Thursday, September 7, 2017

कट्टरपंथियो होश में आओ

कहने और करने में बहुत फर्क होता है। अपनी साख खो चुके नेताओं और बुद्धिजीवियों की तरह शोर-शराबा करने वालों की तादाद काफी ज्यादा है। खुद तो कुछ करते नहीं दूसरों को भी शंका की निगाह से देखते रहते हैं। कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ लिखने और बोलने वालों की हत्या कर दी जाती है। ऐसी निर्मम हत्याओं को सही ठहराने वाले कुछ चेहरे कल भी छाती ताने थे और आज भी हत्या-दर-हत्या करने से नहीं सकुचाते। अपने देश की राजनीति और नेताओं ने दूरियां बढाने में जितनी ऊर्जा खर्च की है, उतनी अगर सर्वधर्म समभाव की नीति पर चलने में लगायी होती तो वतन की तस्वीर ही बदल चुकी होती। निराशा और हताशा की डरावनी लकीरें नज़र ही नहीं आतीं। अयोध्या में हंसी-खुशी राम-मंदिर का भी निर्माण हो गया होता। वोटों की गंदी राजनीति ने फासले इस कदर बढा दिये हैं कि कुछ भी समझ में नहीं आता। हां, यह सच है कि वोटों के भूखे सत्ताधीशों ने भी निराशा के सिवाय कुछ भी नहीं दिया। यह आम लोग ही हैं जिन्होंने साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसालें पेश कर भाईचारे की लौ को जलाए रखा है। हर धर्म के मानने वालों में फरिश्तों का वास है जो बार-बार आईना दिखाते रहते हैं। देश में आए दिन कुछ नेता हिन्दू-मुस्लिम समुदाय के बीच कटुता और वैमनस्य के बीज बोने वाली भाषणबाजी कर देश का माहौल बिगाडने का खेल खेलते रहते हैं। कई लोग इनकी साजिशों के हाथों का खिलौना बनने में देरी नहीं लगाते। ऐसे दौर में पिछले दिनों उत्तराखंड के एक गुरुद्वारे के द्वार नमाज के लिए खोल दिये गये। गौरतलब है कि चमोली जनपद स्थित जोशीमठ में हर वर्ष गांधी मैदान में नमाज अदा की जाती थी, लेकिन इस बार घनघोर बारिश की वजह से नमाज पढना बेहद मुश्किल हो गया। गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी ने मुस्लिम भाइयों की इस समस्या का फौरन समाधान निकालते हुए नमाज के लिए गुरुद्वारे में सहर्ष जगह दे दी। मुस्लिम समुदाय के करीब सात सौ लोगों ने गुरुद्वारे में ईद की नमाज अदा कर देश की एकता, अखंडता और अमन चैन की दुआ मांगी। मुख्य नमाजी इमाम ने मुस्लिम समुदाय को मानवता की रक्षा करने और अन्य सभी धर्मों के लोगों की मदद के लिए सदा तैयार रहने की अपील की। नमाज के दौरान हिन्दू, सिख सहित अन्य सम्प्रदाय के लोग काफी संख्या में मौजूद थे।
आइए... अब आपको मिलाते हैं साइकिल मैकेनिक अयोध्या के अस्सी वर्षीय मोहम्मद शरीफ से जो वर्षों से लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करते चले आ रहे हैं। लगभग पच्चीस साल पूर्व १९९२ में जब राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद चरम पर था और आपसी भाईचारे के परखच्चे उडा दिये गये थे तब उनका जवान बेटा गायब हो गया था। एक महीने तक गायब रहे बेटे की सडी-गली लाश एक बोरे में बंद मिली थी। मोहम्मद को बेटे की मौत ने झकझोर कर रख दिया था। उन्हे इस बात का बेहद गम था कि उनका बेटा सम्मानजनक ढंग से अंतिम संस्कार से वंचित रह गया। तब उन्होंने काफी चिंतन-मनन किया। हत्यारे उनकी नजरों से दूर थे। किसको कोसते, अपना गुस्सा दिखाते और नफरत के बारूद को थामे बदले की भावना में जलते रहते। उन्होंने फैसला किया कि जीवन भर कटुता के साथ जीने की बजाय अमन चैन का संदेश पहुंचाया जाए। नफरत और बदले की भावना वो आग है जो कभी ठंडी नहीं होती। उन्होंने अपने बेटे की सडी-गली लाश को दफनाने के साथ यह निश्चय भी किया कि अब किसी भी लावारिस लाश का ऐसा हश्र नहीं होने देंगे। वो दिन था और आज का दिन है। वे साइकिल से जिला अस्पताल के शवग्रह के चक्कर लगाते हैं और लावारिस शव मिलने पर उसका अंतिम संस्कार करते हैं। पिछले पच्चीस सालों से नियमित कब्रिस्तान और श्मशान के चक्कर काटने वाले मोहम्मद ने पूरे शहर के सार्वजनिक स्थलों पर साइन बोर्ड लगा दिए हैं जिनपर लिखा है कि कोई भी लावारिस शव मिलने पर मुझसे संपर्क करें। उन्हें ऐसे-ऐसे शवों से रूबरू होना पडता है जो बुरी तरह से क्षत-विक्षत हो चुके होते हैं। उन्हें देखना और पहचानना भी मुश्किल होता है। वे सभी शवों को उनके धर्म के हिसाब से एक कमरे में रखते हैं, नहलाते हैं और कफन से ढकने के बाद अंतिम संस्कार करते हैं। अब तक सैकडों-हिन्दू-मुसलमानों के लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुके मोहम्मद बताते हैं मेरे इस काम में कई लोग भी मदद करते हैं। कुछ साल पहले उन्हें एक सामाजिक पुरस्कार से नवाजा गया। इसमें जो राशि मिली उससे उन्होंने हाथ से चलने वाले ठेले खरीदे और शवों को उनके अंतिम मुकाम पर ले जाने के लिए चार कामगारों को भी रख लिया। वे कहते हैं कि मैं लाश के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता। हिन्दुस्तान के आम जन भी सर्वधर्म समभाव का समर्थक हैं। यह तो नेताओं की शातिर बिरादरी है जो वोटों के चक्कर में लडाने और बांटने का काम करती है।
इसी महीने देश की राजधानी दिल्ली में दो हिन्दू और मुस्लिम परिवारों ने एक दूसरे को अंगदान करके भाईचारे की अभूतपूर्व मिसाल पेश की है। दिल्ली के इकराम और बागपत के राहुल ने दिल्ली के जेपी हॉस्पिटल में अपनी किडनी संबंधित बीमारी की जांच करायी तो पता चला कि दोनों की किडनियां पूरी तरह से खराब हो चुकी हैं। ऐसे में उन्हें एक-एक डोनर की जरूरत थी। डॉक्टरी जांच के बाद पाया गया कि दोनों के परिवार में कोई भी सदस्य किडनी डोनर के लिए उपयुक्त नहीं था। केवल इकराम की पत्नी रजिया और राहुल की पत्नी पवित्रा ही डोनर के लिए योग्य थे। समस्या यह भी थी कि दोनों मरीज और उनकी पत्नी का ब्लड ग्रुप एक नहीं होने के कारण अपने-अपने पति को किडनी दान नहीं कर सकती थीं। ऐसे में अस्पताल के डॉक्टरों ने दोनों परिवारों को इकट्ठा किया और उन्हें बताया कि यदि ऐसी स्थिति में दोनों महिलाएं एक-दूसरे के पति के लिए किडनी दान करें तो दोनों मरीजों को नया जीवन मिल सकता है। दोनों महिलाओं ने बिना किसी हिचकिचाहट किडनी दान करने का निर्णय लेने में देरी नहीं की। इसके बाद अगली प्रक्रिया के तहत करीब पांच घंटे चले ऑपरेशन ने इकराम की पत्नी रजिया की किडनी राहुल को और राहुल की पत्नी पवित्रा की किडनी इकराम को सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित कर दी गई।

No comments:

Post a Comment