Thursday, October 19, 2017

क्यों नहीं लेते सबक?


ज़िन्दगी अनमोल है। इसके साथ खिलवाड करना ठीक नहीं है। लोगों को इस बारे में आप लाख समझाते रहो, सतर्क होने का पाठ पढाते रहो, फिर भी कुछ लोग जानबूझकर भूलें करते ही चले जाते हैं। यह हकीकत कितनी हैरान करने वाली है कि भारतवर्ष में हर वर्ष लापरवाही से पटाखे जलाने के कारण लगभग छह हजार लोग अपनी आंखें गंवा देते हैं। 'ब्लू व्हेल' नामक जानलेवा ऑनलाइन सुसाइड गेम की वजह से भारत और दुनिया में कई बच्चों ने को मौत को गले लगा लिया। यह वो आत्मघाती खेल है जिसमें खिलाडी को ५० दिन के अंदर कई टास्क पूरे करने होते हैं और इसका आखिरी टास्क खिलाडी को आत्महत्या के लिए विवश कर देता है। ब्लू व्हेल से दूर रहने के लिए कितना कुछ लिखा और समझाया गया, लेकिन लत तो लत है जो पीछा नहीं छोडती। माना कि स्मार्ट फोन पर युवाओं को रोमांचक गेम खेलना बहुत लुभाता है, लेकिन जान दे देना कहां की अक्लमंदी है? कल ही एक खबर पढने में आयी कि चीन में इसी शौक की वजह से एक इक्कीस वर्षीय लडकी की आंख की रोशनी चली गई। गौरतलब है कि इस लडकी ने लगातार २४ घण्टे तक अपने स्मार्ट फोन पर 'ऑनर ऑफ किंग्स' नामक गेम खेला जिसके बाद उसकी आंख की रोशनी जाती रही। 'ऑनर ऑफ किंग्स' चीन का बेहद लोकप्रिय गेम है जो धीरे-धीरे भारत में भी अपने पांव पसार रहा है। इस गेम को चीन के लगभग २० करोड लोग प्रतिदिन खेलते हैं। अपनी आंखों की रोशनी गंवा चुकी लडकी इस गेम को खेलने के चक्कर में ८-१० घण्टे न कुछ खाती-पीती थी और न ही टायलेट जाती थी। यहां तक कि जिस दिन ऑफिस में छुट्टी होती थी उस दिन सुबह छह बजे उठकर नाश्ता करने के बाद शाम चार बजे तक वह गेम खेलती और नाम मात्र की नींद लेकर फिर रात १ बजे तक गेम खेलती थी।
जीते-जागते इंसानों की जान लेने के खेलों और साजिशों के इस दौर में धन की हद से ज्यादा अहमियत बढ गई है। हम भारतवासी हजारों वर्षों से दीपावली मनाते चले आ रहे हैं। यह महापर्व अंधकार पर प्रकाश की, बुराई पर अच्छाई की, दुर्गुणों पर सदगुणों की और दुर्जनों पर सज्जनों की विजय का प्रतीक है। फिर भी घोर अंधकाररूपी इन बुराइयों का अंत होता नजर नहीं आता। लगभग हर रोज कितनी धोखाधडी, लापरवाही और लूटमारी की खबरें अंधेरे की काली तस्वीर सामने लाकर रख देती हैं। देश की राजधानी दिल्ली में स्थित बाबू जगजीवन अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही और लालची प्रवृति का बदरंग और बेहद भयावह चित्र देखने में आया है। दिल्ली की जहांपुरी इलाके की निवासी सलमा गर्भवती थीं। उन्हें ५ अक्टूबर को उक्त अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सात अक्टूबर को जब सलमा का अल्ट्रासाउंड कराया गया तो डॉक्टरों ने जच्चा और बच्चा दोनों को स्वस्थ बताया, लेकिन सलमा दर्द के मारे बेहाल थी। उसकी चीखें अस्पताल के कमरे की दीवारों को हिला रही थीं। कुछ घण्टों के बाद उसके परिजनों ने सलमा की असहनीय तकलीफ के बारे में जब डॉक्टरों को बताया तो उन्होंने कहा गर्भावस्था में ऐसी पीडा का होना आम बात है। परिजनों के भारी दबाव के बाद जब सलमा का एक और अल्ट्रासाउंड कराया गया तो बहुत ही चौंकाने वाला सच सामने आया। रिपोर्ट के मुताबिक बच्चा दो दिन पहले ही गर्भ में मर चुका था। डॉक्टरों के पास इसका कोई जवाब नहीं था। जवाब देते भी कैसे? उनके अंदर बैठे डकैत ने उनकी मानवता का हरण जो कर लिया था। इन डाकुओं की घोर लापरवाही के कारण एक ममतामयी मां का शिशु इस दुनिया में आने से पहले ही दम तोड गया। ऐसे में वही हुआ जो अक्सर होता देखा जाता है। अस्पताल में ही मारपीट और गाली-गलौच की तमाशेबाजी शुरू हो गयी। डॉक्टर खुद को दोषी मानने को तैयार ही नहीं थे। पुलिस ने अस्पताल पहुंचकर परिजनों को शांत करने में बहुत बडी भूमिका निभायी। उसके बाद सलमा को दूसरे अस्पताल ले जाया गया जहां मृतभ्रूण को बाहर निकाला गया और संक्रमण फैलने की स्थिति टल पाई।
कई लोग कभी नहीं बदलते। स्वार्थ और लालच के पहिए पर उनकी जिन्दगी सतत दौडती रहती है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें उनके जीवन में आने वाले तूफान बदल कर रख देते हैं। ऐसा भी कह सकते हैं कि वे खुद में परिवर्तन लाने या दिखाने को मजबूर हो जाते हैं। इस हकीकत ने बहुत तसल्ली दी कि अपनी बेटी आरुषि की हत्या के मामले में जेल में लगभग चार साल तक बंद रहे तलवार दंपति ने कैदियों की सेवा में खुद को पूरी तरह से समर्पित कर दिया था। जब वे जेल में आए तो उन्हें जेल अधिकारियों ने कैदियों की सेवा में जुट जाने का अनुरोध किया। दांत की बीमारी को लेकर कई कैदी परेशान थे और दंत चिकित्सा विभाग बंद हो चुका था। कैदियों को इलाज के लिए बाहर भी नहीं भेजा जा सकता था। तलवार दंपति ने कैदियों की तकलीफों को समझते हुए फौरन स्वीकृति दे दी। नुपुर तलवार महिला कैदियों के इलाज तो राजेश तलवार पुरुष कैदियों के दर्द को दूर करने में इस कदर डूब गए कि जेल अधिकारी भी उनकी सेवा-भावना का अभिनंदन करने को विवश हो गए। दोनों ने १४१८ दिन जेल में काटे। उनकी रिहाई के फैसले से दस मिनट पहले जेल क्लीनिक से संदेश आया कि एक कैदी के दांतों में बहुत दर्द है तो राजेश तलवार तुरन्त क्लीनिक पर गए और उसका इलाज किया। उन्हें जेल में रोज महज ४० रुपये दिहाडी मिलती थी। दोनों ने ४९,५००-४९,५०० रुपये यानी कुल मिलाकर निन्यानवे हजार रुपये कमाए। इस रकम को भी उन्होंने दान कर दिया। जेल से रिहा होने के बाद तलवार दंपति ने यह निश्चय किया है कि वे कैदियों के इलाज के लिए हर १५ दिन में डासना जेल जाते रहेंगे।

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