Thursday, October 20, 2016

जंग की तैयारी

देश की राजधानी दिल्ली से ज्यादा दूर नहीं है मेरठ शहर। इसी बुलंद शहर में एक युवती अपने पति के साथ बाइक पर बाजार में सब्जी खरीदने जा रही थी। रविवार का दिन था। सडक पर अच्छी-खासी चहल-पहल थी। दोनों की नयी-नयी शादी हुई थी। रास्ते में दो बाइक सवार युवकों ने सजी-धजी युवती को देखते ही फब्तियां कसनी शुरू कर दीं। पति ने देखकर भी अनदेखा कर दिया। सडक छाप मजनूओं का हौसला ब‹ढ गया। वे अभद्रता पर उतर आये। पति ने बाइक की रफ्तार धीमी कर दी और उन्हें डांटा-फटकारा। उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की तर्ज पर युवकों ने दादागिरी करते हुए उनकी बाइक को जोरदार टक्कर मार दी। पति-पत्नी बाइक समेत सडक पर गिर पडे। पति के माथे से खून बहने लगा। उसने एक युवक का कालर पकडा तो दोनों युवकों ने उसकी अंधाधुंध पिटायी शुरु कर दी। आते-जाते लोग तमाशबीन बने रहे। वहां पर मौजूद दो पुलिस जवान भी चुपके से खिसकते बने। पति को पिटता देख युवती का खून खौल उठा। वह घायल शेरनी की तरह युवकों पर टूट पडी। उसने अपनी सैंडिल निकाली और धडाधड उनके माथे और सिर पर वार करने लगी। अंधाधुंध पिटायी से लहुलूहान युवकों ने वहां से भागने में ही अपनी भलाई समझी। मेरठ की इस खबर की तस्वीर अभी धुंधली भी नहीं हुई थी कि महाराष्ट्र के नारंगी शहर नागपुर की विचलित करने वाली खबरों ने हिलाने के साथ-साथ आश्वस्त भी किया कि नारी शक्ति अब संकोच और दकियानूसी सोच की दीवारों को लांघने और तोडने के लिए कमर कस चुकी है। संतरों की स्वास्थ्यवर्धक मिठास वाले शहर में एक मां को दो बेटियों को जन्म देने के कारण आधी रात को घर से निकाल दिया गया। भावना नामक महिला ने पुलिस स्टेशन में पहुंचकर अपना दर्द बयां करते हुए बताया कि उसने अंतरजातीय शादी की है। शादी के बाद पहली पुत्री पैदा हुई। पति तथा समस्त परिवार वालों को पुत्र की चाहत थी। ऐसे में जब उसने दूसरी बार भी बेटी को जन्म दिया तो उस पर प्रता‹डना का दौर शुरू हो गया। महिला का कहना है कि पति के साथ-साथ उसके ससुर ने भी अमानवीय व्यवहार किया। उस पर मायके से ५० हजार रुपये लाने के लिए दबाव डाला गया। यहां तक कि छोटी बच्ची को भी कई मारा-पीटा गया। पडोसियों ने अगर बीच-बचाव नहीं किया होता तो पति अब तक मेरी जान तक ले चुके होते। असहाय समझकर निर्दयी ससुराल वालों ने मुझे आधी रात को घर से बाहर कर दिया। उसके बाद मैंने अपने पिता को बुलवाया और नागपुर छोडकर अपने मायके बालोद (छत्तीसगढ) चली गई।
नागपुर की एक बारह वर्षीय बेटी एक दुष्कर्मी युवक की हवस की शिकार हो गयी। २० जुलाई २०१६ की रात ९ बजे वह कराटे का प्रशिक्षण लेकर अपने घर जा रही थी। रास्ते में उसे एक परिचित युवक मिला। वह उसे जबरन समीप स्थित एक खंडहरनुमा कर्मचारी क्वार्टर में ले गया। वहां पर उसने डरा-धमका कर यौन शोषण किया और फरार हो गया। माता-पिता को जैसे ही बेटी के साथ दुराचार होने की खबर मिली तो उनका मन-मस्तिष्क और आत्मा कराह उठी। किसी भी माता-पिता के लिए इससे ब‹डा दर्द और जख्म और कोई नहीं हो सकता। जिसने भी बालिका के साथ हुए दुराचार के बारे में सुना उसका खून खौल उठा। सभी ने दुष्कर्मी को मौत के घाट उतारने की मांग की। यह बालिका कराटे के प्रति पूरी तरह समर्पित है। कराटे ही उसका जुनून है। उसके साथ जब यह घिनौनी हरकत हुई तो वह कुछ दिनों बाद होने वाली कराटे की राष्ट्रीय स्पर्धा की तैयारी में तल्लीन थी। घरवालों ने मान लिया कि बेटी का भविष्य अंधेरे के हवाले हो गया है। सब कुछ लुट गया है। लेकिन बच्ची ने खुद को संभाल लिया। जब उसके कोच ने बच्ची से कहा कि इस साल तुम आराम करो, अगले साल खेलेंगे, तब बच्ची ने कहा कि सर ऐसा कभी हो नहीं सकता कि इस साल मैं न खेलूं। अगर आप साथ नहीं देंगे तो मैं अकेले खेलने जाऊंगी। यह बहादुर बेटी भले ही बदनामी के भय और पी‹डा के चलते घर में रोती-बिलखती रही, लेकिन चौथे दिन उसने यह निश्चय कर लिया कि किसी भी हालत में कुछ दिनों बाद होने वाली राष्ट्रीय स्पर्धा में भाग लेकर जीत हासिल करनी ही है। उसने पसीना बहाने में दिन-रात एक कर दिया और घटना के दसवें दिन राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीतकर यह बता दिया कि भारतीय बेटियां किस मिट्टी की बनी हैं। इसके पश्चात वह विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए दक्षिण अफ्रीका रवाना हो गई। इस बेटी का यही कहना था कि मैं सबकुछ भूलना चाहती हूं। केवल यही याद रखना है कि मुझे हर हाल में विजयी होना है। मुझे किसी भी हालत में अपने सपने पूरे करने हैं। अपनी शिष्या के ल‹डाकू तेवर देखकर कोच ने कहा कि मैंने अपने जीवन में ऐसा ज़ज्बा नहीं देखा। यह लडकी सदैव जीत की बात करती है। खेल के मैदान में प्रशिक्षण के दौरान उसका व्यवहार ऐसा रहता है मानो वह किसी जंग की तैयारी कर रही हो।
असीम आत्मबल, आत्मविश्वास और जागृति का ही परिणाम है कि कई भारतीय नारियां घुट-घुट कर मरने की बजाय अपने अधिकारों के लिए मर-मिटने से नहीं घबरातीं। फिर भी यही सच है कि इस देश में नारी आज भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है। इतनी बडी संख्या में बलात्कार, दहेज प्रताडना, एसिड अटैक और आनरकिqलग की शर्मनाक खबरें असली सच बयां कर देती हैं। यह हकीकत भी बेहद परेशान करने वाली है कि दुष्कर्म की अधिकांश घटनाएं दलित, गरीब और पिछ‹डे वर्ग की महिलाओं के साथ ही हो रही हैं। यह जानकर भी बेहद ताज्जुब होता है कि बेटियों की तुलना में बेटों को बेहतर मानने वालों में सम्पन्न और प‹ढे-लिखे लोग भी शामिल हैं। तामिलनाडु की मशहूर अभिनेत्री खुशबू लिखती हैं : 'मैं जब पैदा हुई तो अस्पताल में मुझे देखने के लिए पिता नहीं आए क्योंकि मैं कन्या थी। यह तब हुआ जब मैं तीन भाइयों के बाद पैदा हुई थी। इस देश में महिलाओं के लिए सम्मान क्यों नहीं है? उन्हें उपेक्षा की नजरों से क्यों देखा जाता है? पुरुष का मन होता है तो कभी उन्हें लक्ष्मी, कभी सरस्वती और कभी शक्ति का अवतार बता देता है...'
यह लोगों के न सुधरने का ही परिणाम है कि देश में सख्त दहेज विरोधी कानून होने के बावजूद दहेज लोभी बहुओं को आतंकित करने से बाज नहीं आते। यह भी अत्यंत चिंतनीय बात है कि ल‹डकियां अपने परिजनों के द्वारा ही ज्यादा शोषित और प्रताडित की जाती हैं। आंक‹डे बताते हैं कि नब्बे प्रतिशत बलात्कार परिचितों के द्वारा अंजाम दिए जाते हैं। गर्भ में लडकी को उसके परिवार वाले ही मारते हैं ल‹डके की चाहत में यदि लडकी हो जाए तो कूडे के ढेर के हवाले करने और कुत्तों से नुचवाने जैसी क्रूरता करने से भी बाज नहीं आते। बलात्कारियों के होश ठिकाने लगाने के लिए जो नया कानून बनाया गया है उसके अनुसार न्यूनतम सात वर्ष और अधिकतम उम्रकैद की सजा हो सकती है। फिर भी बलात्कार हैं कि थमने का नाम नहीं ले रहे। कानून के रखवाले अपना कर्तव्य किस तरह से निभाते हैं उसका पता मेरठ की घटना से चल जाता है। यदि वहां पर मौजूद खाकीवर्दी वाले घटनास्थल से भाग खडे होने के बजाय गुंडों पर डंडे बरसाते तो पुलिस की छवि कलंकित नहीं होती। उसके प्रति विश्वास जागता। अदालत के फैसलों में होने वाली देरी भी अराजकतत्वों का मनोबल बढाती है। जब तक समाज के लोग जागृत नहीं होंगे, अपराधों में कमी नहीं आएगी। तमाशबीन बने रहना भी अपने कर्तव्यों से भागना है और इस भयावह सच से मुंह मोडना है कि कल को हमारे घर की बहन-बेटियों पर भी शैतानों की गाज गिर सकती है। तब हम किसी को कोसने के भी अधिकारी नहीं होंगे।

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