Thursday, October 26, 2017

इस रोग का क्या है इलाज?

२०१७ की दिवाली की शाम। नागपुर में फिर एक युवक अंधश्रद्धा की बलि चढा दिया गया। कुणाल खेरे नामक छत्तीसगढी १९ वर्षीय युवक अपने घर के होम थियेटर पर गौरा-गौरी के गानों का आनंद ले रहा था। नागपुर के डिप्टी सिगनल इलाके में काफी बडी संख्या में रोजी-रोटी की तलाश में छत्तीसगढ के लोग आकर बसे हैं। छत्तीसगढ की तर्ज में नागपुर में भी गौरा-गौरी उत्सव बडी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। उत्सव की तैयारियों के उत्साह में कुणाल भजनों भरे गीत जोर-शोर से बजाने में तल्लीन था। गीतों की तेज आवाज उसके पडोसी को खल रही थी। उसे गुस्सा आ रहा था। जब उसने देखा कि शोर थमने का नाम नहीं ले रहा है तो उसने कुणाल के घर के सामने खडे होकर अपना तीव्र विरोध जताना शुरू कर दिया। पडोसी का कहना था कि भजनों को सुनने से उसकी पत्नी के शरीर में देवी आ जाती है और वह बेकाबू हो जाती है। कुणाल और उसके परिवार के लोगों ने पडोसी के विरोध को नजरअंदाज कर दिया। इससे पडोसी आग बबूला हो गया और देखते ही देखते दोनों परिवारों में गाली-गलोच और मारपीट होने लगी। इसी दरम्यान कुणाल और उसके पिता पर तीक्ष्ण हत्यारों से हमला कर दिया गया। कुणाल की घटनास्थल पर मृत्यु हो गई।
अंधविश्वास, अंधभक्ति और अंधश्रद्धा ने इस सृष्टि में कितना कहर ढाया है इसका हिसाब-किताब किसी के पास नहीं है। यह वो रोग है जो कहीं न कहीं सदियों से जिन्दा है। इसके खात्मे की न जाने कितनी कोशिशें की गर्इं, लेकिन पूरी तरह सफलता नहीं मिली। गांव तो गांव प्रगतिशील शहर भी इसके प्रभाव से अछूते नहीं हैं। वैसे यह भी सच है कि शहर हों या गांव आखिर बनते तो लोगों की वजह से ही हैं। हमारे ही समाज में ऐसे लोगों की अच्छी-खासी तादाद है जो अंधविश्वास से मुक्त नहीं होना चाहते। इन्हीं की वजह से नये-नये बाबा जन्मते रहते हैं और अपना मायाजाल फैलाकर अंधेरगर्दी का अंधकार फैलाकर अपने आर्थिक साम्राज्य का अकल्पनीय विस्तार करते चले जाते हैं। मायावी साधु-संतों ने समाज को दिया कम और वसूला ज्यादा है। हमारे देश में जिस तादाद में साधु-संत-प्रवचनकार हैं उससे तो होना यह चाहिए था कि आम लोगों में संयम, शालीनता का वास होता और गुस्से की जगह नम्रता और शालीनता की धारा बह रही होती। लेकिन ऐसा दिखता नहीं है। बडे तो बडे बच्चे भी हत्यारों की भूमिका में नजर आने लगे हैं। जो मंजर सामने आ रहे हैं वे बेहद डराते हैं।
नागपुर से ज्यादा दूर नहीं है यवतमाल शहर। इस शहर में ऐन दिवाली के दिन छठवीं कक्षा के एक बारह वर्षीय छात्र की हत्या कर दी गई। हत्यारे थे उसी के तीन हमउम्र साथी। पतंग को लेकर आपसी विवाद हुआ था। तीनों नाबालिगों ने पुलिसिया पूछताछ में बताया कि शाम को ट्यूशन से लौटते समय अभीजित ने पतंग लूट ली थी जिसे उन तीनों ने छीन लिया। अभीजित ने उनकी इस हरकत का पुरजोर विरोध किया और गाली-गलोच पर उतर आया। इसपर वे भी अपना आपा खोकर उसकी तब तक धुनायी करते रहे जब तक वह बेहोश नहीं हो गया। उसे बेहोश देखकर उन्हें शंका हुई कि कहीं वह मर तो नहीं गया। ऐसे में उन्होंने उसका पूरी तरह से काम तमाम करने के लिए पत्थर उठाया और कुचल कर उसे पूरी तरह से मुर्दा कर लाश झाडियों में छुपा दी। जब तीनों नाबालिगों ने इस भयावह वारदात को अंजाम दिया उस समय वे नशे में थे। जहां लाश मिली वहां पर नशेडियों का जमावडा लगा रहता है। नशा करने वालों की वह मनपसंद जगह है।
लोग तरह-तरह का नशा करते हैं। कहते हैं कि सत्ता और धन का नशा सबसे खतरनाक होता है। इसके नशे में चूर इंसान को भी हैवान बनते देरी नहीं लगती। अपने देश में सत्ता के नशे के गुलामों का अहंकार देखते बनता है। देश के विशालतम प्रदेश बिहार के एक गांव में पंचायत के मुखिया दयानंद मांझी की उपस्थिति में दर्जनभर दबंगों ने एक गरीब को जबरन थूक चटवायी और चप्पलों से पिटायी कर अपने अहंकार की पीठ थपथपायी। उस बुजुर्ग गरीब का कसूर यह था कि वह खैनी (तम्बाकू) की चाह में बिना अनुमति लिए एक दबंग के घर चला गया था। दरवाजे पर कोई नहीं था। गांव में शहरों की तरह दिखावटी औपचारिकता निभाने और दिखाने का चलन नहीं है। भारतीय ग्रामों में एक-दूसरे के घरों में बिना पूछे चले जाना आम है। लेकिन दबंग को उस गरीब का घर में प्रवेश करना रास नहीं आया। कोई धनवान होता तो उसे कोई फर्क नहीं पडता, लेकिन गरीब का बिना पूछे घर में प्रवेश करना उसे बुरी तरह से चुभ गया। उसके घर की महिलाओं ने उस पर छेडखानी का आरोप जड दिया। दिवाली के दिन दबंग के घर गांव के मुखिया की अगुवाई में पंचायत बुलाई गई। पंचायत ने जमीन पर थूक फेंककर गरीब बुजुर्ग को चाटने का आदेश दिया जिसे उसे मानना ही पडा। इसके साथ ही महिलाओं ने भी उसकी चप्पलों से पिटायी की। उससे यह शपथ भी दिलाई गई कि वह बिना पूछे किसी के घर में नहीं जाएगा। दबंगों ने तो उसके चेहरे पर कालिख पोत गधे पर बिठाकर पूरे गांव में घुमाने की तैयारी भी कर ली थी। इतनी प्रताडना सहने के बाद भी पीडित थाने में जाकर शिकायत करने की हिम्मत नहीं कर पाया। पंचायत और रईसों की सामंती सोच का विडियो जब वायरल हुआ तो तब कहीं जाकर पुलिस हरकत में आयी। गांव वालों का रवैय्या भी कम शर्मनाक नहीं रहा। गरीब की इज्जत लुटती रही और वे तमाशा देखते रहे। वैसे भी तमाशा देखने के मामले में हम भारतवासियों का जवाब नहीं। विशाखापटनम में एक नशेडी स्थानीय रेलवे स्टेशन के पास के फुटपाथ पर एक विक्षिप्त महिला के साथ बेखौफ होकर बलात्कार करता रहा और लोग अनदेखी कर आते-जाते रहे। कुछ अति उत्साही तमाशबीनो ने तस्वीरें खींची और वीडियो भी बनाया, लेकिन किसी ने भी उस वहशी बलात्कारी को रोकने का साहस नहीं दिखाया।

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