कोई शक कोई मंगोल है
दफन है जो बात, अब उस बात को मत छेडिये
ग़र गलतियां बाबर की थीं, जुम्मन का घर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेडिये
है कहां हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज खां
मिट गये सब, कौम की औकात को मत छेडिये
छेडिये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ
दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेडिये।"
'राष्ट्र पत्रिका' के सभी सजग पाठकों, लेखकों, संवाददाताओं, एजेंट बंधुओं, शुभचिंतकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।

No comments:

Post a Comment