Thursday, September 21, 2017

जवाब मांगते सवाल

एक जमाना था जब स्कूल, पाठशाला का नाम लेते ही आंखों के सामने देवी-देवताओं की मूर्तियों से सुसज्जित मंदिर की तस्वीर घूमने लगती थी। माता-पिता अपने बच्चों को इस मंदिर में भेजकर गर्वित होते थे। उन्हें वहां पर अपनी संतानों के पूर्णतया सुरक्षित होने का भरोसा रहता था। मां-बाप सबकुछ मंदिर के भगवान पर छोड देते थे। मास्टरजी भी अपने छात्रों को अपनी औलादों की तरह ज्ञान, स्नेह और सुरक्षा प्रदान करते थे। वक्त पडने पर डंडे से कुटायी भी कर देते थे। अभिभावकों को भी कोई आपत्ति नहीं होती थी। वक्त बदलने के साथ-साथ स्कूल, पाठशालाएं भी बदल गयीं और मास्टर साहब भी। बीते सप्ताह गुरुग्राम में स्थित एक नामी स्कूल, जिसे रायन इंटरनैशनल स्कूल के नाम से पूरे देश में जाना जाता है, में हुई प्रद्युम्न नामक सात साल के बच्चे की निर्मम हत्या ने समस्त सजग देशवासियों को हिलाकर रख दिया। दरअसल, यह हत्या उस भरोसे की हुई जिस भरोसे से बच्चों को पढने और संस्कारित होने के लिए स्कूल भेजा जाता है। माता-पिता को जब अपने बच्चे की बर्बर हत्या की खबर मिली तो वे अपनी सुध-बुध खो बैठे। उनके लिए उनका बेटा ही उनके जीने का एकमात्र मकसद था। उनके सारे सपने चकनाचूर हो गए। आज भी मां के सामने बार-बार बेटे का चेहरा घूमने लगता है, जिसे वह रोजाना स्कूल के लिए तैयार करती थी। उसने उसे बडा आदमी बनाने के लिए अपनी सभी इच्छाओं को तिलांजलि दे दी थी। बेटी बडी है और बेटा छोटा था। बेटे को स्विमिंग, साइकलिंग और क्रिकेट का काफी शौक था। वह कहता था कि मुझे विराट कोहली बनना है। दिनभर घर में क्रिकेट का बैट लेकर घूमता रहता था।
मां को हवाई जहाज में सारी दुनिया घुमाने की बातें करने वाले बेटे की तस्वीर को निहारती मां के मुंह से बार-बार यही शब्द निकलते हैं कि मेरे बेटे के साथ जो हुआ वह दुनिया में किसी बच्चे के साथ न हो। शिक्षा को कारोबार और व्यापार बनाने वाले निजी स्कूलों की बहुत लंबी श्रृंखला है। अधिकांश स्कूल अंधाधुंध कमायी का जरिया बन गए हैं। यह भी जान लें कि अधिकतर प्रायवेट स्कूल नेताओं, मंत्रियों, तथाकथित समाज सेवकों, उद्योगपतियों और धन्नासेठों के द्वारा चलाये जा रहे हैं। यह ऐसी जमात है जिसका एकमात्र लक्ष्य धन कमाना है। इनमें से अधिकांश खुद अंगूठा छाप हैं, लेकिन बडे-बडे डिग्रीधारियों को अपने इशारे पर नचाते हैं। दरअसल इनके लिए स्कूल, कालेज और अस्पताल चलाना धंधा बन गया है। सरकारें भी इन पर मेहरबान रहती हैं। कौडी के दाम पर जमीनें दे दी जाती हैं। महाराष्ट्र में कई नेता ऐसे हैं जिनके बीसियों स्कूल, कालेज, अस्पताल चल रहे हैं। राकां के दिग्गज नेता प्रफुल्ल पटेल के तो चालीस से ज्यादा स्कूल, कालेज दौड रहे हैं। मेडिकल और इंजिनियरिंग कालेजों में प्रवेश के नाम पर लाखों की वसूली की जाती है। फीस भी अच्छी-खासी होती है। इनके यहां चलने वाली भर्राशाही की तरफ शासन और प्रशासन का बहुत कम ध्यान जाता है। धंधेबाजों के हाई-फाई स्कूलों की मनमानी और लापरवाही की वजह से सतत दिल दहलाने वाली घटनाएं सामने आती रहती हैं। धन के बल पर स्कूलों के प्रबंधक, मालिक तमाम कायदों और दिशा-निर्देशों को जूते की नोक पर रखते हैं और छात्र-छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार, दुराचार एवं हत्याओं तक की खबरें सुर्खियां पाती रहती हैं। दो वर्ष पूर्व बंगलुरु में एक नामी-गिरामी स्कूल में पढने वाली पहली कक्षा की छात्रा पर एक नरपशु जिम इंस्ट्रक्टर ने बलात्कार का जुल्म ढाया था। इस शर्मनाक घटना के विरोध में अभिभावकों और स्थानीय लोगों ने जमकर विरोध प्रदर्शन और तोडफोड की थी। इसी तरह से मुंबई में इसी वर्ष के अगस्त महीने में विख्यात सेठ जुग्गीलाल पोद्दार स्कूल में चार साल की एक मासूम बच्ची बलात्कार का शिकार हुई। बलात्कारी स्कूल का ही चपरासी था।
राजस्थान के बीकानेर के एक निजी स्कूल में तेरह साल की छात्रा के साथ आठ शिक्षकों ने डेढ साल तक बलात्कार किया। इतना ही नहीं यह दुष्ट, छात्रा की अश्लील क्लिप बनाकर उसे लगातार ब्लैकमेल और प्रताडित करते थे जिसके चलते उसे समर्पण हेतु विवश होना पडता था। बलात्कारी शिक्षक स्कूल की छुट्टी हो जाने के बाद उसे कमरे में जबरन बंद कर मनमानी करते थे। पीडिता कहीं गर्भवती न हो जाए इस भय से बलात्कारी शिक्षकों ने उसे इतनी अधिक मात्रा में गर्भ निरोधक गोलियां जबरन खिलायीं जिससे उसे कैंसर हो गया। यह सच भी बेहद चौंकाने वाला है कई पब्लिक स्कूलों के एकदम निकट शराब की दुकानें खुली हुई हैं जहां पर लडते- लुढकते शराबियों का जमावडा लगा रहता है। रायन इन्टरनैशनल स्कूल के समीप खुली दारू की दुकान लोगों के गुस्से का शिकार हो गयी। यहां पर भी बच्चों के सामने आपत्तिजनक गतिविधियां चलती रहती हैं। शराबी छात्राओं के साथ बेखौफ छेडछाड करते हैं। स्कूल की छुट्टी के बाद खुलेआम शराबियों को शराब पीते देखकर बच्चों पर क्या असर पडता होगा इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। देश के विभिन्न शहरों में चलने वाले पब्लिक स्कूलों के निकट खुली शराब की दुकानों से न स्कूल संचालकों को कोई फर्क पडता है और न ही प्रशासन के दिमाग की घंटी बजती है। बार-बार यही सवाल उठता है कि १०० मीटर के दायरे में शराब की दुकान खोलने की अनुमति कैसे मिल जाती है? यकीनन यह सब धन की माया है। छात्र-छात्राओं की सुरक्षा के प्रति घोर लापरवाही बरतने वाले स्कूल प्रबंधक जानबूझकर इस सच को भी नजरअंदाज करते चले आ रहे हैं कि किशोर न्याय अधिनियम २०१६ की धारा ७५ में स्पष्ट उल्लेख है कि बच्चा जिसके संरक्षण में होगा उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उसी संस्था की होगी।

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