Thursday, March 30, 2017

उदार और गद्दार

"सुकमा में शहीद जवानों के परिजनों को फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार ने दिए ९-९ लाख।"
इस खबर को पढकर देश के जवानों और किसानों की चिन्ता करने वाले अभिनेता के प्रति जो आदरभाव उपजा उसे शब्दों में बयां कर पाना संभव नहीं है। हिन्दुस्तान में ऐसे कितने लोग हैं जो ऐसी दरियादिली और उदारता दिखाते हैं? यकीनन बहुत ही कम। यहां पर तो बेकार का हो-हल्ला मचाने वालों की भरमार है। जो राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ति पर भाषण देकर तालियां बजवाते हैं और फिर चलते बनते हैं। गौरतलब है कि ११ मार्च २०१७ के दिन छत्तीसगढ के सुकमा जिले में भेज्जी परिसर में नक्सलियों ने ड्यूटी पर तैनात सीआरपीएफ के १२ जवानों की निर्मम हत्या कर दी थी। जांच अधिकारियों का मानना था कि नक्सली थिंक टैंक और नक्सलियों के लिए अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क तैयार करने वाले दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्राध्यापक जी.एन. साईबाबा को अदालत द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाकर जेल भेज दिये जाने का गुस्सा नक्सलियों ने इस वारदात को अंजाम देकर निकाला है। सुकमा में शहीद हुए बारह जवानों के परिजनों तक ९-९ लाख की सहायता पहुंचाने वाले अक्षय कुमार महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित किसानों की भी सतत मदद करते चले आ रहे हैं। पिछले वर्ष अभिनेता ने जब न्यूज चैनलों और अखबारों के माध्यम से यह जाना कि महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में सूखे के कारण किसान कर्जग्रस्त होते चले जा रहे हैं और आत्महत्या करने को विवश हैं तो वे विचलित हो उठे। उन्होंने तकरीबन १८० परिवारों (प्रति परिवार ५० हजार) की आर्थिक मदद की। उसके बाद तो यह सिलसिला ही चल पडा। अपनी एक्टिंग का लोहा मनवा चुके अभिनेता नाना पाटेकर भी जरूरतमंदों की सहायता करने को सदैव तत्पर रहते हैं। महाराष्ट्र के किसानों की खुदकुशी ने इस नायक को भी बेहद आहत किया। उन्होंने महाराष्ट्र के अलग-अलग इलाकों में जाकर आत्महत्या करने वाले किसानों की विधवाओं को आर्थिक सहायता देने का जो सिलसिला चलाया है, उससे कई लोगों को प्रेरणा मिली है। अक्षय कुमार को भी प्रेरित करने का श्रेय नाना पाटेकर को जाता है। नाना पाटेकर ने मराठी अभिनेता मकरंद अनासपुरे के साथ मिलकर 'नाम' नामक संस्था की शुरुआत की है जो कृषक परिवारों की मदद के लिए दिन-रात लगी रहती है। साउथ और बालीवुड के सुपर स्टार रजनीकांत भी सिर्फ फिल्मों में ही नहीं, वास्तविक जीवन में भी असली नायक हैं। वे अपनी कमाई का सत्तर से अस्सी प्रतिशत हिस्सा जनसेवा में खर्च कर देते हैं। कुछ साल पहले चेन्नई में आयी बाढ में उन्होंने अपना जन्मदिन नहीं मना के १० करोड रुपये बाढ प्रभावित लोगों में दान कर दिए थे। विप्रो के संस्थापक अजीम प्रेमजी की दरियादिली भी बेमिसाल है। प्रेमजी विप्रो के ५३,००० करोड के शेयर एक धर्मार्थ संस्था को दान कर चुके हैं। वे खुद के साथ-साथ अन्य उद्योगपतियों, रईसों को भी सामाजिक कार्यों में आगे आकर योगदान करने की गुजारिश करते रहते हैं। देश और दुनिया के करोडों लोगों को क्रिकेट का दिवाना बनाने और क्रिकेट का भगवान कहलाने वाले सचिन तेंदूलकर भी समाजसेवा में अग्रणी हैं। वे हर साल करीब दो सौ गरीब बच्चों की शिक्षा, रहन-सहन, खान-पान और अन्य आवश्यक खर्च उठाते हैं। सचिन ऐसी कई जनसेवी संस्थाओं से भी जुडे हैं जो बिना किसी शोर-शराबे के दीन-दुखियों की सेवा करना अपना कर्तव्य समझती हैं। अपने देश में एक से एक मानवता के पुजारी हैं वहीं दूसरी तरफ कुछ काले चेहरे ऐसे भी हैं जो देशवासियों को आहत करते रहते हैं। उनके क्रियाकलाप इतने शर्मनाक हैं कि सजग भारतीयों का खून खौल उठता है। देश के कुछ शिक्षण संस्थान भी आतंकवादियों को प्रक्षय देने के अड्डे बन चुके हैं। यहां पर उन उमर खालिदों और कन्हैया कुमारों की पीठ थपथपायी जाती है जो देश के दुश्मनों के नाम की आरती गाते हैं और भारत माता के टुकडे करने के नारे लगाते हैं। माना तो यही जाता है कि शिक्षक छात्रों के अच्छे भविष्य का निर्माण कहते हैं, लेकिन इसी देश में जी.एन. साईनाथ जैसे मुखौटेबाज भी है जिनकी असली जगह जेल ही है। देश के बहादुर जवानों का खून बहाने वाले नक्सलियों के हिमायती साईबाबा जैसों की शैतानी विद्वता के कारण ही नक्सली समस्या का अंत होता नहीं दिखता। साईबाबा नब्बे फीसदी दिव्यांग है। उसे देखकर किसी को भी उस पर दया आ सकती है। कोई सोच भी नहीं सकता ऐसा दिव्यांग व्यक्ति इतना शातिर हो सकता है। उसकी लाचारी पर ही तरस खाकर डीयू के रामलाल कालेज में उसे नौकरी प्रदान की गई थी। उसे कॉलेज में रखा तो गया था छात्रों को अंग्रेजी साहित्य पढाने के लिए, लेकिन उसने तो नक्सलियों से रिश्ते बना लिए। दरअसल नक्सलियों के प्रति उसके मन में शुरू से अपार सहानुभूति थी। दिव्यांग होने के कारण अदालत भी उसे जमानत देती रही और वह इसका गलत फायदा उठाते हुए देश और विदेशों में आयोजित अनेक नक्सली सेमिनारों में भाग लेकर नक्सलियों को खून-खराबे के पाठ पढाता रहा। नक्सलियों की मदद करने और भारत के खिलाफ युद्ध का षड्यंत्र चलाने के आरोप में साईबाबा को उम्र कैद की सजा सुनायी गयी है। साईबाबा के समर्थक इस सजा को ही गलत ठहरा रहे हैं। साईबाबा जैसे दुष्टों की फितरत से वाकिफ बुद्धिजीवियों ने सही ही कहा है कि नक्सलियों का मनोबल बढाने वाले साईबाबा को दोषी करार दिए जाने से उन वामपंथियों के चेहरे बेनकाब हुए हैं जो नक्सलियों के प्रति अपार सहानुभूति रखते हैं।अब वक्त आ गया है जब साईबाबा की जमात के और भी काले चेहरों की शिनाख्त कर उन्हें जेल में डाल दिया जाना चाहिए। यह लोग खुली हवा में सांस लेने के हकदार नहीं हैं।

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