Thursday, November 23, 2017

सुखद संदेश

आज के दौर में भी घर में बेटी के जन्म लेने पर मातम मनाने वालों की कमी नहीं है। अच्छे-खासे पढे-लिखे लोगों का भी बेटियों के प्रति वही पुराना नज़रिया है कि बेटियां तो उम्रभर का बोझ होती हैं। यह काला सच देश के माथे पर लगा वो दाग है जिसे मिटाने की भी निरंतर कोशिशें होती रहती हैं। हरियाणा के फतेहाबाद से आयी खबर ने वाकई नई उम्मीदें जगा दीं और यह संदेश भी दे दिया कि यदि इरादे नेक हों तो मन की चाहत पूरी होने और रास्ते निकलने में देरी नहीं लगती। फतेहाबाद के रहने वाले एक पुत्र के माता-पिता की दिली तमन्ना थी कि उनके यहां बिटिया का जन्म हो और उनका जीवन सार्थक हो जाए। लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हो पायी और इस बार भी अस्पताल में बेटे ने ही जन्म लिया। उनका मन बुझ गया। उसी अस्पताल में ही गांव किशनगढ (हिसार) निवासी भूपसिंह की पत्नी रेनू को डिलीवरी के लिए लाया गया था। रेनू की पहले से तीन बेटियां हैं। उनकी चाहत थी कि बेटियों का एक भाई होना चाहिए। मगर डिलीवरी हुई तो कन्या का आगमन हुआ। इसी बीच उन्हें उस दंपति के बारे में पता चला जिन्हें बिटिया की चाह थी, लेकिन उनके यहां बेटे ने जन्म लिया था। रेनू के परिवार वालों ने उस दंपति से संपर्क कर उनका बेटा गोद लेने की इच्छा जतायी। अंधा क्या मांगे... दो आंखें।... उस दंपति ने फौरन स्वीकृति देते हुए अपने नवजात बेटे को उनकी गोद में डालकर उनकी और अपनी मुरादें पूरी कर ली। गौरतलब है कि दोनों परिवार एक ही समाज से हैं, लेकिन उनका मिलन अस्पताल में ही हुआ जहां पर एक अटूट रिश्ता कायम हो गया।
देश की राजधानी दिल्ली को तमाशबीनों का महानगर भी कहा जाता है। लोगों की आंखों के सामने सडक दुर्घटनाए होती रहती हैं और लोग हैं कि अनदेखी करने में अपनी भलाई और चतुराई समझ आगे बढ जाते हैं। दिल्ली के माथे पर लगे इस धब्बे को धोने की कोशिश की है दिल्ली के अशोक विहार मोंट फोर्ट स्कूल की टीचर सारिका ने। ऐसे में सबसे पहले उन्हें उनकी पहल और जागृति के लिए सलाम तो किया ही जाना चाहिए। वाकया है अशोक विहार का जहां सडक के बीचोंबीच खून से लथपथ एक युवक तडप रहा था और आते-जाते लोग मुंह फेरकर निकलते चले जा रहे थे। कुछ ऐसे उत्साही समझदार लोग भी थे जिन्हें वीडियो और तस्वीर लेने में बेहद मज़ा आ रहा था। ऐसे निर्मम लोगों का अनुसरण न करते हुए इंसानियत का असली फर्ज निभाते हुए सामने आर्इं सारिका। लोग जहां उलटे पडे जख्मी युवक को हाथ लगाने से भी कतरा रहे थे, सारिका ने न सिर्फ उसे सीधा किया बल्कि अपने दुपट्टे से उसके सिर से बहते खून को रोकने की भरपूर कोशिश करने के बाद ऑटो को रूकवाकर युवक को सुंदरलाल जैन अस्पताल ले गर्इं। उसने डॉक्टरो को उसका त्वरित इलाज करने के लिए मनाया। फिर भी अफसोस कि युवक ने इलाज के दौरान अस्पताल में दम तोड दिया। इंसानियत का फर्ज़ निभाने वाली सारिका का कहना है कि यदि दुर्घटनाग्रस्त युवक को फौरन अस्पताल पहुंचाया जाता तो यकीनन उसकी जान बच सकती थी। दिल्ली वालों की निर्दयता और वीडियो बनाने तथा तस्वीरें खींचने की बेहूदगी ने उसकी जान ले ली। सारिका जब घर से स्कूल जा रही थी तभी लोगों की भीड के बीच घायल युवक को तडपते देखा था तो उन्होंने लोगों से खून से लथपथ युवक को तुरंत अस्पताल पहुंचाने का निवेदन किया और हाथ भी जोडे, लेकिन सभी ने मुंह फेर लिया था। वे स्वयं जिस ऑटो में थीं, उसके ड्राइवर ने भी युवक को अस्पताल ले जाने से मना कर दिया था। उसका कहना था कि वह किसी लफडे-पचडे में नहीं पडना चाहता। उसे तुरंत पेमेंट देकर रवाना करने के बाद सारिका ने कई ऑटो वालों को रूकने का इशारा किया मगर कोई नहीं रूका। उन्होंने एक ऑटो वाले को हाथ-पांव जोडकर किसी तरह से तैयार किया और दो युवकों की मदद से युवक को ऑटो में लिटाया और अस्पताल पहुंची।
अब आपको मिलवाते है मुंबई के दीपक टांक से जिन्होंने महिलाओं के साथ होने वाली छेडछाड के खिलाफ अभियान छेड कर डेढ सौ से अधिक मनचलों को जेल पहुंचाया है। दीपक के मन में महिलाओं के साथ छेडछाड करने वाले मनचलों के खिलाफ लडाई छेडने का विचार तब आया जब देश की राजधानी दिल्ली में निर्भया के साथ हुए अमानवीय कृत्य से पूरा देश दहल गया था। दीपक का मानना है कि अगर आप किसी छेडछाड की घटना को रोकते हैं तो आप संभावित बलात्कार की घटना को भी रोकते हैं। दीपक स्वीकार करते हैं कि वे भी कभी किसी महिला के साथ छेडछाड होने की घटना को नजरअंदाज कर देते थे, लेकिन निर्भयाकांड के बाद उन्होंने बदमाशों के खिलाफ कमर कसने का निर्णय ले लिया। वे कहते हैं कि किसी भी महिला के साथ अभद्र व्यवहार करना बेहद शर्मनाक कृत्य है। क्या कोई अपनी मां या बहन के साथ अशोभनीय हरकत करता है? ...क्या कोई चाहेगा कि उसकी पत्नी, बहन के साथ ऐसी बदतमीजी हो? जब हम अपनी मां-बहनों पर किसी की टेढी नज़र को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो हमें दूसरे की मां-बहनों का भी सम्मान करना चाहिए और उनकी सुरक्षा के लिए किसी भी जोखिम  और संकट का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। मवालियों को मनमानी करते देख आंखें बंद कर लेने से बडा और कोई अपराध हो ही नहीं सकता।

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