Thursday, January 12, 2017

चीनी और चींटियाँ

"छोटे कपडों के कारण ही लडकियों से छेडखानी होती है। जो लडकियां छोटे कपडे पहनती हैं उन्हें आधुनिक माना जाता है। लडके-लडकियों को इधर-उधर घूमने की छूट नहीं मिलनी चाहिए। जहां चीनी होगी, वहां चींटियाँ तो आएंगी ही।" यह भद्दे विचार हैं एक समाजवादी नेता के... जो उन्होंने बंगलुरू में नये साल की पूर्व संध्या पर जश्न मनाने के लिये जुटी युवतियों के साथ की गयी बदतमीजी के बाद प्रकट किए। इसी तरह से एक मंत्री ने भी बेतुका बयान देते हुए कहा कि लडकियों को आधुनिक पहनावे में देखकर युवक इतने अधिक उत्तेजित हो जाते हैं कि उनका खुद पर नियंत्रण नहीं रह पाता। नेताओं की यह ओछी सोच यकीनन यही दर्शाना चाहती है कि महिलाओं के साथ अभद्रता के साथ पेश आनेवाले छिछोरे 'मर्द' कतई दोषी नहीं हैं। असली कसूरवार तो वे युवतियां हैं जो इस आजाद देश में अपने मनचाहे पहनावे में घूमने निकल पडती हैं। पुलिस की तैनाती के बाद भी उन्हें मनचलों की छेडछाड और अश्लील टिप्पणियों से दो चार होना पडता है। बंगलुरू का विख्यात एमजी रोड जहां कई सीसीटीवी कैमरे लगे थे, हर कोना रोशनी में नहा रहा था, लोगों की भीड थी, वहां पर लडकियों को पकडा और दबोचा गया। उनके कपडे फाडे गए। घोर ताज्जुब कि वहां पर लगभग १५०० पुलिसवाले भी तैनात थे।
जिस बंगलुरू को सभ्य, शालीन, अनुशासित और समृद्ध लोगों का शहर माना जाता है वहां पर ३१ दिसंबर की रात ऐसी घिनौनी और घटिया हरकतों का होना बेहद डराता और चिंतित करता है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि सतर्क और समझदार लोग भी हैवानियत के नंगे नाच को देखकर तमाशबीन बने रहते हैं या फिर अनदेखा कर देते हैं? दिल्ली विश्वविद्यालय की एक महिला प्रोफेसर को नववर्ष २०१७ ने एक ऐसा उपहार दिया जिसे वे कभी नहीं भूल पाएंगी। उन्हें सार्वजनिक जगह पर बेवजह गाली-गलौच और मारपीट का शिकार होना पडा। वे कॉलेज में कक्षाएं लेने जा रही थीं। पेट्रोल भराने के लिए उन्होंने पेट्रोल पम्प पर अपनी कार रोकी। कार से निकलकर पैसे देकर वे वापस बैठने जा रही थीं, तभी उल्टी दिशा से स्कूटी पर आये एक नकाबपोश युवक ने उनके पर्स पर झपटा मार दिया। पर्स के साथ वे भी घसिटती चली गर्इं। उन्होंने जोर लगाकर अपने पर्स को युवक के हाथ से खींचा तो वह नीचे गिर गया। नीचे गिरते ही उसने गालीगलौच व धमकाना शुरू कर दिया। प्रोफेसर के विरोध करने पर बदमाश ने उनपर थप्पड और घूसों की बरसात कर दी। प्रोफेसर का चश्मा टूट कर नीचे गिर गया। वहां पर खडे लोग तमाशा देखते रहे। युवक के भाग जाने के बाद पेट्रोल पम्प पर खडे कुछ लोग प्रोफेसर के पास आए और पेट्रोल भरनेवाले लडके को डांटने लगे कि उसने युवक को रोका क्यों नहीं। बदतमीज युवक को डांटना-फटकारना उसकी जिम्मेदारी थी। एक-दो ऐसे भी निकले जिन्होंने अफसोस जताते हुए प्रोफेसर से कहा कि वे तो यही समझ रहे थे कि वह आपका पति हैं। इसलिए हमने बीच-बचाव करने की जरूरत नहीं समझी। प्रोफेसर ने फेसबुक पर अपने दर्द को व्यक्त करते हुए लिखा, "यह समाज को क्या हो गया है? अगर वह मेरा पति भी होता तो क्या कोई किसी भी औरत को यूं ही पिटते देखना सहज महसूस करता है? औरतों के लिए कोई जगह सुरक्षित नहीं है। ठग और मनचले गलियों में खुलेआम घूम रहे हैं। मेरे साथ खुलेआम हिंसा हुई, जिसके जख्म मेरे शरीर पर हैं। इससे ज्यादा मैं इस बात पर हैरत में हूं कि खुलेआम कोई भी किसी महिला को मौत का भय दिखाकर उसके साथ मारपीट, गालीगलौच और यौन हिंसा कर सकता है। महिला पर हमला होता है, उसके साथ यौन हिंसा होती है और लोग बस तमाशा देखते रहते हैं।"
बदमाशों और सडक छाप मजनूओं की पैरवी करने वालों के खिलाफ देशभर में गुस्सा फूटता देखा गया। एक अभिनेत्री ने खुलकर अपनी बात रखी, "लडकियों के साथ होने वाली अभद्रता के बाद हमेशा लडकी के कपडे, उसके अकेले होने या फिर उसके गलत समय पर बाहर रहने जैसे विषय उठाए जाते हैं। ऐसी हर घटना के बाद कहीं न कहीं लडकी को ही जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। सवाल यह है कि अगर लडकियां छोटे कपडे पहनकर पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण कर रही हैं, तो जो ल‹डके उन्हें छेडते हैं क्या वह भारतीय सभ्यता की नकल कर रहे हैं? क्या यह इतने पतित और कमजोर हैं कि किसी भी युवती को देखकर उत्तेजित हो जाते हैं?
बंगलुरू की शर्मनाक घटना के बाद आये निष्कृष्ट और आपत्तिजनक बयानों ने सजग फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार का खून खौला दिया। उन्होंने चेतावनी देने के अंदाज में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि, "दिल से बोलूं... आज मुझे अपने इंसान होने पर शर्म आ रही है। अपनी बेटी को गोद में उठाए एयरपोर्ट से निकल ही रहा था कि टीवी पर आ रही एक खबर पर नजर पडी। बंगलुरू में नए साल में खुलेआम सडक पर कुछ लोगों की वहशियत का नंगा नाच देखा। उसे देखकर पता नहीं आप लोगों को कैसा लगा, लेकिन भगवान कसम, मेरा खून खौल उठा। एक बेटी का बाप हूँ। अगर ना भी होता तो यही कहता कि जो समाज अपनी औरतों को इज्जत नहीं दे सकता, उसे अपने आप को इंसानी समाज कहने का कोई हक नहीं। सबसे शर्म की बात पता है क्या है? कुछ लोग राह चलते एक लडकी के हैरेसमेंट को उचित ठहराने की औकात रखते हैं। लडकी ने छोटे कपडे पहने क्यों? लडकी रात में घर से बाहर गई क्यों? ऐसे सवाल करते हैं। शर्म करो। छोटे लडकी के कपडे नहीं, छोटी आपकी सोच है। भगवान न करे जो बंगलुरू में हुआ है, वह आपकी बहन या बेटी के साथ हो। ये बदतमीजी करने वाले किसी दूसरे ग्रह से नहीं आए हैं। ये हमारे यहां से ही हैं। हमारे आपके घरों से ही हैं। हमारे बीच ही घूमते हैं ये दरिंदे। अभी भी वक्त है, सुधर जाओ। वर्ना जिस दिन इस देश की बेटी ने पलटकर जवाब दिया ना, सुधरोगे नहीं, सीधा ऊपर सिधार जाओगे। लडकियों से भी मैं कुछ कहना चाहूंगा। लडकियां किसी भी तरह लडकों से अपने आप को कमजोर न समझें। आप अपनी सुरक्षा के लिए पूरी तरह काबिल बन सकती हैं। ऐसे लडकों को संभालने की ऐसी छोटी और आसान टेक्निक्स हैं मार्शल आर्ट्स में। किसी में इतना दम नहीं कि आपकी मर्जी के बिना आपको हाथ भी लगा सके। आपको डरना नहीं है। बस अलर्ट रहो। सेल्फ डिफेंस सीखो। क्योंकि पुरुष नहीं सुधरेंगे, इसलिए वक्त है कि औरतें इस सुधार को अपने हाथों में लें। और हां, अगली बार आपके कपडों पर आपको कोई ज्ञान देने की कोशिश करे, तो उससे कहना कि अपनी सलाह अपने पास रखिए और अपने काम पर ध्यान दीजिए, मुझ पर नहीं।"
केंद्रीय मंत्री वी.के.सिंह ने छेडखानी की घटनाओं पर खेद जताते हुए कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूं कि हमारी मौजूदा प्रणाली महिलाओं के खिलाफ अपराध से निपटने में प्रभावी नहीं है। ऐसे में हमें दूसरे देशों से सीख लेनी चाहिए जो इस बुराई से सफलतापूर्वक निपट रहे हैं। यौन अपराधियों का रासायनिक बंध्याकरण आज के समय की बहुत ब‹डी जरूरत है। जब तक आदतन दुराचारियों को ऐसा कडा दंड नहीं मिलता तब तक देश में व्याभिचारियों के सुधरने के आसार नज़र नहीं आते।

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