Thursday, February 2, 2017

कफन पर लिखी पीडा

लानत है इन नेताओं पर जो हमेशा रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के खात्मे का ढोल पीटते हैं और चुनाव के दौरान मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त सामान देने का रिश्वती जाल फेंकते हैं। उत्तरप्रदेश में मुलायम के बागी पुत्र अखिलेश ने अपने समाजवादी घोषणा पत्र में फिर से उनकी सरकार बनने पर स्कूल जाने वाले हर बच्चे को एक किलो देसी घी और महिलाओं को प्रेशर कुकर देने का वादा किया है। पिछली बार भी अखिलेश ऐसे ही मुफ्तखोरी के वादे कर सत्ता पाने में कामयाब हुए थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने कितने छात्रों को लैपटाप के लालीपाप बांटे यह तो शोध का विषय है, क्योंकि शासक जितना करते है उसका हजार गुणा ज्यादा ढिंढोरा पीटते हैं। वोट हासिल करने के लिए नेताओं का मतदाताओं को रिश्वत देने का तरीका बदल चुका है। पहले कैश, कंबल, साडियां और शराब छुप-छिपा कर बांटी जाती थी, अब डंके की चोट पर प्रलोभन दिया जा रहा है। अपनी पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में यह लोग इस अंदाज से मतदाताओं को लुभाने का अभियान चला रहे हैं जैसे अपना घर लुटाने की तैयारी कर चुके हों। सत्ता में आने के बाद बडी बेदर्दी से सरकारी धन लुटा कर अपने चुनावी वायदे पूरे करने का नाटक करने वाले इस देश के नेताओं के असली चरित्र को समझना कोई टेढी खीर तो नहीं है। सच सभी के सामने है।
लगभग सभी राजनीतिक दल और उनके कर्ताधर्ता एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। वोटरों को ललचाने के लिए किसी भी हद तक गिरने को तत्पर रहते हैं। भारतीय जनता पार्टी को देश की स्वाभिमानी और गरिमामय पार्टी माना जाता है। इस पार्टी ने भी पंजाब में दोबारा सत्ता में आने पर नीले राशन कार्ड धारकों को २५ रुपये प्रति किलो की दर से देसी घी देने का वादा किया है। गौरतलब है कि पंजाब में भाजपा और अकाली दल का गठजोड है। अकाली दल ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में हर गांव में मुफ्त वाई-फाई और क्लोज सर्किट टीवी देने की घोषणा कर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए धर्म संकट खडा कर दिया है। वैसे इन दोनों पार्टियों का दावा है कि यदि मतदाताओं ने उन्हें मौका दिया तो वे पंजाब में जहां-तहां फैले नशे के कारोबार को खत्म करके ही दम लेंगी। आम आदमी पार्टी तो नशे के खिलाफ कुछ ज्यादा ही आवाज बुलंद कर रही है। वह सत्ता पर काबिज होते ही कांग्रेस और अकाली दल के ऐसे नेताओं को जेल में ठूंसने की बात कह रही है जो वर्षों से नशे के काले कारोबार में लिप्त हैं और उन्होंने पंजाब के लाखों-लाखों युवाओं को नशे की लत के हवाले कर दिया है। यह भी सच है कि आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान खुद अक्खड शराबी हैं। संसद में नशे में टुन्न होकर जाने का उनका पुराना इतिहास है। चुनाव प्रचार के दौरान भी वे नशे में धुत होकर पार्टी का प्रचार करने के लिए जा पहुंचे, जहां उन्हें खुद को संभालना ही मुश्किल हो गया। चुनावी मंच पर उनके अनियंत्रित होने की तस्वीरें मीडिया में छायी रहीं। पंजाब में नशाखोरी की हकीकत से बच्चा-बच्चा वाकिफ है। प्रदेश में पिछले तीन दशकों से लगातार बढती यह समस्या अब बेकाबू हो चुकी है। राज्य में लगभग दस लाख लोग हेरोइन जैसी जानलेवा ड्रग के पूरी तरह से आदी हो चुके हैं। पंजाब के बुजुर्ग बताते हैं कि नशे की शुरुआत अफीम से हुई। तब लोगों को मुनाफा कमाने का यह आसान तरीका लगा। कई नेताओं ने नशे के कारोबार में सक्रिय भूमिका निभाकर अरबों-खरबों कमाये। पंजाब में नशाखोरी को सिर्फ बेरोजगारी और अशिक्षा से नहीं जो‹डा जा सकता। यहां नशे के आदी लोगों में ८९ फीसदी साक्षर या पढे लिखे लोग हैं और ८३ फीसदी के पास रोजगार है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि ड्रग के नाम पर महज चुनावी पतंग उडाई जा रही है या फिर राजनीतिक दलों और नेताओं के स्थायी समाधान तलाशने के भी कोई पुख्ता इरादे हैं? पंजाब में ऐसे कई पिता हैं जिन्होंने ड्रग्स के चलते अपने जवान बेटे खोये हैं। उन्हीं में से एक हैं मुख्तियार सिंह, जो इस चुनावी मौसम में ड्रग्स के खिलाफ प्रचार करते धूम रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बेटे के कफन पर अपना दुखडा लिखकर भेजा है। उनका बेटा मंजीत दिन-रात ड्रग्स लेता था जिससे उसकी मौत हो गई। ४६ वर्षीय मुख्तियार कहते हैं कि सत्ता के भूखे सभी नेता सब कुछ जानते हैं, लेकिन पंजाब के सुधार के लिए कुछ नहीं करते हैं। मैं एक ऐसा बदनसीब बाप हूं जिसे अपने जवान बेटे की लाश को श्मशान लेकर जाना पडा। नेताओं की कौम उनके दर्द को नहीं समझ सकती। मैं नहीं चाहता कि किसी अन्य बाप को अपना बेटा खोना पडे इसलिए ड्रग्स के खिलाफ लडते-लडते इस दुनिया से विदा होना चाहता हूं। ड्रग्स के खिलाफ जंग में उनकी पत्नी भी उनके साथ है। वे हर रोज सुबह से शाम तक ड्रग्स के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए लोगों के बीच जाते है। यकीनन पंजाब के विधानसभा चुनाव प्रचार में नशे का मुद्दा उफान पर है। कांग्रेस के बागी उम्मीदवार संदीप सिंह मन्ना पंजाब में नशे के बेपनाह चलन पर चिन्ता व्यक्त करते हुए निम्न पंक्तियों को अपने भाषण के दौरान गाना नहीं भूलते,
"इक रोई सी धी (बेटी) पंजाब दी,
तू लिख-लिख मारे वैण।
आज्ज लखां धियां रोंदिया तैनू
वारिस शाह नू कैण।"
मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम के द्वारा देश के विभाजन के दौरान लहुलूहान पंजाब की स्थिति पर लिखी गई इस कविता में पंजाब के मशहूर सूफी कवि वारिस शाह को उलाहना दिया गया है कि आज पंजाब की लाखों बेटियां रो रही हैं, तुम कहां हो? वैसे यह सवाल आज के राजनेताओं से भी है जो अपने स्वार्थ में इस कदर अंधे हो गये हैं कि उन्हें सत्ता के सिवाय और कुछ नहीं दिखायी देता! देश के गरीबों, दलितों, शोषितों और वंचितों को मुफ्त में गेहूं, दाल, चावल, घी आदि देने का वादा कर सत्ता पाने वाले नेता हमेशा 'दाता' बने रहना चाहते हैं और जनता को  सक्षम बनाने की बजाय 'पाता' यानी मुफ्तखोर बनाये रखना चाहते हैं। ध्यान रहे कि मुफ्तखोरी अच्छे-खासे इंसान को निकम्मा, आरामपरस्त और अपराधी बना देती है और ऐसे में ही 'खाली दिमाग शैतान का घर' की कहावत साकार होती है। शैतानों को व्यसनी और व्याभिचारी बनने में भी देरी नहीं लगती।

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