Thursday, October 6, 2016

अंधभक्तों का तमाशा

महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल का नाम प्रदेश और देश के चतुर और दबंग नेताओ में शुमार रहा है। मुंबई के फुटपाथ पर आलू-प्याज बेचते-बेचते उनके मन में नेता बनने का ख्याल आया और वे राजनीति में कूद पडे। उन दिनों राजनीति के मैदान में सपने बेचने वाले नये नेताओं के लिए काफी गुंजाइश थी। दलितों और शोषितों के उद्धार के नारे लगाकर छगन ने सबसे पहले शिवसेना का दामन थामा। तब मुंबई में शिवसेना का सिक्का चलता था। शिवसेना सुप्रीमों बालासाहेब ठाकरे की एक दहाड पर गुंडे-बदमाशों की घिग्गी बंध जाती थी। बडे-बडे माफिया उनकी चौखट पर मस्तक झुकाते थे। भुजबल ने शिवसेना में रहकर राजनीति के सभी गुर सीखे और कमायी के रास्तों की खोज कर अपनी आर्थिक स्थिति सुधारी। जब शिवसेना की नैय्या डूबने लगी तो शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया। पवार ने भी दबे-कुचले लोगों के लिए अपनी आवाज बुलंद करने वाले इस मजबूत कद-काठी वाले नेता को हाथों-हाथ लिया। जब महाराष्ट्र में कांग्रेस, राकां गठबंधन की सरकार बनी तो भुजबल की निकल पडी। उन्हें महाराष्ट्र का उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री बनने का सौभाग्य हासिल हो गया। उन्होंने अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए रात-दिन एक कर दिया। मालामाल होने के लिए सभी तरह के हथकंडे आजमाने शुरू कर दिये। उन्हीं के कार्यकाल में तेलगी का अरबों-खरबों रुपयों का स्टैम्प घोटाला सामने आया। यह भी रहस्योद्घाटन हुआ कि इस 'क्रांतिकारी नेता' के नकली स्टाम्प घोटाला के नायक से बेहद करीबी रिश्ते हैं। तेलगी को तो जेल भेज दिया गया, लेकिन भुजबल पर कोई आंच नहीं आयी। वे भ्रष्टाचार की सभी हदें पार करते चले गये। मुंबई, पुणे, ठाणे नासिक में करोडों की जमीने, बंगले, फार्म हाऊस बनते चले गए। कई उद्योगधंधे शुरू हो गए। आयात-निर्यात के कारोबार में भी पांव पसार लिए। अपने भाई-भतीजों, रिश्तेदारों, यार-दोस्तों के नाम से सरकारी ठेके लेने के लिए हर मर्यादा को ताक पर रख दिया गया। मीडिया में उनके भ्रष्टाचार की खबरें छपती रहीं, लेकिन अपनी सरकार होने के कारण उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। प्रदेश की नयी सरकार ने जब अपना शिकंजा कसा तो पूरी दुनिया जान गयी कि छगन और उसके परिवार के पास हजारों करोड की धन-दौलत है। यह सारी माया सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होने के बाद जुटायी गयी। कोई आंख का अंधा भी समझ सकता है कि छगन कोई धर्मात्मा नहीं है। उसने राजनीति को भ्रष्टाचार का अखाडा बनाकर अपार धन-दौलत के अंबार खडे किये। ऐसे लुटेरे की असली जगह तो जेल ही है। लेकिन उसके अंध भक्त बडे भोले बनकर सवाल करते हैं कि जब दूसरे भ्रष्टाचारी बाहर हैं तो दलितों और शोषितों का यह मसीहा सलाखों के पीछे क्यों सड रहा है? छगन को जेल से छुडाने की मांग को लेकर नाशिक में एक विशाल मोर्चा निकाला गया। मोर्चों में एक लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए। जगह-जगह अपने नेता के समर्थन में बैनर और पोस्टर लगाये गये थे। समर्थक बेहद गुस्से में थे। उनका कहना था कि ओबीसी नेता पर सरकार अन्याय कर रही है। यदि उन्हें नहीं छोडा गया तो इसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे। वे पूरी तरह से निर्दोष  हैं। उन्हें उन लोगों ने फंसाया है जो उनके राजनीतिक उत्थान से जलते हैं।
राजद के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को भी दोबारा जेल में भेजे जाने से उनके समर्थकों के तन-बदन में आग लग गयी। ऐसा कम ही देखने में आता है कि सरकार में शामिल कोई पार्टी सरकार के खिलाफ ही प्रदर्शन करने पर उतारू हो जाए। बाहुबली, हत्यारे, लुटेरे, आतंकी शहाबुद्दीन के जबरदस्त प्रभाव का ही कमाल कहेंगे कि आरजेडी समर्थकों ने सरकार पर शहाबुद्दीन को एक साजिश के तहत दोबारा जेल भेजने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ नारेबाजी की। शहाबुद्दीन के अंध भक्तों ने मीडिया को भी अपना निशाना बनाया। उनका मानना था कि शहाबुद्दीन के जमानत पर छूटने के बाद जिस तरह से मीडिया ने हो-हल्ला मचाया उनके पुराने इतिहास के पन्ने खोलकर दहशत पैदा की, उससे उन्हें फिर से जेल जाना पडा। अपराधियों के लिए राजनीति वाकई कवच का काम करती है। राजनीति में पदार्पण करने के बाद शातिर से शातिर अपराधी लोगों को भ्रमित करने की कला में पारंगत हो जाते हैं। कब क्या बोलना और बुलवाना है इसका उन्हें पूरा ज्ञान हो जाता है। वे यह भी जानते हैं उनके चहेतों को छोडकर दूसरे उनकी बातों पर यकीन नहीं करते। पटना हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद जेल से छूटे शहाबुद्दीन का जिस तरह से आदर सत्कार किया गया उससे उसने खुद को बहुत बडा नेता मान लिया। बदनामी और लोकप्रियता के अंतर को वह समझ ही नहीं पाया। सच तो यह है  कि राजनीति में पैठ जमाने वाले अपराधियों के हौंसले बुलंद करने की बहुत बडी वजह होते हैं उनके वे अंधभक्त जो हर वक्त पलक पावडे बिछाने को तत्पर रहते हैं और किसी भी हालत में उनका साथ नहीं छोडते। शहाबुद्दीन जितने दिन भी बाहर रहा, उसके घर मेला-सा लगा रहा। सैकडों लोग उसके इर्द-गिर्द बने रहे। भ्रष्टाचारियों के सरगना लालू प्रसाद यादव को अपना एकमात्र नेता मानने वाला शहाबुद्दीन भी यही कहता है कि मीडिया ने मुझे बेवजह बदनाम कर दिया है। मैंने तो एक चिडिया तक नहीं मारी। छगन भुजबल के समर्थकों की तरह उसके समर्थक भी उसे मसीहा ही मानते हैं...।

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